22 सितंबर 2022 को मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के शाजापुर जिले की कृषि मंडी में जयराम नाम का एक किसान पहुंचा. जयराम चार महीनों की मेहनत के बाद 300 किलो प्याज बेचने पहुंचा था लेकिन मंडी से लौटते वक्त जयराम के हाथ में कमाई के नाम पर थे मात्र 2 रुपए. किसान जयराम 6 कट्टे प्याज बेचने अपने गांव भुदानी से शाजापुर कृषि मंडी गया, जो कि देवास जिले में पड़ता है. 300 किलो प्याज जयराम से मंडी में 80 पैसे से सवा रुपए प्रति किलो तक खरीद ली गई.
300 किलो प्याज की कुल कीमत बनी 330 रुपए. अब व्यापारी ने इसमें से 280 रुपए ट्रांसपोर्ट का और 48 रुपए हम्माली का काटकर किसान को बचे दो रुपए लौटा दिए.
जो प्याज काटने पर आंसू ला देती है वही प्याज उगाकर मध्य प्रदेश के किसान रो रहे हैं. अभी किसानों का लहसुन की बोरियां भरभर कर नदी नालों में फेंकने की तस्वीरें आना बंद नही हुई थी कि प्याज की खेती करने वाले किसानों के लिए मुसीबत खड़ी हो गई.
मध्य प्रदेश के धार जिले के किसान सुनील पाटीदार कहते हैं कि ऐसी ही हालातों के चलते किसानों को आत्महत्या करनी पड़ रही है और इसके लिए पूरा सिस्टम दोषी है.
सुनील कहते हैं कि
हमारे यहां किसान की अहमियत है ही नहीं. महीनों की मेहनत को नदी में बहाते, मंडियों में रोते बिलखते, कर्जे से परेशान किसान आपको मध्य प्रदेश के हर गांव में मिलेंगे. एक प्याज की फसल या लहसुन की फसल में लगभग 4 महीने लगते हैं. एक एकड़ में प्याज लगाने के लिए एक किसान लगभग 35000 रुपए खर्च करता है और अगर उसको मंडी से निकलने के बाद 2 रूपए की आमदनी होती है तो किसान आत्महत्या नही करेगा तो क्या करेगा?
समझिए प्याज लगाने और उससे आजीविका चलाने का गुणा गणित
रायसेन के बिरौली गांव के किसान लीला कृष्ण गौर के मुताबिक 1 एकड़ जमीन में लगभग 3-5 किलो प्याज के बीज लगते हैं और कुल खर्चा लगभग 35000 रूपए प्रति एकड़ किसान को वहन करना पड़ता है. इसमें लगाई, निंदाई, लेबर का खर्चा, खाद, दवाई और अन्य खर्चे मिले हुए होते हैं.
एक एकड़ में अच्छी फसल होने के बाद लगभग 40-50 क्विंटल मिलता है. अब गणित लगाइए की एक क्विंटल के लिए किसानों को 400-500 रुपए आम तौर पर मिल रहा है तो 50 क्विंटल के लिए 25000 रूपए यानी अच्छी फसल होने के बाद भी किसान को 10000 रूपए का घाटा है क्योंकि मंडी में फसल की कीमत सही नही मिल रही है.
लीला कृष्ण आगे कहते हैं कि फसल लगाने में खर्च हुआ पैसा और फसल को बेचकर जो मिलता है उसमें जो हर साल अंतर रहता है यही किसानों को उधारी के कुचक्र में फंसा देता है. हालांकि किसानों की बेबसी सिर्फ मध्यप्रदेश में ही नही बल्कि देशभर में फैली हुई है.
भारत में हर वर्ष जारी होने वाले राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार पूरे भारत में वर्ष 2021 में लगभग 11 हजार किसानों और किसानी से जुड़े लोगों ने आत्महत्या की है. यानी कि है औसतन दिन लगभग 30 किसान देशभर में आत्महत्या कर लेते हैं.
300 किलो प्याज के बदले 2 रुपए की कमाई: ऐसा है पूरा गणित
1 एकड़ प्याज में 35000 रु का खर्च आता है. इसमें लगाई, निंदाई, लेबर का खर्चा, खाद, दवाई और अन्य खर्चे मिले हुए होते हैं. अच्छी फसल हुई तो लगभग 40-50 क्विंटल मिलता है. किलो में जोड़े तो करीब 5000 किलो. यानी 5000 किलो प्याज उगाने में 35,000 रु लगते हैं, ऐसे में 1 किलो प्याज उगाने में 7 रुपए का खर्चा आएगा. अब वापस 300 किलो वाली कहानी पर आते हैं. उस किसानों को 300 किलो प्याज उगाए. ऐसे में उसके 2100 रुपए लगे होंगे. यानी ये किसान की कुल लागत हो गई. अब उसे इसके बदले सिर्फ 2 रुपए की कमाई हुई.
2020 में ये संख्या 10,677 थी और 2019 में 10,281
मध्य प्रदेश कांग्रेस के किसान विंग के अध्यक्ष केदार शंकर शिरोही बताते हैं कि ऐसे वक्त जब हर व्यक्ति की लाइफस्टाइल और लिविंग स्टैंडर्ड बढ़ रहा है उस समय भी किसान को अपनी जिंदगी में कटौती करनी पड़ रही है.
आप सिनेमा हाल चले जाइए रैंडमली 50 लोगों को उठाइए एक भी किसान नहीं होगा. जब 2000 के जूते पहनने वाला इंसान 5000 के जूते पहनने लगा हो ऐसे समय में भी किसानों को हर चीज में कॉम्प्रोमाइज करके जीवन जीना पड़ रहा है. ये तो महज समझने की बात है, हकीकत तो और भयावह है, छोटे और मध्यमवर्गीय किसानों की हालत बहुत खराब है. पारंपरिक फसलों के अलावा कुछ भी लगाएं तो उसमे बहुत खतरा है.
केदार आगे कहते हैं कि पारंपरिक फसलों जैसे गेंहू, चावल, दाल आदि को हटा दें तो जो हॉर्टिकल्चर फसलें हैं जैसे कि लहसुन प्याज इनमे लागत ज्यादा है और अगर फसल का उचित मूल्य नहीं मिलेगा तो किसान कर्ज के झमेले में फंस जाएगा.
मध्यप्रदेश की बात करें तो इस बार खरीफ सीजन की फसलों में प्याज की आवक पहले के मुकाबले कम है लेकिन बावजूद इसके किसानों को सबसे बेहतर फसल होने पर भी 11- 12 रूपए प्रति किलो के हिसाब से प्याज बेचनी पड़ रही है. प्याज के सबसे अच्छे होने पर रेट 11 से 12 रुपए मिल रहे हैं, जबकि मध्यम स्तर यानी कि मीडियम क्वालिटी का प्याज 5 से 10 रूपए प्रति किलो और व्यापारी द्वारा जिसे खराब प्याज माना जाएगा उसका दाम 50 पैसे से लेकर 4 रूपए प्रति किलो किसानों को मिल रहा है.
मध्य प्रदेश के किसान नेता इरफान जाफरी कहते हैं कि
क्योंकि प्याज और लहसुन जैसी फसलों पर कोई मिनिमम सपोर्ट प्राइस नही निर्धारित है, जिसके चलते किसानों को औने पौने दाम पर फसल बेचनी पड़ती है. मसलन मध्यप्रदेश के किसान थोक में लगभग 11 रूपए प्रति किलो भी अगर प्याज बेचता है, तब भी आम जनता को 20-25 रूपए किलो ही खरीदना पड़ रहा है और इस अंतर का पूरा पैसा व्यापारी के जेब में जा रहा है.
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