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'मैं पढ़ना चाहती हूं': दंगे के डर के बीच नूंह के स्कूल में सन्नाटा, क्लासरूम खाली

Haryana Violence के बाद अपने बच्चों की सुरक्षा के डर से नूंह के खेरला गांव में परिवार उन्हें स्कूल नहीं भेज रहे हैं.

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भारत
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Nuh violence: नूंह के खेरला गांव में सोमवार की गर्म दोपहर के 3:00 बजे हैं. 12वीं क्लास की 18 वर्षीय स्टूडेंट, रुखसार अपनी मां रायजा और बड़ी बहन आफसा की घर के काम में मदद कर रही है. सात बच्चों में से चौथी, रुखसार, बड़ी होकर एक आईपीएस अधिकारी बनना चाहती है. वो याद करती है कि वह आखिरी बार 31 जुलाई को स्कूल गई थी.

31 जुलाई को, विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में निकाले गए धार्मिक जुलूस ने सांप्रदायिक रूप ले लिया था, जिसके बाद हरियाणा के नूंह जिले में हिंसा भड़क उठी. झड़पों में कम से कम छह लोगों की जान चली गई. जिले में धारा 144 लागू हुआ और इंटरनेट के उपयोग पर बैन लग गया.

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सोमवार, 28 अगस्त को जब द क्विंट ने रुखसार के परिवार से मुलाकात की, तो वह अपनी बोर्ड परीक्षाओं से पहले स्कूल का काम निपटाने को लेकर चिंतित थी.

रुखसार ने कहा, "मुझे बहुत बोरियत महसूस हो रही है. मैं 12वीं क्लास में हूं और घर पर पढ़ाई नहीं कर सकती."

रुकसार, खेरला गांव के उन कई बच्चों में से हैं, जिन्होंने सांप्रदायिक झड़पों के बाद स्कूल जाना बंद कर दिया है.

स्कूल अधिकारियों ने बताया कि 31 जुलाई की हिंसा के बाद खेरला सरकारी स्कूल में उपस्थिति घटकर 100 छात्रों तक रह गई है.

(फोटो: अतहर राथर/द क्विंट)

कभी रुखसार के स्कूल, खेरला गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में कम से कम 1,200 छात्र पढ़ते थे. लेकिन हिंसा के बाद, आने वाले बच्चों की संख्या घटकर लगभग 100 रह गई.

छात्रों और शिक्षकों ने द क्विंट को बताया कि इससे कक्षाएं खाली हो गई हैं और स्कूल में सन्नाटा छा गया है.

उपस्थिति में गिरावट के कारण कक्षाएं खाली हो गई हैं

(फोटो: अतहर राथर/द क्विंट)

'हम सारा दिन बेकार बैठे रहते हैं'

हरियाणा में हिंसा के एक हफ्ते बाद शैक्षणिक संस्थान फिर से खुलने के बावजूद, खेरला गांव में बच्चे अपनी पढ़ाई फिर से शुरू नहीं कर पाए हैं. स्कूल का कोई काम न होने के कारण, बच्चे पूरे दिन घर पर खाली बैठे रहते हैं या तो अपने दोस्तों के साथ खेलते हैं या घर के काम में अपने माता-पिता की मदद करते हैं.

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चिंतित रुखसार ने द क्विंट को बताया, "स्कूल न जाने से मेरी पढ़ाई प्रभावित हुई है क्योंकि मैं 12वीं क्लास में हूं. मुझे नहीं पता कि यह स्थिति कब तक बनी रहेगी."

रुखसार बड़ी होकर एक आईपीएस अधिकारी बनना चाहती है

(फोटो: अतहर राथर/द क्विंट)

रुखसार के घर से महज 100 मीटर की दूरी पर एक झील है जहां उसकी दोस्त अंजीला अपने कपड़े धोने में व्यस्त है. वह उसी स्कूल में 11वीं क्लास की स्टूडेंट है.

अंजीला ने द क्विंट को बताया, "सांप्रदायिक झड़पों के कारण मैं स्कूल नहीं जा पा रही हूं. मैं सिर्फ घर के काम में मदद करती हूं. लेकिन मैं पढ़ना चाहती हूं और स्कूल जाना चाहती हूं."

19 वर्षीय अंजिला कपड़े धोने सहित घर के कामों में अपनी मां की मदद करती है.

(फोटो: अतहर राथर/द क्विंट)

जहां कुछ बच्चे तनाव में हैं, वहीं कुछ नहीं हैं.

द क्विंट ने झील के किनारे खेल रहे सात साल के तीन बच्चों से बात की और उनसे पूछा कि वे स्कूल क्यों नहीं गए. उन सभी की एक ही प्रतिक्रिया थी: "हमारे मां-बाप ने कहा कि यहां कोई लड़ाई हो रही है इसलिए हम स्कूल नहीं जा सकते."

एक अन्य छह वर्षीय बच्चे ने कहा, "मुझे नहीं पता क्यों, लेकिन मुझे अपने दोस्तों की याद आती है... मैं स्कूल जाकर खेलना चाहता हूं."

स्कूल का कोई काम न होने के कारण, बच्चे पूरे दिन घर पर बेकार बैठे रहते हैं या तो अपने दोस्तों के साथ खेलते हैं या घर के काम में अपने माता-पिता की मदद करते हैं.

(फोटो: अतहर राथर/द क्विंट)

'हिंसा का दंश झेल रहे बच्चे'

हिंसा के बाद महिलाओं और बच्चों को सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.

रुमाना की मां हारूनी ने द क्विंट को बताया, "हम अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते क्योंकि हम डरे हुए हैं. इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है. वे घर पर कुछ भी नहीं करते हैं. मुझे डर है कि वे स्कूल में जो सीखा है उसे भूल रहे हैं. लेकिन हमें डर है कि अगर हम उन्हें स्कूल भेजें तो पता नहीं क्या हो जाए.''

सात बच्चों की मां हारूनी एक गृहिणी हैं.

कुछ परिवारों ने दावा किया कि उनके घर पर केवल महिलाएं और पुरुष बचे हैं और युवा लड़के या तो अपनी सुरक्षा के लिए नूंह छोड़कर अपने मूल स्थानों पर चले गए हैं या 31 जुलाई की हिंसा के सिलसिले में पुलिस उन्हें ले गई है.

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हिंसा के कारण डर ने ग्रामीणों को अतिरिक्त सतर्क कर दिया है और पंचायत के तीन बड़े सदस्यों ने गांव में बाहरी लोगों के प्रवेश पर निगरानी रखी है.

यह समझाते हुए कि कैसे नूंह जैसे पिछड़े जिले में शिक्षा "बड़ी बात" थी, खेरला गांव के सरपंच रफीक खान ने द क्विंट को बताया, "नूंह के गांवों के बच्चों पर हिंसा का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है. दो साल तक, कोरोना ने बच्चों की पढ़ाई रोक दी, और स्थिति बेहद खराब थी. अब, हिंसा के साथ, यह और भी बदतर हो गई है, और छात्रों का भविष्य दांव पर है."

खेरला सरकारी स्कूल में कक्षा 9-12 के लिए भूगोल के शिक्षक, इंतजार ने कहा, "आज (29 अगस्त) सभी क्लास में मिलाकर में केवल 10 बच्चे स्कूल आए. अगर उनकी शिक्षा में कोई निरंतरता नहीं है, मुझे डर है कि वे रुचि खो देंगे और हमारे सबसे अच्छे प्रयासों के बावजूद वो उसे मेकअप नहीं कर पाएंगे."

'बच्चों को स्कूल वापस लाने के लिए प्रेरित करने की जरूरत'

खेरला सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल रहमुद्दीन ने द क्विंट को बताया कि स्कूल का स्टाफ माता-पिता को उनके बच्चे की सुरक्षा का आश्वासन देने के लिए गांवों का दौरा कर रहा है.

51 वर्षीय रहमुद्दीन ने द क्विंट को बताया, "शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है. शिक्षा के बिना जीवन अधूरा है. यहां अधिकांश परिवार अशिक्षित हैं. इसलिए, वे चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ें और अच्छी नौकरी करें. केवल एक चीज जो मेवात के नूंह और पड़ोसी क्षेत्रों को बचा सकती है- वह है शिक्षा."

रुखसार स्कूल वापस जाने को लेकर आश्वस्त लग रही थी. उसने द क्विंट को बताया, "शिक्षा एक आवश्यकता है. अगर कोई अशिक्षित है, तो वह अपने परिवेश से अनजान होगा. मैं स्कूल वापस जाना चाहती हूं, अपनी बोर्ड परीक्षा खत्म करना चाहती हूं. मैं कॉलेज जाना चाहती हूं ताकि मैं अपने माता-पिता का नाम ऊंचा कर सकूं."

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