गांव बसा नहीं लुटेरे पहले आ गए. यह कहावत चरितार्थ होती दिख रही है अयोध्या में, जहां पर राम मंदिर (Ram Mandir Ayodhya) निर्माण का काम सिर्फ 40% ही पूरा हुआ है लेकिन अपने पद और प्रभुत्व इस्तेमाल कर अयोध्या में जमीन लेने वालों की होड़ लग गई है. इसका जमकर फायदा सत्ता के करीबी लोग और उत्तर प्रदेश प्रशासन के बड़े बड़े अधिकारी उठा रहे हैं, जिन्होंने राम मंदिर के आसपास जमीन खरीदने में जमकर पैसा लगाया है.
अभी कुछ दिनों पहले अयोध्या विकास प्राधिकरण के नाम से अवैध कॉलोनाइजर्स की लिस्ट सोशल मीडिया पर वायरल होती है. इस लिस्ट में 40 लोगों के नाम हैं. इनमें अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय, वहीं से विधायक वेद प्रकाश गुप्ता एवं एक पूर्व विधायक गोरखनाथ बाबा के नाम भी शामिल है.
लिस्ट के आते ही सत्ता के गलियारों में हड़कंप सा मच गया. बीजेपी के तीन नेताओं का नाम लिस्ट में आने के बाद सरकार एक बार फिर सकते में आ गई और विरोधियों ने हमले करने शुरू कर दिए. लिस्ट पर हो रही राजनीति के बीच अचानक से प्राधिकरण के VC विशाल सिंह का दूसरा बयान आता है जहां पर वायरल हो रही अवैध कॉलोनाइजर्स की लिस्ट का खंडन कर दिया.
अयोध्या में बन रही अवैध कॉलोनियों की एक लिस्ट आती है, उस पर कार्रवाई की बात भी होती है. जब उसमें सत्ता से जुड़े करीबी लोगों का नाम अवैध कॉलोनाइज़र्स के तौर पर उभर कर आता है तो उस लिस्ट को फेंक बता दिया जाता है- बिना किसी जांच के. यहां तक कि सूबे के उपमुख्यमंत्री ने भी इसे सिरे से खारिज करते हुए लिस्ट को फेक बता दिया.
बहरहाल यह पहली बार नहीं है जब जमीन की खरीद-फरोख्त को लेकर अयोध्या सुर्खियों में है. राम मंदिर निर्माण का कार्य जैसे-जैसे प्रगति कर रहा है, अयोध्या में जमीन के दामों में जबरदस्त उछाल आ रहा है. जिसका फायदा लेने के लिए निजी कंपनियों के अलावा सत्ता के करीबी नेताओं और अधिकारियों ने भी पैसा लगाना शुरू कर दिया है.
पिछले साल दिसंबर में इंडियन एक्सप्रेस अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अयोध्या में सत्ता के करीबी नेताओं के अलावा अधिकारियों ने भी जमीन की खरीद फरोख्त में जमकर पैसा लगाया है. इन अधिकारियों में कमिश्नर, डीआईजी से लेकर डीएम और राजस्व विभाग के अधिकारी - ऊपर से नीचे तक सबने राम मंदिर के 5 किलोमीटर दायरे के अंदर अपने घरवालों और रिश्तेदारों को जमीन दिलाई.
खास बात यह है कि उस खबर में सत्ता के करीबी लोगों में जिन लोगों का नाम था उसमें बीजेपी विधायक वेद प्रकाश गुप्ता और अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय का भी नाम था जिनका नाम वायरल हो रही अवैध कॉलेज की लिस्ट में भी है.
खबर प्रकाशित होने के बाद सत्ता के गलियारों में हड़कंप मचा था और शासन ने जांच के आदेश भी दे दिए थे. लेकिन उस जांच के नतीजे क्या निकल कर आए उसकी जानकारी न तो मीडिया को मिली है ना ही जनता को. अयोध्या में जमीन की खरीद-फरोख्त और अवैध कब्जे को लेकर आ रही खबरों पर सरकार ने कोई कठोर कदम नहीं उठाया है.
अयोध्या आस्था का एक बड़ा केंद्र है और बीजेपी के लिए राजनीति की सबसे ताकतवर धुरी और वहां पर सरकार की हो रही किरकिरी से ऐसा नहीं है कि शासन और पार्टी के लोग अनजान हैं. अगर शासन के संज्ञान में यह सब मामले हैं तो उसमें कठोर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?
वायरल लिस्ट की जांच क्यों नहीं हो रही और पूर्व में जमीन की खरीद-फरोख्त को लेकर जो जांच बिठाई गई थी उसमे क्या निकल कर आया, ये क्यों नहीं सार्वजनिक किया जा रहा?
इन सवालों के जवाब दिया जाना जरूरी है क्योंकि जो सरकार विरोधियों के अवैध कब्जों पर बुलडोजर चलवा रही है, वो अपनों पर लगे आरोपों पर सख्त नजर नहीं आएगी तो सवाल उठेंगे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)