प्रेगनेंसी जीवन का वो समय है, जब ढेर सारी खुशियों के साथ-साथ मन घबराहट और चिंता से भी भरा रहता है. एक तरफ तो इतनी एक्साइटमेंट होती है कि खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता वहीं अगले ही पल बहुत ही गहरी सोच अपनी ओर खींच लेती है कि सब ठीक तो है न?
ऐसे में मन से घबराहट भगा कर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और दिए गए सारे जरुरी टेस्ट कराने चाहिए. मेडिकल रिसर्च की बदौलत अब हम गर्भ में पल रहे बच्चे की डेवलपमेंट और उसकी सेहत को ट्रैक कर सकते हैं.
अगर आप प्रेगनेंट हैं, तो पहले तीन महीनों में आपको कौन-कौन से टेस्ट करवाने चाहिए उसकी जानकारी यहां से लें.
ये मां और बच्चे दोनों की सेहत के लिए काफी जरूरी है. साथ ही साथ प्रेगनेंसी में किए जाने वाले अल्ट्रासाउंड चेक्स हमेशा बताते हैं कि बच्चे का विकास कैसा हो रहा है, उसकी स्थिति क्या है और ये प्रेगनेंसी के हर ट्राइमेस्टर में होते हैं.
आइए जानते हैं प्रेगनेंसी के शुरुआती दिनों में कराए जाने वाले बेहद महत्वपूर्ण जांच जो मां और होने वाले बच्चे की सेहत पर रोशनी डालते हैं.
प्रेगनेंसी के दौरान प्रत्येक तीन महीने में कुछ जरूरी और नियमित टेस्ट किए जाते हैं, जिन्हें प्रीनेटल टेस्ट (pre natal test) यानी प्रसव पूर्व जांच कहते हैं. इसके तहत कई तरह के टेस्ट होते हैं, जो ज्यादातर पहली और दूसरी तिमाही में किए जाते हैं.
ये सभी टेस्ट मुख्य रूप से भ्रूण का विकास और उसके स्वास्थ्य के साथ-साथ मां का स्वास्थ्य चेक करने के लिए किए जाते हैं. इनके जरिए किसी भी तरह के जोखिम का अंदाजा लगाया जा सकता है.
जब महिला गर्भावस्था के डेढ़- दो महीने में होती है, तब पहला अल्ट्रासाउंड कराना होता है. इससे भ्रूण की संख्या के साथ-साथ भ्रूण में दिल की धड़कन का पता चलता है.
प्रेगनेंसी के दौरान कौन-कौन से टेस्ट हैं जरुरी?
“सबसे पहला टेस्ट जो किसी भी महिला को पीरियड्स मिस होने पर घर पर करना चाहिए वो है यूरिन प्रेगनेंसी टेस्ट. फिर चाहे पीरियड्स 1 या 2 दिन ही मिस क्यों न हुआ हो. रिजल्ट पॉजिटिव आने पर जब महिला अपनी गायनेकोलोजिस्ट से मिलती है, तो वो सबसे पहले बीटा एचसीजी (HCG) टेस्ट कराने की सलाह देती हैं. यह टेस्ट प्रेगनेंसी को रिकन्फर्म (reconfirm) करने के लिए किया जाता है.”डॉ नुपुर गुप्ता, निदेशक, प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट और फाउंडर, वेल वुमन क्लिनिक, गुड़गांव
ब्लड ग्रुप- हर व्यक्ति को उसके ब्लड ग्रुप का पता होना बहुत ही जरूरी है. प्रेगनेंसी में बच्चे के पैदा होने के दौरान किसी भी आपातकालीन स्थिति में अगर मां को खून की जरूरत हुई, तो ब्लड ग्रुप की जानकारी पहले से तैयार रहने में मदद करेगी.
थैलेसीमिया - थैलीसीमिया का टेस्ट भी प्रेग्नेंसी के पहले तीन महीनों में किया जाना चाहिए. यह एक प्रकार का खून की कोशिकाओं से संबंधित विकार है, जिसकी वजह से शरीर में खून की कमी हो जाती है और यह शिशु तक भी पहुंच सकता है.
ब्लड शुगर - ब्लड टेस्ट की मदद से खून में शुगर की मात्रा यानि ब्लड शुगर लेवल भी चेक किया जाता है. इससे जेस्टेशनल डायबिटीज का भी पता चलता है.
थायरॉयड - मां को अगर हाइपोथायराइड या हाइपरथायराइड है, तो प्रेग्नेंसी के दौरान मां को मॉनिटर किया जाता है ताकि बच्चे के विकास पर इसका कोई बुरा असर न पड़े.
हेपटाइटिस बी/सी - मां से बच्चे को हेपेटाइटिस बी होने से बच्चे के लिवर को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है. इस स्थिति में बच्चे को हेपेटाइटिस बी से बचाने के लिए डॉक्टर प्रेगनेंट महिला को एंटीबॉडीज का इंजेक्शन लगाते हैं.
एचआईवी - गर्भवती महिलाओं को एचआईवी (HIV) और एड्स (AIDS) का टेस्ट भी जरूर करवाना चाहिए. अगर मां को एचआईवी या एड्स है, तो ट्रीटमेंट की मदद से बच्चे तक इस बीमारी को पहुंचने से रोका जा सकता है.
रूबेला एंटी बॉडी - प्रेगनेंट महिला को रूबेला टेस्ट भी जरूर करवा लेना चाहिए. यदि गर्भवती महिला को रूबेला हो जाए, तो इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के दिल, आंखों और सुनने की क्षमता पर असर पड़ सकता है.
फीटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ प्रियंका अरोरा ने फिट हिंदी को बताया कि प्रेगनेंसी का आभास होते ही महिला को डॉक्टर से मिलना चाहिए और पहला अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए. प्रेगनेंसी का पता चलते ही अगर महिला का अल्ट्रसाउंड नहीं किया जाए तो फैलोपियन ट्यूब में शुरू हुए प्रेगनेंसी की स्थिति का पता ही नहीं चल सकेगा. बाद में इसकी वजह से कई तरह की जटिलताएं सामने आती हैं. इसमें महिला की जान को खतरा भी रहता है और फैलोपियन ट्यूब में पल रहे भ्रूण का ग्रोथ नहीं होता है, जिस कारण प्रेगनेंसी नहीं रहती.”
“प्रेगनेंसी का पता चलते ही महिला का अल्ट्रासाउंड किया जाता है. इसमें यह देखा जाता है कि प्रेगनेंसी यूटरस के अंदर है या बाहर. बाहर यानी फैलोपियन ट्यूब में प्रेगनेंसी होना महिला के लिए बेहद खतरनाक है. इस लिए यह पता लगना बहुत महत्वपूर्ण है. इसमें ही बच्चे की दिल की धड़कन का भी पता लगाया जाता है. अगर तब तक नहीं आयी होती है, तो 2 हफ्ते बाद ये पता लगाने के लिए एक और अल्ट्रासाउंड किया जाता है.”डॉ प्रियंका अरोरा, सीनियर कंसल्टेंट, फीटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट, क्लाउडनाइन हॉस्पिटल, चंडीगढ़
जेनेटिक बीमारियों से जुड़े टेस्ट हैं जरुरी
पिछले दिनों थैलेसीमिया से पीड़ित एक बच्ची के पिता ने फिट हिंदी को बताया कि उन्हें बेटी के 5 साल की होने से पहले तक मालूम नहीं था कि उनकी बेटी थैलेसीमिया मेजर की मरीज है. आज हालात ये हैं कि उन्हें उनकी बेटी को हर 21 दिनों में ब्लड चढ़वाने के लिए हॉस्पिटल ले जाना पड़ता है और ये अब जीवन भर का रूटीन है.
लोगों को जेनेटिक या दूसरी किसी भी बीमारी के बारे में ज्ञान कम होता है. यहां डॉक्टर खास कर गायनकॉलिजस्ट की जिम्मेदारी बनती है कि वो प्रेगनेंसी की शुरुआत में ही जेनेटिक बीमारियों से जुड़े टेस्ट कराने की सलाह होने वाले माता-पिता को दें या जब कोई फैमिली प्लानिंग की सलाह के लिए गायनकॉलिजस्ट से मिले तो उनका जेनेटिक टेस्ट करवाएं.
डॉ नुपूर गुप्ता इस बात को मानती हैं और कहती हैं, “यह एक महत्वपूर्ण टेस्ट जो हम करते हैं, थैलेसीमिया का. यह एक जेनेटिक कंडीशन है, जिसमें माता-पिता अगर थैलेसीमिया से पीड़ित है, तो बच्चे में भी थैलेसीमिया होने की आशंका रहती है.”
“शादी से पहले या माता-पिता बनने से पहले अगर टेस्ट के जरिए थैलेसीमिया माइनर का पता कर लिया जाए तो इस डिसॉर्डर (disorder) को हम आगे बढ़ने से रोक सकते हैं और जो थैलेसीमिया मेजर की समस्या से जूझ रहे हैं उन्हें बच्चा प्लान करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरुर ले लेनी चाहिए".डॉ नितिन सूद, डायरेक्टर, हेमटो ऑन्कोलॉजी और बोने मैरो ट्रैन्स्प्लैंट, मेदांता हॉस्पिटल, गुरुग्राम
प्रेगनेंसी के दौरान क्या सावधानियां बरतें?
हमारे विशेषज्ञों के अनुसार, प्रेगनेंसी के दौरान 3 अल्ट्रासाउंड और स्कैन कराना अनिवार्य है. लोअर एब्डोमेन में दर्द होना, झिल्ली का टूटना परेशानी खड़ी कर सकता है. तेज सिरदर्द, आंखों से धुंधला दिखने को अनदेखा न करें. अगर वजाइना से दुर्गंध के साथ रिसाव हो रहा हो या बहुत अधिक खुजली हो रही हो, तो डॉक्टर से मिलना चाहिए. ये इन्फेक्शन की निशानी हो सकती है.
डॉक्टर द्वारा दी गयी दवाइयों को समय पर खाएं.
रेगुलर चेकअप कराते रहें
डॉक्टर की सलाह पर बताए गए व्यायाम करें
ब्लड शुगर, थायरॉयड, हाइपरटेन्शन, थैलेसीमिया की जांच करना बेहद जरुरी है
कोल्ड ड्रिंक, शराब और सिगरेट से दूरी बनाएं
पूरी तरह से पका हुआ पौष्टिक आहार लें
फल और पानी खाते-पीते रहें
कॉफी और चाय का अधिक सेवन न करें
बहुत ज्यादा थकान न होने दें
“प्रेगनेंसी के दौरान ब्लीडिंग नहीं होनी चाहिए लेकिन पहले 3 महीने के दौरान कभी-कभी ऐसा हो सकता है. उसके बाद के महीनों में यह नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे गर्भ में पल रहे बच्चे को नुकसान हो सकता है. ऐसा होने पर डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें.”डॉ नुपूर गुप्ता
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