
गांव से हूं, देसी हूं, ज़मीन से जुड़े रहना अच्छा लगता है. कोई पागल कह देता है, कोई बच्चा कह देता है और कोई कहता है कि दिल का सच्चा हूं. क़लम शौक है और अल्फ़ाज़ मेरे हर वक़्त के साथी हैं...इन्हीं के सहारे सफ़र कर रहा हूं. ख़ुद को क़लमकार बनाने के रास्ते पर निकला हूं और इसके साथ सहाफ़ी भी बने रहने की ख़्वाहिश है. बहुत कुछ लिखने की चाहत है...दिल के अंदर दर्द का समंदर है, इसकी वजह आम नहीं है. आंखों में ख़्वाब हैं, ऐसे ख़्वाब जो शायद कोई आजतक देख ही नहीं पाया है.
"मेरी आंखों के सपने नींद जो आने नहीं देते,
मेरे हांथों की ख़्वाहिश है उन्हीं पर दस्तख़त करना."
मेल: mohd.sakib@thequint.com
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