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कश्मीर पर मेडिकल जर्नल लांसेट की रिपोर्ट,राजनीति या सेहत की चिंता?

राजनीति जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है, जिसमें सेहत भी शामिल है.

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भारत में आर्टिकल 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और घाटी में सैन्य बलों को बढ़ाने पर मेडिकल जर्नल द लांसेट की एक रिपोर्ट पर विवाद शुरू हो गया है. इस मेडिकल जर्नल में कश्मीरी लोगों के “स्वास्थ्य, सुरक्षा और स्वतंत्रता” को लेकर चिंता जताई गई है.

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IMA ने कहा, कश्मीर भारत का आंतरिक मामला

वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की ओर से लांसेट की इस रिपोर्ट को दुर्भाग्यपूर्ण बताया गया है.

IMA के मुताबिक कश्मीर के मुद्दे पर मेडिकल जर्नल को कमेंट नहीं करना चाहिए था क्योंकि ये राजनीतिक मुद्दा है और भारत का आंतरिक मामला है, जिसमें दखल नहीं दिया जाना चाहिए.

इससे पहले कश्मीर पर रिपोर्टिंग को लेकर इंटरनेशनल मीडिया न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर द गार्जियन को भी ट्रोल किया गया.

लेकिन लांसेट की आलोचना इस बात पर हो रही है कि क्या मेडिकल जर्नल को राजनीतिक मुद्दे शामिल करने चाहिए. जर्नल के पक्ष में लोगों का कहना है कि राजनीति जीवन के हर आयाम पर असर डालती- हमारी सेक्शुएलिटी से लेकर हेल्थ केयर की सुविधाओं तक, फिर कश्मीर पर लांसेट के संपादकीय को लेकर इतना आक्रामक रुख क्यों अपनाया जा रहा है, खासकर तब, जब इसमें सेहत से जुड़ा दृष्टिकोण उजागर किया गया है.

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राजनीति जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है, जिसमें स्वास्थ्य भी शामिल है

कश्मीर पर इस फैसले का असर वहां व्यवसाय से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे दूसरे क्षेत्रों पर भी पड़ा है.

ऐसा इसलिए क्योंकि राजनीतिक निर्णयों का दूरगामी प्रभाव पड़ता है और राजनीतिक प्रभाव लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर सीधा असर डालते हैं.

लांसेट के संपादकीय में जिक्र किया गया है कि राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा से मानसिक समस्याएं पैदा होती हैं.

कश्मीर में लंबे समय से विद्रोह, हिंसा और तनातनी का माहौल रहा है, ऐसे में जाहिर है कि कश्मीरी लोगों में चिंता, डिप्रेशन और पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर ज्यादा है.

इसमें बताया गया है कि कश्मीर ने भारत और पाकिस्तान दोनों तरफ से संघर्ष का सामना किया है. इसमें जुलाई 2019 की यूएन की एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसमें कश्मीर में मानव अधिकारों के उल्लंघन के बारे में बताया गया था. इस रिपोर्ट में खास तौर पर दशकों पुराने संघर्ष के कारण मेंटल हेल्थ पर असर की बात कही गई है.

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लांसेट की आलोचना

ट्विटर पर लांसेट के इस एडिटोरियल पर निशाना साधते हुए कहा गया है कि ये मेडिकल जर्नल अपने काम से काम रखे, लांसेट कश्मीर पर राजनीति न करे और सिर्फ हेल्थ पर फोकस करे.

कई लोगों ने इस मेडिकल जर्नल के बहिष्कार की राय दी है.

हमारे सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ और मेंटल हेल्थ के बीच कनेक्शन को लेकर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की इस रिपोर्ट में भी जिक्र किया जा चुका है, जिसमें बताया गया था कि किस तरह हमारे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण से प्रभावित होते हैं. इसका मतलब है कि सामाजिक असमानता और पर्यावरणीय स्थिति मेंटल हेल्थ से जुड़ी है और इस पर नकारात्मक असर भी डाल सकती है.

चूंकि सामाजिक हालात और सामाजिक असमानता भी राजनीतिक फैसलों से प्रभावित होती हैं, इसलिए ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि राजनीति का लोगों की हेल्थ पर असर पड़ता है.

इसके अलावा, एक राजनीतिक गतिरोध विशेष रूप से स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच को प्रभावित कर सकता है. समय पर एम्बुलेंस को कॉल करने या आपातकालीन सेवाओं तक पहुंचने में असमर्थ होने की रिपोर्टें भी हैं. इंसुलिन सहित दूसरी जीवन रक्षक दवाओं की भारी कमी के बारे में भी रिपोर्टें सामने आई हैं.

लांसेट ने अब तक इन आलोचनाओं का कोई जवाब नहीं दिया है.

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