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प्रशांत किशोर का राहुल पर निशाना-कांग्रेस का नेतृत्व किसी का 'दैवीय अधिकार' नहीं

प्रशांत किशोर का बयान ऐसे वक्त में आया है जब टीएमसी और कांग्रेस के बीच विपक्ष के नेतृत्व को लेकर खींचतान जारी है.

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चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने एकबार फिर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर हमला बोला है. किशोर ने राहुल का नाम लिए बिना कहा कि एक विशेष शख्स के पास कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व का दैवीय अधिकार नहीं है. किशोर का बयान ऐसे समय में आया है जब बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व करने को लेकर टीएमसी और कांग्रेस में खींचतान जारी है.

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विपक्ष के नेतृत्व पर लोकतांत्रिक तरीक से होने दें फैसलाः प्रशांत किशोर

गुरुवार, 2 दिसंबर को किए ट्वीट में किशोर ने लिखा, ''जिस विचार और दायरे का प्रतिनिधित्व कांग्रेस करती है, वह एक मजबूत विपक्ष के लिए काफी महत्वपूर्ण है. लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व करना किसी खास शख्स का दैवीय अधिकार नहीं है. खासकर ऐसे वक्त में जब पार्टी ने पिछले 10 सालों में 90 फीसदी चुनाव हारे हों. विपक्ष के नेतृत्व पर फैसला लोकतांत्रिक तरीके से होने दीजिए''.

प्रशांत किशोर का बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि क्योंकि राहुल गांधी कुछ महीनों बाद फिर से कांग्रेस की कमान संभालने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसे में किशोर का बयान कांग्रेस के अंदर ही राहुल के नेतृत्व को लेकर उठ रहे सवालों को और हवा दे सकता है.
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कुछ महीने पहले तक कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी निभाने की तैयारी कर रहे किशोर ममता बनर्जी के साथ मिलकर टीएमसी का देशभर में विस्तार कर रहे हैं. इसी कड़ी में वह कांग्रेस को लगातार झटके दे रहे हैं. लुइजिन्हो फलेरो, मकुल संगमा, कीर्ति आजाद, सुष्मिता देव समेत कांग्रेस के कई पुराने और बड़े चेहरों को वो टीएमसी में शामिल करा चुके हैं.

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कांग्रेस पर लगातार हमलावर हैं PK

इससे पहले अक्टूबर में भी प्रशांत किशोर ने बीजेपी को लेकर कांग्रेस और राहुल गांधी के रवैये पर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था कि शायद राहुल गांधी को लगता है कि यह बस समय की बात है कि लोग उन्हें (बीजेपी) बाहर कर देंगे जबकि ऐसा नहीं होने जा रहा है. मोदी शायद हार भी जाएं पर बीजेपी आने वाले कई दशकों तक भारतीय राजनीति के केंद्र में रहेगी.

किशोर ने लखीमपुर खीरी घटना का जिक्र करते हुए भी कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था कि लखीमपुर खीरी के जरिए सबसे पुरानी पार्टी (कांग्रेस) के नेतृत्व में विपक्ष को फिर से खड़ा करने की कोशिश सफल नहीं होगी, क्योंकि कांग्रेस कई गहरी समस्याओं से जूझ रही है, जिसका समाधान तुरंत होना मुश्किल है.

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