अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के शहर-ए-नव पार्क में अफगान सैनिकों और तालिबान आतंकवादियों के बीच युद्ध से बचने के लिए अपने गांव छोड़कर भाग गई सैकड़ों महिलाएं लापता हो गई हैं. इसका नावेद (बदला हुआ नाम) ने दावा किया है, जो एक अफगान नागरिक हैं और दिल्ली में रहते हैं.
आईएएनएस से बात करते हुए नावेद ने बताया कि मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह कह रहा हूं कि शहर-ए-नव पार्क में शरण लेने वाली सैकड़ों महिलाएं लापता हैं. परिजन पिछले कई दिनों से उनकी तलाश कर रहे हैं, लेकिन वे नहीं मिली हैं. अभी अफगानिस्तान की यही स्थिति है.
नावेद ने कहा कि उन्होंने लगभग आठ साल पहले अपना देश छोड़ दिया था लेकिन उनके पास अभी भी अफगानिस्तान में सूचना के अच्छे स्रोत हैं क्योंकि वह एक निजी अमेरिकी सुरक्षा फर्म से जुड़े हैं जो स्थानीय नागरिकों को 'सूचना देने' का काम करता है.
अफगानिस्तान के लोगों के लिए बमबारी, गोलाबारी और हवाई हमले कोई नई बात नहीं है क्योंकि उन्हें बचपन से ही इसकी आदत हो गई थी, लेकिन उन्होंने कल्पना नहीं की थी कि उन्हें देश छोड़ना होगा.नावेद, अफगान नागरिक
महिलाओं को घर से जबरदस्ती ले जाते हैं तालिबानी
वहां की भयावह स्थिति पर बात करते हुए नावेद कहते हैं अफगानिस्तान में युवाओं की जान हमेशा जोखिम में रहती है, खासकर युवा महिलाओं की. तालिबानी आतंकवादी घरों में घुस जाते हैं और वे युवतियों को जबरदस्ती ले जाते हैं. यह पिछले कई सालों से हो रहा है, लेकिन सरकार चुप रही.
उन्होंने सवाल किया कि अगर शहर-ए-नव पार्क से सैकड़ों युवतियां अचानक गायब हो गईं तो किसे जिम्मेदार ठहराया जाए?
उन्होंने कहा कि अगर आज तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है और लोगों को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है, तो राष्ट्रपति अशरफ गनी को इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. यह रातोंरात नहीं हुआ है. उन्होंने एक के बाद एक प्रांतों पर कब्जा कर लिया और अफगान सरकार ने कुछ नहीं किया. अकेले कुंदुज में 50,000 से अधिक लोग रहते थे जिनमें से आधे से ज्यादा बच्चे अपने घरों से भाग गए है.नावेद, अफगान नागरिक
युवाओं का बर्बाद होता भविष्य
तालिबान के साथ संयुक्त सरकार बनने पर क्या होगा, इस पर जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सभी अफगानिस्तान के युवा को अच्छी तरह से पता है कि उनका भविष्य बर्बाद हो गया है. अमेरिका और भारत द्वारा विकास के लिए समर्थन शुरू करने के बाद हमें उम्मीद थी लेकिन अब चीजें बदल गई हैं. अगर हमारे अपने राष्ट्रपति देश को तालिबान को सौंपते हुए भाग गए, तो अब हम और क्या उम्मीद कर सकते हैं. हम अब निराश हैं, हमारा पूरा जीवन शरणार्थी के रूप में गुजरेगा.
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