दक्षिण कश्मीर के कुलगाम और शोपियां जिलों को विभाजित करने वाली लहरदार पहाड़ियों की लंबी श्रृंखला के बीच स्थित है सुरसोना. यह गांव पुराने ट्रेडिशनल घरों से भरा है, जहां बच्चे दोपहर में खुले मैदान में क्रिकेट खेलते हैं, और जहां ग्रामीण आराम से टहलते हैं. गांव में लगभग सभी लोग एक दूसरे को जानते हैं.
इस गांव की आबादी इतनी कम है और यह दक्षिण कश्मीर के इतने कोने पर स्थित है कि इन कुलगाम-शोपियां जिलों को छोड़ने के बाद शायद ही कोई इसके नाम से परिचित होगा.
फिर भी इस गांव ने छह साल पहले बड़े स्तर पर पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा, जब एक बड़ी त्रासदी हुई.
लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों की हत्या के लिंक
मई 2017 में, तीन आतंकवादियों ने भारतीय सेना की राष्ट्रीय राइफल्स (RR) इकाई के नए नियुक्त लेफ्टिनेंट उमर फैयाज के ननिहाल का दौरा किया.
हमलावरों ने 22 वर्षीय अधिकारी उमर फैयाज को घर से बाहर खींच लिया, उन्हें अपने वाहन में बिठाया और भाग गए. अगले दिन उनका शव मिला, हमलावरों ने उनकी बॉडी को बस स्टैंड के बगल में छोड़ दिया था.
6 साल 8 महीने बाद, जम्मू-कश्मीर पुलिस का कहना है कि 5 जनवरी 2024 को शोपियां जिले के चोटीगाम गांव में हुए एनकाउंटर के दौरान उमर फैयाज की जघन्य हत्याकांड में शामिल अपराधियों को आखिरकार न्याय के कटघरे में लाया है. पुलिस ने कहा कि एनकाउंटर में मारे गए आतंकवादी की पहचान कुलगाम निवासी लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के बिलाल अहमद भट के रूप में की गई है.
उमर फैयाज सुरसोना गांव में पले-बढ़े, जहां क्विंट हिंदी ने इस हफ्ते की शुरुआत में यात्रा की थी. उनके रिश्तेदार और गांव वालों ने उमर फैयाज को 'एक मिलनसार और तेज दिमाग वाले व्यक्ति' बताया.
राजनीति का विरोधाभासी प्रतिमान
कश्मीर में उग्रवाद का इतिहास और सुरक्षा बलों की ज्यादतियों की कहानियां दशकों से राजनीतिक बातचीत की पृष्ठभूमि रही हैं. सेना में उमर की नियुक्ति ने भारत सरकार को शांति और सुलह के बारे में अपने स्वयं के नैरेटिव को प्रस्तुत करने की अनुमति दी थी, विशेष रूप से 2016 में आतंकवादी नेता बुरहान वानी की हत्या के बाद, जिसने दक्षिण कश्मीर में आतंकवाद को फिर से मजबूत कर दिया था.
यदि 1990 के दशक में शुरू हुए तीन दशक पुराने विद्रोह को अशांत घटनाओं का ट्रेंड माना जाए, तो उमर जैसे युवा बदलाव के प्रतीक दिखाई देते हैं.
उनके पिता के चाचा मुहम्मद अय्यूब पर्रे भी एक मिलिटेंट थे. वास्तव में, वह सुरसोना में अकेले मिलिटेंट थे और कथित तौर पर 1990 के दशक में नियंत्रण रेखा पर मारे गए थे.
9 मई की रात को, उमर अपनी होने वाली दुल्हन के चचेरे भाई के साथ शोपियां के बटपोरा गांव में अपने घर पर थे. उसी समय आतंकवादियों ने घर के अंदर धावा बोल दिया. उन्होंने उमर को बाहर निकाला, परिवार के सदस्य विरोध करते रहे. पूरी रात उनका कोई अता-पता नहीं चला. सुबह शोपियां के हरमैन गांव में बस स्टॉप पर ग्रामीणों ने एक शव देखा. उसके सिर और पेट में गोली लगी थी.
ग्रामीण शव को लेकर अस्पताल पहुंचे जहां डॉक्टरों ने उमर को पहचान लिया और उसे मृत घोषित कर दिया. इस घटना से पूरा गांव स्तब्ध रह गया, क्योंकि उन्हें ऐसी किसी बात की उम्मीद नहीं थी. स्थानीय ग्रामीण मुहम्मद अशरफ ने कहा, "यह हम सभी के लिए एक बड़ी त्रासदी थी."
उमर का जाना और सेना के प्रति उनकी प्रतिबद्धता
यह देश के बाकी हिस्सों के लिए भी एक क्रूर झटका था. उम्मर अपनी तस्वीरों में एक युवा मुस्कुराते हुए लड़के जैसी शक्ल वाले व्यक्ति दिखते थे.
उनकी हत्या से देश भर में आक्रोश फैल गया. टीवी चैनलों ने उनके बारें में बताते हुए कहा कि उमर घाटी में युवा आबादी के उग्रवाद प्रमुख वर्ग के विपरीत हमेशा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध थे.
पत्रकारों, रक्षा विशेषज्ञों और सेना के पूर्व दिग्गजों- सभी ने कई अखबारों में कॉलम लिखे; वे टीवी पर दिखाई दिए; और सोशल मीडिया अपडेट्स पोस्ट किए. उसमें बताया गया कि किस हद तक गलत हुआ. उसमें राजनीतिक रंग भी थे.
लेखिका भावना अरोड़ा ने "अनडॉन्टेड: लेफ्टिनेंट उमर फैयाज ऑफ कश्मीर " नाम से किताब लिखी. सेना ने कुलगाम में अपने स्थानीय स्कूल का नाम बदलकर 'लेफ्टिनेंट उमर फैयाज गुडविल स्कूल' कर दिया
उग्रवादियों के प्रति रवैये में एक निर्णायक मोड़
इस प्रकरण के कारण चर्चा में भी बदलाव आया, सुरक्षा बल पिछले साल 2016 में हुई बुरहान वानी की हत्या पर आलोचना के प्रति कम रक्षात्मक हो गए, और अधिक दोषारोपण करने लगे.
इस घटना को "वाटरशेड मोमेंट" कहते हुए, दक्षिण पश्चिमी कमान के तत्कालीन सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल अभय कृष्ण ने सवाल किया कि एक स्थानीय व्यक्ति उमर की हत्या "कथित स्वतंत्रता संग्राम के साथ कैसे मेल खाती है, जिसका उग्रवादी दावा करते हैं," उन्होंने आगे कहा, "इससे एक बार फिर साबित होता है कि वे सिर्फ अपराधियों का एक समूह हैं."
सुरक्षा बलों के लिए फैयाज की हत्या ने एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत दिया. उग्रवादियों के लिए सामान्य समर्थन का माहौल अब हिंसा के मनमाने कृत्यों के खिलाफ घृणा की भावना की ओर बढ़ता दिखाई दिया. इसका संकेत आतंकवादी समूहों के खिलाफ मानव खुफिया जानकारी की बढ़ती आपूर्ति में सामने आया.
लेकिन फैयाज के हत्यारों का तत्काल कोई पता नहीं चल सका, माना जाता है कि वे आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े थे. पुलिस ने कहा कि 22 वर्षीय लेफ्टिनेंट की उस राइफल से हत्या कर दी गई जो कुछ हफ्ते पहले शोपियां में एक अदालत परिसर पर हमले के दौरान एक पुलिसकर्मी से छीन ली गई थी. 2017 में उग्रवादी समूहों के बीच राइफल छीनना प्रचलन में आ गया.
5 जनवरी 2024 के एनकाउंटर से पहले, जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों ने दो बार घोषणा की थी कि उन्होंने उमर की हत्या में कथित रूप से शामिल आतंकवादियों को मार गिराया है.
सितंबर 2017 में, बलों ने कहा कि उन्होंने इशफाक अहमद पद्दार को मार डाला और अप्रैल 2018 में, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा कि दक्षिण कश्मीर में तीन बड़ी मुठभेड़ों में मारे गए 12 आतंकवादियों में से दो, इशफाक मलिक और रेयाज थोकर उमर के अपहरण और हत्या मामले में साजिशकर्ताओं का हिस्सा थे.
'न्याय' की एक मायावी भावना
लेकिन सवाल है कि क्या इन एनकाउंटर्स ने परिवार के लिए कुछ बदला है?
उमर फैयाज के पिता फैयाज पार्रे सुरसोना में अपने साधारण 3 मंजिला घर में रहते हैं. उमर के परिवार में उनके माता-पिता, दादी और दो बहनें हैं. उनकी मृत्यु के एक साल बाद, उनकी मां ने एक दूसरे बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम उन्होंने प्यार से "उमर" रखा.
54 वर्षीय फैयाज पार्रे ने कहा, "लेकिन बाद में हमने उसे उमर नाम से नहीं बुलाने का फैसला किया क्योंकि यह हमें हमारे मारे गए बेटे की याद दिलाता था." "हमने उसका नाम बदलकर "मुसादिक" रख दिया."
शायद यह स्वाभाविक ही है कि उमर की हत्या ने उसके परिवार के सदस्यों को और अधिक अकेला बना दिया है. उनकी सीमित बातचीत इस बात का संकेत है कि वे आवश्यकता से अधिक बताने को तैयार नहीं हो सकते. जब उनसे पूछा गया कि क्या उनके दिवंगत बेटे की मौत में शामिल आतंकवादी की हत्या का मतलब उनके लिए न्याय है, तो वे शांत हो गए.
"यह हमारे लिए चीजें कैसे बदलेंगी?" फैयाज ने पूछा, "मैंने अपना बेटा खो दिया है और इसकी भरपाई किसी से नहीं हो सकती."
उनकी बातों में अज्ञात भय झलकता है. उमर की हत्या के छह साल बाद, उनकी छोटी बहन अस्मत फैयाज अपने मृत भाई के जीवन में नए सिरे से मीडिया की दिलचस्पी से परेशान थी.
अस्मत ने रहस्यमय तरीके से कहा, “हम अभी भी चीजों को लेकर डरे हुए हैं. आप जानते हैं कि वे यहां कैसे हैं. हम ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहते जिसकी अलग तरह से व्याख्या की जा सके.''
इससे पहले उसने कहा, "हम अपने परिवार के किसी अन्य सदस्य को खोना नहीं चाहते."
अस्मत एसआरओ-43 के तहत पेश किए गए सरकारी नौकरी से भी नाराज हैं. प्रस्ताव के समय उसने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी जो उस योग्यता के अनुरूप था.
हालांकि बाद में उन्होंने अंग्रेजी में मास्टर्स की डिग्री हासिल की, फिर भी वह जम्मू-कश्मीर के शिक्षा विभाग में 'लैब बियरर' के रूप में काम करती हैं.
पुलिस और सुरक्षा कर्मी: लगातार टारगेट पर
उमर पहले ऑफ-ड्यूटी सुरक्षाकर्मी थे, जिन्हें छुट्टी के दौरान आतंकवादियों ने मार डाला था - यह ट्रेंड बाद के वर्षों में आम हो गया. 2021 में, सेना ने कहा कि 2017 के बाद से जम्मू-कश्मीर में उसके कम से कम सात ऑफ-ड्यूटी जवान मारे गए.
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के दो साल बाद, कश्मीर घाटी में हिट-एंड-रन हत्याओं में भी वृद्धि देखी गई, जिनके निशाने पर मुख्य रूप से पुलिसकर्मी और अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य थे. कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (KPSS) का अनुमान है कि 2020 से कश्मीर में विभिन्न आतंकवादी समूहों द्वारा कम से कम 22 हिंदू नागरिकों की हत्या की गई है.
क्विंट हिंदी ने इनमें से अधिकांश हत्याओं पर नजर रखी है, जिसमें शोपियां के पंडित बागवान सुनील भट की हत्या भी शामिल है. अगस्त 2022 में एक हमले के दौरान सुनील की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जिसमें उनके भाई प्रीतंबर नाथ भी घायल हो गए थे. यह एक ही परिवार पर दूसरा हमला था. अप्रैल में आतंकियों ने शोपियां के चोटीगाम में स्थानीय केमिस्ट बाल कृष्णन को गोली मार दी थी. कृष्णन सुनील के चचेरे भाई हैं.
कृष्णन तो हमले में बच गये, लेकिन सुनील नहीं बच पाये. उनकी हत्या ने पूरे परिवार को जम्मू जाने और खुद को 'प्रवासी' के रूप में पंजीकृत करने के लिए प्रेरित किया.
पिछले हफ्ते, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा कि 5 जनवरी की गोलीबारी के दौरान मारा गया आतंकवादी सुनील की हत्या और उस साल की शुरुआत में उसके चचेरे भाई बाल कृष्णन पर हमले के साजिशकर्ताओं में से एक था.
क्विंट हिंदी ने कृष्णन के छोटे भाई अनिल भट्ट को फोन किया. उन्होंने इस मुद्दे पर बोलने से इनकार कर दिया और फोन रख दिया, जिससे पता चलता है कि सरकार के इस आश्वासन के बावजूद कि कश्मीर में आतंकवाद पूरी तरह खत्म हो गया है, ये परिवार किस स्तर के डर में जी रहे हैं.
(शाकिर मीर एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वे @shakirmir पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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