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अनंतनाग एनकाउंटर बता रहा जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खात्मे का दावा मिथक है

2019 के बाद से यह दूसरी बार है जब जम्मू-कश्मीर पुलिस का कोई डीएसपी स्तर का अधिकारी आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान शहीद हुआ

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भारतीय सेना के एक कर्नल, एक मेजर और जम्मू-कश्मीर पुलिस के DSP 14 सितंबर को दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग में आतंकवादियों से मुठभेड़ (Kashmir Encounter) में शहीद हो गए. अनंतनाग जिले के गाडूल अहलान गांव के घने जंगलों में बुधवार को जहां यह गोलीबारी हुई वो अब जम्मू-कश्मीर में सबसे घातक मुठभेड़ों में से एक वाली जगह हो गई है, जबकि यहां पर साल 2023 में साफ तौर पर आतंकवाद में कमी के संकेत दिखाई दे रहे थे. 

इस हमले के लिए गुनहगार माने जाने वाले दो आतंकवादियों को दबोचने के लिए गडूल अहलान के घने जंगलों में कॉम्बिंग ऑपरेशन चल रहा है. आतंकवादियों का पता लगाने में खोजी दल की मदद के लिए अतिरिक्त बल भेजे गए हैं.

द क्विंट को आधिकारिक सूत्रों ने बताया है कि एक आतंकवादी की पहचान दक्षिणी कश्मीर के कोकेरनाग इलाके के नागम गांव के उजैर खान के रूप में हुई है. सूत्रों ने बताया कि, "दूसरा लड़का विदेशी आतंकवादी यानी पाकिस्तानी है, जिसका नाम उस्मान गाजी है. ऐसी खबरें थीं कि उजैर काफी समय से उसके साथ था." 

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एनकाउंटर में शहीद हुए जवान   

शहीद हुए अधिकारी- 19 राष्ट्रीय राइफल्स (RR) के कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष धोनैक और जम्मू-कश्मीर पुलिस के DSP हुमायूं भट हैं. 2021 के सेना पदक विजेता कर्नल मनप्रीत सिंह पंजाब के मोहाली जिले और आशीष धोनैक हरियाणा के पानीपत के थे.   

वहीं 33 साल के DSP हुमायूं भट श्रीनगर में रहते थे. वो मूल रूप से दक्षिणी कश्मीर के त्राल इलाके के मिदूरा गांव के थे. हुमायूं भट पहले जख्मी थे जिन्हें एयरलिफ्ट करके श्रीनगर लाया गया था.  

सुरक्षा विभाग के वरिष्ठ सूत्र ने बताया कि, "खून की कमी के कारण उनकी मौत हो गई." जख्मी होने के बाद भी उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को वीडियो कॉल किया था. दुर्भाग्य से आतंकवादियों की ओर से लगातार जारी गोलीबारी के चलते उन तक वक्त पर मदद नहीं पहुंच सकी.

"गोलीबारी की वजह से शवों को लाने में हुई मुश्किलें"

हाल में कश्मीर में जो गोलीबारी या आतंकवादी हमले हुए हैं, उनमें अनंतनाग हमला सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच बड़ी घातक मुठभेड़ की दूसरी बड़ी घटना है. पिछले महीने दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम जिले में हलाण के जंगल में कई दिनों तक चलने वाला एक बड़ा ऑपरेशन हुआ था. उस समय सुरक्षा बल छिपे हुए आतंकवादियों को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे लेकिन तभी सेना के तीन जवान शहीद हो गए थे. 

सूत्र बताते हैं कि, ये एनकाउंटर तब हुआ जब सुरक्षा बलों का दल जंगल में एक पहाड़ी इलाके के पास उग्रवादियों की अंधाधुंध गोलीबारी की चपेट में आ गया. अधिकारियों को गोली लगने के बाद भी फायरिंग इस हद तक जारी रही कि घटनास्थल से तीन शवों को निकालना मुश्किल हो गया था. 

उन्होंने कहा कि कर्नल मनप्रीत सिंह की डेड बॉडी को एक दिन बाद ही लाया जा सका. उनकी डेड बॉडी को गुरुवार की सुबह भारी गोलीबारी के बीच बरामद किया गया. 

आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि 2019 के बाद यह दूसरी बार है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस का कोई DSP स्तर का अधिकारी आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान शहीद हुआ है. सूत्रों ने कहा, "फरवरी 2019 में ऐसी ही परिस्थितियों में कुलगाम जिले में डीएसपी अमन ठाकुर की जान चली गई थी."  

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ऑपरेशन में माहिर अफसर  

शहीद DSP हुमायूं भट को श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर पुलिस मुख्यालय में श्रद्धांजलि दी गई. हुमायूं भट के पिता गुलाम हसन भी जम्मू-कश्मीर पुलिस सेवा (जेकेपीएस) 1984 बैच के एक सम्मानित अफसर हैं. वह पुलिस महानिरीक्षक (IG) के पद से रिटायर हुए.   

हुमायूं भट की पढ़ाई श्रीनगर के प्रतिष्ठित बर्न हॉल स्कूल से हुई थी. उन्होंने उत्तरी कश्मीर के पट्टन इलाके में SSM कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री की थी. उन्होंने 2018 में JKPS इम्तिहान पास किया.

आधिकारिक सूत्रों ने द क्विंट को बताया कि, "उन्होंने साल 2019 में ट्रेनिंग ली थी." 2020 में वो प्रोबेशन पर ड्यूटी पर थे. इसके बाद अगले साल उन्हें पट्टन क्षेत्र में डिप्टी एसपी के तौर पर ऑपरेशंस की जिम्मेदारी दी गई.

पिछले साल उनका तबादला कर दिया गया था. उन्हें श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर पुलिस की आतंकवाद विरोधी इकाई कार्गो में डीएसपी (ऑपरेशंस) के पद पर तैनात किया गया था. हाल ही में उन्हें कोकेरनाग में सब डिविजनल पुलिस ऑफिसर (एसडीपीओ) के रूप में तैनाती हुई और उन्हें स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया था.   

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इलाके में अब पहले से ज्यादा शांति   

  • देर रात हुई गोलीबारी और मुठभेड़ से पहले 27 जून को सुरक्षा बलों ने अनंतनाग जिले में अल-बदर संगठन से जुड़े आतंकवादी आदिल मजीद लोन को मार गिराया था.   

  • 16 जून को कुपवाड़ा जिले में गोलीबारी के दौरान पांच आतंकवादी मारे गए, जिनमें से सभी पाकिस्तानी थे.

  • इसके ठीक तीन दिन बाद सेना ने उसी जिले में दो आतंकवादियों को मारने के लिए एक ऑपरेशन को अंजाम दिया था.

  • 2 मार्च को दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के पदगामपोरा गांव में एक ऑपरेशन के दौरान दो आतंकवादी मारे गए. हालांकि इसमें 55 RR के एक सैनिक शहीद हो गए.

  • 17 जनवरी को, मध्य कश्मीर के बडगाम जिले में जिला कोर्ट परिसर के पास मुठभेड़ के दौरान लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के दो आतंकवादी मारे गए. 

इन मुट्टीभर ऑपरेशनों को छोड़ दें तो इस साल कश्मीर घाटी में कोई बड़ी आतंकवादी घटना नहीं देखी गई, जो आतंकवाद के घटने का साफ रुझान है. इसके उलट साल 2022 में जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों ने लगभग 93 एनकाउंटर किए.   

हालांकि, इसका एक नतीजा यह हुआ है कि जम्मू इलाके में बड़े हमले बढ़े हैं. बुधवार को पीर पंजाल क्षेत्र के राजौरी इलाके में एक ऑपरेशन के दौरान दो आतंकवादी मारा गया, हालांकि एक सैनिक रवि कुमार भी शहीद हो गए.

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कुछ इलाके अस्थिर बने हुए हैं   

जम्मू के पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ती आतंकवादी घटनाओं को बताते हुए उत्तरी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (जीओसी) लेफ्टिनेंट जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने हाल ही में कहा था कि इस साल जम्मू-कश्मीर में 46 आतंकवादी मारे गए जिसमें से सिर्फ दक्षिणी पीर पंजाल इलाके में 29 मारे गए.   

सुरक्षा मामलों से जुड़े एक वरिष्ठ सूत्र ने बताया, "पिछले दो वर्षों में, हमने जंगलों में गोलीबारी में अपने लगभग 20 से 30 लोगों को खो दिया है." इनमें से ज्यादातर घटनाएं राजौरी, कुलगाम और अन्य इलाकों में हुईं. बेशक, वे सभी एक सबक की तरह हैं.  

सूत्रों ने कहा कि अनंतनाग एनकाउंटर ने इतने घने जंगलों में ऑपरेशन चलाने की मुश्किलों और चुनौतियों को दिखाया है. उन्होंने कहा, "आदर्श रूप से जब ऑपरेशन पहाड़ी पर शुरू होता है, तो ऊपर की ओर चढ़ने के बजाय, सुरक्षा बलों को नीचे की ओर से पहुंच बंद करनी होती है और फिर पहाड़ी के पीछे के छोर से आतंकवादी दल के पास पहुंचना होता है"

उन्होंने कहा कि, "इस तरह आतंकवादी एक तरफ से घिर जाते हैं जबकि दूसरी तरफ से आने पर सेना को ऊंचाई का फायदा मिलता है. लेकिन क्या इस मामले में उस प्रक्रिया का पालन किया गया था? जाहिर है, जांच से ही पता चलेगा कि ऐसा हुआ है या नहीं."

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हमले का पाकिस्तानी एंगल 

अनंतनाग हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली है. TRF की एक कथित प्रेस रिलीज में फ्रंट ने दावा किया कि दो सेना और एक पुलिस अधिकारी को "पहले से घात लगाकर हमले" में मार दिया गया. इसमें कहा गया है कि यह हमला 9 सितंबर को पाकिस्तान में प्रतिबंधित समूह जमात–उद-दावा से जुड़े मुहम्मद रियाज की हत्या का बदला था.  

मूल रूप से जम्मू-कश्मीर के पुंछ के सुरनकोट गांव के रहने वाले रियाज की PoK के रावलकोट में अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी. मारे गए कथित एक्टिविस्ट के साथियों ने इस हत्या के पीछे भारतीय जासूसी एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराया.  

हालांकि, सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों ने TRF के दावों को खारिज कर दिया है, यह उन्होंने दलील दी है कि सिर्फ किस्मत की वजह से आतंकवादी हमले को अंजाम दे पाए.

सूत्रों ने बताया, "सुरक्षा बलों को पता था कि इलाका चुनौतीपूर्ण था और वाहनों की पहुंच संभव नहीं थी." सुरक्षा बलों को “छिपे हुए आतंकवादियों की स्थिति और दबिश का अंदाजा था बावजूद वो मिशन पर आगे बढ़े.

हो सकता है सुरक्षा बलों ने आतंकियों को कमतर आंका. आदर्श रूप से, उन्हें एक छोटी साइलेंट टीम भेजनी चाहिए थी, लेकिन इसके बजाय, उन्होंने शाम को इलाके की घेराबंदी कर दी और ऑपरेशन को निलंबित कर दिया. यह संभव है कि आतंकवादियों को पहले से ही उनकी मौजूदगी का पता चल गया था, जिसके कारण उन्होंने घात लगाकर हमला किया. 

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गैजेट्स के लिए अफसर का जुनून  

इस बीच, जम्मू-कश्मीर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि हुमायूं भट एक तकनीकी विशेषज्ञ थे. उन्होंने गैजेट के प्रति अपने जुनून को अपनी नौकरी बड़ी कुशलता से जोड़ लिया था.   

जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया “वो बहुत सावधानी से ऑपरेशन को अंजाम देने वाले अधिकारी थे. उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका से खास कंपोनेंट मंगाकर अपनी बुलेटप्रूफ जैकेट को तैयार किया था. "उन्होंने अपनी AK-47 राइफल को टॉर्च, स्कैनर, पॉइंटर्स से लैस किया था. यह उनकी नौकरी के लिए कमिटमेट का लेवल था.  

भट ने अपने नेतृत्व वाले विभिन्न आतंकवाद विरोधी अभियानों में अपनी भूमिका के लिए वीरता के लिए पुलिस पदक (पीएमजी) भी जीता था. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, "उनके पिता बहुत ही अनुशासनात्मक पुलिस अधिकारी थे लेकिन उसके उलट हुमायूं भट बहुत मिलनसार, सहज, तेजतर्रार और सबसे मिलने जुलने वाले थे." 

(शाकिर मीर एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह @shakirmir पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपिनियन लेख है और इसमें व्यक्त विचार लेखक के हैं. क्विंट हिंदी ना तो इन विचारों का समर्थन करता है ना ही इसके लिए जिम्मेदार है.) 

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