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प्राकृतिक आपदाओं से खुद को असुरक्षित महसूस करने वाले समुदायों का बड़ी संख्या में पलायन (Migration) हो रहा है और इस घटना को हाल ही में और ज्यादा खराब हुई पर्यावरण (Environment) की स्थिति से जोड़कर देखा जा रहा है.
इस तरह की गतिविधि लोगों को एक वैकल्पिक जगह की तलाश करने पर मजबूर कर रही है, जहां वो जीवित रह सकें और इस तरह के ‘environmental migrants’ यानी पर्यावरण संबंधी पलायन करने वाले कई बार बड़े शहरों का रुख इसलिए करते हैं क्योंकि, उन्हें रोजगार के अवसर, रहने के लिए घर और खाने की सुविधा मिल सके.
भारत में हैदराबाद, पुणे और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र जैसे ऐसे कई शहर हैं, जहां वैश्वीकरण के युग के बाद तेजी से हर तरफ से विकास हुआ है और इसकी वजह ग्रामीण इलाकों से यहां आने वाले प्रवासियों की बड़ी संख्या भी रही है.
इस ‘environmental migration’ ने देश भर के कई शोधकर्ताओं का ध्यान अपनी तरफ खींचा है और इसे भारत सरकार की जलवायु संकट से निपटने के लिए बनाई गई स्ट्रैटजी में भी महत्वपूर्ण घटक के रूप में शामिल किया गया है.
पश्चिमी दिल्ली की निवासी अंजलि भाटिया ने अपने उन अनुभवों के बारे में बताया कि कैसे उनके परिवार के कुछ लोग शहर में प्रदूषण संकट की वजह से स्थायी तौर पर यहां से पलायन कर गए.
अंजलि ने बताया, साल 2019 में दिवाली के बाद मेरे ग्रैंडपैरेंट्स गोवा शिफ्ट हो गए. दोनों को फेफड़ों से जुड़ी बीमारी थी और मेरे पैरेंट्स ने सोचा कि उनके लिए सुरक्षित होगा कि वो किसी ऐसी जगह पर रहें, जहां एयर क्वालिटी अच्छी हो. हम कभी-कभी सर्दियों में जब यहां बहुत ज्यादा स्मॉग होता है, तो उनके साथ रहने के लिए वहीं चले जाते हैं.
भारत में पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को देखते हुए आप इसे संकट की स्थिति कह सकते हैं.
वायु प्रदूषण की बात करें तो दुनिया के 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 9 भारत में हैं. वहीं भारत के सभी प्रमुख महानगर सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की श्रेणी में आते हैं और यहां रोकथाम के ऐसे उपायों की भी कमी देखी गई है, जिससे वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिल सके.
करीब-करीब हर साल वायु प्रदूषण की इस स्थिति ने कई परिवारों को ये फैसला लेने पर मजबूर किया है कि वो अस्थायी तौर पर ग्रामीण इलाकों की तरफ पलायन कर जाएं. वहीं उनके परिवार के कुछ लोगों के लिए ये स्थायी विकल्प भी बन रहा है.
वो लोग जो एनसीआर क्षेत्र में रह रहे हैं, उनमें ये ट्रेंड खास तौर पर देखने को मिला है कि वो ग्रामीण इलाकों का रुख कर रहे हैं, जहां का वातावरण, पानी और हवा सब कुछ अच्छे हैं.
इकनॉमिक टाइम्स के एक सर्वे के मुताबिक, करीब 78 प्रतिशत लोगों ने ये जवाब दिया कि भारत में महानगरों को छोड़ने की मुख्य वजह प्रदूषण का उच्च स्तर रहा और जो एकमात्र वजह उन्हें ऐसा करने से रोक रही थी, वो थी एक अच्छी नौकरी.
प्रदूषण को लेकर किए गए एक दूसरे सर्वे में सामने आया कि इसमें भाग लेने वाले 17,000 लोगों में से 40 प्रतिशत ने एनसीआर क्षेत्र को छोड़कर कहीं और बसने के विकल्प को चुना.
कोरोना महामारी के बाद वायु प्रदूषण की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी संख्या में पलायन के उदाहरण देखने को मिले हैं और इसकी वजह वर्क फ्रॉम होम की चॉइस की उपलब्धता रही है. इसके बाद लोगों में ऐसी जगहों पर जाकर रहने का ट्रेंड देखने को मिला, जहां का वातावरण शुद्ध है.
चीन में की गई स्टडीज में भी यही पैटर्न सामने आया है. नेशनल ब्यूरो ऑफ इकनॉमिक रिसर्च द्वारा पब्लिश की गई एक रिसर्च के मुताबिक, अगर प्रदूषण में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है तो ये पलायन के जरिए 2.8 प्रतिशत तक जनसंख्या को कम करने में सक्षम होता है.
बीजिंग में प्रदूषण का स्तर बढ़ने के बाद चीन के अलग-अलग प्रांतों में पलायन देखा गया. शुरुआत में ये ऐसे शिक्षित लोगों ने शुरू किया जो अपने प्रोफेशनल करियर की शुरुआत कर रहे थे. पूर्वी यूरोप के देशों में की गई स्टडीज के नतीजों में भी यही देखने को मिला.
चेक गणराज्य और स्लोवाकिया जैसे देश भी वायु प्रदूषण की वजह से होने वाले पलायन के गवाह बने हैं. इस तरह पलायन उस वर्ग के लोगों में देखा जा रहा है जो या तो खराब वातावरण की वजह से गंभीर बीमारियों का शिकार हैं या जो साफ-सुथरे वातावरण में रहने का खर्च उठाने में सक्षम हैं.
पलायन का ये ट्रेंड दो तरीकों से एक चिंताजनक मुद्दा है. इसमें पहला है, शहरों में प्रदूषण संकट जो ऐसे प्रवासियों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है, जो यहां ग्रामीण इलाकों से आ रहे हैं. ये न सिर्फ उच्च स्तर पर जहरीली हवा के संपर्क में आ रहे हैं, बल्कि इनके साथ बड़ी समस्या यह भी है कि ये आर्थिक रूप से कमजोर हैं और इलाज का खर्च नहीं उठा सकते.
इसमें दूसरा है, आबादी का एक ऐसा हिस्सा जो आर्थिक रूप से संपन्न है. ये शहरी जीवन में रहने के आदती हैं और वो ऐसे ग्रामीण इलाकों में रहने जा रहे हैं, जहां इंफ्रास्टक्चर की कमी है. यहां उन्हें बिजली, पानी और वेस्ट मैनेजमेंट जैसी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
अगर ये लोग ग्रामीण इलाकों में जाकर रहते हैं, तो इससे इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास होना शुरू होगा और इसका परिणाम होगा, ज्यादा प्रदूषण, स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं और ये पूरा चक्र फिर से रिपीट होगा.
शिमला और देहरादून जैसे शहर पहले ही पर्यटकों की वजह से दिक्कतों का सामना कर रहे हैं, जो यहां बस सीमित समय के लिए ही आते हैं.
Ebb & Flow शीर्षक के साथ वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पीने के साफ पानी की कमी की वजह से वैश्विक पलायन में 10 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है. दक्षिण भारत के कई शहर जैसे हैदराबाद और चेन्नई में पहले ही देखने को मिला है कि लोग पानी की भारी कमी की वजह से दूसरे इलाकों की तरफ पलायन कर रहे हैं.
हालांकि सरकार ने कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट इन द नेशनल कैपिटल रीजन एंड एडजॉयनिंग एरियाज बिल, 2021 को पास किया है और नवीकरणीय ऊर्जा के विकास और नेट जीरो एमिशन जैसे लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बड़े कदम उठाए गए हैं. लेकिन यहां जरूरत है कि वायु प्रदूषण को कम करने से भी आगे बढ़कर सोचा जाए और कानूनी दबावों को और विकसित किया जाए, जो अभी बस जुर्माना लगाने के इर्द गिर्द ही घूम रहा है.
इनोवेशन के जरिए वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिल सकती है जिसमें वर्टिकल फॉरेस्ट्स और प्रदूषण पैदा करने वाली इंडस्ट्रीज को इन्सेन्टिव देने जैसी तकनीकों को अपनाना शामिल है.
ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त सुविधाएं हों और वो तेजी से बढ़ती प्रवासियों की संख्या को लेकर तैयार हों. अगर ऐसा नहीं होता है तो ऐसी जगहों पर भी जनसंख्या का वैसा ही उछाल देखने को मिलेगा, जैसा भारत के महानगरों में देखने को मिला.
सरकार को अनुकूलता और अल्पीकरण दोनों को लेकर प्रयास करने होंगे. इससे जलवायु परिवर्तन पर नेशनल मिशन फॉर स्ट्रैटजिक नॉलेज के क्षेत्र को बढ़ाने और पर्यावरण संबंधी कारणों की वजह से पलायन के पैटर्न को समझने में मदद मिल सकती है और साथ ही ये शहरों में प्रदूषण को कम करने में भी मददगार हो सकता है जिसका फोकस ग्रामीण प्रवासियों पर हो जो प्रदूषण को लेकर ज्यादा असुरक्षित हैं.
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