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ज्ञानवापी मस्जिद:अंजुमन की याचिका खारिज, कोर्ट ने कहा-शृंगार गौरी केस सुनने लायक

Gyanvapi Mosque परिसर में रोजाना पूजा करने की अनुमति मांगने वाली याचिका पांच हिंदू महिलाओं ने दायर की थी.

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वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद-शृंगार गौरी (Gyanvapi Mosque) केस की मेरिट पर फैसला आ चुका है. जिला जज डॉक्टर अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने फैसले में तय किया है कि यह केस सुनने लायक है. जिला अदालत ने माना कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पूजा के अधिकार की मांग करने वाली हिंदू पक्षों की याचिका सुनवाई योग्य है.

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कोर्ट ने हिंदू पक्ष की दलीलें मानी हैं और मुस्लिम पक्ष की आपत्तियों को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने माना कि यह मामला 1991 के वर्शिप एक्ट के तहत नहीं आता. अब जिला कोर्ट 22 सितंबर को इस मामले में अगली सुनवाई करेगी.

मुस्लिम पक्ष यानी मस्जिद प्रबंधन समिति अंजुमन इंतेजामिया द्वारा दायर उस याचिका को खारिज किया गया है जिसमें नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश VII नियम 11 के तहत दायर एक आवेदन के माध्यम से मुकदमे की स्थिरता को चुनौती दी गई थी.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, पांच हिंदू महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में रोजाना पूजा करने की अनुमति मांगने वाली याचिका दायर की थी. करीब तीन महीने से ज्यादा समय तक ये सुनवाई चली है और अदालत में दोनों पक्षों ने अपनी दलीलें दी हैं.

सुनवाई से पहले हिंदू पक्ष के वकील मदन मोहन यादव ने दावा किया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर किया गया था. वहीं हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता वीएस जैन ने दावा किया कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 उनके पक्ष में लागू होता है.

न्यूज एजेंसी एएनआई ने जैन के हवाले से कहा था, "अगर फैसला हमारे पक्ष में आता है, तो हम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) सर्वेक्षण, शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग करेंगे."

बता दें कि इससे पहले मस्जिद के पूरे परिसर का सर्वे कराया गया था. जिसकी रिपोर्ट लीक होने की बात सामने आई थी. हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि ज्ञानवापी मस्जिद के वुजुखाने में मौजूद आकृति 'शिवलिंग' है वहीं मुस्लिम पक्ष अंजुमन इंतेजामिया ने उसे फव्वारा बताया था.

वहीं इसके अलावा ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के संबंध में सुनवाई के लिए मुकदमे की मेंटेनिबिलिटी पर जिला अदालत के फैसले का इंतजार करेगा. ऐसे में अब जब जिला अदालत का फैसला आ चुका है तो ये देखना है कि सुप्रीम कोर्ट में इसपर क्या फैसला आता है.

इस मामले पर हिंदू पक्ष ने तर्क दिया था कि तत्कालीन मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1669 में काशी और मथुरा सहित कई मंदिरों को नष्ट करने के लिए 'फरमान' जारी किए थे, जिनकी हिंदुओं द्वारा प्रमुखता से पूजा की जाती थी.

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