वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया
साल 2020. 20 से शुरू 20 पर खत्म. उसी तरह आंदोलन से शुरू आंदोलन पर समाप्त. साल की शुरुआत आंदोलन से और एंड 'रिवोल्यूशन' पर. एक तरफ सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट का फरमान और दूसरी तरफ ठिठुरती ठंड में सड़क पर किसान.
चलिए आपको आंदोलन वाले, प्रोटेस्ट वाले 2020 की सैर कराते हैं.
जनवरी
नागरिकता कानून- दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों पर पुलिस के डंडे, आंसू गैस के गोले, पत्थर, लाइब्रेरी में किताबों की जगह खून के धब्बे, टूटी डेस्क, फिर क्या था सड़कें ही लाइब्रेरी बन गई. नागरिकता संशोधन कानून की लड़ाई में दिल्ली के शाहीन बाग की तर्ज पर देशभर में आंदोलन के बाग सजने लगे. पटना, मुंबई, कर्नाटक, लखनऊ, दिल्ली नागरिकता संशोधन कानून का विरोध. जनवरी के महीने में बच्चे, बूढ़े, लाखों लोग घर से बाहर अपनी आवाज उठा रहे थे.
फरवरी
लेकिन फरवरी बेरहम निकला. आंदोलन के विरोध में कुछ लोग सड़कों पर आए. कुछ नेताओं ने गोली मारो से लेकर सड़के खाली करानी की धमकी दी. और फिर दिल्ली जल उठी. 50 से ज्यादा लोगों की मौत
मार्च
शिक्षकों की कमी से जूझ रहे बिहार के करीब 4 लाख शिक्षक हड़ताल पर चले गए. आखिर सरकार को झुकना पड़ा और शिक्षा देने वालों के खाली पॉकेट में उनकी सैलरी पहुंच गई.
अप्रैल
फिर कोरोना की एंट्री ने सब कुछ पर पाबंदी लगा दिया. लेकिन इसी बीच उत्तर प्रदेश के लखनऊ में सरकारी इमरजेंसी एंबुलेंस सेवा 108 और 102 के करीब 16000 ड्राइवरों ने भी काम पर जाने को लेकर हड़ताल का ऐलान कर दिया. आक्रोशित ड्राइवरों का कहना था कि दो महीने से उन्हें सैलरी नहीं मिली है. फिर सरकार जागी सैलरी का भुगतान करने का ऑर्डर आया.
जुलाई
जब UP में 250 रुपए की ‘दिहाड़ी’ करने को मजबूर डॉक्टरों को हड़ताल करना पड़ा था.
इंटर्न MBBS छात्रों को 7,500 रुपये प्रति महीने की स्टाइपेंड मिलती थी. देश में सबसे कम मिलने वाले स्टाइपेंड्स में से एक.
अब ये जूनियर डॉक्टर बीच-बीच में प्रदर्शन करते रहते हैं, लेकिन सरकार की तरफ से इनकी अपील को नहीं सुना गया है. उन्हें इंतजार है कि 'कोरोना वॉरियर्स' पुकारने से ज्यादा उनकी जरूरतों को सरकार समझे.
अगस्त
कोरोना महामारी में जब हर तरफ लॉकडाउन था, लोग घरों में थे तब कुछ गुमनाम वॉरियर गली, मोहल्ले से लेकर गांव-शहर में दिन के धूप में कोरोना के संक्रमित को ट्रैक कर रहे थे. नाम है एक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट मतलब आशा वर्कर. लेकिन बेहतर और समय पर वेतन, सरकारी कर्मचारियों के तौर पर मान्यता, कोरोना वॉरियर्स के तौर पर इनके लिए बीमा राशि का बंदोबस्त की मांगो को लेकर करीब 6 लाख आशा वर्करों ने हड़ताल किया. लेकिन चीजें जस का तस.
सितंबर
शुरू हुई इतिहास बनने की कहानी संसद के 3 कृषि बिल पास किया. और फिर संसद में शुरू हुआ विरोध, सड़कों पर फैल गया. राज्यसभा में कृषि बिल पर हुए हंगामें के कारण कुल 8 सासंदों को सदन की कार्यवाही से निलंबित कर दिया गया. फिर क्या था संसद के बाहर चादर-तकिया लेकर धरने पर बैठ गए कई सांसद. टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन आप सांसद संजय सिंह, राजी सातव, केके रागेश को मनाने के लिए उपसभापति हरिवंश संसद ने चाय भी पिलाई लेकिन किसानों का आंदोलन तपना शुरू हो चुका था.
अक्टूबर
पंजाब और हरियाणा की सड़कों पर किसान कृषि बिल के खिलाफ उतर चुके थे. लेकिन मीडिया की नजरें बिहार चुनाव पर टिकी थीं.
नवंबर
जब जवान और किसान दिल्ली की सरहदों पर आमने-सामने हुए. आंसू गैस के गोले, डंडे, वॉटर केनन, सड़क पर गड्ढे, बैरिकेडिंग. किसानों को रोकने के लिए हर रास्ते अपनाए गए. लेकिन हजारों ट्रैक्टर और ट्रॉली लेकर किसानों ने सड़क को घर और आसमान को छत बना लिया.
दिसंबर
ताली और थाली के शोर में जिन कोरोना वॉरियर्स मतलब नर्स की आवाज दबी थी वो दिसंबर आते-आते गूंजने लगी. दिल्ली AIIMS की नर्स यूनियन ने अपनी मांगों को लेकर हड़ताल शुरू कर दिया. मांग है कि वेतन बढ़ाए जाया और छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू हों.
वहीं किसान अब भी अपनी मांगों पर टिके हुए हैं, सरकार अड़ी हुई है और इसी के साथ आंदोलन तो नहीं बल्कि आंदोलन वाला साल समाप्त हुआ.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)