हम अपना पहर दिखाएंगे,सपनों की लहर दिखाएंगे,
कभी फुर्सत में आना तुम, झीलों का शहर दिखाएंगे.
-साकिब मजीद
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की राजधानी भोपाल (Bhopal) को झीलों का शहर कहा जाता है. कभी नवाबों की रियासत हुआ करती थी, जिसकी शिनाख्त आज भी शहर के हर कोनों पर देखी जा सकती है. यहां के नवाबों के घराने की खास बात यह है कि भोपाल की बेगमें अपनी सल्तनत की मालिक बनीं, सालों-साल तक राज किया और मोती मस्जिद, ताज-उल-मसाजिद जैसी कई ऐसी तारीखी इमारतों का निर्माण करवाया. यहां की बेगमों ने आजादी के आंदोलन में भी अहम किरदार अदा किया.
बेगमों के इन कारनामों की वजह से भोपाल को ‘बेगमों का शहर’ भी कहा गया, यहां की ताज-उल-मसाजिद एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद और दुनिया की बड़ी मस्जिदों में से एक है.
आइए आपको बताते हैं कि इस हसीन शहर भोपाल को उर्दू शायरों ने किस तरह से अपनी नज्मों और गजलों का हिस्सा बनाया है. शायरों की नजरों से देखिए भोपाल की खूबसूरती.
उर्दू शायर कामिल बहजादी की पैदाइश नागपुर में हुई लेकिन भोपाल से उनका एक अहम रिश्ता रहा. वो भोपाल को अपने महबूब से जोड़ते हुए लिखते हैं...
लोग भोपाल की तारीफ़ किया करते हैं,
इस नगर में तो तिरे घर के सिवा कुछ भी नहीं.
- कामिल बहज़ादी
भोपाली शायरा फिरोजा यासमीन, जिनके नाम से ही चमेली के फूलों की खुशबू आती है. उन्होंने फलक की ओर रुख करते हुए, चांद सितारों तक को भोपाल की खूबसूरती देखने की दावत दे दी. फिरोजा यासमीन, भोपाल शहर को हसीन बताते हुए लिखती हैं...
'यासमीं' चाँद सितारों से कहा है मैंने,
आओ मेरा हसीं भोपाल नगर तो देखो.
- फ़ीरोज़ा यासमीन
नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक रखने वाले हास्य-व्यंग के मकबूल शायर सागर खय्यामी अपने अंदाज में भोपाल की महक शामिल करते हुए लिखते हैं...
गोला ज़मीं का मार दूँ फुटबाल की तरह,
झाड़ू नगर पे फेर दूँ भोपाल की तरह.
- साग़र ख़य्यामी
बिजनौर के उर्दू शायर नाजिम अशरफ जुदाई का दर्द भोपाल शहर से जोड़ते हुए कहते हैं...
वक़्त गुज़रा तो जुदाई भी जुदाई न रही,
हम यहाँ और वो भोपाल में ख़ुश रहते हैं.
- नाज़िम अशरफ़
भोपाल: तहजीबों का शहर
भोपाल अपने इतिहास के साथ-साथ एक खास तहजीब के लिए भी जाना जाता है. शहर हसीन होने के साथ यहां के लोग भी अच्छे हैं, आपको न जानते हुए मदद के लिए तैयार रहते हैं. इसके अलावा यहां के लोगों ने अपने अदब को भी बचाकर रखा है, इस वजह से साहित्य से मोहब्बत करने वाले लोगों को भी भोपाल काफी पसंद आता है.
सीनियर जर्नलिस्ट शम्स-उर-रहमान अल्वी ने क्विंट से बात करते हुए कहा कि भोपाल में होने वाले तरही मुशायरे की रिवायत जिंदा देखना बहुत मुतमईन करने वाला है. शायरी हमारी नरम और फिकरी ताकत है. मध्यप्रदेश में जब भी अदब और साहित्य की बात होती है तो दिमाग में पहला नाम बशीर बद्र और मंजर भोपाली का आता है. उसी तरह दूसरे शहरों और राज्यों में जहां अदबी शख्सियात हैं, ये हमारी छवि को दानिश्वर और फंकाराना बिरादरी के तौर पर पेश करती है.
उर्दू शायर मोहसिन भोपाली की पैदाइश भोपाल में हुई लेकिन वो पाकिस्तान हिजरत कर गए और लाड़काना शहर में रहने लगे. लेकिन भोपाल की हसीन यादें उनके दिल से नहीं जुदा हो सकीं. वो लाड़काना में रहकर भोपाल को याद करते हैं और लिखते हैं...
अर्ज़-ए-भोपाल से था तअल्लुक़ कभी,
अब तो सब कुछ है ये लाड़काना मिरा.
- मोहसिन भोपाली
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