राजनीतिक अस्थिरता के बीच इजराइल (Israel) की संसद ने 9 मई को जब अवकाश के बाद अपना कामकाज फिर से शुरू किया. तब सबसे बड़ा सवाल उठ रहा था कि क्या प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेट (Prime Minister Naftali Bennett) की अध्यक्षता वाली गठबंधन सरकार अपनी सत्ता बचा पाएगी? जवाब भी मिला- बेनेट सरकार बिना बहुमत के कमजोर जरूर है लेकिन अभी के लिए जीवित है और उसने अभी के लिए विपक्ष की एक बड़ी चुनौती को विफल कर दिया है.
9 मई को विपक्ष द्वारा पेश किए गए दो अविश्वास प्रस्तावों के साथ इजराइली संसद के ग्रीष्मकालीन सत्र की शुरुआत हुई, जिनमें से दोनों ही पीएम बेनेट की सरकार को सत्ता से हटाने के लिए आवश्यक वोट नहीं जुटा पाएं और अविश्वास प्रस्ताव गिर गया.
पहला अविश्वास प्रस्ताव पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की लिकुड पार्टी द्वारा लाया गया था जिसके पक्ष में केवल 52 वोट पड़े जबकि उसके खिलाफ 61 सदस्यों ने वोट डाला. दूसरा अविश्वास प्रस्ताव Shas पार्टी लेकर आई थी लेकिन वह भी 52 बनाम 56 वोट के साथ गिर गया.
आखिर जब 120 कनेसेट सदस्यों वाली इजराइली संसद में पीएम बेनेट की अध्यक्षता वाली सरकार के पास केवल 60 सदस्यों का समर्थन रह गया है, फिर वह सरकार कैसे बचा पाएं? क्या सही में उन्होंने स्थायी तौर पर सरकार बचा ली है या यह खतरा बस कुछ समय या दिन के लिए ही टला है ?
अविश्वास प्रस्ताव से कैसे बची Naftali Bennett की सरकार?
अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले विपक्ष के पास साधारण बहुमत (संसद में मौजूद सदस्यों का बहुमत) जीतने का एक अच्छा मौका माना जा रहा था. खासकर सत्ताधारी गठबंधन के आंतरिक कलह को देखते हुए. गठबंधन के दक्षिणपंथी सांसद असंतुष्ट होकर पाला बदल रहे हैं जबकि इस्लामवादी राम पार्टी ने जेरूसलम और अल-अस्का मस्जिद के मुद्दे पर सरकार का सहयोग करने से इनकार कर दिया है.
प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेट की पार्टी यामिना की सांसद इडिट सिलमन (Idit Silman), जिन्होंने पिछले महीने गठबंधन से इस्तीफा दे दिया था, अविश्वास प्रस्ताव पर वोट से अनुपस्थित रहीं.
दो हफ्ते पहले यामिना पार्टी से निकाले गए सांसद अमाई चिक्ली (Amichai Chikli) भी वोटिंग में मौजूद नहीं थे. इस्लामवादी राम पार्टी ने भी वोटिंग में भाग न लेने का फैसला किया और गठबंधन को अपने 4 सांसदों के वोटों से दूर कर दिया.
लेकिन इन मुश्किलों के बीच पीएम Naftali Bennett की सरकार को छह सांसदों वाले विपक्षी ज्वाइंट लिस्ट पार्टी का समर्थन मिला जो अरब कम्युनिटी समर्थक पार्टियों की गठबंधन है. ज्वाइंट लिस्ट पार्टी के सांसदों ने या तो अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया या उन्होंने वोटिंग में भाग ही नहीं लिया.
खास बात है कि ज्वाइंट लिस्ट पार्टी के प्रमुख अयमान ओदेह (Ayman Odeh) ने बुधवार, 4 मई को कहा था कि ज्वाइंट लिस्ट पार्टी प्रधान मंत्री नफ्ताली बेनेट सरकार के लिए "लाइफ लाइन नहीं बनेगी", जबकि उसने अविश्वास प्रस्ताव पर ठीक वही किया.
क्या Naftali Bennett सरकार के सिर से हट गयी खतरे की तलवार?
अविश्वास प्रस्ताव अगर पास होता तो यह भले ही Naftali Bennett सरकार के लिए शर्मनाक स्थिति होती लेकिन इसका तात्कालिक प्रभाव सीमित होता. ऐसा इसलिए क्योंकि इजराइल में विपक्ष के पास मौजूदा सरकार को गिराकर अपनी सरकार बनाने के लिए आवश्यक 61 वोटों के जादुई आंकड़े की कमी है.
हालांकि विपक्ष के पास अब भी विकल्प मौजूद हैं. बुधवार, 11 मई को संसद को भंग करने के लिए कानून लाकर विपक्ष सरकार पर दबाव बनाने के लिए दूसरी रणनीति अपना सकता है.
एक प्राइवेट बिल के रूप में इजराइली संसद को भंग करने वाले बिल को फर्स्ट रीडिंग में साधारण बहुमत से पारित करने की आवश्यकता होगी,लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ और बिल पास नहीं हो सका तो इसे अगले छह महीनों तक पेश नहीं किया जा सकता.
अगर यह बिल साधारण बहुमत से पास हो जाता है तो फिर यह थर्ड रीडिंग में तीसरी बार वोट से पहले केसेट इजराइली संसद की एक समिति के पास पहुंचेगा. अगर इसे कम से कम 61 सांसदों के समर्थन के साथ तीसरी रीडिंग या चौथे वोट में पास किया जाता है तो संसद भंग हो जाएगा और नए चुनाव होंगे.
9 मई को पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की लिकुड पार्टी के अविश्वास प्रस्ताव को गिराने में सत्ताधारी गठबंधन को जिस तरह से ज्वाइंट लिस्ट पार्टी का सहयोग मिला, उसके पास संसद भंग करने के बिल पर लिकुड पार्टी ज्वाइंट लिस्ट पार्टी पर भरोसा करने से पहले 2 बार सोचेगी.
ज्वाइंट लिस्ट पार्टी के द्वारा सरकार के सहयोग ने दूसरी इस्लामवादी पार्टी राम में मौजूद कट्टर सांसदों को भी प्रभावित किया. राम पार्टी ने ज्वाइंट लिस्ट पार्टी पर अल-अक्सा मस्जिद मुद्दे पर सरकार के साथ सहयोग खत्म करने के लिए दबाव बनाने और फिर खुद उसका साथ देने आरोप लगाया है.
दूसरी तरफ Naftali Bennett की सरकार के लिए परेशानी यह है कि उसके पास स्पष्ट बहुमत नहीं है. मौजूदा राजनीतिक संकट को टालने के लिए उन्हें जिस भी विरोधी पार्टी का सहयोग मिले, बदले में वह अपनी मांगों के साथ सरकार पर दबाव डालेगी.
बहुमत के अभाव में सरकार के लिए अभी एक भी कानून पास कराना मुश्किल होगा. यदि सत्ताधारी गठबंधन इस सप्ताह सरकार बचा लेता है तो जुलाई के अंत तक संसद के ग्रीष्मकालीन सत्र में उसके लिए सत्ता में बने रहना आसान हो जाएगा.
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