26 साल की वेटेनरी डॉक्टर दिशा के साथ रेप और फिर हत्या के चारों आरोपियों का शव 6 दिसंबर 2019 को हैदराबाद (Hyderabad) के पास चटनपल्ली गांव के एक खेत में मिला. अब इस एनकाउंटर केस में 20 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वीएस सिरपुरकर के आयोग ने कहा कि हैदराबाद पुलिस के सभी दस पुलिसकर्मियों पर हत्या का मुकदमा चलेगा.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में जांच आयोग ने जो अपनी डिटेल रिपोर्ट सौंपी उसमें माना गया है कि, “आरोपियों पर पुलिस ने जानबुझकर जो फायरिंग की उसे सही नहीं ठहराया जा सकता…’’ आयोग ने आगे माना, “हमारी राय में, जानबुझकर जान से मारने के इरादे से आरोपियों को गोली मारी गई है. पुलिस वालों को मालूम था कि इससे रेप के आरोपियों की मौत हो जाएगी.”
हैदराबाद पुलिस कहती रही है कि चारों आरोपी - सी चेन्नाकेसावुलु, जोलू शिवा, जोलू नवीन और मोहम्मद आरिफ - उस समय मारे गए जब उन्होंने पुलिस अधिकारियों पर हमला किया और भागने की कोशिश की. पुलिस का कहना है कि वो सबूत जुटाने के लिए आरोपियों को ले जा रही थी तो चारों आरोपियों ने पुलिस पर हमला कर भागने की कोशिश की.
पुलिस का दावा है कि आरोपियों ने पुलिस अधिकारियों पर मिट्टी फेंकी, दो हथियार छीन लिए और पुलिस पर गोली चलाकर भाग गए.
"सभी 10 पुलिसकर्मी अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहे"
आरोपियों के साथ कुल दस पुलिस अधिकारी चटनपल्ली गए थे, जहां से उन्हें दिशा की हत्या से जुड़ी सामग्री जुटानी थी. अक्टूबर-नवंबर 2021 में गवाहों और सबूतों की पड़ताल करने वाले जांच आयोग का कहना है कि – मृतक (आरोपियों) ने वो अपराध नहीं किया है जिसका दावा पुलिस कर रही है.
कमीशन का कहना है- "जितनी भी चीजें ऑन रिकॉर्ड हैं उस पर विचार करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मृतकों ने 6 दिसंबर 2019 को हुई घटना के संबंध में कोई अपराध नहीं किया है, जैसे हथियार छीनना, हिरासत से भागने का प्रयास, पुलिस पर हमला."
इस मामले में आयोग कहता है कि जिन पुलिस अधिकारियों ने आरोपियों पर गोली चलाई, वे पुलिसकर्मी ये नहीं कह सकते कि उन्होंने सेल्फ डिफेंस में यह कार्रवाई की है. आयोग आगे पुलिस अधिकारियों की कार्रवाई को 'सोची समझी फाइरिंग' बताया है.
आयोग ने माना कि, वो पुलिस अधिकारी जिन्होंने आरोपियों पर गोली चलाई थी, वे अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहे, उन्होंने जानबूझकर आरोपियों को मारा है.
पुलिस ने सबूतों से छेड़छाड़ की है- आयोग
आयोग ने माना है कि आरोपियों की मौत के बाद पुलिस अधिकारियों ने रिकॉर्ड और सबूतों को भी बदला है. पुलिस वालों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए आयोग ने कहा है , “आगे उन्होंने ना सिर्फ अपराध को छिपाने के लिए गलत सूचनाएं दी, बल्कि वो सभी रेप आरोपियों को जान से मारने को लेकर भी एकमत थे."
आयोग के अनुसार, सभी दस पुलिसकर्मियों पर आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 201 (सबूत से छेड़छाड़ के प्रयास) के तहत मुकदमा चलाना चाहिए, क्योंकि आयोग ने पाया है कि उन सभी का इरादा आोपियों को मारना था.
इस मामले में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आयोग ने कथित रूप से गोली मारने वाले तीन पुलिस अधिकारियों पर आईपीसी की धारा 76 और आईपीसी की धारा 300 में अपवाद 3 के तहत कोई मामला नहीं चलाया है क्योंकि अगर इसके तहत मामला चलाया जाता तो माना जा सकता था कि पुलिस अधिकारियों ने अपने बचाव में ही गोली चलाई हैं.
हत्या के मामले में जिन पुलिस अधिकारियों पर मामला चलेगा उनके नाम हैं: वी सुरेंद्र, के नरसिम्हा रेड्डी, शेख लाल मधर, मोहम्मद सिराजुद्दीन, कोचेरला रवि, के वेंकटेश्वरुलु, एस अरविंद गौड़, डी जानकीराम, आर बालू राठौड़ और डी श्रीकांत.
लेकिन सवाल है कि आयोग ने पुलिस के बयान पर विश्वास क्यों नहीं किया? द क्विंट ने पहले बताया था कि सुनवाई के दौरान ही जांच आयोग, राज्य पुलिस के मामले को मानने को तैयार नहीं था.
आयोग ने कहा है कि - सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आयोग ने पाया कि आरोपियों को 'एनकाउंटर' की जगह पर ले जाने की कोई जरूरत नहीं थी. पुलिस का पूरा मामला "अविश्वसनीय" है.
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