यूपी में कानून-व्यवस्था पर उठे सवालों पर मुख्यमंत्री के सख्त रवैये के बाद मुठभेड़ों की बाढ़ आ गई है. ताबड़तोड़ एक के बाद एक एनकाउंटर की वजह से राज्य में पुलिसिंग पर सवाल उठ रहे हैं. लेकिन ये कम होने के बजाय बदस्तूर जारी हैं. पिछले दो-तीन दिन के अंदर राज्य के शहरों में पुलिस ने डेढ़ दर्जन शूटआउट किए. इनमें एक बदमाश की मौत हो गई और 30 पुलिस के हत्थे चढ़ गए.
पिछले दिनों राज्य में बढ़ रहे अपराधों को देख कर सीएम योगी ने सख्त संदेश दिया था. इस संदेश के बाद लगा कि राज्य की पुलिस अपनी कार्यशैली दुरुस्त करेगी ताकि अपराध काबू हों. लेकिन लगता है कि उसने अपराध खत्म करने का आसान रास्ता ढूंढ़ लिया है. राज्य में कुख्यात अपराधियों को सीधे मुठभेड़ में निशाना बनाया जा रहा है.
10 महीनों में 1142 एनकाउंटर
योगी सरकार के दस महीनों में बदमाशों के साथ पुलिस के 1142 एनकाउंटर हुए. इनमें 34 कुख्यात बदमाश मारे गए. चार पुलिसकर्मी भी शहीद हुए. अलग-अलग इलाके में हुए मुठभेड़ों का ब्योरा कुछ यूं है.
- मेरठ - 449
- आगरा - 210
- बरेली - 196
- कानपुर- 91
- वाराणसी - 73
- इलाहाबाद- 54
- लखनऊ - 38
- गोरखपुर जोन - 31
नए डीजीपी ओपी सिंह के आने के बाद भी एनकाउंटर जारी हैं. उनके आते ही दस दिनों के अंदर ही 27 एनकाउंटर हुए.
योगी सरकार में एक तरफ एनकाउंटर हो रहे हैं तो दूसरी ओर राजधानी लखनऊ में बढ़ी डकैती और हत्याओं की वारदातें कानून-व्यवस्था की पोल खोल रही हैं. राज्य में पुलिस बल पर भारी दबाव है. राज्य में 50 फीसदी पुलिस पद खाली हैं. यह राष्ट्रीय औसत 24 फीसदी के दोगुने से भी अधिक है. 21 करोड़ की आबादी के लिए सिर्फ 1.81 लाख पुलिसकर्मी हैं. जबकि 3.63 लाख पुलिसकर्मियों की जरूरत है. राज्य में लंबे समय से पुलिस भर्तियां बंद हैं.
ऐसे हालात में गंभीर अपराधों को काबू करना टेढ़ी खीर है. राज्य में अपराध पर लगाम के लिए पर्याप्त पुलिस बल के साथ बेहतर ट्रेनिंग और संसाधन की जरूरत है. मुठभेड़ फौरी नतीजे दे सकते हैं और इससे सरकार को सस्ती लोकप्रियता भी मिल सकती है. लेकिन राज्य के आला पुलिस अफसरों को समझना होगा कि ऐसे कदमों लंबे दौर तक अमन-चैन कायम रखने की बुनियाद मजबूत नहीं होगी.
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