रिपोर्टर- दिव्या तलवार, हेजल गांधी
प्रोड्यूसर- प्रशांत चौहान
महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजधानी मुंबई (Mumbai) में मितेश गुप्ता नाम के व्यक्ति पाव-भाजी बेचते हैं. मितेश को बीमारी की वजह से अपना एक हाथ गंवाना पड़ा. लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं खोई, हौसला बरकरार रखा. अपने परिवार के पालन पोषण के लिए मितेश ने एक हाथ से सबकुछ करना सीखा और अपनी मुश्किलों को हरा दिया.
मितेश गुप्ता ने क्विंट को बताया कि, मैं आठ साल का था तब हाथ में फुटबॉल लगी थी. चार साल बाद हाथ सूज गया, एमआरआई की तो पता लगा कि हाथ में कैंसर है. जब मैं 9 साल का था तो मां की मौत हो गई थी उनकी किडनी खराब थी. मेरे पिता को हार्ट अटैक आया और उनका निधन हो गया फिर बड़ा भाई हादसे का शिकार हुआ और मौत हो गई.
उन्होंने कहा कि, जब मेरे आगे पीछे कोई नहीं तो मैंने खुद ही खाना बनाना सीखा और काम करना शुरू किया. हिम्मत की, किसी के आगे झुकना नहीं था खुद करके दिखाना था.
मीतेश गुप्ता की पत्नि ने कहा कि, पहले ये अकेले रहते थे, खुद खाना बनाना, घर की साफ सफाई करना. फिर गाड़ी लेकर पाव भाजी बनाने जाते हैं. फिर मैं आई तो मैं इनको रात को खाना बनाकर देती थी, टिफिन देती हूं. मैं खुद सोचती हूं कि ये अकेले कैसे काम करते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि मेरे घर वाले इस शादी के खिलाफ थे. कहते थे कि कैसे काम करेगा, कैसे कमाएगा. मैंने कहा जो होगा देखा जाएगा.
मितेश ने कहा कि डॉक्टर बोले हाथ काटना पड़ेगा, इसलिए हाथ कटवा लिया. फिर मैं हाजी अली गया वहां जिनके हाथ पैर नहीं हैं, उन्हें काम करना सिखाते थे. मैंने खुद ही ये सारे काम सीखे. पहले लगा कि अकेला पड़ जाऊंगा लेकिन शादी के बाद अच्छा लगने लगा. हमने भाग कर शादी की, क्योंकि घर वाले नहीं माने.
मितेश ने कहा कि, धीरे-धीरे धंधा बढ़ाया, फिर एक लड़का रखा, लॉकडाउन आया तो कर्ज बढ़ गया. अब कभी लॉकडाउन नहीं आना चाहिए. लोग बाहर का भी नहीं खा रहे थे. कर्ज बढ़ गया था तो मैंने अपने घर का एक कमरा बेच कर चुकाया. लेकिन अब कर्ज नहीं लूंगा.
इस धंधे से 40-50 हजार रुपए बनते हैं. काम करने वाले लड़के को 9 हजार देता हूं. घर का खर्च है 20 हजार. बच्चे की फीस है और मेरी दवाइयां भी. मेरी पत्नि को अभी काम पर नहीं बुलाता क्योंकि बच्चा छोटा है. मैं फिल्म सिटी में भी कभी-कभी काम करता हूं. वहां भिखारी का रोल मिलता है, 1000-1500 रुपए मिल जाते हैं.
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