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2013 के बाद US में पहला पोलियो केस: क्या वैक्सीनेशन में कमी इसकी जिम्मेदार है?

क्या कोविड महामारी के दौरान बच्चों के जरूरी वैक्सीनेशन में कमी, आने वाले दिनों में स्वास्थ्य संकट की वजह बन सकती है?

अनुष्का राजेश
फिट
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<div class="paragraphs"><p>बच्चों में टीकाकरण: क्या COVID का प्रभाव पड़ा?</p></div>
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बच्चों में टीकाकरण: क्या COVID का प्रभाव पड़ा?

(फोटो: विभूषिता सिंह/ फिट हिंदी)

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गुरूवार, 21 जुलाई को अमेरिका में एक दशक बाद पोलियो (Polio) का पहला केस मिला है.

पोलियो एक बेहद संक्रामक वायरल इन्फेक्शन है, जो दुनियाभर में बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन के चलते तकरीबन खत्म हो गया था. भारत ने साल 2014 में ‘पोलियोमुक्त’ का दर्जा हासिल किया.

अमेरिका में मुमकिन है यह अकेला केस इकलौता मामला हो, लेकिन अगर यूएन चिल्ड्रेंस फंड (UNICEF) के हाल में जारी आंकड़ों को देखें, तो महामारी के दो सालों के दौरान बच्चों के जरूरी वैक्सीनेशन में भारी कमी की वजह से दुनिया का संभावित चाइल्ड हेल्थकेयर संकट से सामना हो सकता है.

यूनिसेफ के अनुसार 2021 में 2.5 करोड़ बच्चे डिप्थीरिया (diphtheria), टिटनस(tetanus) और पर्टुसिस (pertussis) के लिए DTP शॉट्स की डोज लेने से वंचित रह गए, इसे ‘एक पीढ़ी में बचपन के वैक्सीनेशन में सबसे बड़ा उलटा कदम’ कहा गया.

“मैं साफ कर देना चाहता हूं कि ये इमरजेंसी है… यह एक चाइल्ड हेल्थ संकट है.”
यूनिसेफ के सीनियर इम्यूनाइजेशन स्पेशलिस्ट निकलास डेनियलसन को जैसा रॉयटर्स ने उद्धृत किया.

खसरा और ‘खत्म कर दी गई’ बीमारियों का दोबारा उभार

वैक्सीन की छूट गई डोज के क्या नतीजे होंगे?

बच्चों को दी जाने वाली वैक्सीन में कमी से खसरा (measles), पोलियो (polio) और एचपीवी (HPV) जैसी खतरनाक लेकिन रोकी जा सकने वाली बीमारियों की चपेट में आ सकने वाले लोगों की संख्या बढ़ सकती है.

उदाहरण के लिए, खसरा (Measles) के दोबारा लौट आने का मामला लें.

खसरा, जो एक बेहद संक्रामक वायरल इन्फेक्शन है, 1963 में इसकी वैक्सीन आने से पहले हर तरफ फैला था.

दशकों के जोरदार वैक्सीन अभियान के बाद साल 2000 में संयुक्त राज्य अमेरिका से इस बीमारी को खत्म घोषित कर दिया गया.

हालांकि, कई वजहों से जिसमें गलत सूचना, वैक्सीन को लेकर हिचक तक शामिल है, अमेरिकी राज्यों के अलग-अलग हिस्सों में बच्चों में खसरा बढ़ने लगा.

सिर्फ जनवरी और अगस्त 2019 के बीच सेंटर फॉर डिजीज एंड प्रिवेंशन सेंटर(CDC) ने खसरे के 1215 मामलों की पुष्टि की- साल 2000 के बाद सालाना सबसे बड़ी संख्या.

सिर्फ अमेरिका ही नहीं, दुनिया भर में पूरे जोर के साथ खसरा वापस लौट आया है.

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WHO के अनुसार नवंबर 2019 तक दुनिया भर में 2006 के बाद एक समय में खसरे के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए. यह 2018 के मुकाबले तीन गुना ज्यादा है.

खसरे की वापसी की सबसे बड़ी वजह वैक्सीनेशन डोज नहीं दिया जाना है.

एपिडेमियोलॉजिस्ट पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहारिया इन हालात पर फिट से बात करते हुए बताते हैं, “कुछ देशों में खसरे में बढ़ोत्तरी के आंकड़े उन देशों में कम कवरेज के साथ-साथ बढ़ते हैं, और हम जानते हैं कि अगर वैक्सीनेशन कवरेज लंबे समय के लिए घटता है, तो चपेट में आ सकने वाली आबादी– जिन लोगों का वैक्सीनेशन नहीं हुआ था, उनका हिस्सा बड़ा हो जाता है, और फिर मरीजों की गिनती तेजी से बढ़ती है. बुनियादी रूप से हम यही देख रहे हैं.”

“एक सिद्धांत है कि अगर चपेट में आ सकने वाली आबादी आपके द्वारा वैक्सीनेशन की जा रही आबादी से ज्यादा हो जाती है, तो इसका नतीजा महामारी हो सकता है."
डॉ. चंद्रकांत लहारिया

वह कहते हैं, “यह एक बड़े दायरे वाला सिद्धांत है, निश्चित सिद्धांत नहीं है.”

WHO का कहना है कि किसी देश को खसरे से सुरक्षित रहने के लिए 95 फीसदी आबादी का इम्यून होना जरूरी है.

उदाहरण के लिए भारत ने साल 2019 में सिर्फ एक बार 95 फीसद कवरेज हासिल किया है. उसके बाद 2021 में यह संख्या गिरकर 89 फीसद हो गई है.

क्या कम कवरेज से म्यूटेशन और नए स्ट्रेन हो सकते हैं, जैसा कि कोविड के मामले में देखा गया?

डॉ. लहारिया का कहना है, यह इस पर निर्भर करेगा कि वायरस कौन सा है.

“खसरा वायरस काफी स्थिर वायरस है और बदलता नहीं है. खसरे की वैक्सीन की कम कवरेज से चपेट में आ सकने वाले लोगों की गिनती बढ़ जाती है.”
डॉ. चंद्रकांत लहारिया

कुल मिलाकर हालात खराब हैं. दुनिया में बच्चों के वैक्सीनेशन की दर 30 सालों की तुलना में पिछले साल कम रही है, मगर आइए देखें कि भारत में कैसा चल रहा है.

भारत में हालात: आंकड़े क्या कहते हैं

DTP3 (डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टिटनस कॉम्बिनेशन वैक्सीन की तीसरी खुराक) जिसे यूनिसेफ किसी देश के वैक्सीनेशन के लिए एक मार्कर के तौर पर इस्तेमाल करता है, 2019 में 91% रहने के बाद तेजी से गिरकर 2021 में 85 % पर आ गया.

2021 में केवल 85% बच्चों को पोलियो वैक्सीन की तीसरी डोज मिली, जबकि 2019 में 91% बच्चों को पोलियो की वैक्सीन की तीसरी डोज मिली थी.

MCV1– खसरे की वैक्सीन– लगाने में भी तेज गिरावट देखी गई, साल 2019 में 95% से गिरकर 2021 में 89% पर आ गई.

‘भारत वैक्सीनेशन में बेहतर कवरेज हासिल कर सकता है’

फिट से बात करते हुए एपिडेमियोलॉजिस्ट और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहारिया कहते हैं कि भारत की घटती वैक्सीनेशन दर पूरी तरह चौंकाने वाली नहीं है.

“अगर हम इस जानकारी को बच्चों के वैक्सीनेशन के साथ जोड़कर देखते हैं तो भारत कभी भी बच्चों के वैक्सीनेशन का (कुल मिलाकर) 80% तक नहीं पहुंचा है, जबकि हमारे पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका ने लगातार फुल वैक्सीनेशन का तय मानक 95% का लक्ष्य हासिल किया है.”
डॉ चंद्रकांत लहारिया, एपिडेमियोलॉजिस्ट, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट

हालांकि डॉ. लहारिया का मानना है कि भारत में इन आंकड़ों को बढ़ाने की क्षमता है. प्रेरणा लेने के लिए राष्ट्रीय कोविड-19 वैक्सीनेशन अभियान की कामयाबी को देखें.

वह कहते हैं, “कोविड-19 याद दिलाता है कि अगर सरकार चाहे तो बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन कवरेज हासिल किया जा सकता है.”

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी के इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. सत्यजीत रथ फिट से कहते हैं, “लंबे समय के लिए बनाई नीति सरकारी हेल्थकेयर सिस्टम के दायरे को बढ़ाने और मानव संसाधन, तकनीकी संसाधनों (और फंडिंग!) के मामले में इसे मजबूत करने के लिए होनी चाहिए.”

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