भारतीय हॉकी टीम की मिड-फील्डर नेहा गोयल का हरियाणा के सोनीपत से टोक्यो तक का सफर बिलकुल आसान नहीं रहा है. नेहा का बचपन बहुत कठिन हालातों में बीता है. नेहा के परिवार में 3 बहनें हैं. उनके पिता ड्रिंक किया करते थे और उनकी मां को मारा-पीटा भी करते थे.
नेहा का जीवन तब बदला, जब उन्हें सोनीपत में उनके गुरू प्रीतम सिवाच मिले. प्रीतम सिवाच अर्जुन पुरस्कार विजेता हैं और भारत की स्वर्ण पदक विजेता टीम का हिस्सा रहे हैं.
नेहा से उनकी मुलाकात भी संयोग ही थी. एक बार नेहा ग्रिल पकड़कर ग्राउंड पर खड़ी थीं. तभी सिवाच ने उन्हें खेलने बुलाया और उनका टेलेंट देखकर ट्रेनिंग देने का फैसला किया.
लेकिन नेहा कि दिक्कतें यहीं खत्म नहीं हुईं. नेहा को हिम्मत तोड़ने वाली बातें भी सुनने को मिलती थीं. लंबाई कम होने का भी ताना सुनना पड़ता था. लोग कहते थे कि हाकी में बड़ी-बड़ी लड़कियां होती हैं. तुम खेल नहीं पाओगी. लेकिन यही बातें नेहा को अंदर से मजबूत बनाती थीं.
नेहा की मां को उनके ऊपर हमेशा भरोसा रहा. उन्होंने दूसरों के घरों और फैक्ट्रियों में काम कर नेहा की ट्रेनिंग के लिए पैसे जुटाए.
लोग अक्सर नेहा की हाइट देखकर कहते थे कि ये 2 फीट की लड़की क्या हाकी खेलेगी. लेकिन नेहा ने लगातार अपने लगन और मेहनत से हरियाणा टीम की तरफ से नेशनल खेलकर अपने आप को साबित किया.प्रीतम सिवाच
नेहा को न सिर्फ लंबाई की समस्या का सामना करना पड़ा, बल्कि उनके लिए कपड़े की व्यवस्था करने की तक समस्या पैदा हुई. नेहा स्कूल के ही कपड़े पहनकर प्रैक्टिस करने चली जाती थी.
दरअसल नेहा ना सिर्फ खेल के मैदान में चैंपियन हैं. बल्कि वे असल जिंदगी में भी सही मायने में चैंपियन हैं. सोनीपत में उन्होंने उनकी तरह खिलाड़ी बनने का सपना संजोए लड़कियों की भी भरसक मदद की है.
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