जिस दिन आपका बच्चा घर आता है, वह दिन जिंदगी भर के लिए यादगार बन जाता है. एक बार एडॉप्शन का आवेदन जमा करने की प्रक्रिया पूरी हो जाए, तो गोद लेने वाले पेरेंट को एजेंसी की तरफ से फोन आने का इंतजार करना होता है, जिसकी अवधि प्रतीक्षा सूची पर निर्भर करती है. इंतजार के इस दौर का इस्तेमाल आगे आने वाले पेरेंटिंग की तैयारी में किया जा सकता है.
परिवार और मित्रों को शामिल करना
एक बच्चे को पेरेंट्स के साथ-साथ परिवार की भी जरूरत होती है. ददिहाल और ननिहाल के तमाम रिश्तेदारों के साथ पारिवारिक मित्र भी बच्चे की जिंदगी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
किसी भी बच्चे का प्रवेश परिवार में खुशहाली के माहौल में होना चाहिए. हालांकि, एडॉप्टेड संतान के मामले में, यह और ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि उसे जन्म के बाद से ही प्यार और देखभाल नहीं मिला है. क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट प्राची एस वैश कहती हैं:
हर नए बच्चे को ममता और सुरक्षा देने के भाव के साथ परिवार में स्वागत किया जाना चाहिए, जिसमें अन्य बातों का ध्यान बच्चे की उम्र पर निर्भर करता है.
एक अबोध शिशु नए वातावरण में आसानी से ढल जाता है, क्योंकि उसे कोई खास तजुर्बा नहीं होता. हालांकि थोड़े बड़े बच्चे के मामले में ऐसा हो सकता है कि उसका कुछ स्वभाव बन चुका हो या खाने की आदतें बन गई हों, तो इनका ध्यान रखना जरूरी है. शुरुआती बचपन की नाखुशगवार यादों से बच्चा डरा हुआ, चौकन्ना, शक्की या पलायनवादी हो सकता है. बच्चा समय के साथ धीरे-धीरे भरोसा करना और प्यार करना सीखेगा.
पेरेंट्स को याद रखना होगा कि शुरू में बच्चे के लिए यह सिर्फ जगह का बदलाव है, इसे “घर” बनने में कुछ समय लगेगा.प्राची एस वैश, साइकोथेरेपिस्ट
गोद लिए जाने वाले बच्चे के पास याद रखने के लिए शुरुआती बचपन की कोई यादें नहीं हैं. इसलिए जिस दिन बच्चा घर आए, वो दिन यादें बनाना शुरू करने का दिन होना चाहिए. बाद के दिनों में बच्चे से साझा करने के लिए तस्वीरें खींचिए, वीडियो बनाइए, महत्वपूर्ण तारीखों को डायरी में दर्ज कीजिए.
पेरेंट बनना सीखना
गोद लेने वाले पेरेंट्स को समझना जरूरी है कि भले ही वो प्रक्रिया को जानते हैं, बच्चा ना तो एडॉप्शन के नतीजों को जान सकता है, ना ही समझ सकता है. नैंसी न्यूटन ने अपनी किताब “ The Primal Wound: Understanding the Adopted Child ” में लिखा है कि एडॉप्शन एक भावनात्मक प्रक्रिया है, जिसमें बच्चा जैविक जड़ों से बिछड़ रहा होता है. यह प्रारंभिक जख्म होता है, जिससे अव्यक्त दुख पैदा होता है
बच्चा इस दौरान आत्मीयता, जैविक माता-पिता से बिछड़ाव, परित्याग और अस्वीकृति की भावनाओं से जूझ रहा होता है, जो शर्म और ग्लानि की वजह भी बन सकता है.
बच्चे पर प्यार और ममता की बरसात किए जाने से वह इन भावनाओं से उबर सकता है और सकारात्मक अहसास कर सकता है. बच्चा गोद लेने वाले पेरेंट को बच्चे को बिना-शर्त अपना बच्चा समझ कर उसे प्यार देने के लिए खुद को तैयार करना होगा. होलिस्टिक वेलनेस प्रेक्टिशनर और सहायम संस्था की निदेशक महालक्ष्मी कहती हैं, “गोद लेने वाले पेरेंट को बच्चे को बिना शर्त अपने बच्चे के तौर पर अपनाने के लिए तैयार रहना चाहिए.” विकास के लिए स्वस्थ माहौल, जीन फैक्टर से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
पेरेंटिंग सीखने की पाठशाला है. सब्र, संतुलन, सोचना, प्रतिक्रिया की बजाय प्रति उत्तर देना और मुश्किल हालात से व्यावहारिक तरीके से निपटना, ऐसी कुछ जरूरी महारत हैं, जो पेरेंट को अपने अंदर विकसित करना होता है.
ऐसे भी लम्हे आएंगे जब आपको लगेगा कि बच्चा आपका अनादर कर रहा है, लेकिनआपको ध्यान रखना होगा कि आप सिर्फ एक आधिकारिक शख्सियत हैं, और यह पर्सनल नहीं है.प्राची एस वैश, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट
भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं
महालक्ष्मी कहती हैं कि भावनात्मक समस्याएं और चुनौतियां हर रिलेशनशिप में होती हैं और इनको समझदारी से हल किया जाना चाहिए,
गोद लिए बच्चे के भावनात्मक मुद्दों को सिर्फ एक भावनात्मक चुनौती मानते हुए सुलझाने के लिए माता-पिता दोनों को भावनात्मक रूप से स्थिर और समझदार होना चाहिए.महालक्ष्मी, होलिस्टिक वेलनेस प्रेक्टिशनर और सहायम संस्था की निदेशक
यह बात समझनी होगी कि एक पेरेंट के तौर पर बच्चे को और खुद को स्पेस बहुत जरूरी है. स्वस्थ दायरे बनाना और उनके बारे में बताना मददगार साबित होगा.
बच्चे को बताना
पुराने समय में बहुत गुपचुप तरीके से बच्चे को गोद लिया जाता था. आज इसके बारे में खुलकर बात होती है. प्राची कहती हैं, “बहुत से रास्ते हैं, जिनसे बच्चा अपने बारे में जान सकता है, और उसे कभी न भरने वाली भावनात्मक चोट पहुंच सकती है.” सच को हमेशा के लिए छिपा पाना नामुमकिन है.
काउंसलर्स पेरेंट को सलाह देते हैं कि जितना जल्दी मुमकिन हो, बच्चे को हकीकत से रूबरू करा दिया जाए.
यह बात कहानियों, खासकर भगवान कृष्ण की कहानी के माध्यम से समझाई जा सकती है. ज्यादातर स्कूलों में सोशल साइंस में बच्चे को परिवार के प्रकार के बारे में बताया जाता है, जिसमें एडॉप्शन का भी जिक्र होता है. उद्देश्यपूर्ण और वास्तविकता पर आधारित बातचीत से बच्चे को हकीकत को जानने और उसे स्वीकार करने में मदद मिलेगी.
जैसा कि महालक्ष्मी कहती हैं, “सच और ईमानदारी विवाह और परिवार के दो खंभे हैं. इसलिए जरूरी है कि परिवार का सच खूबसूरती से बच्चे से भी साझा किया जाए.”
ईमानदार मदद और समझदारी से पेरेंट अपने गोद लिए बच्चे से जीवन भर चलने वाला रिश्ता कायम कर सकते हैं. ऐसा माहौल बनाएं जिसमें बिना शर्त प्यार का साथ हो और फिर आप उसे आत्मविश्वास से भरे बच्चे के रूप में बड़ा होते देखेंगे.
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(नुपुर रूपा एक फ्रीलांस राइटर हैं और मदर्स के लिए लाइफ कोच के तौर पर काम करती हैं. वह पर्यावरण, फूड, इतिहास, पेरेंटिंग और ट्रैवेल पर लिखती हैं. आप उनके ब्लॉग का पहला हिस्सा यहां यहां पढ़ सकते हैं)
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