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बच्चे को विकलांगता से बचाने के लिए गर्भावस्था में बरतें ये सावधानियां

विकलांगता कई कारणों की वजह से होती. कुछ को रोकना हमारे हाथों में नहीं है पर कुछ ऐसी हैं, जिन्हें हम रोक सकते हैं.

अश्लेषा ठाकुर
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p>International Day of Disabled Persons: हर साल 3 दिसंबर को विश्व विकलांगता दिवस मनाया जाता है.</p></div>
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International Day of Disabled Persons: हर साल 3 दिसंबर को विश्व विकलांगता दिवस मनाया जाता है.

(फोटो: नमिता चौहान/फिट हिन्दी)

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International Day of Disabled Persons 2022: पूरी दुनिया में करीब ढाई लाख बच्चे जन्म से 28 दिन के अंदर विकलांगता की वजह से दुनिया को अलविदा कह देते हैं. वहीं विकलांगता से जूझ रहे करीब एक लाख 70 हजार बच्चों की मृत्यु एक महीने से 5 साल के अंदर-अंदर हो जाती है. विकलांगता कई कारणों की वजह से होती. कुछ को रोकना हमारे हाथों में नहीं है पर कुछ ऐसी हैं, जिन्हें हम रोक सकते हैं.

आज हम बच्चे में विकलांगता जो मां के गर्भ में या जन्म होते ही शुरू हो जाती है उस पर चर्चा करेंगे. बच्चे के जन्मजात विकलांग होने का कारण क्या होता है? बच्चा विकलांग पैदा ना हो इसके लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? कौन से जरूरी टेस्ट हैं जिससे गर्भ में पल रहे शिशु की विकलांगता का पता चल सकता है? क्या प्री मैच्योर डिलीवरी के कारण बच्चे में विकलांगता होती है? क्या लेट प्रेगनेंसी (late pregnancy) होने पर भी बच्चे में विकलांगता की समस्या आती है? ऐसे ही कई महत्वपूर्ण सवालों के जवाब पढ़ें फिट हिन्दी के इस आर्टिकल में.

जन्म से होने वाली विकलांगता

"शारीरिक विकलांगता में बच्चे के शरीर के अंग ठीक तरह से नहीं बने होते हैं. जिसकी वजह से वो अपने रोजमर्रा के कार्य पूरा नहीं कर सकता है. कुछ बच्चों की आंखें काम नहीं करती हैं, कुछ बच्चे सुन नहीं सकते और जब सुन नहीं सकते हैं तो वो बोल भी नहीं पाते हैं."
डॉ. प्रतिभा सिंघल, निदेशक और वरिष्ठ सलाहकार- प्रसूति एवं स्त्रीरोग, क्लाउड नाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पीटल्स, नोएडा

डॉ. प्रतिभा सिंघल आगे कहती हैं, मानसिक विकलांगता में मेंटल डेवलपमेंट ठीक नहीं होता है. मेंटल मेच्योरिटी पूरी तरीके से न होने के कारण वो एक नार्मल बच्चे की तरह जीवन नहीं जी पाता. कुछ बीमारियां होती हैं, जो ब्रेन रिलेटेड और स्पाइन रिलेटेड होती हैं, जैसे न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट होते हैं. कुछ जेनेटिक बीमारियां होती हैं, जैसे डाउन सिंड्रोम. डाउन सिंड्रोम में बच्चा मानसिक रूप और शारीरिक रूप से सम्पन्न नहीं हो पाता है और उसकी मानसिक उम्र 8 साल से ऊपर नहीं जा पाती है.

ऐसी विकलांगता क्यों होती है?

इस सवाल के जवाब में डॉ. प्रतिभा फिट हिन्दी से कहती हैं, "कुछ बीमारियां विकलांगता का कारण बनती हैं और कुछ जेनेटिक कारणों से होती हैं. जिसमें हर पीढ़ी में बच्चे विकलांग पैदा होते हैं.उसे जेनेटिकली ट्रांसमिटेड डिजीज कहते हैं. कुछ बीमारी ऐसे हैं, जो जीन से संबंधित होती हैं जैसे डाउन सिंड्रोम. इसमें जरूरी नहीं है कि हर जेनरेशन में एक डाउन सिंड्रोम का बच्चा पैदा होगा. कभी-कभी जीन्स में चेंजेज आ जाते हैं और बच्चे में डाउन सिंड्रोम का फॉरमेशन हो जाता है".

  • नजदीकी खून के रिश्ते में शादी के कारण भी होती हैं. जब इस प्रकार की शादियां होती हैं, तो उनमें कुछ जेनेटिक बीमारियां कॉमन होती हैं, जिस कारण बच्चे में समस्या हो सकती है.

  • ये भी देखा गया है कि ये जेनेटिक बीमारियां या विकलांगता निम्न वर्ग और माध्यम वर्ग ज्यादा देखने को मिलती है, क्योंकि उनका न्यूट्रीशन स्तर खराब होता है. उनको मेडिकल सुविधाएं पूरी नहीं मिल पाती हैं या महंगे होने की वजह से वो सारे टेस्ट या अल्ट्रासाउण्ड नहीं करा पाते हैं.

  • रेडियोलॉजी फील्ड में काम कर रही महिलाओं को खास ध्यान रखना चाहिए. गर्भावस्था में एक्स- रे मशीन के पास काम करने के नुकसान हैं.

  • खराब लाइफस्टाइल भी समस्या पैदा कर सकती हैं. शराब और धूम्रपान का सेवन, जंग फूड की लत, बहुत ज्यादा स्ट्रेस समस्या पैदा कर सकता है.

"हमारे देश में बेशक काफी पैसा हेल्थकेयर पर खर्च किया जाता है पर पॉपुलेशन ज्यादा होने की वजह से कभी-कभी सरकारी हॉस्पिटल पूरे तरीके से अल्ट्रासाउण्ड और जांच नहीं कर पाता है या फेसलिटी नहीं होती है. खास कर छोटे शहरों में या जो दूर-दराज के गांव में. वहां पर फेसलिटी नहीं होने की वजह से बच्चे अगर मां के गर्भ में विकलांग बन रहे हैं, तो वह डायग्नोस नहीं हो पाता है."
डॉ. प्रतिभा सिंघल, निदेशक और वरिष्ठ सलाहकार- प्रसूति एवं स्त्रीरोग, क्लाउड नाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पीटल्स, नोएडा

बच्चा विकलांग पैदा ना हो इसके लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

"बच्चा विकलांग ना पैदा हो इसके लिए पहला डॉक्टर का विजिट तब होना चाहिए जब प्रेगनेंसी कंफर्म हो. जो दवाइयां डॉक्टर आपको दे वह लेनी चाहिए. प्रेगनेंसी में 2 अल्ट्रासाउंड होने चाहिए जो कि बच्चे की बनावटी खराबी के बारे में बताएं. ऐसे कुछ ब्लड टेस्ट अवश्य होने चाहिए जिससे बच्चे की बनावटी खराबी के बारे में पता चले. कोई भी दवाई बिना अपने डॉक्टर से पूछे ना लें, शराब को तंबाकू का सेवन बिल्कुल ना करें. यह कुछ बातें हैं जिनका ध्यान रखना चाहिए."
डॉ मन्नान गुप्ता, फाउंडर और गायनेकोलॉजिस्ट, ऐलांटिस हेल्थकेयर, नई दिल्ली

जब महिला को गर्भावस्था का पता चलता है तभी उसे डॉक्टर के पास जाना चाहिए. डॉक्टर शुरुआत में कई टेस्ट करवाते हैं, जिसमें हीमोग्लोबिन, थैलेसीमिया, थॉयराइड, ब्लड शुगर और रूबेला वायरस के एंटीबॉडी देखते हैं. सारे वायरल मार्क भी देखे जाते हैं. अल्ट्रासाउण्ड/स्केन भी कराये जाते हैं. इन टेस्टों के आधार पर डॉक्टर आगे बढ़ते हैं.

"गर्भावस्था में अगर महिला शराब-तंबाकू का सेवन करें या ऐसी कोई दवाई ले जो कि बच्चे की सेहत के लिए ठीक नहीं है, तो बच्चा विकलांग पैदा हो सकता है. गर्भावस्था में कुछ दवाइयां ऐसी हैं, जो नहीं देनी चाहिए जैसे कि लिथियम, नींद की गोलियां जो कि एफडीए (FDA) अप्रूव्ड नहीं है और जिनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है" डॉ मन्नान गुप्ता कहते हैं.

कौन से जरूरी टेस्ट हैं जिससे गर्भ में पल रहे शिशु की विकलांगता का पता चल सकता है?

महिला जब 11 सप्ताह की प्रेग्नेंट होती हैं, तब 11 से 13 सप्ताह के बीच में डॉक्टर एक अल्ट्रासाउण्ड कराते हैं, जिसको लेवल वन अल्ट्रासाउण्ड या एलटीएमवी स्केन कहा जाता है. इसमें रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर गर्भ में पल रहे बच्चे को पूरी तरीके से एग्जामिन करते हैं. ये देखते हैं कि कोई डिफेक्ट तो नहीं है. उसके बाद कुछ मार्कर्स होते हैं, जैसे नेजल बॉन और न्यूकल थिकनेस देखी जाती है. ये सॉफ्ट मार्कर्स माने जाते हैं, डाउन सिंड्रोम जैसे जेनेटिक बीमारियों के लिए.
डॉ. प्रतिभा सिंघल, निदेशक और वरिष्ठ सलाहकार- प्रसूति एवं स्त्रीरोग, क्लाउड नाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पीटल्स, नोएडा
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इस सवाल के जवाब में डॉ मन्नान गुप्ता कहते हैं, "बच्चे की विकलांगता का पता करने के लिए 11 हफ्ते में एक टेस्ट होता है, जिसको एनआईपीटी (NIPT- non Invasive Pre Natal Testing) बोलते हैं, जिसमें कुछ मार्कस होते हैं, जो बच्चे की बनावटी खराबी के बारे में बताते हैं. एक टेस्ट होता है ड्यूल मार्कर (dual marker) जो 11 हफ्ते में होता है और एक टेस्ट ट्रिपल मार्कर ()triple marker) जो कि 13 हफ्ते मे होता है. उसके बाद एक लेवल 2 अल्ट्रासाउंड होता है, जिस में विस्तार से पता चलता है बच्चे की विकलांगता के बारे में".

अब इस बात को आसान भाषा में समझें:

  • अगर पेशेन्ट की उम्र 35 के ऊपर है या अल्ट्रासाउण्ड या डबल मार्कर में कुछ समस्या (abnormility) आ रही है, तो उनको एक टेस्ट करने की सलाह दी जाती है, जिसको एनआईपीटी कहते हैं. ये ब्लड टेस्ट थोड़ा महंगा है लेकिन जेनेटिक एवनॉरमेलिटी को रूल आउट करने में ये 99% सही (accurate) माना जाता है.

  • जब गर्भवती का डबल मार्कर और अल्ट्रासाउण्ड असामान्य आता है और मरीज/परिवार बोलता है कि 100% तसल्ली चाहिए तो डॉक्टर फीटल मेडिसीन जेनेटिक स्पेशलिस्ट के पास मरीज को भेजते हैं. जहां पर वो यूट्रस से बच्चे का पानी निकालते हैं और उस पानी में जिसमें बच्चे के सेल्स आए हुए होते हैं उसका जेनेटिक टेस्ट करते हैं. डीएनए टेस्ट करते हैं और उससे वो बता पाते हैं कि बच्चे में कोई जेनेटिक असामान्यता (abnormility) है या नहीं.

  • अगर बच्चा स्वस्थ है कोई जेनेटिक असामान्यता (abnormility) नहीं है तो डॉक्टर प्रेग्नेंसी जारी रखने की सलाह देते हैं और आगे की मॉनिटरिंग करते हैं. लेकिन अगर कोई असामान्यता (abnormility) है, जिससे ये पता लगता है कि बच्चा आगे जाकर जी नहीं पाएगा या बच्चे में कोई मेजर डिफेक्ट है, तो उस केस में डॉक्टर दंपति को सोच विचार करने का और अबॉर्शन (MTP ART के तहत) का सुझाव देते हैं.

  • अगला टेस्ट किया जाता है गर्भावस्था के 19 या 20 सप्ताह में जिसको लेवल टू स्केन कहते हैं. ये एक बेहतरीन अल्ट्रासाउण्ड होता है, जिसमें बच्चे का हर अंग देखा जाता है. फीजिकल स्ट्रक्चर, हाथ, पैर, हाथ की ऊंगलियां, पैरों की ऊंगलियां, उसका स्कल, उसका हार्ट, उसके एबडोमेन के आर्गन्स, सबकुछ देखा जाता है. इस अल्ट्रासाउण्ड में करीब 40 से 60 मिनट लगते हैं. टेस्ट के रिजल्ट आने पर आगे की सलाह निर्भर करती है.

प्री कॉन्सेप्शन काउंसलिंग (Pre Conception Counselling) है जरुरी 

हमारे एक्सपर्ट्स के अनुसार प्री कॉन्सेप्शन काउंसलिंग बेहद जरूरी है. जिसमें ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउण्ड किए जाते हैं. जेसी यह पता लगाया जा सके कि माता-पिता को थॉयराइड, थैलीसीमिया, डाइबीटीज तो नहीं है. मां रूबैला में इम्यून है या नहीं. अगर रूबैला एंटीबॉडी नहीं है, तो रूबैला वैक्सीन लगाया जाता है ताकि उसको प्रेग्नेंसी के दौरान कोई रिस्क ना रहे. यह सब तैयारी पहले से करने पर के तरह की बीमारियां और विकलांगता से बचा जा सकता है.

"सारी सावधानियां बरतने के बावजूद भी बच्चा विकलांग पैदा हो सकता है और ऐसे बहुत सारे जेनेटिक डिजीज हैं, जो कि बच्चे में आ जाते हैं. ऐसे बहुत सारे मेडिकल टेस्ट हैं, जो 100 % सेंसेटिव नहीं होते तो यह टेस्ट कराने के बावजूद भी बच्चों में विकलांगता की समस्या हो सकती है."
डॉ मन्नान गुप्ता, फाउंडर और गायनेकोलॉजिस्ट, ऐलांटिस हेल्थकेयर, नई दिल्ली

मां के मानसिक स्वास्थ्य का होता है असर 

मां के बुरे मानसिक स्वास्थ्य से भी बच्चे की ग्रोथ पर असर पड़ सकता है, जब मां खुश रहती है, तब मां की बॉडी में हार्मोन्स रिलीज होते हैं, जैसे कि एड्रेनालाईन (adrenaline). यह हॉर्मोन बच्चे की ग्रोथ और शुगर लेवल पर असर करते हैं. मां का खुश रहना और मानसिक तरीके से स्वस्थ रहना बच्चे के लिए बहुत आवश्यक है.

क्या प्रीमेच्योर डिलीवरी के कारण बच्चे में विकलांगता होती है?

प्रीमेच्योर डिलीवरी के कारण बच्चे में कई बीमारियां हो सकती हैं, जैसे कि दिमागी कमजोरी, आंखों की कमजोरी, अविकसित फेफड़े, बच्चों में पाचन की समस्या. अगर समय से पहले बच्चा पैदा हो जाए तो यह सारी प्रॉब्लम हो सकती है.

क्या लेट प्रेगनेंसी (late pregnancy) होने पर भी बच्चे में विकलांगता की समस्या आती है?

डॉ मन्नान गुप्ता कहते हैं, "जब लेट प्रेगनेंसी होती है यानी 35 साल की उम्र के बाद महिला के एग्स कमजोर होने लगते हैं तो ऐसी स्थिति में मिसकैरेज का चांस ज्यादा हो जाता है और बच्चे में दिमागी कमजोरी का खतरा बढ़ जाता है.

"जब भी प्रेगनेंसी प्लान करें अपनी गायनोकोलॉजिस्ट से मिल लें, सारे हाई रिस्क फेक्टर्स को सेटल करा लें, फिक्स करा लें और फिर प्रेग्नेंसी प्लान करें ताकि आपका बच्चा स्वस्थ रहे और आप भी स्वस्थ रहें और एक स्वस्थ बच्चा जन्म दें."
डॉ. प्रतिभा सिंघल, निदेशक और वरिष्ठ सलाहकार- प्रसूति एवं स्त्रीरोग, क्लाउड नाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पीटल्स, नोएडा

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