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बिकते बच्चे, दिन दहाड़े गायब होती महिलाएं, UN रिपोर्ट से तालिबानी बर्बरता उजागर

तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता में आने के बाद यह पहली ह्यूमन राइट रिपोर्ट आई है, जिससे वहां की हकीकत पता चलती है.

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संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा जारी की गई एक नई रिपोर्ट में तालिबानी बर्बरता की काली हकीकत को उजागर किया गया है. इसके अनुसार अफगानिस्तान (Afghanistan) पर तालिबान के कब्जे के बाद अब तक हमलों में लगभग 400 नागरिक मारे गए हैं. बच्चों की बिक्री हो रही है और महिलाओं की स्थिति तो बहुत ही खराब है. 80 प्रतिशत से अधिक हमले इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रोविंस (ISIS-K) के द्वारा किए गए हैं. बता दें कि पिछले साल अगस्त में तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की सत्ता हासिल करने के बाद यह पहली ह्यूमन राइट रिपोर्ट आई है. रिपोर्ट आने के बाद महिलाओं, पत्रकारों और अन्य नागरिकों के बारे में चिंता बढ़ गई है. आइए जानते हैं कि मौजूदा वक्त में अफगानिस्तान में नागरिकों और उनके अधिकारों की क्या स्थिति है.

बिकते बच्चे, दिन दहाड़े गायब होती महिलाएं, UN रिपोर्ट से तालिबानी बर्बरता उजागर

  1. 1. अफगानिस्तान में कब आया ISIS-K ग्रुप?

    संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाचेलेट (Michelle Bachelet) ने जिनेवा में टॉप राइट बॉडी को रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि अफगान नागरिकों के लिए मानवाधिकार की स्थिति गंभीर चिंता का विषय है.

    इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रोविंस ग्रुप पहली बार 2014 में पूर्वी अफगानिस्तान में दिखाई दिया था. माना जाता है कि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद यह देश में फैल गया है. अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक ISIS-K को हाल के महीनों में कई आत्मघाती हमलों के लिए दोषी ठहराया गया है, जिसमें पिछले साल अगस्त में काबुल हवाई अड्डे पर हुआ एक अटैक भी शामिल है.

    अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी 2021 के अंत में इस्लामिक स्टेट के हमलों के द्वारा सशस्त्र समूह से संदिग्ध संबंध रखने वाले 50 से अधिक लोगों को मार दिया गया था. कुछ को प्रताड़ित किया गया और उनका सिर काटकर सड़क के किनारे छोड़ दिया गया.

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  2. 2. तालिबान सरकार में क्या है महिलाओं की स्थिति?

    जेनेवा में मिशेल बाचेलेट ने कहा कि तालिबान शासकों ने महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता में कटौती की है. इस दौरान उन्होंने महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने की अनुमति देने का आह्वान किया.

    तालिबान ने अपनी पिछली सरकार (1996 से 2001) में महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगा दी थी. इस बार उनके द्वारा दावा किया गया था कि अब तालिबान पहले से बदल चुका है.

    'द प्रिंट' की रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वक्त में तालिबानी सरकार द्वारा नागरिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए भेदभावपूर्व तरीके अपनाए जा रहे हैं. जैसे- सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं के साथ एक पुरुष को जरूरी करना, महिलाओं को खुद से सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने से रोकना, महिलाओं और लड़कियों पर ड्रेस कोड लागू करना और 12 साल से अधिक उम्र की लड़कियों को शिक्षा के लिए बाहर जाने जाने से रोकना.

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  3. 3. अफगानिस्तान में विनाशकारी मानवीय संकट

    रिपोर्ट के मुताबिक नए नियमों पर असहमत महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, हिरासत में लिए जाने और उन्हें गायब कर देने की भी घटनाएं सामने आई हैं.

    द गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक ह्यूमन राइट्स वॉच की एसोसिएट एशिया डायरेक्टर पेट्रीसिया गॉसमैन ने कहा कि हमें जिस तरह का डर था वही हो रहा है, ज्यादातर मामलों में स्थिति बिगड़ती जा रही है. यह विरोध और आलोचना को कुचलने के तालिबान के संकल्प का एक प्रतिबिंब है.

    संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अफगानिस्तान के लगभग 9 मिलियन नागरिकों पर अकाल का खतरा मंडरा रहा है. तालिबान के कब्जे के बाद से कम से कम पांच लाख अफगानों ने अपनी नौकरी खो दी है, और उम्मीद है कि मध्य वर्ष तक 97% लोग गरीबी रेखा से नीचे रह सकते हैं.

    ह्यूमन राइट्स वॉच ने पूर्व सरकारी अधिकारियों की फांसी और जबरन गायब होने की सूचना दी है. देश में आज भी बहुत से लोग डर में रहते हैं और छिपे रहते हैं.

    काबुल के अंतर्राष्ट्रीय मनोवैज्ञानिक संगठन (IPSO) ने कहा है कि अफगानिस्तान में एक आघात की स्थिति है. लगभग 70% अफगान नागरिकों को मनोवैज्ञानिक सपोर्ट की जरूरत है.

    मिशेल बाचेलेट ने कहा कि अफगानिस्तान विनाशकारी मानवीय और आर्थिक संकट का सामना कर रहा है जो अफगान लोगों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों में बाधा डालता है.

    देश की आधे से अधिक आबादी भुखमरी से पीड़ित है. बाल श्रम, बाल विवाह और बच्चों की बिक्री में बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
    मिशेल बाचेलेट
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  4. 4. अफगानिस्तान को मानवतावादी सहायता प्रदान करेगा भारत

    रिपोर्ट्स के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा फंडिंग में कटौती और अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान की संपत्ति को फ्रीज करने के बाद देश की अर्थव्यवस्था लगभग चरमरा गई है.

    अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने इस महीने की शुरुआत में अफगान संपत्ति में लगभग 7 बिलियन डॉलर की कटौती करने का फैसला किया और उसे 9/11 हमले में पीड़ित लोगों के लिए मुआवजे के रूप में उसका उपयोग किया.

    सहायता एजेंसियों और विशेषज्ञों ने तालिबान के खिलाफ लगे प्रतिबंधों को हटाने का आह्वान करते हुए कहा कि किए गए उपाय मानवीय संकट को बढ़ावा दे रहे हैं.

    जेनेवा में भारत के राजदूत इंद्रमणि पांडे ने कहा कि अफगानिस्तान के प्रति भारत का नजरिया हमेशा से उसके लोगों के साथ मित्रता जैसा रहा है. हम अफगानिस्तान के लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. बता दें कि पिछले दिनों भारत ने मदद के तौर पर अफगानिस्तान में गेहूं की खेप भेजी थी.

    भारतीय राजदूत, मानवाधिकार परिषद के 49वें सत्र के दौरान अफगानिस्तान में मानवाधिकारों के संरक्षण को मजबूत करने के संबंध में अपनी रिपोर्ट पर संयुक्त राष्ट्र ह्यूमन राइट हाई कमिश्नर मिशेल बाचेलेट के साथ संवाद कर रहे थे.

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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाचेलेट (Michelle Bachelet) ने जिनेवा में टॉप राइट बॉडी को रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि अफगान नागरिकों के लिए मानवाधिकार की स्थिति गंभीर चिंता का विषय है.

अफगानिस्तान में कब आया ISIS-K ग्रुप?

इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रोविंस ग्रुप पहली बार 2014 में पूर्वी अफगानिस्तान में दिखाई दिया था. माना जाता है कि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद यह देश में फैल गया है. अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक ISIS-K को हाल के महीनों में कई आत्मघाती हमलों के लिए दोषी ठहराया गया है, जिसमें पिछले साल अगस्त में काबुल हवाई अड्डे पर हुआ एक अटैक भी शामिल है.

अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी 2021 के अंत में इस्लामिक स्टेट के हमलों के द्वारा सशस्त्र समूह से संदिग्ध संबंध रखने वाले 50 से अधिक लोगों को मार दिया गया था. कुछ को प्रताड़ित किया गया और उनका सिर काटकर सड़क के किनारे छोड़ दिया गया.

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तालिबान सरकार में क्या है महिलाओं की स्थिति?

जेनेवा में मिशेल बाचेलेट ने कहा कि तालिबान शासकों ने महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता में कटौती की है. इस दौरान उन्होंने महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने की अनुमति देने का आह्वान किया.

तालिबान ने अपनी पिछली सरकार (1996 से 2001) में महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगा दी थी. इस बार उनके द्वारा दावा किया गया था कि अब तालिबान पहले से बदल चुका है.

'द प्रिंट' की रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वक्त में तालिबानी सरकार द्वारा नागरिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए भेदभावपूर्व तरीके अपनाए जा रहे हैं. जैसे- सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं के साथ एक पुरुष को जरूरी करना, महिलाओं को खुद से सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने से रोकना, महिलाओं और लड़कियों पर ड्रेस कोड लागू करना और 12 साल से अधिक उम्र की लड़कियों को शिक्षा के लिए बाहर जाने जाने से रोकना.

रिपोर्ट के मुताबिक नए नियमों पर असहमत महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, हिरासत में लिए जाने और उन्हें गायब कर देने की भी घटनाएं सामने आई हैं.

द गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक ह्यूमन राइट्स वॉच की एसोसिएट एशिया डायरेक्टर पेट्रीसिया गॉसमैन ने कहा कि हमें जिस तरह का डर था वही हो रहा है, ज्यादातर मामलों में स्थिति बिगड़ती जा रही है. यह विरोध और आलोचना को कुचलने के तालिबान के संकल्प का एक प्रतिबिंब है.

अफगानिस्तान में विनाशकारी मानवीय संकट

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अफगानिस्तान के लगभग 9 मिलियन नागरिकों पर अकाल का खतरा मंडरा रहा है. तालिबान के कब्जे के बाद से कम से कम पांच लाख अफगानों ने अपनी नौकरी खो दी है, और उम्मीद है कि मध्य वर्ष तक 97% लोग गरीबी रेखा से नीचे रह सकते हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने पूर्व सरकारी अधिकारियों की फांसी और जबरन गायब होने की सूचना दी है. देश में आज भी बहुत से लोग डर में रहते हैं और छिपे रहते हैं.

काबुल के अंतर्राष्ट्रीय मनोवैज्ञानिक संगठन (IPSO) ने कहा है कि अफगानिस्तान में एक आघात की स्थिति है. लगभग 70% अफगान नागरिकों को मनोवैज्ञानिक सपोर्ट की जरूरत है.

मिशेल बाचेलेट ने कहा कि अफगानिस्तान विनाशकारी मानवीय और आर्थिक संकट का सामना कर रहा है जो अफगान लोगों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों में बाधा डालता है.

देश की आधे से अधिक आबादी भुखमरी से पीड़ित है. बाल श्रम, बाल विवाह और बच्चों की बिक्री में बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
मिशेल बाचेलेट
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रिपोर्ट्स के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा फंडिंग में कटौती और अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान की संपत्ति को फ्रीज करने के बाद देश की अर्थव्यवस्था लगभग चरमरा गई है.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने इस महीने की शुरुआत में अफगान संपत्ति में लगभग 7 बिलियन डॉलर की कटौती करने का फैसला किया और उसे 9/11 हमले में पीड़ित लोगों के लिए मुआवजे के रूप में उसका उपयोग किया.

सहायता एजेंसियों और विशेषज्ञों ने तालिबान के खिलाफ लगे प्रतिबंधों को हटाने का आह्वान करते हुए कहा कि किए गए उपाय मानवीय संकट को बढ़ावा दे रहे हैं.

अफगानिस्तान को मानवतावादी सहायता प्रदान करेगा भारत

जेनेवा में भारत के राजदूत इंद्रमणि पांडे ने कहा कि अफगानिस्तान के प्रति भारत का नजरिया हमेशा से उसके लोगों के साथ मित्रता जैसा रहा है. हम अफगानिस्तान के लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. बता दें कि पिछले दिनों भारत ने मदद के तौर पर अफगानिस्तान में गेहूं की खेप भेजी थी.

भारतीय राजदूत, मानवाधिकार परिषद के 49वें सत्र के दौरान अफगानिस्तान में मानवाधिकारों के संरक्षण को मजबूत करने के संबंध में अपनी रिपोर्ट पर संयुक्त राष्ट्र ह्यूमन राइट हाई कमिश्नर मिशेल बाचेलेट के साथ संवाद कर रहे थे.

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इस प्रयास में, भारत पहले ही अफगान नागरिकों के लिए 4000 मीट्रिक टन गेहूं, कोविड-19 वैक्सीन (Covaxin) की आधा मिलियन खुराक, 13 टन आवश्यक लाइफ सेविंग दवाएं और सर्दियों के कपड़ों की आपूर्ति कर चुका है. ये खेप संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसियों विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व खाद्य कार्यक्रम को सौंप दी गई थी.
इंद्रमणि पांडे, भारतीय राजदूत

उन्होंने आगे कहा कि अफगानिस्तान के सबसे बड़े क्षेत्रीय विकास भागीदार के रूप में, भारत अन्य हितधारकों के साथ समन्वय करना जारी रखेगा ताकि अफगान नागरिकों को जरूरी मानवीय सहायता के प्रावधान को सक्षम बनाया जा सके.

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