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दलित सम्मान की रक्षा के लिए हर कुर्बानी को तैयार: सावित्रीबाई फुले

‘पीएम हो या सीएम, सब लेते हैं संविधान की शपथ’

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देशभर में दलितों के खिलाफ बढ़ते अपराधों के बीच भारतीय जनता पार्टी अपने ही सांसदों के निशाने पर है. पार्टी के कई दलित सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की है, इनमें से एक हैं उत्तर प्रदेश के बहराइच की फायरब्रांड दलित सांसद सावित्रीबाई फुले.

क्विंट हिंदी से एक्सक्लूसिव बातचीत में सावित्रीबाई ने साफ कहा कि वो सत्ताधारी पार्टी में होने के बावजूद दलितों के हक में अपनी आवाज बुलंद रखेंगी. साथ ही उनके अधिकार, सम्मान और सुरक्षा के लिए कोई कुर्बानी देने से भी नहीं हिचकेंगी.

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कभी अनुसूचित जाति के लोगों की मूंछ उखाड़ी जा रही हैं. कहीं घोड़ी पर सवार अनुसूचित जाति के शख्स को गोली मार दी जाती है. कहीं जूते में पिशाब पिलाया जा रहा है. कहीं बहन-बेटियों की इज्जत लूटी जा रही है. बाबा साहब भीमराव अंबेडर की मूर्तियां लगातार तोड़ी जा रही हैं. लेकिन दोषियों की गिरफ्तारी तक नहीं हो पा रही है.
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एससी-एसटी कानून पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंजूर नहीं

20 मार्च, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए एससी-एसटी एक्ट में कुछ बदलाव किए थे. जिनके मुताबिक:

  • एससी-एसटी एक्ट के तहत FIR दर्ज होने के बाद आरोपी की फौरन गिरफ्तारी नहीं होगी. पहले डीएसपी स्तर का अधिकारी आरोपों की जांच करेगा. आरोप सही पाए जाते हैं तभी आगे की कार्रवाई होगी.
  • अगर कोई सरकारी कर्मचारी अधिनियम का गैर-इस्तेमाल करता है तो उसकी गिरफ्तारी के लिए विभागीय अधिकारी की अनुमति जरूरी होगी.
  • आम लोगों की गिरफ्तारी जिले के सीनियर सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस (SSP) की लिखित इजाजात के बाद होगी.

इसे लेकर 2 अप्रैल को देश भर में दलित बंद का आयोजन हुआ, जिसमें दलित समुदाय के कई लोगों की मौत हो गई. कइयों के खिलाफ पुलिस केस हुए और उन्होंने जेल भेजा गया. इसे लेकर दलित समुदाय में खासा गुस्सा है.

इस मुद्दे पर हाल में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के अध्यक्ष रामविलास पासवान के घर पर एनडीए के दलित सांसदों की बैठक हुई. बैठक में एससी-एसटी एक्ट और सरकारी नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण जैसे मुद्दे उठाए गए.

‘पीएम हो या सीएम, सब लेते हैं संविधान की शपथ’
केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के घर एनडीए के दलित सांसदों की बैठक में मौजूद सावित्रीबाई फुले.
(फोटो : नीरज गुप्ता/ द क्विंट)

इसी बैठक के दौरान क्विंट से बात करते हुए सावित्रीबाई ने कहा:

हमारी मांग है कि 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने जिस एससी-एसटी एक्ट को कमजोर किया है, उस पर लोकसभा में चर्चा करवाकर उससे भी मजबूत कानून बनाया जाए. यही नहीं, पदोन्नति में आरक्षण का बिल जो लंबित पड़ा है, उस पर भी लोकसभा में चर्चा करवाकर उसे (संविधान की) नौवीं सूची में डाला जाए, जिससे भविष्य में कोई उससे खिलवाड़ न कर सके. 
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‘सत्ता का लालच नहीं’

बीजेपी से इस्तीफा और हाल में संसद में हुए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान मोदी सरकार के खिलाफ वोट देने की धमकी दे चुकी सावित्रीबाई ने ऐसा तो कुछ नहीं किया, लेकिन उन्होंने साफ कहा कि वो बहुजन समाज के हक के लिए कोई भी कुर्बानी देने से नहीं हिचकेंगी.

मैं बहुजन समाज के अधिकारों की लड़ाई के लिए राजनीति में आई हूं. मुझे सत्ता का भोग नहीं चाहिए. हम बहुजन समाज के अधिकारों, सम्मान और सुरक्षा के लिए हर कुर्बानी को तैयार हैं लेकिन उससे समझौता नहीं करेंगे. मैं सरकार और पार्टी का विरोध नहीं कर रही, लेकिन मैं सरकार का हिस्सा हूं, इसलिए मेरी जिम्मेदारी है कि सरकार से लड़कर बहुजन समाज को उसका अधिकार दिलाया जाए.
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‘संविधान किसी की बपौती नहीं’

पहली बार सांसद बनी 37 साल की सांसद सावित्रीबाई फुले संविधान की बात करते वक्त प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भी लपेटने से परहेज नहीं करतीं.

चाहे प्रधानमंत्री हों, चाहे मुख्यमंत्री हों, चाहे सांसद हों या प्रधान हों, सब संविधान की शपथ लेते हैं. तो भारत का संविधान हमारे लिए सर्वोपरि है. संविधान किसी की बपौती नहीं. ये बाबासाहब भीमराव अंबेडकर ने बनाया था. वो हमारे महापुरुष हैं.अगर आज हम उनकी विरासत ले रहे हैं, तो उसे बचाने की जिम्मेदारी भी हमारी है.
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देश के 21 राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. इसलिए बीजेपी कानून-व्यवस्था को राज्य का मसला बताकर दलित उत्पीड़न की घटनाओं से पल्ला नहीं झाड़ सकती. 2019 का आम चुनाव भी सामने है, जिसमें बीजेपी दलित समुदाय के गुस्से के साथ नहीं जाना चाहेगी. ऐसे में विपक्ष से निपटने के अलावा सावित्रीबाई फुले जैसे अपने ही सांसदों की नाराजगी दूर करना बीजेपी का बड़ा इम्तेहान होगा.

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