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राजस्थान विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रहे हैं. इसी क्रम में गहलोत मंत्रिमंडल ने शनिवार (7 अक्टूबर) को राजस्थान में जाति आधारित सर्वे (Caste Based Survey) कराने को मंजूरी दे दी. राजस्थान कांग्रेस ने 'X' पर पोस्ट कर लिखा, "कांग्रेस 'जिसकी जितनी भागीदारी-उसकी उतनी हिस्सेदारी' के अपने संकल्प पर काम कर रही है."
ऐसे में आइए जानते हैं कि इसके पीछे गहलोत सरकार की क्या रणनीति है?
सरकार ने जाति सर्वे कराने का क्यों फैसला लिया?
राजस्थान में 'जाति आधारित सर्वे' के क्या मायने?
ऐलान से कांग्रेस को कितना फायदा?
बीजेपी को कितना नुकसान?
इसका जवाब सरकार द्वारा जारी आदेश पत्र में दिया है. इसमें कहा गया है, "राज्य में समस्त पिछड़ेपन की स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए विशेष कल्याणकारी उपाय किये जाने तथा राज्य के सभी वर्गों के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का निर्वचन कर उनके सामाजिक व आर्थिक उत्थान व संबल प्रदान कर सभी वर्गों के जीवन स्तर में सुधार करने के उद्देश्य से राजस्थान राज्य में जातीय आधारित सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया गया है."
सरकार अपने पैसे से जातीय आधारित सर्वेक्षण कराएगी. सर्वेक्षण के द्वारा राज्य के समस्त नागरिकों के सामाजिक आर्थिक एवं शैक्षणिक स्तर के संबंध में अद्यतन जानकारी एवं आकंड़े एकत्रित किये जाएंगे.
दरअसल, सत्ता में वापसी की कवायद में लगे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आए दिन बड़े-बड़े ऐलान कर रहे हैं. इसी क्रम में 'जाति आधारित सर्वेक्षण' को भी देखा जा रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार संजय दुबे ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "पिछले कुछ महीनों में जिस तरह से अशोक गहलोत घोषणा कर रहे हैं, वो सिर्फ चुनावी ऐलान नजर आ रहा है."
संजय दुबे ने कहा, "कांग्रेस ओबीसी को अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है. हालांकि, आचार संहिता लागू होने से पहले इस तरह के ऐलान से कितना फायदा कांग्रेस को होगा, ये कहना फिलहाल मुश्किल है."
दरअसल, कांग्रेस पिछले कुछ समय से पूरे देश में ये संदेश देने की कोशिश कर रही है कि वो ही ओबीसी की सच्ची हितैषी है. संसद में राहुल गांधी का दिया गया बयान, ये संकेत देने के लिए काफी है. कांग्रेस 'जाति आधारित सर्वेक्षण'कराने की ऐलान मध्य प्रदेश में भी कर चुकी है.
वहीं, अगर राजस्थान के जातीय समीकरण पर नजर डालेंगे तो समझ आएगा कि 'जाति आधारित सर्वेक्षण' के जरिए क्यों ओबीसी को साधने की कोशिश कांग्रेस कर रही है.
लेकिन आपको राजस्थान में ओबीसी के गणित को समझने के लिए पंचायती राज के आंकड़ों को समझना होगा.
BBC के अनुसार, 2015 के पंचायत चुनाव में ओबीसी के लिए सरपंच के 783 पद आरक्षित थे, लेकिन इस वर्ग के सरपंच 1017 लोग बने.
सामान्य महिलाओं में 2412 सीटों पर महज 966 महिलाएं चुनी जा सकीं. लेकिन ओबीसी महिलाओं ने अपने लिए रखे गए 646 पदों को पार करके 2001 सीटों पर परचम लहराया.
यहां महत्वपूर्ण यह है कि प्रदेश में ओबीसी की राजनीति की यह तासीर 1995 के चुनाव से अब तक वैसी ही है. 2020 के पंचायत चुनाव कोविड की वजह से क्षेत्रवार कराए गए और पूरे राज्य के आंकड़े अब तक उपलब्ध नहीं हो पाए हैं लेकिन जो आंकड़े मौजूद हैं, उनसे भी ऐसे ही नतीजे सामने आते हैं.
राजस्थान में जातीय समीकरण पर नजर डालें तो समझ आएगा कि ओबीसी को क्यों बीजेपी और कांग्रेस के लिए इतना महत्वपूर्ण है.
BBC के अनुसार, राजस्थान की 2013 की ओबीसी की सूची में 82 जातियां दिखती हैं, लेकिन राज्य सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के अलग-अलग आदेशों को देखें तो यह सूची अब 91 तक हो गई है
राजस्थान में मौजूदा समय में करीब 68 OBC विधायक हैं. इनमें जाट 33 हैं, जो सभी जातियों में सबसे अधिक हैं.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो, ओबीसी में शामिल जातियों में सामाजिक तथा आर्थिक बिखराव आंतरिक रूप से है, खासकर ओबीसी की ऊंची जातियों और ओबीसी की सर्विस क्लास जातियों में. ऐसे में आज तक इनका एकमुशत वोट किसी एक राजनीतिक दल के पाले में नहीं गया.
जानकारों की मानें तो, जाट, जणवा, आंजना, बिश्नोई, जट सिख सहित विभिन्न भूमिसंपन्न जातियां बाकी ओबीसी पर बहुत भारी पड़ती हैं. यह विभाजन जमीनी स्तर पर बहुत दिखता है.
वरिष्ठ पत्रकार जगदीश शर्मा ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, " जाति आधारित सर्वेक्षण का ऐलान अगर मुख्यमंत्री पहले करते तो इसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता था, लेकिन अब उतना मिलने की उम्मीद नहीं है."
दरअसल, गहलोत ओबीसी आराक्षण को बढ़ाने चाहता है. मानगढ़ धाम में हुए विश्व आदिवासी दिवस सम्मेलन में सीएम ने ओबीसी आरक्षण को 21 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने और मूल ओबीसी के लिए अलग से 6 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की.
अगर ऐसा हुआ तो राज्य में आरक्षण 70 प्रतिशत हो जाएगा. अभी SC आरक्षण 16 और ST आरक्षण 12 प्रतिशत है. ओबीसी का आरक्षण 21 प्रतिशत, ईडब्लूएस का 10 प्रतिशत और एमबीसी का पांच प्रतिशत पहले से है.
हालांकि, जाति आधारित सर्वेक्षण कब होगा, इसकी कोई तारीख सामने नहीं आई है. काग्रेस को इस ऐलान से कितना फायदा होगा, ये तो आने वाला चुनाव परिणाम ही बताएंगा. लेकिन, बीजेपी इस मुद्दे से जरूर असहज हो जाती है.
हालांकि, राजस्थान में बीजेपी की ओबीसी में अच्छी खासी पकड़ है. 2013 के चुनाव में बीजेपी को अच्छी संख्या में ओबीसी का साथ मिला था.
बीजेपी सोशल इंजीनियरिंग के जरिए जातियों को साधने में जुटी है. पार्टी ने इस बार चुनाव अभियान का नेतृत्व अकेली वसुंधरा राजे के बजाय चार अलग-अलग सामूहिक टीमों को सौंपा गया है.
राजस्थान बीजेपी के एक नेता ने कहा, "हमारा सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री मोदी का है और वो खुद ओबीसी समुदाय से आते हैं. कांग्रेस की सरकार में ओबीसी की स्थिति कैसी है, ये किसी से छुपी नहीं है, लेकिन बीजेपी सरकार आते ही ओबीसी का विकास फिर एक बार तेजी गति से होने लगेगा.
गहलोत का ऐलान कांग्रेस को चुनाव में कितना मजबूत करेगा, ये देखना दिलचस्प होगा. लेकिन मौजूदा समय में 'जाति आधारित सर्वेक्षण' को कांग्रेस पूरे देश में बड़ा मुद्दा बनाने में जुटी है और उसे इसी में जीत का गांरटी नजर आ रही है.
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