ADVERTISEMENTREMOVE AD

फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों में ग्रामीण भारत की झलक

11 अप्रैल 1921 को फानी दुनिया छोड़ने वाले फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म चार मार्च 1921 को पूर्णिया बिहार में हुआ

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

11 अप्रैल 1921 को फानी (नश्वर) दुनिया छोड़ने वाले फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म चार मार्च 1921 को पूर्णिया बिहार में हुआ. स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त चालीस साथियों के साथ नौ साल की उम्र में वानर सेना का निर्माण किया. जब इनसे नाम पूछा गया तो बताया - जवाहर लाल नेहरू और पिता का नाम पूछने पे मोती लाल बताया था. इनकी बहादुरी से जेलर चकित हो गया था. ये बहादुरी उनके व्यक्तित्व का हिस्सा जीवनभर रही. ऐसे बहादुर बच्चे का नाम इनकी दादी ने रेणु रखा था क्योंकि इनके जन्म के वक्त ऋण अर्थात कर्ज लेना पड़ा था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कहानियों में ग्रामीण भारत की झलक

वे ग्रामीण भारत को हूबहू कहानियों में दिखाते रहे. 1942 में भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल रहे. उन्होंने 1950 में नेपाल में राणाशाही के खिलाफ सशस्त्र क्रांति में भी हिस्सा लिया.  1952 में साहित्य-लेखन को पूरी तरह अपना लिया और फिर अपने अंतिम दिनों में ही वापस राजनीति में जेपी के आन्दोलन में शामिल हुए और जेल गए. इन्ही दिनों में सरकार की नीतियों के विरोध में पद्मश्री लौटा दिया. 1954 में पहला उपन्यास मैला आंचल आया.

रेणु की एक ख्वाइश कभी पूरी नहीं हो पाई. वे विधायक बनना चाहते थे नहीं बन पाए !

मैं रेणु की प्रतिनिधि कहानियों के माध्यम से आपको उनके करीब लाने की कोशिश करता हूं.

0

रेणु की कहानी  ‘तीसरी कसम’ उर्फ ‘मारे गए गुलफाम’ पे शैलेंद्र ने राजकपूर को बतौर हीरो लेकर फिल्म बनाई. रेणु की कहानी ‘पंचलाइट’ मात्र चार पन्नों की या बारहसौ शब्दों की है. उसपे यशपाल शर्मा , अमितोष नागपाल आदि के द्वारा अभिनीत फिल्म बनी है.

रेणु ग्रामीण जीवन मे मौजूद अंधविश्वास उधेड़ते रहे. कहानी पंचलाइट में देखिए

“पंचलाइट खरीदने के बाद पंचों ने मेले में ही तय किया - दस रुपये जो बच गए हैं , इससे पूजा की सामग्री खरीदी जाए -

वे आगे कहते है, अंग्रेज बहादुर के राज में ही पुल बनाने से पहले बलि दी जाती थी. खैर ये अभी तक चल रहा है.  कुछ दिनों पहले एक फाइटर प्लेन की पूजा की घटना याद है ?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ग्रामीण जीवन मे मौजूद जातीयता पर रेणु की दृष्टि पंचलाइट में देखिए

बामन टोली के लोग ऐसे ही ताब करते हैं . अपने घर की ढिबरी को भी बिजली बत्ती कहेंगे ओर दूसरों के पंचलेट को लालटेन’

आज भी दलितों को बारात में घोड़ी न चढ़ने देना इसी का एक रूप है

ADVERTISEMENTREMOVE AD

रेणु की शहरी कूपमंडूकता पे नजर  ' एक अकहानी का सुपात्र ' में

‘कहिये चाहे प्रेम विवाह मगर है ये बालू की दीवार , अब मेरी भाभी को ही देखिए न- भैया के जितने दोस्त आते हैं सभी ‘लब’ की नजर से देखते हैं. मानो एक बार किसी से लब करने वाली लड़की हमेशा किसी न किसी आदमी से लब करती ही रहती है’
ADVERTISEMENTREMOVE AD

रेणु ने पारिवारिक तानेबाने को बेलाग हुए बिना मध्यम वर्गीय पावन नैतिकता के चक्कर मे पड़े लिखा. कहानी ‘लाल पान की बेगम’ में देखिये

“दस साल की चंपिया जानती है , शकरकंद छीलते समय कम से कम बारह बार मां उसे बाल पकड़कर झकझोरेगी , छोटी-छोटी खोट निकालकर गालियां देगी - पांव फैलाकर क्यों बैठी है इस तरह बेलज्जी !

कहानी 'जैव' में ग्रामीण जीवन उकेरने वाले रेणु की प्रगतिशीलता देखिए. वे शिक्षा व्यवस्था को टारगेट कर रहे हैं और परिवार नियोजन पर बात कर रहे हैं. उन्हें पता था भारत के सामने क्या समस्याएं हैं.

“प्रोफेसर सुकुमार राय ! फर्स्ट क्लास फर्स्ट ... गोल्ड मेडलिस्ट हैं. कुपात्र कहीं का. आजकल के नौजवानों में यही ऐब - डिग्री से लदे हुए गधे ! लेकिन हिसाब से तो .. ? सुहागरात में ही कंसीव किया होगा शारदा ने. क्योंकि उसके बाद भागलपुर चला गया. दो महीने बाद आकर शारदा को ले गया है. और एक महीने के बाद ये पत्र”
ADVERTISEMENTREMOVE AD

रेणु को पता था वो बेहद पढ़े जाते हैं इस कारण उन्होंने महिला स्वास्थ और हाइजीन पर भी संदेश देती हुई कहानियां लिखी. वो गांधी के स्वच्छता के आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे. कहानी 'जड़ाऊ मुखड़ा' में देखिए

“मां होकर भी तुम इन बातों की ओर ध्यान नहीं देती. वो डर के मारे सूखकर काटा हो गयी है. समझती है कोई रोग हो गया है. उसको सिखाना होगा. सैनिटरी टॉवल और स्पंज का इस्तेमाल कैसे ..”

उन्होंने ग्रामीण जीवन बिना पर्दे के रखा. गालियां जिस रूप में समाज में हैं उस रूप में कहानियों में आईं. देखिए "आजाद परिंदे" में आई गालियां.

“तो उसने चाबुक फटकारकर एक गाली दी पीछे की ओर - उतर ! हरामी का पिल्ला” “भुजंगी ने हलमान को बहन की गाली दी. हलमान उसकी छाती पर चढ़ बैठा - बोल साले, खनगिन का खसम “ “ हरबोलवा चुप रहा. सुदरसन बोला , “ एक बात कहूं बुरा तो नहीं मानेगा ? तेरी मौसी छिनाल है.“  
ADVERTISEMENTREMOVE AD

उनकी कहानियों में गीत - संगीत किरदार सा है पर ये गीत कहीं कहीं डबल मीनिंग वाले लगते हैं. आज का अत्यधिक नैतिकता वादी राजनैतिक समाज सेंसरशिप का हिमायती लगता है. प्रेस पर भी नकेल डालने की कोशिश करता सा है. पर रेणु ने ज्यो का त्यों लिखा. 'पुरानी कहानी नया पाठ' में देखिए.

“वह विरहा अलापने लगता है , ऊंचे सुर में - अरे सांवरी सुरतिया पे चमके टिकलिया कि छतिया पे जोड़ी अनार गे- छौडी छतिया पे जोड़ी अ-ना-आ-आ-आ-आ-र “मार मुंहझौसे बुढ़वा-वानर को. बुढौती में अनार का सौख देखो.“ लडकियां खिलखिलाकर हंसी.”

राजनेता कैसे दुर्घटना में भविष्य तलाशते हैं. रेणु की ' पुरानी कहानी नया पाठ ' में देखिए

’ इस क्षेत्र के पराजित उम्मीदवार , पुराने जनसेवक जी का सपना सच हुआ. कोसका मैया ने उन्हें फिर जनसेवा का ‘औसर’ दिया है. जय हो , जय हो ! इस बार भगवान ने चाहा तो वे विरोधी को पछाड़कर दम लेंगे ‘

इसी कहानी में वो आगे लिखते हैं

“मैंने कितने बाढ़ग्रस्त गांवों के बारे में लिखाया था ? पचास ? उसको डेढ़ सौ कर दो . ज्यादा गांव बाढ़ग्रस्त होगा तो रिलीफ भी ज्यादा मिलेगा.

और झूठ क्यों ? भगवान ने चाहा तो कल तक दो सौ गांव जलमग्न हो सकते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

और अंत से पहले, कहानी ‘तीसरी कसम’ में सामाजिक तानेबाने पर तीखी कलम चलाने वाले रेणु का प्रेम पर लेखन देखिए -

हिरामन बैलगाड़ी पे माल भाड़ा ले जाने वाला गांव का सीधा सादा नौजवान है. उसकी गाड़ी में पहली बार एक लड़की बैठी है. तब उसकी मनस्थिति देखिए रेणु के शब्दों में

“आसिन - कार्तिक के भोर में छा जानेवाले कुहासे से हिरामन को पुरानी चिढ़ है. बहुत बार वो सड़क भूलकर भटक चुका है. किंतु आज के भोर के इस घने कुहासे में भी वो मगन है”

कुछ देर बाद कहानी में हिरामन के पीछे बैठी नायिका हीराबाई एक नदी किनारे हात मुंह धोने जाती है तब

“एक बार इधर-उधर देखकर हीराबाई के तकिए पर हाथ रख दिया. फिर तकिए पर केहुनी डालकर झुक गया , झुकता गया. खुशबू उसकी देह में समा गई. तकिए के गिलाफ पर कढ़े फूलों को उंगलियों से छूकर उसने सूंघा , हाय रे हाय इतनी सुगंध ! हिरामन को लगा एक साथ पांच चिलम गांजा फूंक कर वो उठा है.”
ADVERTISEMENTREMOVE AD

और अंत मे-

रेणु की लगभग हर कहानी में एक कैरेक्टर गांव को याद करता है. गांव से विस्थापित ये व्यक्ति स्वयं रेणु तो नहीं ! वो ग्रामीण जीवन में मौजूद संगीत को किरदार की तरह बरतते रहे. ये आज जापानी लेखक मुराकामी में देखने को मिलता है.

रेणु गांव की कहानी कहते हुए असल मे शहर की कहानी और शहर से पूरे विश्व में होते हुए ग्लोबल हो जाते हैं. वे ग्लोबल लेखक थे. ग्लोबल लेखक हैं. आने वाला वर्ष रेणु का जन्मशती वर्ष होगा.

यह भी पढ़ें: फणीश्वरनाथ ‘रेणु’: जिन्होंने देहात की धूल को साहित्य का चंदन बनाया

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×