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फणीश्वरनाथ ‘रेणु’: जिन्होंने देहात की धूल को साहित्य का चंदन बनाया

रेणु की अनूठी आंचलिक कहानियों का ही आकर्षण था कि फिल्‍मकार उसे फिल्‍माने को ललचाते नजर आए

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अगर फणीश्‍वरनाथ 'रेणु' को बेहद कम शब्‍दों में समझना हो, तो बस उनके उपन्‍यास मैला आंचल के बारे में थोड़ा-सा जान लीजिए. इस उपन्‍यास में कुल 254 पात्र हैं, लेकिन कोई भी एक 'हीरो' नहीं है. अगर कोई हीरो है, तो वो है मेरीगंज अंचल, जिसमें इतने सारे जीवंत पात्र समाये हुए हैं.

इस बात से यह भी समझा जा सकता है कि हिंदी साहित्‍य जगत में आंचलिक उपन्‍यास को उसकी जगह दिलाने वाले यानी फणीश्‍वरनाथ 'रेणु' होने का मतलब क्‍या है. पहले कहानी का कोई एक पात्र नायक होता था, जिसके इर्द-गिर्द पूरी कहानी बुनी जाती थी. रेणु ने गांव-देहात के अंचल को ही नायक बना दिया.

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रेणु के उपन्‍यास में अंचल समग्रता के साथ जीवित हो उठे. यानी प्रेमचंद ने ग्रामीण परिवेश के भीतर जितना कुछ बुना, रेणु उसे अगले स्‍टेज तक लेकर गए.

पर्दे पर भी छाती रहीं कहानियां

रेणु की अनूठी आंचलिक कहानियों का ही आकर्षण था कि फिल्‍मकार उसे फिल्‍माने को ललचाते नजर आए. गांव-देहात के जनजीवन पर लिखी गई रेणु की कहानियां बड़े और छोटे पर्दे पर आकर भी लोगों के दिलोदिमाग पर छा चुकी हैं. हालिया उदाहरण है पंचलैट फिल्‍म, तो बेहतरीन मिसाल है तीसरी कसम.

छोटे पर्दे पर भी रेणु की कहानियां हाथों-हाथ लपकी जा चुकी हैं. रेणु ने 1954 में उपन्‍यास लिखा था ‘मैला आंचल’, जिस पर टीवी सीरियल बन चुका है.

बॉलीवुड की 'तीसरी कसम' और रेणु

1966 में फिल्‍म आई तीसरी कसम. फिल्‍म के निर्माता थे शैलेंद्र. शुरुआत में इस फिल्‍म को ज्‍यादा भाव नहीं मिल सका, पर बाद में ये लोगों के दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ने में कामयाब रही.

‘तीसरी कसम’ की स्‍क्रिप्‍ट फणीश्‍वरनाथ ‘रेणु’ की कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित थी. गांव की सोंधी माटी में सनी इस कहानी को लोगों ने रुपहले पर्दे पर खूब पसंद किया.

शैलेंद्र ने राज कपूर और वहीदा रहमान को लेकर ये फिल्म बनाई, जिसमें 'चलत मुसाफिर मोह लियो रे...' और 'दुनिया बनाने वाले...' जैसे कर्णप्रिय गीतों ने फिल्‍म का ग्राफ ऊपर चढ़ाने में खासा योगदान‍ किया. गीतों को मुकेश ने स्‍वर दिया था.

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'तीसरी कसम' और कहानी के अंत का सवाल

तीसरी कसम की शूटिंग जब आखिरी दौर में थी, तो निर्माता शैलेंद्र पर कहानी का अंत बदलने का दबाव पड़ने लगा. नायक-नायिका के मिलन के साथ इसे सुखांत बनाने की बात उठाई गई.

तब शैलेंद्र की आर्थिक स्‍थ‍िति अच्‍छी नहीं थी, इसके बावजूद उन्‍होंने रेणु की कहानी पर बनी फिल्‍म का अंत बदलने से इनकार कर दिया. रेणु भी यही चाहते थे.

51 साल बाद फिर पर्दे पर आई रेणु की लिखी कहानी

तीसरी कसम के 51 साल बाद, 2017 में पंचलैट के रूप में रेणु की कहानी पर्दे पर उतरी. फिल्‍म प्रेम प्रकाश मोदी के निर्देशन में बनी. इसमें अमितोष नागपाल, अनुराधा मुखर्जी, यशपाल शर्मा, राजेश शर्मा जैसे कलाकार लीड रोल में हैं.

पंचलैट का मतलब है पंचलाइट यानी पेट्रोमैक्‍स. पूरी कहानी इसी केरोसिन लैंप के इर्द-गिर्द बुनी गई है. ये लैंप आज भी ग्रामीण इलाके का अभिन्न हिस्सा है. फिल्‍म की शूटिंग झारखंड के बासुकीधाम के पास के गांव में की गई है.

फिल्‍म के पात्र काल्‍पनिक कतई नहीं!

बॉलीवुड की ज्‍यादातर फिल्‍मों की शुरुआत इस डिस्‍क्‍लेमर के साथ होती है, 'इस फिल्‍म के सभी पात्र काल्‍पनिक हैं....' लेकिन रेणु की कहानियों पर बनी फिल्‍में इसका अपवाद होती हैं.

रेणु की कहानी के पात्र इतने जीवंत होते हैं कि वो काल्‍पनिक तो एकदम नहीं लगते. ऐसे पात्र ग्रामीण भारत के घर-घर में ‘जुग-जुग जीते’ आए हैं.

'पंचलैट' की कहानी पर एक नजर

एक गांव है, जिसमें जाति के आधार पर 8 पंचायतें हैं. सभी पंचायतों में जरूरी चीजों के अलग-अलग इंतजाम हैं. इनमें पेट्रोमैक्स भी शामिल है, जिसे गांववाले 'पंचलाइट' कहते हैं.

गांव की महतो टोली में पहले-पहल पेट्रोमैक्‍स आने के बाद सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि उसे जलाएगा कौन? हालांकि गांव की दूसरी पंचायतों में पंचलाइट का इस्‍तेमाल पहले से हो रहा है. जाहिर है, उसे जलाने की 'कला' दूसरी पंचायत के लोगों को मालूम है, लेकिन महतो टोली के लोग किसी और पंचायत की मदद कैसे लेते? इज्‍जत पर बट्टा नहीं लग जाता!!

आखिरकार महतो टोली की इज्‍जत बचाने का पूरा भार उस युवक पर आ जाता है, जिसे बिरादरी से बाहर कर दिया गया था. दरअसल उस युवक ने गांव की एक लड़की पर डोरे डालने की कोशिश की थी. इसके बाद पंचायत ने उस पर जुर्माना लगाया था. जुर्माना न देने पर ही उसे ‘बाहर’ किया गया था.

कहानी का अंत सुखद है. टोली के भोले-भाले लोग अपनी पंचायत की 'इज्‍जत' बचाने की खातिर उस युवक को अपना लेते हैं. लोगों के दिल का मैल दूर हो जाता है और उस आशिक के 'सात खून माफ' हो जाते हैं.

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एक नजर में फणीश्‍वरनाथ 'रेणु'

फणीश्‍वरनाथ 'रेणु' का जन्म 4 मार्च, 1921 को बिहार के अररिया जिले के औराही हिंगना गांव में हुआ था. रेणु की ख्‍याति आंचलिक कथाकार के तौर पर है. उनकी कहानियां में गांव और उसमें बसने वाले पात्र एकदम जीवंत हो उठते हैं.

रेणु कहते थे:

‘’अपनी कहानियों में मैं अपने आप को ही ढूंढता फिरता हूं. अपने को, मतलब आम आदमी को.’’

इस महान कथाकार ने 11 अप्रैल, 1977 को अंतिम सांस ली.

प्रमुख कृतियां:

उपन्यास : मैला आंचल, परती : परिकथा, जुलूस, दीर्घतपा, कितने चौराहे, पलटू बाबू रोड

कहानी संग्रह : एक आदिम रात्रि की महक, ठुमरी, अगिनखोर, अच्छे आदमी

संस्मरण : ऋणजल-धनजल, श्रुत अश्रुत पूर्वे, आत्म परिचय, वनतुलसी की गंध, समय की शिला पर

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