"गठबंधन से हमें ज्यादा नुकसान होता है. इसी वजह से देश की ज्यादातर पार्टियां बीएसपी के साथ गठबंधन करना चाहती हैं. चुनाव के बाद गठबंधन पर विचार किया जा सकता है. अगर संभव हुआ तो चुनाव के बाद बहुजन समाज पार्टी अपना समर्थन दे सकती है...हमारी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी."
मायावती ने अपने 68वें जन्मदिन पर ये संदेश देकर कई कयासों पर पूर्ण विराम लगा दिया और कई तरह के संकेत भी दे दिये. अब इसके राजनैतिक मायने निकाले जा रहे हैं. बीएसपी सुप्रीमों के बयान के क्या मायने हैं और आगामी चुनावों पर इसका क्या असर पड़ेगा, आइये आपको समझाते हैं.
मायावती का बयान- संकेत या स्पष्टीकरण?
बीएसपी सुप्रीमो जब प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आई तो उस वक्त लगा कि वो हर बार की तरह अपने किताब का विमोचन और जन्मदिन पर कार्यकर्ताओं के बधाई संदेश का आभार व्यक्त करेंगी. लेकिन उन्होंने कई कयासों पर पूर्ण विराम लगाया, तो कई तरह के संकेत भी दिए.
उन्होंने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन या कहें की इंडिया ब्लॉक में जाने की अटकलों पर ये कहकर विराम लगा दिया कि बीएसपी आगामी लोकसभा चुनाव में पूरे दमखम के साथ अकेले मैदान में उतरेगी.
मायावती ने अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी प्रमुख पहले बीएसपी का इंडिया ब्लॉक की मीटिंग में विरोध करते हैं और फिर गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं.
दरअसल, अखिलेश यादव ने मायावती के प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले एक्स पर पोस्ट कर, बीएसपी चीफ को जन्मदिन की बधाई दी थी. इससे कयास लग रहे थे कि एसपी-बीएसपी में जलती आग शायद बुझ रही है. लेकिन मायावती ने धुएं को साफ कर दिया और कहा कि समाजवादी पार्टी बयान देकर बीएसपी के लोगों को कन्फ्यूज करना चाहती है, इससे बचने की जरूरत है.
बीएसपी चीफ ने समाजवादी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस को "बड़े उद्योगपतियों की पार्टियां" बताया.
पूरे देश में बीएसपी ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो बाबा साहेब के बनाए कानून और नियमों पर चलती है. कांग्रेस बीजेपी और उसके सहयोगियों, बड़े व्यापारियों की पक्षधर हैं. अति पिछड़ों को उनका हक नहीं मिल रहा है और आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है. सभी लोगों से अपील है कि वे बीएसपी से जुड़ें और उसे सत्ता तक पहुंचाएं, ताकि उनका हक मिल सके.मायावती, राष्ट्रीय अध्यक्ष, बीएसपी
उन्होंने गठबंधन नहीं करने की वजह बताते हुए कहा कि जब भी बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, तो इसका लाभ बीएसपी के बजाए इन दलों को मिला और इससे बीएसपी का वोट शेयर भी घट गया.
मायावती ने कहा कि हाल के चुनाव में अपर कास्ट का बहुत ज्यादा समर्थन बीएसपी को नहीं मिला लेकिन अगर इसका बंटवारा कांग्रेस और बीजेपी में होगा तो बीएसपी को जरूर फायदा मिलेगा.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो, मायावती ने भले ही "फ्री राशन" और धार्मिक तुष्टीकरण के नाम पर बीजेपी को घेरा हो लेकिन वो उतना आक्रमक भगवा दल पर नहीं रही, जितना समाजवादी पार्टी पर दिखी. उन्होंने चुनाव बाद बीएसपी के समर्थन की बात बोलकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए विकल्प खोल दिया कि अगर पार्टी को मनमुताबिक भागीदारी सरकार में मिली तो वो समर्थन कर सकती हैं.
कुछ जानकारों का कहना है कि मायवती के इस बयान की मुख्य वजह उनके भतीजे आकाश आनंद हैं. मायावती चाहती हैं कि आकाश का राजनीतिक भविष्य सेटल हो जाए, ऐसे में अगर चुनाव बाद कोई परिस्थिति बनती है तो वो कांग्रेस या बीजेपी दोनों को समर्थन दे सकती हैं.
पिछले महीने मैंने आकाश आनंद को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया था जिसके बाद मीडिया में यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि मैं जल्द ही राजनीति से संन्यास ले सकती हूं.हालांकि, मैं स्पष्ट करना चाहती हूं कि ऐसा नहीं है, और मैं पार्टी को मजबूत करने की दिशा में काम करना जारी रखूंगी.मायावती, राष्ट्रीय अध्यक्ष, बीएसपी
जानकारों का कहना है कि मायवाती ने अपने रिटायरमेंट की खबरों को अफवाह करार देकर कार्यकर्ताओं और विरोधी दोनों को संदेश देने की कोशिश की है वो अभी पॉलिटिक्स में एक्टिव हैं. ऐसे में समर्थक ये नहीं मानें की मायावती अब मैदान में नहीं हैं. वो बीएसपी के लिए काम करते रहें क्योंकि कई लोगों का मानना था कि मायावती के नहीं रहने पर पार्टी में टूट हो जाएगी.
मायावती ने विरोधियों को भी संदेश दिया कि बीएसपी पर कोई भी अंतिम निर्णय वहीं करेंगी, कोई और इसका हकदार नहीं हैं.
हालांकि, कुछ जानकारों का ये भी कहना है कि मायावती के बयान से बीजेपी को काफी राहत मिली है. क्योंकि पार्टी भले ही कहे कि बीजेपी के आगे कोई गठबंधन नहीं चलेगा लेकिन बीएसपी के किसी के साथ जाने से भगवा दल को नुकसान हो सकता है.
वैसे, बीएसपी सुप्रीमो के जन्मदिन पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य जैसे सरीखे बीजेपी नेताओं ने मायावती को बधाई देकर कई संकेत भी दिए हैं.
प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहीं मायावती?
कुछ जानकारों की मानें तो, मायावती ने गठबंधन पर बयान देकर प्रेशर पॉलिटिक्स करने की कोशिश की है. उनका कहना है कि पिछले 12 सालों में हुए चुनाव के परिणाम को देखें तो बीएसपी का प्रदर्शन खराब होता जा रहा है. ऐसे में मायावती विपक्षी दलों (बीजेपी और कांग्रेस) को संदेश देना चाहती हैं कि उनका कोर वोट अभी भी उनसे जुड़ा है और अगर ये दल उनकी (मायावती) शर्तों पर उन्हें बुलाएं तो वो साथ आ सकती हैं. लेकिन समाजवादी पार्टी को गठबंधन (अगर इंडिया ब्लॉक बुलाए तो) में मजबूत जगह नहीं मिलनी चाहिए. मतलब बीएसपी सपा के साथ समझौता करने के मूड में नहीं है बशर्ते अखिलेश एकदम न झुक जाएं.
BSP को मजबूत करने की कोशिश
अयोध्या में राम मंदिर निमंत्रण और बाबरी पर बयान देकर मायावती ने बीएसपी के साथ एक बार फिर अपर कास्ट और अल्पसंख्यकों को जोड़ने की कोशिश की है.
मुझे निमंत्रण मिला है, इसका मैंने वहां जाने का फैसला नही किया है क्योंकि पार्टी के काम में व्यस्त हूं. लेकिन जो भी कार्यक्रम होने जा रह है, हमें एतराज नहीं है, बीएसपी इसका स्वागत करती हैं. आगे चलकर बाबरी को लेकर कुछ होगा तो उसका भी स्वागत करेंगे.मायावती, राष्ट्रीय अध्यक्ष, बीएसपी
इस मौके पर मायावती ने ये भी कहा कि बीएसपी देश की एकमात्र धर्मनिरपेक्ष पार्टी है, जो सभी धर्मों का सम्मान करती है. उन्होंने कहा कि बीएसपी ने उत्तर प्रदेश में अपनी चार बार की सरकार में सभी वर्गों के लिए काम किया. अल्पसंख्यक, मुस्लिम, गरीब, किसान और मेहनतकश लोगों के लिए जनकल्याणकारी योजनाएं चलाई थीं. इन योजनाओं को सरकारें नाम और स्वरूप बदल कर अपना बनाने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन जातिवादी होने की वजह से यह काम नहीं हो पा रहा है.
दरअसल, पिछले कुछ चुनाव से देखा जा रहा है कि बीएसपी को अपर कास्ट को अल्पसंख्यक, दोनों का समर्थन नहीं मिल रहा है. बीएसपी ने चुनाव दर चुनाव, इन्हें जोड़ने की कोशिश भी की, लेकिन 2012 के बाद से पार्टी इसमें सफल नहीं हो पाई है. ऐसे में अगर अब अपर कास्ट या अल्पसंख्यकों में से कोई एक वर्ग बीएसपी को आम चुनाव में समर्थन करता है तो पार्टी फिर से मजबूत हो सकती है.
हालांकि, मायावती भविष्य में क्या करेंगी, अपने बयानों पर कितनी मजबूती से टिकी रहेंगी, ये बीएसपी सुप्रीमो ही बता सकती हैं, लेकिन अपने जन्मदिन के मौके पर मायावती ने कुछ धुंध साफ किए तो कोहरे और शीतलहर को बढ़ा दिया. अब इसकी चपेट में जो भी आएगा, उसे मायावती की शर्तों पर उनसे समझौता करना पड़ेगा.
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