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राहुल-नीतीश-तेजस्वी मुलाकात से संयुक्त विपक्ष का फिर ‘धुआं’ उठा: चिराग कब जलेगा?

क्या राहुल गांधी के साथ नीतीश-तेजस्वी की बैठक को 'संयुक्त विपक्षी मोर्चा' की दिशा में ऐतिहासिक कदम माना जाए?

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आगामी लोकसभा चुनावों में बमुश्किल से एक साल का वक्त रह गया है. ऐसे में सत्तारूढ़ बीजेपी से मिलकर मुकाबला करने के लिए विपक्ष का एक खेमा बीच-बीच में एक साथ बैठता है और 'संयुक्त विपक्ष' के विचार को हवा देता है. कुछ ऐसा ही बुधवार, 12 अप्रैल को हुआ जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के निवास पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi), बिहार के सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) एक साथ बैठे.

बैठक के बाद तो राहुल गांधी ने इस बैठक को विपक्ष की एकता की दिशा में ऐतिहासिक कदम बता दिया.

सवाल है कि क्या राहुल गांधी के इस बैठक को 'संयुक्त विपक्षी मोर्चा' की दिशा में ऐतिहासिक कदम माना जाए? या यह विपक्षी दलों के कई धड़ों द्वारा शुरू ऐसी ही कवायद की दिशा में एक कदम मात्र है.

इस आर्टिकल में हम आपको विपक्ष को साथ लाने की दिशा में शुरू अबतक के तमाम कवायद से वाकिफ कराएंगे और साथ ही समझेंगे कि कैसे ये पार्टियां अभी भी एक मंच पर आने को पूरी तरह तैयार नहीं दिख रही हैं?

इससे पहले जानते हैं कि आज की राहुल गांधी, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की बैठक में क्या कुछ हुआ?

"विपक्षी एकता का ऐतिहासिक कदम"- राहुल गांधी 

बुधवार, 12 अप्रैल को नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने 10, राजाजी मार्ग पर स्थित कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर राहुल गांधी से मुलाकात की. इनके अलावा बैठक में JDU अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह, RJD के राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद भी मौजूद थे.

बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए, मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि यह "ऐतिहासिक" था और उनका उद्देश्य आगामी चुनावों के लिए सभी विपक्षी दलों को एकजुट करना है.

"हम सभी ने यह तय किया कि सभी पार्टियों को एकजुट करना और आगे आने वाले चुनावों में एकसाथ लड़ना है. आज यही निर्णय लिया गया है और हम सब मिलकर उसी रास्ते पर काम करेंगे.
मल्लिकार्जुन खड़गे

बैठक के बाद राहुल गांधी ने मीडिया से कहा कि "विपक्ष को एक करने की एक प्रक्रिया है और उनका देश के लिए जो विजन है, उसे हम विकसित करेंगे. जो भी पार्टियां हमारे साथ चलेंगी, हम उन्हें लेकर आगे बढ़ेंगे और विचारधारा की लड़ाई लड़ेंगे. देश और लोकतंत्र पर जो आक्रमण हो रहा है, हम उसके खिलाफ एक साथ खड़े होंगे."

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि हम देश की अधिक से अधिक पार्टियों को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं. हम साथ बैठेंगे और आगे का काम करेंगे. यह बात तय हो गयी है. जितने लोग साथ आने को सहमत होंगे, हम उनके साथ बैठेंगे और आगे की बात करेंगे".

यह पूछे जाने पर कि कितनी पार्टियां एक साथ आ रही हैं, नीतीश कुमार ने कहा, 'जिस दिन हम मिलेंगे, आपको पता चल जाएगा. बड़ी संख्या में पार्टियां एक साथ आ रही हैं.”

अबतक विपक्षी एकता बनाने की तमाम कवायद

कांग्रेस से अलग एक्टिव मोड में ममता बनर्जी

मार्च महीने के बीच में कांग्रेस संसद के अंदर अडानी मुद्दे पर पीएम मोदी को घेरने की कोशिश कर रही थी और उधर अखिलेश यादव ने ममता बनर्जी से ऐसी 'शिष्टाचार भेंट' की, कि खुद कांग्रेस सकते में आ गयी. बैठक से ऐसा लगा कि ममता बनर्जी कांग्रेस के बिना बीजेपी का सामना करने के लिए 'एकजुट' विपक्ष की तैयारी कर रही हैं. 

इसके कुछ ही दिन बाद ममता बनर्जी ने ओडिशा के अपने समकक्ष नवीन पटनायक से मुलाकात की. भले ही ममता बनर्जी ने बैठक को "शिष्टाचार भेंट" का नाम दिया और पटनायक ने कहा कि बैठक के दौरान कोई "राजनीतिक चर्चा" नहीं हुई- लेकिन राजनीतिक पंडितों के लिए संकेत साफ थे. संयुक्त विपक्ष बनाने के लिए कांग्रेस से अलग ममता बनर्जी एक्टिव मोड़ में हैं.

केजरीवाल का G8

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली का बजट पेश होने के बाद मीडिया से बात करते हुए जानकारी दी थी कि G8 नाम का एक 'गवर्नेंस प्लेटफॉर्म’ बन रहा है. उन्होंने कहा कि इस मंच से जुड़कर हर महीने 8 राज्यों के मुख्यमंत्री, उनमें से किसी एक के राज्य में जाएंगे और वहां जो अच्छे काम हुए, वो देखकर आएंगे ताकि एक दूसरे से सीख सकें. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीएम केजरीवाल ने इस मंच के राजनीतिक होने के सवाल को पूरी तरह खारिज किया था.

हालांकि सीएम केजरीवाल द्वारा G8 को "गैर-राजनीतिक" बताने के इस दावे पर सवाल उठने लाजमी थे. जिन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को न्योता भेजा गया उनसे से एक भी बीजेपी या कांग्रेस शासित नहीं है.
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राहुल गांधी की सजा के खिलाफ एकजुट विपक्ष

राहुल गांधी को मानहानि मामले में सजा मिलने के बाद विपक्ष कुछ हद तक साथ दिखा. यहां तक ​​कि टीएमसी और आप जैसी खुले तौर पर कांग्रेस को खारिज करने वाली पार्टियां भी कांग्रेस के पीछे आ गईं और विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया.

एक बार फिर एकता तब दिखी जब राहुल गांधी की सजा के एक दिन बाद, विपक्ष के 14 दलों ने संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. याचिका में कहा गया कि जांच एजेंसियों द्वारा विपक्षी दलों को चुन-चुन कर टारगेट किया जा रहा है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया.

डीएमके का सामाजिक न्याय सम्मेलन

डीएमके ने अप्रैल की शुरुआत में सामाजिक न्याय सम्मेलन के मंच पर कई विपक्षी दलों को साथ आने का मंच मुहैया कराया. डीएमके सुप्रीमो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा आयोजित विपक्ष की यह दूसरी बैठक थी.

सम्मेलन में राजस्थान के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अशोक गहलोत, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और अखिलेश यादव, बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, तृणमूल के डेरेक ओ'ब्रायन, वामपंथी नेता सीताराम येचुरी और डी राजा ने भाग लिया. इसके अलावा अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी - भी इसमें मौजूद रही.
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विपक्ष साथ आ रहा है, लेकिन एकता कहा है?

भले ही खड़गे, राहुल और नीतीश कुमार इस बैठक को विपक्षी एकता के लिए "ऐतिहासिक" बता रहे हैं, लेकिन इन नेताओं को भी विपक्षी एकता के राह में खड़ी बाधाओं की जानकारी है. साथ आते दिख रहे ये विपक्षी दल कई राज्यों में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं - पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना इसके प्रमुख उदाहरण हैं.

एक तरफ तो विपक्षी दल संयुक्त मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कई ऐसे उदाहरण हैं जो बताते हैं कि यह बहुत टेढ़ी खीर है.

ममता और अखिलेश मिल तो रहे लेकिन कांग्रेस पर वार भी किया

ममता बनर्जी और अखिलेश यादव की बैठक के बाद लोकसभा में तृणमूल नेता सुदीप बंद्योपाध्याय ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा था, "बीजेपी के एक आदर्श विपक्ष के रूप में कांग्रेस की भूमिका संदिग्ध है. पश्चिम बंगाल में, तृणमूल कांग्रेस और राज्य सरकार के लिए समस्याएं पैदा करने के लिए कांग्रेस की CPI और बीजेपी दोनों के साथ समझ है. एक तरफ कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर तृणमूल कांग्रेस का समर्थन मांगेगी तो दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल में राज्य स्तर पर हमारा विरोध करेगी. दोनों चीजें साथ-साथ नहीं चल सकतीं."

इस प्रस्तावित विपक्षी मोर्चे में कांग्रेस की भूमिका पर अखिलेश यादव ने भी कहा कि यह कांग्रेस को तय करना है कि वह इसमें है या नहीं. उन्होंने यह भी कहा कि पहले कांग्रेस खुद केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करती थी.

हमारी पार्टी इन दोनों (अमेठी, रायबरेली) सीटों पर कांग्रेस को चुनाव जिताने में मदद करती है लेकिन जब समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय होता है तो कांग्रेस एक शब्द नहीं बोलती है."
अखिलेश यादव
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शरद पवार दूर नजर आ रहे?

NCP के प्रमुख शरद पवार ने दो प्रमुख मुद्दों पर विपक्ष के विचारों का खंडन किया है. उन्होंने अडानी मुद्दे पर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की जांच की मांग से असहमति जताई है और कहा है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट प्रेरित हो सकती है. जबकि कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार पर आक्रामक रूप से निशाना साध रही है. फिर आम आदमी पार्टी (AAP) की इस मांग पर कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी शैक्षणिक डिग्री दिखाएं, पवार ने पूछा कि क्या यह भी कोई मुद्दा है?

द क्विंट के पॉलिटिकल एडिटर आदित्य मेनन के अनुसार पवार के बयान का मतलब यह नहीं है कि वह विपक्ष से नाता तोड़ रहे हैं, लेकिन वे विपक्ष के भीतर दृष्टिकोण में अंतर की ओर इशारा जरूर कर रहे हैं.

राहुल के सावरकर वाले बयान पर उद्धव ठाकरे मुखर

संसद से अयोग्यता के बाद राहुल गांधी ने कहा था कि मैं सावरकर नहीं जो माफी मांगूंगा. इस टिप्पणी ने महाराष्ट्र में कांग्रेस के सहयोगियों को भी नाराज कर दिया और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने यहां तक ​​​​चेतावनी दी कि इस तरह के बयान एकता में दरार ला सकते हैं.

केजरीवाल 'संयुक्त विपक्षी मोर्चा' के समीकरण में कहां फिट होते हैं?

क्या नयी नवेली राष्ट्रीय पार्टी बनी आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो केजरीवाल कांग्रेस के साथ खड़े होने को तैयार हैं? पार्टी जिस दो राज्य- पंजाब और दिल्ली- में सत्ता में है वहां वह कांग्रेस की पुरजोर विरोधी है. आदित्य मेनन के अनुसार आम आदमी पार्टी वैसे तो खुद को कांग्रेस और बीजेपी का विकल्प बताती है लेकिन आप कांग्रेस के वोट को काट कर ही उभरी है. यहां तक कि गुजरात चुनाव में भी कांग्रेस के वोटों में ही आप ने सेंध मारी है. इसके अलावा केजरीवाल जिस G8 मंच को खड़ा करने की कोशिश में हैं, उनमें उन्होंने किसी भी कांग्रेसी मुख्यमंत्री को न्योता नहीं भेजा है.

यही वजह है कि अभी इन तमाम कवायदों से 'संयुक्त विपक्षी मोर्चा' का सिर्फ ‘धुआं’ उठ रहा है, लेकिन सवाल अभी भी बाकी है कि चिराग कब जलेगा? क्या यह 2024 के चुनाव के पहले होगा या फिर एक बार अलग-थलग पड़ा विपक्ष मजबूत बीजेपी का समाना करेगा?

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