Haryana Politics: लोकसभा चुनावों के बीच बीजेपी को हरियाणा में बड़ा झटका लगा है. तीन निर्दलीय विधायकों ने मंगलवार, 7 मई को घोषणा की कि उन्होंने राज्य की नायब सिंह सैनी (Nayab Singh Saini) के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है. तीन विधायकों - सोमबीर सांगवान, रणधीर गोलेन और धर्मपाल गोंदर - ने यह भी कहा कि उन्होंने मौजूदा लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया है.
उन्होंने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और राज्य कांग्रेस प्रमुख उदय भान की मौजूदगी में रोहतक में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह घोषणा की.
निर्दलीय विधायकों ने बीजेपी सरकार से समर्थन वापस क्यों लिया?
रणधीर गोलन पूंडरी से, धर्मपाल गोंदर नीलोखेड़ी से और सोमबीर सिंह सांगवान दादरी से निर्दलीय विधायक हैं.
मीडिया से बात करते हुए, धर्मपाल गोंधेर ने कई मुद्दों से निपटने के बीजेपी सरकार के तरीके पर निराशा व्यक्त की. उन्होंने कहा, ''जिस समय उन्हें सरकार बनाने के लिए हमारे समर्थन की जरूरत थी, हमें बार-बार बुलाया गया... हमने तय किया था कि जब तक मनोहरलाल खट्टर सत्ता में हैं, हम समर्थन करेंगे. हमें दुख है कि वह हमारे सेनापति ही हमें छोड़ कर चले गए हैं...किसानों के हित में हम सरकार से समर्थन वापस लेते हैं.''
कुछ ऐसा ही स्टैंड बताते हुए, धर्मपाल गोंदर ने कहा कि हरियाणा में बीजेपी के कार्यकाल के दौरान बढ़ती बेरोजगारी और मुद्रास्फीति उनके समर्थन वापस लेने के फैसले के पीछे सबसे बड़े फैक्टर हैं.
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने उनका स्वागत करते हुए कहा कि यह मौजूदा सरकार में विश्वास की कमी और लोगों के बीच कांग्रेस के प्रति बढ़ते समर्थन को दिखाता है.
इस बीच हरियाणा के सीएम और बीजेपी नेता नायब सिंह सैनी ने कहा, "मुझे यह जानकारी मिली है. हो सकता है कि कांग्रेस अब कुछ लोगों की इच्छाएं पूरी करने में लगी हो. कांग्रेस को जनता की इच्छाओं से कोई लेना-देना नहीं है."
दुष्यंत चौटाला ने कहा "अगर अल्पमत में आई हरियाणा सरकार को अगर गिराया जाता है, तो वह बाहर से समर्थन करेंगे. उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस में सोचना है कि वह BJP सरकार को गिराने के लिए कोई कदम उठाएंगे या नहीं.
वहीं, बीजेपी के इस दावे के जवाब में कि छह महीने के भीतर सदन में अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता, दुष्यंत चौटाला ने कहा, “सदन में जो अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, वह पिछली सरकार के खिलाफ था, जो पिछली सरकार के कार्यकाल के साथ ही समाप्त हो गया था. अब, वहां एक नई सरकार है. इस प्रकार, एक नया अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है."
क्या अल्पमत में नायब सरकार?
हरियाणा में विधानसभा की कुल 90 सीटे हैं यानी यहां बहुमत का जादुई आंकड़ा 46 है. किसी भी पार्टी को सरकार बनाने लिए कम से कम 46 विधायकों की जरूरत है लेकिन हरियाणा की दो सीटें फिलहाल खाली हैं. लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर ने करनाल और निर्दलीय विधायक रणजीत चौटाला ने रानियां से इस्तीफा दे दिया है. इस वजह से अभी बहुमत का आंकड़ा 45 है.
तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद नायब सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार अल्पमत में नजर आ रही है.
बीजेपी के पास 40 अपने विधायक हैं. साथ ही उसे 2 निर्दलीय के साथ हरियाणा लोकहित पार्टी के एक विधायक गोपाल कांडा का समर्थन है. इस तरह बीजेपी के साथ अभी 43 विधायक नजर आ रहे हैं जोकि बहुमत से कम है.
कांग्रेस के पास 30 विधायक हैं. अब 3 निर्दलीय विधायकों ने भी समर्थन देने का ऐलान किया है. इसके अलावा जेजेपी के पास 10 विधायक और एक विधायक INLD का है. यानी कुल मिलाकर देखें तो विपक्ष के पास 44 विधायक हैं, जो जादूई नंबर से एक कम है.
खतरे में नहीं बीजेपी सरकार?
भले ही नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार अल्पमत में हो लेकिन अभी सरकार गिरने का कोई खतरा नहीं दिख रहा है. वजह एक नियम में छिपा है. दरअसल, नायब सैनी ने सरकार संभालने के अगले ही दिन अविश्वास प्रस्ताव के बाद 13 मार्च 2024 को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट पास किया था यानी बहुमत साबित किया था.
अब नियम कहता है कि दो फ्लोर टेस्ट के बीच कम-से-कम 6 महीने का गैप होना चाहिए. यानी हरियाणा में 13 सितंबर 2024 तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता.
अब सवाल है कि क्या विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव और फ्लोर टेस्ट की मांग कर सकता है?
संविधान के जानकारों की मानें तो, फ्लोर टेस्ट की मांग विपक्ष कभी भी कर सकता है, लेकिन इसे तय करने का अधिकार स्पीकर के पास है. जबकि दो अविश्वास प्रस्ताव के बीच छह महीने का अंतर होना जरूरी है.
क्विंट हिंदी से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील आदिल अहमद ने कहा, "अविश्वास प्रस्ताव सरकार के कामकाज को लेकर लाया जाता है, इसका नंबर गेम से कोई ताल्लुक नहीं हैं. हालांकि, अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के बाद सरकार को सदन में बहुमत जरूर साबित करना पड़ता है."
दो अविश्वास प्रस्ताव के बीच छह महीने का अंतर होना चाहिए, अगर ऐसा है तो अविश्वास प्रस्ताव लाया जाया सकता है. लेकिन सरकार के खिलाफ 13 मार्च को ही अविश्वास प्रस्ताव आया था, जिसे उसने सफलतापूर्वक पास कर लिया था तो ऐसे में अल्पमत में होने के बावजूद सरकार पर 13 सितंबर तक किसी प्रकार का खतरा नहीं है.आदिल अहमद, वकील, सुप्रीम कोर्ट
आदिल अहमद ने आगे कहा कि क्योंकि नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं, ऐसे में सरकार के पास विकल्प है कि वो सितंबर के पहले ही विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दोबारा चुनाव में जा सकती है.
वहीं, लोकसभा की पूर्व महासचिव स्नेहलता श्रीवास्तव ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा, "सरकार के अल्पमत में होने पर विपक्ष स्पीकर से फ्लोर टेस्ट कराने की मांग कर सकता है. इसके लिए कोई सीमा नहीं है कि वो छह महीने के बाद ही होगा."
स्नेहलता ने आदिल अहमद की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अगर सरकार विधानसभा भंग करने की मांग 13 सितंबर के बाद करती है तो ये देखना होगा कि उसके पास बहुमत है या नहीं. अगर नंबर गेम सरकार के खिलाफ हैं तो वो विधानसभा भंग करने की सिफारिश नहीं कर सकती है. उसे पहले फ्लोर टेस्ट से गुजरना होगा, उसमें पास होने के बाद ही सदन भंग किया जा सकता है.
बता दें कि हरियाणा में वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर, 2024 को समाप्त होगा. राज्य में विधानसभा चुनाव अक्तूबर में होने प्रस्तावित हैं.
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