मशहूर लेखक संकर्षण ठाकुर की किताब 'द ब्रदर्स बिहारी' के दो बंधु, जयप्रकाश नारायण के स्कूल से राजनीति का ABCD सीखने वाले दो साथी.. फिर एक दूसरे का धुर विरोध, और फिर दोस्ती. हम बात कर रहे हैं बिहार के एक पूर्व और दूसरे वर्तमान मुख्यमंत्री की. मतलब लालू यादव और नीतीश कुमार की. दोनों का याराना भी पुराना है और दुश्मनी भी, लेकिन आजकल राजनीति के ये दोनों धुरंधर साथ-साथ हैं.
अब दोनों एक साथ मिलकर विपक्षी आवाज को मजबूत करने की राह पर निकल पड़े हैं. इसी कड़ी में दोनों की मुलाकात कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से हुई. मुलाकात का असर इस बात से लगाया जा सकता है कि नीतीश के पुराने साथी और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी भड़क गए और एक के बाद एक दनादन ट्वीट कर रहे हैं बयान दे रहे हैं.
लालू-नीतीश-सोनिया की मुलाकात पर सुशील मोदी तरह-तरह के दावे कर रहे हैं. कभी कह रहे हैं कि सोनिया गांधी ने लालू-नीतीश को भाव तक नहीं दिया. मतलब साफ है कि इस मुलाकात से जो लालू-नीतीश चाहते होंगे वो हो रहा है. विरोधी चर्चा कर रहे हैं.
भले ही इस मुलाकात से बीजेपी नेता बयान दे रहे हों, लेकिन सबसे अहम सवाल ये है कि इस मीटिंग से विपक्षी एकता को कितनी ताकत मिलेगी? क्या ये तीनों साथ मिलकर 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी से मुकाबला करेंगे? क्या इनकी मुलाकात विपक्ष को और मजबूत करेगी या फिर ये मुलाकात सिर्फ मुलाकात ही रह जाएगी?
सोनिया गांधी से मीटिंग के बाद नीतीश कुमार ने कहा था-
देश में अनेक दलों को एकजुट होना है और देश की प्रगति के लिए काम करना है, इन चीजों पर मिलकर हमने उनसे बात की, लेकिन अभी उनकी पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव होना है तो उसके बाद ही वो कुछ कहेगी.
उधर लालू यादव भी सोनिया से मुलाकात के बाद बीजेपी पर काफी आक्रामक दिखे. लालू यादव ने कहा,
हम लोग साथ मिलकर काम करेंगे, देश को बचाना है तो बीजेपी को हटाना होगा. हम लोगों ने जैसे साथ मिलकर बिहार से बीजेपी को विदा किया है उसकी देशभर में तारीफ हो रही है, हम लोगों ने सोनिया जी से आग्रह किया है आपकी सबसे बड़ी पार्टी है आप सबको बुलाइये और हम मिलकर उनकी विदाई करते हैं. सोनिया जी ने कहा है कि अध्यक्ष चुनाव के बाद हम लोगों से बैठकर बात करेंगे.लालू प्रसाद यादव
दोनों के बयान का मतलब क्या है?
सोनिया से मुलाकात के बाद दोनों के बयान से तो यही लग रहा है कि मुलाकात में कुछ खास निकलकर नहीं आया, बात कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव पर ही अटकर रह गई. यानी अब जो भी फैसला लिया जाएगा वो कांग्रेस के नए अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही होगा.
वैसे नीतीश कुमार का जब से बीजेपी से रिश्ता टूटा है उनका दिल्ली दौरा बढ़ गया है, वो लगातार विपक्षी नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं, कुछ दिन पहले भी वो जब वो दिल्ली आए थे, तो दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, एनसीपी चीफ शरद पवार और कई नेताओं से मिले थे.
उनके साथी तो उन्हें पीएम उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट भी करने लगे हैं. हांलाकि वो खुद को पीएम की रेस में शामिल करने की खबरों से इनकार करते हैं, लेकिन हर मंच से PM मोदी को बिना नाम लिए कोसते जरूर नजर आते हैं.
सवाल ये भी उठता है कि अगर कांग्रेस जेडीयू और आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के तैयार भी हो जाए तो पीएम उम्मीदवार के नाम पर कैसे सहमति बनेगी, क्या अगर नीतीश पीएम उम्मीदवार बनते हैं कांग्रेस की सहमति बनेगी ?
जब मिलेंगे तीन 'यार'
2019 के चुनावी नतीजों पर नजर डालें तो कांग्रेस को 53 सीटें मिली थीं, वहीं वो 210 सीटों पर दूसरे नंबर पर थी, यानी कुल 262 सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस बीजेपी से सीधा मुकाबला कर सकती है. वहीं नीतीश की पार्टी को 16 सीटें मिली थी, हालांकि वो चुनाव जेडीयू ने बीजेपी के साथ मिलकर ही लड़ा था.
लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी की बात करें तो वो जीरो पर आउट हो गई थी. अगर तीनों साथ मिलते हैं, तो उनके साथ और कौन सी पार्टियां होंगी ये भी देखना होगा.
मोदी के खिलाफ विपक्ष कितना एकजुट है इसकी एक बानगी रविवार को हरियाणा में देखने को मिली. जब चौधरी देवीलाल की 109वीं जयंती पर हुई 'सम्मान दिवस रैली' में महज 5 बड़े नेता मंच पर दिखे. इंडियन नेशनल लोकदल प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला ने 10 राज्यों के करीब 17 नेताओं को न्योता भेजा था, लेकिन मंच पर नजर आए नीतीश, तेजस्वी, शरद पवार, सुखविंदर सिंह बादल और CPI(M) के महासचिव सीताराम येचुरी. इस रैली में कांग्रेस का कोई नेता नहीं नजर नहीं आया. वहीं मोदी के खिलाफ हमेशा मुखर रहने वाली ममता बनर्जी भी नदारद थीं.
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी इस रैली में नहीं दिखे, हांलाकि रैली में इन लोगों के शामिल ना होने की वजह का कुछ पता नहीं चल पाया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सभी विपक्षी पार्टियां एक साथ आएंगीं?
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