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अयोध्या रामलला मंदिर विवाद के बाद इन दिनों काशी की ज्ञानवापी मस्जिद सुर्खियों में है. (Gyanvapi Masjid Survey Report) की बातों को कर कोई जानना चाहता है. लेकिन इन सबके बीच मथुरा कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद (Mathura Krishna Janmabhoomi-Shahi Eidgah dispute) भी उछल गया है. मथुरा कोर्ट ने इस मामले की याचिका को स्वीकार कर लिया है. दरअसल कई हिंदू पक्षों ने दावा किया है कि काशी और मथुरा में औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर वहां मस्जिद बनवाई थी. ऐसे में एक नारा अपने आप ही चारों ओर गूंजने लगता है. अयोध्या-काशी तो झांकी है मथुरा अभी बाकी है. यूपी चुनाव हो या हिंदुत्ववादी संगठनों की सभा हर जगह यह नारा जमकर गूंजा. पिछले साल अखिल भारत हिंदू महासभा ने ईदगाह मस्जिद के अंदर बाल गोपाल की मूर्ति स्थापित कर उसका जलाभिषेक करने का ऐलान किया था. लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए थे, इसके बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 'मथुरा की बारी है...' जैसे नारे खूब चले.
जहां एक ओर वाराणसी जिला अदालत काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर सुनवाई कर रही थी, वहीं दूसरी ओर मथुरा जिला अदालत में कृष्ण जन्मभूमि ईदगाह मस्जिद विवाद की भी सुनवाई चल रही थी.
मथुरा कोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मस्थली के पास स्थित प्रसिद्ध शाही ईदगाह मस्जिद को सील करने की याचिका सिविल कोर्ट ने स्वीकार कर ली गई है. ऐसी एक नहीं कई याचिकाएं हैं. याचिका में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटी शाही ईदगाह मस्जिद की सुरक्षा बढ़ाए जाने के साथ ही वहां आने जाने पर रोक और सुरक्षा अधिकारी को नियुक्त करने की भी मांग की गई है. कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए 1 जुलाई की तारीख तय की है. रंजना अग्निहोत्री, हरिशंकर जैन व विष्णु जैन इस याचिका के याचिकाकर्ता हैं. याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि श्री कृष्ण विराजमान को केस फाइल करने का हक है. अब इस मामले की सुनवाई सिविल जज की अदालत में होगी.
17 मई, 2022 को मथुरा की एक स्थानीय अदालत में एक अर्जी देकर विवादित ईदगाह मस्जिद परिसर को सील करने की प्रार्थना की गई थी. यह आवेदन एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह और राजेंद्र माहेश्वरी द्वारा दायर किया गया था. आवेदन में दावा किया गया कि अगर विवादित परिसर को सील नहीं किया गया, तो संपत्ति का धार्मिक चरित्र बदल जाएगा. आवेदन में यह भी मांग की गई कि शाही ईदगाह मस्जिद परिसर की सुरक्षा बढ़ाई जाए, किसी भी तरह की आवाजाही पर रोक लगाई जाए और सुरक्षा अधिकारियों की नियुक्ति की जाए.
इससे पहले 13 मई को मनीष यादव नाम के एक व्यक्ति ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन), मथुरा की अदालत में शाही ईदगाह मस्जिद का निरीक्षण करने के लिए एक एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति की मांग करते हुए एक आवेदन दिया था. उनके आवेदन में एक सीनियर एडवोकेट, एक एडवोकेट कमिश्नर को नियुक्त करने और मस्जिद के अंदर हिंदू धार्मिक प्रतीकों के मौजूद होने के तथ्य को देखते हुए तुरंत शाही ईदगाह का वीडियो सर्वेक्षण कराने की प्रार्थना की गई थी.
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा की एक स्थानीय अदालत को श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद के संबंध में उनके समक्ष लंबित दो आवेदनों पर 4 महीने के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया था.
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण मामले में मुख्य भूमिका निभाने वाले वकील हरिशंकर जैन और उनके बेटे विष्णु जैन ने ही मथुरा की सिविल जज की अदालत में पहला वाद दायर किया था. हालांकि उनकी उस याचिका को न्यायालय ने 30 सितंबर 2020 को खारिज कर दिया था. इसके बाद याचिकाकर्ताओ ने जिला जज की अदालत में बतौर रिवीजन पिटीशन दायर किया. जिस पर 2020 से अब तक लंबी बहस चली. अब इसी याचिका पर जिला जज की अदालत ने फैसला सुनाया है.
मथुरा कोर्ट में श्री कृष्ण विराजमान वाद 25 सितंबर 2020 को दाखिल हुआ था. यह विवाद कुल मिलाकर 13.37 एकड़ भूमि के मालिकाना हक है, जिसमें से 10.9 एकड़ जमीन श्री कृष्ण जन्मस्थान के पास और 2.5 भूमि शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. वाद में कोर्ट ने 4 संस्थाओं को नोटिस दिया था. इनमें श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान, श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट, शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल बोर्ड को दी गई नोटिस शामिल थी. सुनवाई के बाद 30 सितंबर को वाद खारिज हो गया था.
मथुरा के कटरा केशव देव को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान माना जाता है. मंदिर परिसर से सटी शाही ईदगाह मस्जिद है. ये 17वीं शताब्दी में बनी थी. कई हिंदुओं का दावा है कि मस्जिद मंदिर तोड़कर बनाई गई थी. वहीं कई मुसलमान संगठन इस दावे को ख़ारिज करते हैं.
श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में बताया है कि श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह के बीच पहला मुकदमा 1832 में शुरू हुआ था. तब से लेकर विभिन्न मसलों में कई बार मुकदमेबाजी हुई, लेकिन जीत हर बार श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की हुई. अताउल्ला खान ने 15 मार्च 1832 में कलेक्टर के यहां प्रार्थना पत्र दिया. जिसमें कहा कि 1815 में जो नीलामी हुई है उसको निरस्त किया जाए. ईदगाह की मरम्मत की अनुमति दी जाए. 29 अक्टूबर 1832 को कलेक्टर डब्ल्यूएच टेलर ने आदेश दिया जिसमें नीलामी को उचित बताया गया और कहा कि मालिकाना हक पटनीमल राज परिवार का है. इस नीलामी की जमीन में ईदगाह भी शामिल थी.
हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई थी जिसमें श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा ने कहा था कि ब्रिटिश सरकार से नीलामी में राजा पटनीमल ने 15.70 एकड़ जमीन खरीदी थी.
1968 को शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट और श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के बीच एक समझौता हो चुका है. इस समझौते के बाद मस्जिद की कुछ जमीनें मंदिर के लिए खाली की गई थीं और ये मान लिया गया था कि यह विवाद अब हमेशा के लिए सुलझा लिया गया है. लेकिन श्री कृष्ण जन्मभूमि न्यास के सचिव कपिल शर्मा और न्यास के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी इस समझौते को ही गलत बताते हैं.
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर का पहली बार निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने अपने कुल देवता की स्मृति में कराया था.
इसके बाद सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में 400 ईसवीं में मंदिर का निर्माण कराया गया था.
1150 ईसवीं में राजा विजयपाल देव के शासनकाल में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक नए मंदिर का निर्माण हुआ. कहा जाता है कि इस मंदिर को सिकंदर लोदी के शासनकाल में नष्ट कर दिया गया.
इसके बाद जहांगीर के शासनकाल में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने इसी स्थान पर मंदिर बनवाया.
1670 ई. में औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त कराकर इसके एक हिस्से पर ईदगाह का निर्माण कराया था जो आज भी मौजूद है.
1770 की गोवर्धन की जंग में मुगलों से जीत के बाद मराठाओं ने कृष्ण जन्मस्थान पर पुन: मंदिर का निर्माण करवाया.
1803 में अंग्रेज मथुरा आए. अंग्रेजों ने 1815 में कटरा केशव देव मंदिर की 13.37 एकड़ जमीन नीलाम की, जिसे बनारस के राजा पटनीमल ने खरीदा.
पंडित मदनमोहन मालवीय की पहल पर 1944 में उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने कटरा केशव देव की जमीन को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया.
बिड़ला ने 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की.
मस्जिद से जुड़े लोगों ने जमीन की खरीद को इलाहाबाद हाइकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती थी. कोर्ट ने 1953 में जमीन की खरीद को सही ठहराया.
श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने 1 मई, 1958 को श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ का गठन किया. 1977 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ का नाम बदलकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान कर दिया गया.
1962 में मंदिर बनना शुरू हुआ था, जो 20 साल बाद 1982 में बनकर तैयार हुआ.
शाही ईदगाह कमेटी की ओर से कहा गया है कि ये विवाद जबरन पैदा किया जा रहा है. दोनों ही धार्मिक स्थलों के रास्ते अलग-अलग हैं. कृष्ण की नगरी में सभी भाईचारे के साथ रहते हैं. पूर्व में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट और शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट में सौहार्दपूर्ण ढंग से रजिस्टर्ड समझौता हुआ था. अब कुछ लोग बिना वजह इस मामले तूल देने में लगे हैं.
मुस्लिम पक्ष की तरफ से अदालत में एक और दलील जो प्रमुखता से पेश की जा रही है वह है 1991 का पूजा स्थल एक्ट. मुस्लिम पक्ष के मुताबिक इस एक्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि देश में 1947 से पहले धार्मिक स्थलों को लेकर जो स्थिति थी वह उसी तरह बरकरार रखी जाएगी और उसमें कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी.
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