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जानिए एक चम्मच च्यवनप्राश में कितने इंग्रेडिएंट्स, कितने फायदे 

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ठंड के महीनों में रोजाना एक चम्मच च्यवनप्राश खाने के फायदे बचपन में हमें गिनाए जाते थे- इम्युनिटी बढ़ाने वाले गुण और हमारे शरीर को गर्म रखने का सबसे अच्छा तरीका. पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों ने इसका स्वाद चखा है और इसके फायदों को परखा है. ठंड के दिनों की ये 'जादुई औषधि' कोरोनावायरस के दौर में भी असरदार मानी जा रही है. भारत सरकार की आयुष मंत्रालय ने इम्युनिटी बढ़ाने के लिए इसका सेवन करने का निर्देश दिया है.

इसके फायदे में मुख्य तौर पर शामिल है- ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाना, खून साफ करना, विषाक्त तत्वों को दूर करना, श्वसन तंत्र की सफाई, पाचन में सुधार, ब्लड प्रेशर को ठीक रखना, इम्युनिटी बढ़ाना, इंफेक्शन रोकना.

खास बात ये है कि इसका सेवन बच्चे, युवा, बुजुर्ग सभी कर सकते हैं. च्यवनप्राश के खास खट्टे, मीठे, मसालेदार स्वाद और टेक्सचर से पता लगाना मुश्किल है कि इसके एक चम्मच में हम कितनी ही आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन कर लेते हैं.

ये एक आयुर्वेदिक हेल्थ सप्लीमेंट है जो पोषक तत्वों से भरपूर जड़ी-बूटियों और खनिजों का मिक्सचर होता है. करीब 50 औषधीय जड़ी बूटियों और उनके अर्क को प्रोसेस कर इस एंटीऑक्सिडेंट पेस्ट को तैयार किया जाता है. सबसे प्रमुख इंग्रेडिएंट होता है आंवला (इंडियन गूजबेरी), जो विटामिन सी का भरपूर स्रोत है.
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च्यवनप्राश के ऑरिजिन के बारे में जानिए

ऐसा माना जाता है कि 'च्यवन' उस ऋषि का नाम था, जिन्होंने इस आयुर्वेदिक फॉर्मूला का इस्तेमाल युवावस्था और जीवन शक्ति को बनाए रखने के लिए किया था, वहीं 'प्राश' का शाब्दिक अनुवाद है- एक ऐसी दवा या खाद्य पदार्थ जो कंज्यूम करने के लिए उपयुक्त है.

इसे भारत के हरियाणा में नारनौल क्षेत्र के पास ढोसी की पहाड़ियों में उनके धर्मशाला में तैयार किया गया था. च्यवनप्राश तैयार करने की सबसे पुरानी रेसिपी चरक संहिता में दर्ज है, जिसमें इसे बाकी सभी हर्बल कायाकल्प टॉनिक से बेहतर बताया गया है.

आयुर्वेदिक औषधि की कंज्यूमर मार्केट में एंट्री

1950 के दशक में च्यवनप्राश की कंज्यूमर मार्केट में एंट्री हुई. इसे अलग-अलग पैकेजिंग में उतारा गया लेकिन कहते हैं कि इसके पारंपरिक फार्मूले में कोई भी बदलाव हुआ तो वो ‘च्यवनप्राश’ नहीं रह सकता.

च्यवनप्राश में औषधियों की 4 श्रेणियों का इस्तेमाल किया जाता है.

  1. दशमूला(दस जड़ें)
  2. चतुरजता(चार सुगंधित पौधे)
  3. अष्टवर्ग (पश्चिम-उत्तर हिमालय की औषधीय जड़ी बूटियां, जो अब व्यावसायिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं)
  4. और सामान्य औषधियां

इसमें इस्तेमाल होने वाली प्रमुख जड़ी-बूटियां हैं-

अश्वगंधा-एंटी ऑक्सीडेंट, युवापन बनाए रखने के गुण

बाला- एंटी ऑक्सीडेंट, ताकत बढ़ाने वाले गुण

पिप्पली- श्वसन तंत्र को ठीक रखने, पाचन में सहायक

गोक्षुर- किडनी को स्वस्थ रखने के गुण, ताकत और स्टैमिना बढ़ाना

आंवला- एंटी एजिंग, इम्युनिटी बूस्टर, एंटी ऑक्सीडेंट

गुडुची- हेप्टोप्रोटेक्टिव

शतावरी- आंखों के लिए फायदेमंद, दिमाग की तंदरुस्ती

ब्राह्मी-न्यूरोप्रोटेक्टिव

च्यवनप्राश के प्राचीन इनग्रेडिएंट्स में शामिल 8 जड़ी-बूटियां(अष्टवर्ग) अब ‘विलुप्त’ हो चुकी हैं. ये आंवले की एंटीऑक्सीडेंट भूमिका को बढ़ाने का काम करने वाली औषधियां थीं. अब कॉमर्शियल फॉर्मूलेशन में इनकी जगह दूसरे हर्ब इस्तेमाल किए जाते हैं.
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कैसे तैयार किया जाता है च्यवनप्राश?

जड़ी बूटियां- बायल, अग्निमंथ, कश्मिर्या, श्योनक, पाटला, गोक्षुर, सरीवन, बरिकतेरी, कांतकरी, काकड़ासिंगी, द्राक्ष, हरितकी, गुडुची, बाला, भूम्यमालकी, वासा, जीवन्ति, कच्छुर, पुष्करमूल, मुस्ता, मुडागपर्णी, माशापर्णी, शालपर्णी, पीठावन, पिप्पली, काकनासा, वरही, विदारीकंद, पुनर्नवा, नीलकमल, अगुरु, चंदन, शतावरी और अश्वगंधा

सभी जड़ी बूटियों को साफ पीने लायक पानी में डाल दिया जाता है. आंवले को साफ सूती कपड़े में बांधकर (पोटली) जड़ी-बूटियों वाले इस पानी में डुबोया जाता है. इसके बाद, जब तक काढ़ा एक चौथाई न हो जाए तब तक इस मिश्रण को उबाला जाता है. पोटली निकालने के बाद, आंवले से बीज हटा लिए जाते हैं, बचे हुए आंवले के गूदे को एक साफ मलमल के कपड़े पर रगड़ा जाता है, रेशे अलग कर दिए जाते हैं, और गीला पेस्ट इकट्ठा किया जाता है. इसके बाद, आंवले के पेस्ट को लोहे के बर्तन में गाय के घी और तिल के तेल के साथ मिलाया जाता है और भूरा-लाल होने तक भूना जाता है.

काढ़े को छान लिया जाता है. फिर हर्बल काढ़े में चीनी डालकर चाशनी तैयार की जाती है.आंवले के पेस्ट को इस काढ़े में मिलाया जाता है और दो तार की चिपचिपाहट होने तक गर्म किया जाता है. इसके बाद वंशलोचन, पिप्पली, नागकेसर, इलायची, तामलपात्र और दालचीनी मिलाई जाती है. मिश्रण को ठंडा करने के बाद, शहद (पुराना, प्राकृतिक, शुद्ध) को अच्छे से मिलाया जाता है और तैयार प्रोडक्ट को एयरटाइट कंटेनर में रखा जाता है.

क्या है सेवन का सही तरीका?

  • सुबह खाली पेट 1 चम्मच दूध के साथ लेना सही माना जाता है. 12 से 28 ग्राम सेवन के लिए सही मात्रा है.
  • इसे हल्के गुनगुने पानी के साथ भी लिया जा सकता है.
  • डायबिटिक लोगों के लिए शुगर फ्री च्यवनप्राश के सेवन की सलाह दी जाती है.
  • आंवले की वजह से इसे सोते वक्त लेने से बचना चाहिए क्योंकि इससे दांतों पर बुरा असर पड़ सकता है.

सिर्फ सर्दियों में च्यवनप्राश का सेवन करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इसमें मौजूद अधिकांश जड़ी-बूटियां शरीर में गर्मी पैदा करने के लिए जानी जाती हैं, इसलिए गर्म महीनों में इसे लेने से बचना चाहिए.

ये भी ध्यान दें कि च्यवनप्राश किसी भी तरह की बीमारी का इलाज नहीं है, ये खुद को स्वस्थ रखने के कई तरीकों में शामिल एक तरीका है. इससे बीमारियों से बचाव में मदद मिल सकती है, लेकिन उन्हें पूरे तरीके से ठीक करने के लिए डॉक्टरी इलाज जरूरी है.

(इनपुट NCBI- नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नॉलजी इंफॉर्मेशन से)

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