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कांग्रेस में आएंगे प्रशांत किशोर?पार्टी झुकी या पीके,क्या होगा ओहदा,कितनी आजादी?

2021 में Prashant Kishor और Congress के बीच वार्ता विफल रही थी लेकिन इसबार परिस्थितियां अलग हैं

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पिछले चार दिनों में तीन हाई-लेवल बैठकों के बाद राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के कांग्रेस (Congress) पार्टी में शामिल होने के लिए मंच तैयार है. सबसे पहले शनिवार, 16 अप्रैल को प्रशांत किशोर ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की एक बैठक में 2024 लोकसभा चुनावों के लिए रोडमैप पर एक प्रेजेंटेशन दी.

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इसके बाद सोमवार की शाम और फिर मंगलवार को सोनिया गांधी के ही आवास पर प्रशांत किशोर की दो और बैठकें हुईं. माना जा है कि इन बैठकों के दौरान प्रशांत किशोर ने प्रियंका गांधी, मुकुल वासनिक, केसी वेणुगोपाल, रणदीप सुरजेवाला, दिग्विजय सिंह, अंबिका सोनी और कमलनाथ जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की है.

तो सवाल है कि आखिर किस वजह से कांग्रेस ने प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल करने का फैसला किया? और पार्टी के साथ प्रशांत किशोर किस रूप या किस भूमिका में जुड़ेंगे?

प्रशांत किशोर पर आखिरकार कांग्रेस ने स्पष्ट स्टैंड कैसे लिया?

कांग्रेस के एक नेता ने 10 मार्च की दोपहर को एक वॉयस नोट में बताया कि "प्रशांत किशोर के दूसरे आगमन के लिए तैयार रहें." याद रहे 10 मार्च को ही पांच विधानसभा चुनावों के परिणाम घोषित किए गए थे.

लेकिन “दूसरे आगमन” बोलने वाले इस कांग्रेस नेता ने यह स्पष्ट नहीं किया कि "पहला आगमन" का क्या अर्थ है - क्या इसका मतलब 2017 में पंजाब और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के कैंपेन में पार्टी के साथ राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में काम करने से था या फिर यह 2021 में पार्टी नेतृत्व और प्रशांत किशोर के बीच असफल वार्ता की ओर संकेत था.

खैर, यह अप्रासंगिक था. कुल जमा यह है कि विधानसभा चुनावों में हार के बाद प्रशांत किशोर को साथ जोड़ने के लिए कांग्रेस के भीतर तत्परता बहुत बढ़ गयी है.

खास बात यह है कि तत्परता केवल शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर ही नहीं बल्कि हर स्तर पर स्पष्ट है. पांच साल से अधिक समय से कांग्रेस के लिए काम कर रहे एक सोशल मीडिया वॉलंटियर ने कहा कि "हमें मदद की जरूरत है. हमें अपने संगठन के अंदर और अपनी सोच में बड़े बदलाव की जरूरत है"

कांग्रेस की विचारधारा में दृढ़ विश्वास रखने वाला यह वॉलंटियर इसके पहले कांग्रेस में प्रशांत किशोर को किसी भी तरह से शामिल किए जाने का बड़ा आलोचक था और किशोर के ऊपर “शून्य आस्था रखने" का आरोप लगाता था. मतलब जाहिर है कि अब हृदयपरिवर्तन हुआ है.

2021 में वार्ता हुई थी असफल

2021 में प्रशांत किशोर और कांग्रेस पार्टी ने एकसाथ काम करने को लेकर विस्तृत चर्चा की थी. हालांकि कथित तौर पर "मूलभूत मतभेद" होने के कारण यह बातचीत असफल रही.

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सूत्रों का कहना है कि बातचीत दोनों पक्षों के बीच तीखी नोकझोंक पर खत्म हुई थी. हालांकि बातचीत का दरवाजा पूरी तरह से कभी बंद नहीं हुआ- मुख्य रूप से दो कारणों से:

  • हो सकता है कि कांग्रेस प्रशांत किशोर द्वारा बताए गए उपचार से सहमत न हो, लेकिन कई सदस्य “पार्टी में क्या खामी है”- पर प्रशांत किशोर के मत से सहमत थे.

  • दूसरी तरफ प्रशांत किशोर भी यह समझ गए हैं कि ममता बनर्जी, स्टालिन और जगनमोहन रेड्डी जैसे नेताओं की मदद कर वह राज्य स्तर पर सफलता हासिल कर सकते हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी को चुनौती देना कांग्रेस के बिना असंभव है.

पिछले एक साल के अंदर कई इंटरव्यूज में प्रशांत किशोर कहते रहे हैं कि कांग्रेस के पास जो विचार और स्थान है वह विपक्ष के लिए महत्वपूर्ण है.

2021 और 2022 के बीच प्रशांत किशोर का कांग्रेस पार्टी के लिए ब्लूप्रिंट और जो बदलाव वे चाहते हैं- वह कमोबेश एक ही रहा. बदलाव हुआ तो सिर्फ कांग्रेस पार्टी के अंदर प्रशांत किशोर को शामिल करने की तत्परता में.

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5 राज्यों के चुनावों के बाद बात बन गयी

5 राज्यों के चुनावी नतीजों ने कांग्रेस और किशोर के डीलपर मुहर लगा दी, खासकर कांग्रेस के दृष्टिकोण से. नतीजों ने उन दो पहलुओं को नष्ट कर दिया जिनपर कांग्रेस उम्मीदों का महल बना रही थी:

  1. वह राज्य स्तर पर बीजेपी को कांटे की टक्कर दे सकती है और बीस साबित हो सकती है- जैसा कि उसने 2018 में छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में साबित किया था.

  2. वह क्षेत्रीय पार्टियों की चुनौतियों से पार पा सके, जैसा कि 2017 में पंजाब में उसने आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल को हराकर साबित किया था.

उत्तराखंड में बीजेपी द्वारा दो बार मुख्यमंत्री बदलने और गोवा में दो बार के सत्ता विरोधी लहर के बावजूद कांग्रेस की बुरी हार ने ऊपर की पहली उम्मीद को नष्ट कर दिया.

दूसरी ओर पंजाब में AAP के हाथों की हार के साथ-साथ पिछले साल केरल में लेफ्ट के खिलाफ हार ने कांग्रेस की दूसरी उम्मीद को नष्ट कर दिया.

10 मार्च के नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस अब 2019 के मुकाबले भी कमजोर हो गई है. देश में मुख्य विपक्ष के रूप में इसकी स्थिति को क्षेत्रीय पार्टियों ने चुनौती दी है.

कांग्रेस के भीतर भी गांधी परिवार के नेतृत्व पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. भले ही G23 नेता इस मत के साथ खुलकर सामने आये हैं लेकिन अन्य सदस्य के साथ भी यही कहानी है.
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सूत्रों का कहना है कि क्षेत्रीय स्तर के कुछ बड़े कांग्रेसी चेहरों समेत कई नेताओं ने राहुल गांधी के सुझावों की खुलेआम अनदेखी करनी शुरू कर दी थी.

प्रशांत किशोर को कांग्रेस की चुनावी रणनीतियों की कमजोरियों को दूर करने के साथ-साथ पार्टी नेतृत्व की स्थिति को मजबूत करने के उपाय के रूप में देखा जा रहा है- जैसा कि किशोर ने उन क्षेत्रीय नेताओं के साथ किया है जिनके साथ उन्होंने काम किया है.

कांग्रेस में प्रशांत की भूमिका क्या होगी?

कांग्रेस के अंदर प्रशांत किशोर की क्या भूमिका रहेगी- इसके बारे में बहुत बार मत बदला गया. कांग्रेस नेताओं के एक धड़े का प्रस्ताव है कि प्रशांत किशोर को एक खास चुनावी कैंपेन को संभालने वाले सलाहकार के रूप में शामिल करना था- जैसे कि इस साल के अंत में होने वाले गुजरात चुनाव के लिए.

हालांकि किशोर के सार्वजनिक फैसले- राजनीतिक सलाहकार की भूमिका छोड़ने को देखते हुए यह रियलिटी से दूर साबित हुआ. साफ है कि प्रशांत किशोर की नई पारी अब कांग्रेस पार्टी के हिस्से के तौर पर होगी न कि किसी किराए के सलाहकार के तौर पर.
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इससे पहले अप्रैल में कांग्रेस में इस बात की जोरदार चर्चा थी कि प्रशांत किशोर पार्टी में जनरल सेक्रेटरी के रूप में शामिल होंगे. इसकी घोषणा होने ही वाली थी लेकिन अंतिम समय में रद्द कर दी गई.

किशोर को अभी भी महासचिव बनाया जा सकता है लेकिन ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उन्होंने पार्टी में किसी खास पद की मांग नहीं की है. लेकिन प्रशांत किशोर ने 2024 के लोक सभा चुनावों के लिए अपनी योजना को लागू करने की पूरी आजादी मांगी है.

यदि किशोर को यह अधिकार वास्तव में दिया जाता है तो वो गांधी परिवार के बाद कांग्रेस में सबसे शक्तिशाली नेता बन जायेंगे, भले ही उन्हें कोई भी पद मिले.

कुछ मायनों में कांग्रेस में किशोर की वही भूमिका हो जाएगी जो 2014 में नरेंद्र मोदी के चुनावी कैंपेन में अमित शाह की थी.

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