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मिड डे मील में नमक-रोटी का खुलासा करने वाले पवन का निधन,एक साथ लड़ रहे थे कई जंग

मिर्जापुर के पत्रकार पवन जायसवाल का कैंसर से लड़ते-लड़ते निधन हो गया

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उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर (Mirzapur) जिले के अहरौरा नगर पंचायत में रहने वाले पत्रकार पवन जायसवाल (Pawan Jaiswal) कैंसर से लड़ाई हार गए. पत्रकार पवन जायसवाल ने 38 वर्ष की उम्र में अपने पत्रकारिता के कैरियर में खूब नाम कमाया. पवन जायसवाल ने मीड डे मील में बच्चों को नमक रोटी परोसने की खबर दुनिया को दिखाया. खबर दिखाने के बाद सभी की जुबान पर चर्चा का विषय बन कर उभरे पवन जायसवाल. कैंसर से पीड़ित पवन का वाराणसी के एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था लेकिन गुरुवार की सुबह उनका निधन हो गया.

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क्या था नमक रोटी प्रकरण?

मिर्जापुर के अहरौरा थाने के शिउर प्राइमरी स्कूल पर जनसंदेश टाइम्स के ग्रामीण पत्रकार पवन जायसवाल द्वारा शूट किया गया वीडियो 22 अगस्त 2019 को वायरल हो गया था. खबर के बाद राज्य सरकार ने दो शिक्षकों को निलंबित कर दिया था. पत्रकार पवन और हिनौता ग्राम प्रधान राजकुमार पाल के प्रतिनिधि के खिलाफ राज्य सरकार की छवि खराब करने के आरोप में स्थानीय पुलिस प्रशासन ने मुकदमा दर्ज किया गया था.

पत्रकार द्वारा कमी उजागर किए जाने के बाद उसमें सुधार करने के बजाए स्थानीय प्रशासन ने पत्रकार को ही निशाना बना दिया. राज्य सरकार इस मामले में चारों तरफ से आलोचनाओं का शिकार हुई थी. घटना के उजागर होने के बाद शुरू हुए आरोप-प्रत्यारोप और कार्रवाई के बीच प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) की एक टीम मिर्जापुर गई थी जहां पर वह पत्रकार पवन जयसवाल से मिली.

पुलिस के आला अधिकारियों ने पीसीआई की टीम को उस समय बताया था कि उन्होंने अपनी जांच में पत्रकार पवन जायसवाल को क्लीन चिट दे दी है.

संघर्षों के बीच थम गईं सांसे

पवन जायसवाल का जीवन संघर्षों से भरा था. मिड डे मील वाला केस तो खत्म हुआ लेकिन उनकी आर्थिक हालत खस्ती होती चली गई. जिस जनसंदेश टाइम्स अखबार के लिए पवन ने मिड डे मील की खबर की थी, वहां से भी उन्हें जाना पड़ा, जिसके बाद 'जनज्वार' नामक वेबसाइट से जुड़े. कुछ दिन काम करने के बाद उन्होंने उसे भी छोड़ दिया. किसी बड़े मीडिया हाउस में काम करने का ख्वाब संजोए, पवन संघर्षों से जूझ रहे थे. मुकदमे से बाइज्जत बरी होने के बाद पवन अक्सर सोच में पड़े रहते थे.

जब भी मेरी बात होती थी वह अपने ख्वाब साझा करते थे. बोलते थे, "हमें किसी बढ़िया कंपनी में काम करना है." लेकिन किसी बड़े मीडिया हाउस में उन्हें काम करने का मौका नहीं मिला.

क्लीन चिट मिलने के बाद पवन ने कई जगह इनाम की धनराशि भी पाई थी, उसी के सहारे उनका खर्च चल रहा था. इन्हीं सब संघर्षों के साथ पवन जायसवाल ने कैंसर की जंग लड़ना शुरू किया था.

पत्रकार पवन जायसवाल कोई एक दिन दांत में दर्द हुआ. उन्होंने अपना इलाज गांव के ही एक डॉक्टर से कराया तो डॉक्टर ने दांत निकाल दिया, लेकिन घाव नहीं भर पाया. धीरे-धीरे घाव ने गंभीर बीमारी का रूप ले लिया. 12 सितंबर 2021 को जांच रिपोर्ट आने के बाद पवन और उनके घर वालों को कैंसर का पता चला जिसके बाद बनारस के एक प्राइवेट अस्पताल में उनका इलाज शुरू हुआ. ऑपरेशन के बाद उनकी स्थिति बिगड़ती चली गई. गुरुवार के तड़के उन्होंने हमेशा के लिए सबका साथ छोड़ दिया. पवन के परिवार में माता-पिता, भाई-बहन के साथ पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं. पवन जायसवाल के पिता एक छोटी सी किताब की दुकान चलाते हैं.

इलाज और आर्थिक मदद के लिए दर-दर खाई ठोकर

पवन इलाज के दौरान आर्थिक तौर पर काफी परेशान चल रहे थे. हिंदी अखबार में क्षेत्रीय पत्रकारों का क्या संघर्ष होता है, पवन इसका जीता जागता उदाहरण थे. संस्थान की तरफ से ना तो कोई बीमा, ना ही कोई आर्थिक मदद दी गई. ग्रामीण पत्रकारों के जीवन की यही कटु सच्चाई है. अगर पत्रकार या उसके घर वालों की तबीयत खराब हो गई तो इलाज के लिए पैसे के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ती है.

कैंसर के इलाज और दवाइयों के खर्च के बोझ के नीचे दबे जा रहे पवन ने हार कर अपनी परेशानी सोशल मीडिया पर साझा की और उन्हें यह बताना पड़ा कि वह वही "नमक रोटी कांड" को उजागर करने वाले पत्रकार हैं जो इस समय कैंसर की बीमारी से जूझ रहे हैं और इलाज करने के लिए उनके पास पैसे नहीं है.

जिंदगी में हमने ईमानदारी की पत्रकारिता की है, नमक रोटी बच्चो को खिलाई जा रही थी, उसका खुलासा हमने किया. लेकिन अब हमारी उम्मीद छूट रही है. इस वक्त हमे पैसे की अवश्यकता है इलाज के लिए. हम कैंसर की समस्या से जूझ रहे है. कृपया मदद करें.
पवन जायसवाल का ट्वीट

विपक्ष के नेताओं के साथ कई बड़े पत्रकार मदद के लिए आगे आए. विपक्ष के नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक लाख रुपए और आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने एक लाख रुपये की आर्थिक मदद दी. जिला प्रशासन की तरफ से सिर्फ 50 हजार के अलावा कोई मदद नहीं मिली. लखनऊ और दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार भी पवन की आर्थिक मदद के लिए आगे आए लेकिन इलाज के दौरान उनकी दुखद मौत की सूचना मिली.

हसरत रह गई अधूरी, लेकिन हस्ती नहीं मिटेगी

वैसे तो ग्रामीण क्षेत्र में काम करने वाला पत्रकार गुमनामी के अंधेरे में ही रहता है, लेकिन यूपी के स्कूल में मिड डे मील में नमक-रोटी परोसने की खबर ने पवन को एक नई पहचान दिला दी थी. पवन से मेरी मुलाकात और जान पहचान इसी प्रकरण के बाद हुई थी. बातचीत के क्रम में वह अपनी बीमारी के बारे में भी बताते थे लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि वह इतनी जल्दी हमसे बहुत दूर हो जाएंगे. एक बड़े मीडिया संस्थान में काम करने की उनकी हसरत अधूरी रह गई. सरकारों के सामने घुटने टेक देने वाले पत्रकार और पत्रकारिता के बीच पवन जयसवाल ऐसे चिराग थे जिसकी रोशनी से दूसरे लोगों की जिंदगी में प्रकाश हो रहा था. वह दिया हमेशा के लिए बुझ गया है.

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