यूपी उपचुनावों को आसान लक्ष्य मान रही बीजेपी के लिए मायावती और अखिलेश का साथ एक बड़ी चिंता बन गया है. गोरखपुर पूर्वांचल की सबसे हाई प्रोफाइल लोकसभा सीट है और यहां 11 मार्च को उपचुनाव होना है. इस सीट से यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सांसद थे. पिछले 20 साल से वो इस सीट पर काबिज थे, सीएम बनने के बाद उन्हें विधानसभा में आने के लिए इस्तीफा देना पड़ा है.
गोरखपुर सीट का राजनीतिक 'गणित'
इस सीट पर अबतक कुल 16 लोकसभा चुनाव और 1 उपचुनाव हुए हैं, जिसमें 10 बार 'गोरखनाथ पीठ' के 3 महंतों ने जीत हासिल की है. वहीं 6 बार ये सीट कांग्रेस के हाथ में रही है.
पिछले 29 साल से गोरखपुर सीट से लगातार गोरक्षपीठ का दबदबा रहा है. साल 1989 में पीठ के महंत अवैद्यनाथ ने हिंदू महासभा की टिकट पर चुनाव लड़ा और 10 फीसदी वोट शेयर के अंतर से जनता दल के उम्मीदवार रामपाल सिंह को मात दी थी. 1
1991 और 1996 के चुनाव में अवैद्यनाथ ने बीजेपी की टिकट से जीत हासिल की थी. फिर 1998 से लगातार 2 दशक तक यानी अबतक इस सीट पर बीजेपी के टिकट पर योगी आदित्यनाथ काबिज हैं.
क्या कहती है गोरखपुर की जनता?
यूपी के चुनाव जातिगत समीकरणों के आधार पर ही लड़े जाते रहे हैं. 2014 के लोकसभा के चुनाव में मोदी लहर के पीछे भी बीजेपी की जाति के आधार पर की गई शानदार प्लानिंग ही थी.
गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में कोई मुद्दा का नहीं करता है. हम लोग एक आस्था से जुड़े हुए हैं, वही एक मुद्दा है जिसपर वोट दिया जाता है.अरुण बंका, कारोबारी
लेकिन गोरखपुर के युवा इस चुनाव को जाति-धर्म से ऊपर उठकर देख रहे हैं.
जो भी रोजगार देगा, विकास करेगा उसी को वोट देंगे.शशिकला, छात्रा
गोरखपुर संसदीय सीट के लिए बीजेपी ने उपेंद्र शुक्ला को टिकट दिया है, तो बीजेपी को कड़ी टक्कर देने के लिए समाजवादी पार्टी ने 29 वर्षीय प्रवीण निषाद को मैदान में उतारा है.
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