होली है! ये कहना ज्यादा सही होगा कि केमिकल वाली होली है. इस बार होली में रंग खेलने के बाद अपने चेहरे और शरीर पर लगे रंगों को रगड़-रगड़ कर छुड़ाना भूल जाएं. अगर आप होली में बहुत अधिक रंग खेलते हैं तो ये पढ़कर आपको थोड़ी निराशा हो सकती है.
तब की बात अलग थी, जब पेड़ों की छाल, पत्तियों, फूल, फलों के छिलके जैसे ऑर्गेनिक स्रोतों से रंग बनाए जाते थे. इसके उलट अब हानिकारक केमिकल से रंगों को तैयार किया जाता है. इनसे स्किन एलर्जी से लेकर, आपका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है और आंखों की समस्याएं तक हो सकती हैं. केमिकल्स की बदौलत, ये सारी बीमारियां होली की मस्ती में आमंत्रित हो जाती हैं.
यहां ऑर्गेनिक और केमिकल रासायनिक सोर्स से बने रंगों, उनके इंग्रेडिएंट्स और उनसे होने वाले खतरे के बारे में बताया जा रहा है.
1. काला रंग
अब काला रंग बनाने में लेड ऑक्साइड का इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे किडनी खराब हो सकती है और सीखने की क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है.
2. नीला रंग
प्रशियन ब्लू का प्रयोग नीला रंग बनाने में किया जाता है. इससे कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस हो सकता है. किसी भी तरह के एलर्जिक रिएक्शन या किसी चीज के संपर्क से स्किन पर लाल या खुजली वाले चकत्ते होने को कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस कहते हैं.
पहले नीला रंग तैयार करने के लिए इंडिगो, बेरीज, अंगूर या नीले गुड़हल का इस्तेमाल होता था.
3. हरा रंग
पहले मेहंदी, देवदार की पत्तियों, पालक, वसंत की फसलें, रोडोडेंड्रन और कुछ जड़ी बूटियों से हरा रंग बनाया जाता था.
अब हरा रंग बनाने में कॉपर सल्फेट एक महत्वपूर्ण घटक है. इससे आंखों की एलर्जी और अस्थाई अंधापन हो सकता है.
4. बैंगनी रंग
चुकंदर बैंगनी रंग बनाने का एक ऑर्गेनिक स्रोत था.
अब बैंगनी रंग तैयार करने के लिए इस्तेमाल होने वाले क्रोमियम आयोडाइड से ब्रोंकियल अस्थमा और स्किन एलर्जी हो सकती है.
5. लाल रंग
गुलाब, लाल चंदन पाउडर, अनार, सूखे गुड़हल सभी लाल रंग बनाने के ऑर्गेनिक स्रोत थे.
इनकी जगह अब मर्करी सल्फाइड का प्रयोग होता है, जिससे स्किन कैंसर, पैरालिसिस और संज्ञान में कमी या दृष्टि दोष हो सकता है.
(सोर्स: नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस म्यूजियम)
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