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बिहार चुनाव: ‘ब्रांड तेजस्वी’ की ताकत, कमजोरी, मौके और खतरा

तेजस्वी (Tejashwi) को विरासत में पिता लालू का नाम मिला, लेकिन क्या ‘तेजस्वी ब्रांड’ को उसका मार्केट वैल्यू पता है?

शादाब मोइज़ी
बिहार चुनाव
Updated:
तेजस्वी (Tejashwi) को विरासत में पिता लालू का नाम मिला
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तेजस्वी (Tejashwi) को विरासत में पिता लालू का नाम मिला
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई

क्या लालू के ‘लाल’ तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) इस बार बिहार के सीएम बन पाएंगे?  ये सवाल रांची जेल में बैठे लालू यादव (Lalu Yadav) से लेकर खुद तेजस्वी के मन में भी उठ रहे होंगे. 31 साल के तेजस्वी अब आरजेडी के सबसे बड़े नेता हैं, पोस्टर, नारे, चुनावी गाने, सोशल मीडिया हर जगह तेजस्वी ही नजर आते हैं. आरजेडी अब 'तेजस्वी ब्रांड' बनता जा रहा है.

हाल ये है कि पापा लालू यादव भी ‘नई सोच, नया बिहार’ वाले नए पोस्टरों से नदारद हैं. भले ही तेजस्वी को विरासत में पिता का नाम मिला हो, लेकिन क्या तेजस्वी ने कभी खुद को इस राजनीति के मार्केट में तोला है? क्या ‘तेजस्वी ब्रांड’ को उसका मार्केट वैल्यू पता है?
RJD के पोस्टर में तेजस्वी की फोटो(फोटो: Twitter)

मार्केटिंग और मैनेजमेंट की दुनिया में कहते हैं कि कोई धंधा शुरू करना है या किसी ब्रांड को लॉन्च करना है, तो सबसे पहले उसका SWOT analysis करें. मतलब उसकी Strength यानी ताकत, Weakness यानी कमजोरी, Opportunity यानी अवसर, मौके और Threat मतलब चुनौतियां क्या हैं?

बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2020) में अब कुछ ही दिन बचे हैं, तेजस्वी यादव का ये दूसरा विधानसभा चुनाव है, लेकिन पिता के जेल में रहने की वजह से उनके नेतृत्व में ये पहला विधानसभा चुनाव होगा. इसलिए हमने ब्रांड तेजस्वी को जानने के लिए उनका SWOT analysis किया है.

सबसे पहले बात तेजस्वी की Strength मतलब ताकत की

1. लालू प्रसाद यादव

तेजस्वी की सबसे बड़ी ताकत 'ब्रांड लालू' है. भले ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव जेल में हैं, लेकिन तेजस्वी के पास उनका नाम, उनकी पहचान है. तेजस्वी को विरासत में लालू यादव की राजनीतिक जमीन मिली है. यादव, अल्पसंख्यक, पिछड़ों के लिए लालू आज भी मसीहा हैं.

2. बुजुर्ग नेताओं की भीड़ में युवा आवाज

बिहार में जेपी आंदोलन से निकले नेता अब बुजुर्ग कैटेगरी में आ खड़े हुए हैं. नीतीश, लालू, सुशील मोदी, रामविलास पासवान जैसे नेता अब रिटायरमेंट की उम्र में हैं. युवा नेतृत्व के गैप को भरने के लिए तेजस्वी अकेले मैदान में दिखते हैं. हालांकि रामविलास पासवान के बेटे चिराग भी युवा हैं, लेकिन वो अपने पिता की तरह ही 'सेफ पॉलिटिक्स' के मंच पर अपना कैरेक्टर प्ले कर रहे हैं.

चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो बिहार में 18 से 40 साल की उम्र के 4 करोड़ से भी ज्यादा वोटर हैं. मतलब आधे से ज्यादा वोटर युवा हैं.

3. भाषा की पकड़

तेजस्वी भले ही 9वीं तक पढ़े हों, लेकिन उनकी अच्छी अंग्रेजी और भाषा की समझ उनकी ताकत है. नरेंद्र मोदी हों या लालू, दोनों ही अपने धारधार भाषणों की वजह से जाने जाते हैं, ठीक उसी तरह नीतीश कुमार से अलग होने के बाद 28 जुलाई 2017 को पटना विधानसभा में दिए तेजस्वी के भाषण ने ही उन्हें लालू यादव के बेटे तेजस्वी से नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी बनाया था. महागठबंधन टूटने के बाद तेजस्वी का विधानसभा में दिया भाषण सुनिए

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4. मजबूत विपक्ष का रोल

2015 के चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी और तेजस्वी डिप्टी सीएम बने. लेकिन 20 महीने में ही नीतीश कुमार से रिश्ते टूट गए. जिसके बाद तेजस्वी ने विपक्षी नेता की जिम्मेदारी उठाई. चाहे कोरोना के दौरान सदन में सरकार की विफलताओं को गिनाना हो या बाढ़ में लोगों के बीच जाना हो, तेजस्वी ने एक मजबूत विपक्ष के तौर पर खुद को सड़क से लेकर सदन तक में पेश किया है.

अब बात W की, मतलब वीकनेस यानी कमजोरी की

1. राजनीतिक दांव पेच में कच्चे

तेजस्वी राजनीति के खेल में अभी फ्रेशर ही हैं. लालू के जेल जाने के बाद तेजस्वी ने कुछ उपचुनाव में बेहतर किया था, जैसे नीतीश के खेमे के एमएलए सरफराज आलम को अपने पार्टी में लाकर अररिया लोकसभा उपचुनाव में जीत हासिल की.

लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, जीतनराम मांझी की ‘हम’, मुकेश साहनी की VIP और लेफ्ट की कुछ पार्टियों के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद भी हार गए. मोदी और नीतीश की जोड़ी का काट नहीं ढ़ूंढ पाना, तेजस्वी के राजनीतिक समझ पर बड़ा सवाल है.

2. बताने को ज्यादा कुछ नहीं

तेजस्वी सिर्फ 20 महीने ही सरकार में रह सके. ऐसे में उनके पास नीतीश कुमार की कमियों को गिनाने के सिवा अपना काम दिखाने को बहुत कुछ नहीं है.

3. सीनियर लीडर से तालमेल की कमी

तेजस्वी ने भले ही पार्टी संभाल ली हो लेकिन सीनियर लीडरों का पार्टी से जाना और नाराजगी जाहिर करना भी तेजस्वी के नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह है.

लालू यादव के करीबी रघुवंश प्रसाद सिंह का पार्टी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा और फिर उनके निधन से ठीक पहले पार्टी छोड़ना. शिवानंद तिवारी जैसे सीनियर लीडर की दबी आवाज में नाराजगी, एक के बाद एक विधायकों का आरजेडी छोड़ नीतीश कुमार की जेडीयू में जाना. सब बताता है कि अभी तेजस्वी को और सीखने की जरूरत है.

4. भ्रष्टाचार की मार

भले ही तेजस्वी को विरासत में पिता का नाम मिला हो, लेकिन यही नाम कई बार परेशानी का सबब भी बनता है. लालू यादव भ्रष्टाचार के मामले में जेल में हैं. लालू परिवार पर कई घोटालों का आरोप है, सीबीआई केस चल रहा है. ऊपर से पिता और मां राबड़ी देवी के शासन को 'जंगल राज' का मिला हुआ तमगा.

हालांकि तेजस्वी ने अपनी अलग पहचान बनाने के लिए इस बात की माफी भी मांगी है. तेजस्वी ने कहा था,

“ठीक है 15 साल हम लोग सत्ता में रहे, पर हम सरकार में नहीं थे, हम छोटे थे. फिर भी हमारी सरकार रही. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि लालू प्रसाद यादव के राज में सामाजिक न्याय नहीं हुआ. 15 साल में हमसे कोई कमी या भूल हुई थी तो हम उसके लिए माफी मांगते हैं.’’

5. परिवार में तकरार

हिंदुस्तान में फैमिली वैल्यूज बहुज अहमियत रखती है. ऐसे में आए दिन लालू परिवार में दरार को लेकर अपुष्ट खबरें तेजस्वी के लिए मुश्किलें बढ़ाती हैं. मीसा भारती, तेज प्रताप, तेजस्वी, कौन होगा लालू का वारिस? ये सवाल भी पार्टी को कमजोर करता है. ऊपर से लालू यादव का जेल में रहना भी परिवार और तेजस्वी को कमजोर करता है.

मां राबड़ी देवी के साथ तेजस्वी यादव और तेज प्रताप(File फोटो: ANI)

6. जमीनी राजनीति से दूर

सोशल मीडिया पर नई आरजेडी एक्टिव दिखती है लेकिन जमीनी काडर कमजोर है. जिन पार्टियों के खिलाफ लड़ रहे हैं उनके कार्यकर्ता बूथ पर जमे हैं.

जब बिहार ने चमकी बुखार देखा तब तेजस्वी अचानक कई दिनों तक गायब रहे, लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद कई दिनों तक मीडिया और पार्टी वर्कर से दूर रहे. पटना में आई बाढ़ के दौरान भी जहां पप्पू यादव जैसे नेताओं की तस्वीरें आ रही थीं वहीं तेजस्वी यादव गायब थे.

O मतलब Opportunity यानी मौका

1. वक्त बेशुमार

तेजस्वी के पक्ष में सबसे पहले एक चीज जाती है तो वो है वक्त. 26 साल की उम्र में डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठने वाले तेजस्वी का राजनीतिक करियर अभी शुरू ही हुआ है. मतलब खुद को साबित करते के बहुत मौके हैं.

2.  सीएम की कुर्सी, लालू युग की वापसी

तेजस्वी विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा हैं, और फिलहाल नीतीश कुमार के बाद तेजस्वी ही सीएम पद के अकेले सबसे बड़े दावेदार हैं. डिप्टी सीएम वो बन ही चुके हैं, तो अगली मंजिल सीएम की कुर्सी ही है.

3. JDU-BJP से जनता नाराज

तेजस्वी के पास सबसे बड़ा मौका जनता के दिल में जगह बनाना है. बाढ़, कोरोना, बेरोजगारी, लचर हेल्थ सिस्टम, इंडस्ट्री की बेहद कमी, क्राइम जैसै मुद्दे तेजस्वी की झोली में है. जनता विकल्प ढूंढ़ती है, और तेजस्वी के पास मौका है उस पॉलिटिकल गैप को भरने का.

T मतलब threat यानी खतरा या चुनौती

1. ओवर कॉन्फिडेंस

तेजस्वी का सबसे बड़ा खतरा वो खुद हैं. तेजस्वी के आसपास रहने वालों से लेकर मीडिया में ये चर्चा आम है कि वो कई बार ओवर कॉन्फीडेंट हो जाते हैं. उदाहरण के तौर पर 2019 लोकसभा चुनाव. तेजस्वी कुछ सीटों पर उपचुनाव जीतने के बाद कॉन्फीडेंस के घोड़े पर ऐसे सवार थे कि मानो अब वो रुकेंगे ही नहीं.

लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे से लेकर जमीन पर लड़ाई के दावे कर रहे थे, लेकिन बीजेपी-जेडीयू ने ऐसी शिकस्त दी जो शायद कभी लालू यादव ने सोची भी नहीं होगी.

2. नीतीश-बीजेपी की जोड़ी

तेजस्वी के सामने दूसरा बड़ा खतरा है नीतीश-बीजेपी की जोड़ी. नीतीश कुमार भले ही कभी अकेले अपने दमपर चुनाव न जीत सके हों, लेकिन गठबंधन के सहारे वो सत्ता की कुर्सी पर बैठे रहना जानते हैं. यही हाल बीजेपी का भी है.

आत्मनिर्भर बिहार का नारा देने वाली बीजेपी इतने सालों में बिहार में कभी आत्मनिर्भर नहीं बन सकी. लेकिन फिर जेडीयू-बीजेपी साथ हैं जो तेजस्वी के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द है.

3. परिवार या कहें तेज प्रताप यादव

तेजस्वी ने पिता के जेल जाने के बाद से पार्टी और परिवार को संभाला है, लेकिन तेज प्रताप की नाराजगी भी कई मामलों में सामने आई है. तेज प्रताप बड़े भाई हैं, मीसा बड़ी बहन. दोनों ही राजनीति में एक्टिव हैं. मतलब तेजस्वी का ‘एकल राज’ नहीं हो सकता है. परिवार एक है तो तेजस्वी की राहें आसान हैं, नहीं तो खतरा बना रहेगा.

4. गठबंधन

तेजस्वी की पार्टी गठबंधन के बिना वैसे ही कमजोर है जैसे बिहार में बाकी सभी पार्टियां. आरजेडी 2015 में भी कांग्रेस-जेडीयू के साथ लड़ी थी. 2019 में भी कई पार्टियों का साथ. लेकिन अब न नीतीश साथ हैं न मांझी. दूसरी विपक्षी पार्टियां भी तेजस्वी के कामकाज के स्टाइल पर सवाल उठाती रही हैं. ऐसे में गठबंधन में टूट का खतरा भी बना रहेगा.

अब अगर मैनेजमेंट गुरू लालू यादव के लाल तेजस्वी को पॉलिटिकल मार्केट में ब्रांड तेजस्वी बनाना है तो इस SWOT Analysis पर नजर डालने में कोई हर्ज नहीं है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 16 Sep 2020,07:44 PM IST

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