कोरोना वायरस डिजीज-2019 (COVID-19) से पीड़ित मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी के प्रभाव को लेकर काफी चर्चा रही. इस थेरेपी के शुरुआती नतीजों को देखते हुए इसे COVID-19 के इलाज में काफी कारगर बताया जाने लगा. ऐसे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) का हवाला देते हुए ये स्पष्ट किया है:
वर्तमान में कोविड-19 के लिए प्लाज्मा थेरेपी सहित किसी भी थेरेपी को मंजूरी नहीं दी गई है. प्लाज्मा थेरेपी उन कई थेरेपीज में से एक है, जिन पर इस समय प्रयोग किए जा रहे हैं. हालांकि अभी तक इसके उपचार होने के बारे में कोई प्रमाण मौजूद नहीं हैं.
COVID-19 से निपटने के लिए प्लाज्मा थेरेपी पर अभी पूरा भरोसा क्यों नहीं किया जा सकता है और इसके कारण क्या जटिलताएं हो सकती हैं, ये जानने के लिए फिट ने क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट और आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में मेडिकल सर्विसेज के चीफ डॉ सुमित रे और फोर्टिस हॉस्पिटल, वसंतकुंज, नई दिल्ली में पल्मोनोलॉजी और मेडिकल क्रिटिकल केयर डिपार्टमेंट के डायरेक्टर और हेड डॉ विवेक नांगिया से बात की.
पर्याप्त वैज्ञानिक सबूत मौजूद नहीं
डॉ सुमित रे बताते हैं कि प्लाज्मा थेरेपी को मंजूरी नहीं दी जा सकती क्योंकि इसके लिए अभी पर्याप्त सबूत नहीं हैं.
डॉ विवेक नांगिया बताते हैं, "कोविड-19 की महामारी में प्लाज्मा थेरेपी के सपोर्ट में बहुत कम डेटा मौजूद है. चीन के 10 मरीजों पर एक शुरुआती रिपोर्ट में इसके फायदे का जिक्र है. ये सभी पेशेंट गंभीर रूप से बीमार थे और दूसरी थेरेपी भी ले रहे थें. प्लाज्मा थेरेपी देने के 3 दिनों में ज्यादातर रोगियों क्लीनिकल सुधार देखा गया, उनकी छाती के सीटी स्कैन में भी सुधार दिखा और 3 में से 2 रोगियों को वेंटिलेटर की जरूरत नहीं रही. रोगियों पर कोई भी हानिकारक प्रभाव नहीं देखा गया."
इस थेरेपी को लेकर पहले भी अध्ययन किए गए हैं. अतीत में दूसरे वायरल संक्रमण के प्रकोप में इसका इस्तेमाल गया, जिसके वैरिएबल रिजल्ट पाए गए. 2003 में SARS महामारी के दौरान इसे आजमाया गया था, जिसके नतीजे में 7 से 23% कम मृत्यु दर और अस्पताल में रहने की अवधि में कमी देखी गई.डॉ विवेक नांगिया
2009 में H1N1 इन्फ्लूएंजा वायरस के रोगियों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी पर की गई एक स्टडी में मृत्यु दर में 80% की कमी और मरीज को ICU में रखने की अवधि में कमी दर्ज की गई थी.
हालांकि, दूसरी ओर H5N1 (एवियन फ्लू) और इबोला वायरस के रोगियों में इसका उपयोग कोई महत्वपूर्ण फायदा नहीं दिखा.डॉ विवेक नांगिया
इसलिए जाहिर है कि COVID-19 के लिए भी इसके प्रयोग को लेकर पर्याप्त वैज्ञानिक आधार के लिए बड़े पैमाने पर स्टडीज की जरूरत है.
प्लाज्मा थेरेपी से खतरा भी हो सकता है!
स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से यहां तक कहा गया है कि प्लाज्मा थेरेपी के उपयोग से जीवन को संकट में डालने वाली जटिलताएं भी हो सकती हैं.
इस पर डॉ सुमित रे कहते हैं कि सभी थेरेपीज में प्रतिकूल प्रभाव और जटिलताओं की आशंका रहती है. इसलिए हर ट्रीटमेंट पर ट्रायल की जरूरत होती है, बिना सबूत के किसी थेरेपी का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
दरअसल, प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन से फेफड़े को नुकसान हो सकता है, इसे ट्रांस्फ्यूजन-रिलेटेड एक्यूट लंग इंजरी (TRALI) कहते हैं. ये अपने आप में COVID के सीवियर रोगियों, जो पहले से एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम से जूझ रहे हों, उनके लिए खतरनाक हो सकता है.डॉ रे
डॉ रे कहते हैं, "गंभीर रूप से बीमार रोगियों की देखभाल करना हमेशा जटिल रहा है और यही COVID-19 के लिए भी है. आमतौर पर लोग उस जटिलता के संपर्क में नहीं आते हैं, लेकिन एक क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट के तौर पर हम रोजाना इससे निपटते हैं."
COVID-19 के मामलों में प्लाज्मा थेरेपी
कुछ स्टडीज के निष्कर्ष में COVID-19 के लिए कोई खास इलाज न होने की स्थिति में प्लाज्मा थेरेपी को संभावित उपचार का विकल्प बताया गया है. लेकिन इस थेरेपी के फायदे के साथ ही चुनौतियों से निपटने का भी जिक्र है.
डॉ नांगिया के मुताबिक इस थेरेपी को शुरू करने से पहले एक रिस्क बेनिफिट एनालिसिस जरूर की जानी चाहिए.
डॉ रे कहते हैं कि अभी कोई एंटी-कोविड ट्रीटमेंट मौजूद नहीं है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि सिर्फ इस वजह से हम बिना वैज्ञानिक जांच के कोई थेरेपी इस्तेमाल करें. इन्फ्लूएंजा और H1N1 सहित कई वायरस हैं, जिनमें प्रभावी एंटी-वायरल दवाएं नहीं हैं, लेकिन अच्छे सपोर्टिव केयर और बीमारी के कारण शारीरिक प्रक्रियाओं में हुई गड़बड़ी को समझते हुए लोगों की जान बचाई जाती है.
COVID-19 को ठीक करने के लिए कोई चमत्कारिक इलाज नहीं है. हम वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को दरकिनार नहीं कर सकते हैं. अच्छी क्वालिटी के सपोर्टिव केयर के जरिए ही देखभाल की जा सकती है.डॉ रे
प्लाज्मा थेरेपी पर ICMR की स्टडी
स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी है कि ICMR ने प्लाज्मा थेरेपी के प्रभाव का आकलन करने के लिए एक राष्ट्रीय अध्ययन भी शुरू किया है. देश के कई राज्यों में इस थेरेपी को लेकर ट्रायल चल रहे है.
जब तक ICMR का यह अध्ययन पूरा नहीं हो जाता और पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हो जाते, शोध और परीक्षण के उद्देश्यों के अलावा इसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए.
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