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यूक्रेन, अफगानिस्तान और श्रीलंका में जो गलत है, वो भारत में सही कैसे?

ये जो इंडिया है ना, यहां हम अपने ही नागरिकों को नुकसान क्यों पहुंचा रहे हैं?

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कुछ दिन पहले अफगानिस्तान (Afghanistan) का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें एक स्कूली बच्ची रो रही थी क्योंकि तालिबान ने उसका स्कूल बंद कर दिया था. पढ़ने के उसके ख्वाब को खत्म कर दिया था, साथ में एक अच्छे भविष्य को भी. यहां अपने भारत में हम देख रहे हैं मुस्लिम लड़कियों को मजबूर किया जा रहा है कि वो हिजाब और किताब में से किसी एक को चुनें. बगलकोट की एक लड़की को SSLC एग्जाम में नहीं बैठने दिया गया क्योंकि उसने हिजाब हटाने से इन्कार कर दिया.

हमारा हाई कोर्ट तालिबान नहीं है लेकिन उनके फैसले ने भारत की मुस्लिम लड़कियों को वैसा ही नुकसान पहुंचाया है- उनसे हिजाब पहनने का अधिकार छीनकर उनकी आगे की पढ़ाई रोक दी है, उनका जीविका पाने का हक छीन लिया है.

कुछ हफ्ते पहले सोशल मीडिया पर एक और वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें यूक्रेन के अधिकारी भारतीय छात्रो को खारकीव या कीव से निकलने वाली ट्रेन पर चढ़ने से रोक रहे थे, ये कहकर कि ट्रेन में पहले यूक्रेन के लोगों को जगह मिलेगी. ये नस्लभेदी था, रेसिज्म.

भारतीयों के साथ दूसरे दर्जे के नागरिक जैसा बर्ताव था, ट्विटर पर इसकी आलोचना भी हुई. लेकिन कुछ दिन पहले दिल्ली में एक होटल ने कश्मीर के एक युवक को कमरा देने से इन्कार कर दिया, क्यों? क्योंकि वो…कश्मीरी थी. अपने ही देशवासी के साथ दूसरे दर्जे के नागरिक सा बर्ताव करने के बाद क्या हम दूसरों पर ऊंगली उठा सकते हैं?

'हम अपने नागरिकों को क्यों नुकसान पहुंचा रहे हैं?'

ये जो इंडिया है ना, यहां हम अपने ही नागरिकों को नुकसान क्यों पहुंचा रहे हैं? उनका आए दिन अपमान और रोजाना उनसे नफरत क्यों करते हैं? जो बर्ताव हमें गलत और अपमानजनक लगता है, वही बर्ताव फिर हम अपने ही देशवासियों के साथ कैसे कर सकते हैं?

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अधिकतर भारतीयों ने ये सवाल उठाया है कि आखिर रूस ने यूक्रेन पर हमला क्यों किया? अपने ही लोगों के खिलाफ युद्ध क्यों? इसमें हजारों यूक्रेनी नागरिक मारे गए, लाखों बेघर हुए, सैकड़ों रूसी सैनिक भी मारे गए. आखिर क्यों?

सिर्फ इसलिए कि एक शासक के अहम की तुष्टि हो सके. लेकिन फिर, हम ये वीडियो अपने भारत में देखते हैं, सिनेमा घरो में फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ की स्क्रीनिंग के बाद. हमारे कश्मीरी पंडितों का दर्द जरूर दिखाना और महसूस करना चाहिए, लेकिन क्या इसके बहाने हमारे मुस्लिम नागरिकों की हत्या की अपील होनी चाहिए?

ये नफरत न सिर्फ हमारे सिनेमाघरों में दिख रही है बल्कि नफरत फैलाने वालों को सजा भी नहीं मिल रही. पुलिस और प्रशासन ऐसा स्वांग कर रहा है जैसे उन्होंने ये नफरती नारे सुने ही नहीं. ऐसे में सवाल है कि जब हम यूक्रेन पर रूस के हमले की आलोचना करते हैं तो भारत में इतनी नफरत और इस हमलावर रुख को हम कैसे जस्टीफाई करेंगे?

ये जो इंडिया है ना, यहां हममें से कई… नफरत के साथ दोहरा चरित्र भी दिखा रहे हैं.

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