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दिल्ली में 20-21 नवंबर को आर्टिफिशियल बारिश कराने की योजना, यह कितना प्रभावी है?

क्या आर्टिफिशियल बारिश दिल्ली के प्रदूषण संकट का सही जवाब हो सकता है, जानिए विशेषज्ञों की राय.

गरिमा साधवानी
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p>आर्टिफिशियल बारिश या क्लाउड सीडिंग, एक वेदर मॉडिफिकेशन तकनीक है.</p></div>
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आर्टिफिशियल बारिश या क्लाउड सीडिंग, एक वेदर मॉडिफिकेशन तकनीक है.

(फोटो:फिट हिंदी)

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शुक्रवार, 10 नवंबर को, दिल्ली NCR में बारिश होने के बाद, क्षेत्र की एयर क्वालिटी में काफी सुधार हुआ. बारिश तब हुई जब राज्य कुछ ऐसा ही करने की योजना बना रहा था.

20-21 नवंबर को, दिल्ली सरकार क्लाउड-सीडिंग नामक प्रक्रिया को लागू करके आर्टिफिशियल बारिश (अगर आसमान में बादल हों) कराने के लिए पूरी तरह तैयार है.

पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बुधवार को IIT कानपुर की एक टीम से मुलाकात की जो 2018 से इस परियोजना को विकसित कर रही है. टीम ने जुलाई 2023 में इसके लिए ट्रायल भी किया था और सरकार से इसके लिए सभी अनुमतियां प्राप्त की थी.

अब दिल्ली सरकार मंजूरी के लिए IIT कानपुर के शोधकर्ताओं के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट में पेश करने का इंतजार कर रहा है.

लेकिन आर्टिफिशियल बारिश क्या है? क्या यह प्रभावी है? क्या इसकी जरूरत भी है? यहां फिट हिंदी समझाता है.

आर्टिफिशियल बारिश: यह कैसे काम करती है?

IIT बॉम्बे में अर्थ सिस्टम वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुड्डे कहते हैं, "सीधे शब्दों में कहें तो, हम बारिश वाले बादलों पर सिल्वर आयोडाइड जैसे केमिकल डालते हैं ताकि बारिश हो."

मुर्तुगुड्डे की बातों पर विस्तार से बताते हुए, अंजल प्रकाश, क्लिनिकल एसोसिएट प्रोफेसर (रिसर्च) और रिसर्च डायरेक्टर भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, फिट हिंदी को बताते हैं,

“आर्टिफिशियल बारिश या क्लाउड सीडिंग, एक वेदर मॉडिफिकेशन तकनीक है, जहां वर्षा को प्रोत्साहित करने के लिए सिल्वर आयोडाइड या पोटेशियम आयोडाइड जैसे पदार्थों को बादलों में फैलाया जाता है. ये कण क्लाउड कंडेंसेशन या आइस नूक्लीअस के रूप में काम करते हैं, जिससे बारिश या बर्फ के निर्माण को बढ़ावा मिलता है.”

क्लाउड सीडिंग वास्तव में काम करती है या नहीं, यह बहस का विषय बना हुआ है. मुर्तुगुड्डे का कहना है कि कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है यह दिखाने के लिए कि आर्टिफिशियल बारिश से वायु प्रदूषण कम करने में मदद मिलती है.

दूसरी ओर, प्रकाश का कहना है कि अध्ययनों से पता चला है कि क्लाउड सीडिंग काम कर सकती है लेकिन केवल कुछ खास परिस्थितियों में. इसमें शामिल है:

  • आकाश में बादलों का प्रकार

  • वातावरणीय स्थितियां (environmental conditions)

  • वाटर वेपर की उपलब्धता

"क्रिटिक्स पर्यावरणीय और नैतिक चिंताओं को उठाते हैं और आर्टिफिशियल बारिश तकनीकों के प्रभावों को पूरी तरह से समझने और उनका आकलन करने के लिए और अधिक रिसर्च की आवश्यकता पर बल देते हैं."
अंजल प्रकाश
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क्या आर्टिफिशियल वर्षा प्रदूषण के कई स्रोतों को रोकने का एक प्रभावी तरीका है?

वास्तव में नहीं, जबकि आर्टिफिशियल बारिश धूल और निर्माण मलबे जैसे प्रदूषण स्रोतों को कम कर सकती है, लेकिन यह सभी प्रकार के प्रदूषकों को रोकने के लिए यह एक कॉम्प्रिहेन्सिव सॉल्यूशन नहीं है.

प्रकाश फिट हिंदी को बताते हैं,

“पराली जलाने और औद्योगिक कचरे से कई प्रकार के प्रदूषक निकलते हैं और बारिश से इनमें से कई प्रभावित नहीं होते हैं. इनके समाधान के लिए रेगुलेटरी मेजर्स, तकनीकी प्रगति और टिकाऊ प्रथाओं सहित मल्टीफेसटेड दृष्टिकोण की आवश्यकता है.

क्लाउड सीडिंग से दूसरी चिंताएं भी पैदा होती हैं, खास कर किसानों के लिए

सबसे पहले, मुर्तुगुड्डे बताते हैं कि चूंकि बारिश करने के लिए रसायनों का उपयोग किया जा रहा है, इससे संभावित रूप से एसिड रेन हो सकती है.

दूसरी ओर, प्रकाश मिट्टी और पानी के प्रदूषण, जलभराव और अनप्रिडिक्टेबल मौसम पैटर्नों की ओर इशारा करते हैं.

लेकिन, मुर्तुगुड्डे कहते हैं, ये केवल छोटी चिंताएं हैं क्योंकि आर्टिफिशियल बारिश एक नियंत्रित वातावरण में कराई जाएगी.

अधिकारियों को दूसरे समाधानों पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए

विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरी चीजें भी हैं, जिन पर अधिकारियों को ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

दिल्ली सरकार ने ऑड-ईवन वाहन योजना पर रोक लगा दिया है, जब तक सुप्रीम कोर्ट इसकी प्रभावशीलता का रिव्यू नहीं कर लेता.

मुर्तुगुड्डे का कहना है कि जरूरत है पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सुधार करने की.

“प्रदूषण के स्रोत पर अधिक ध्यान दें. इसका बड़ा हिस्सा वाहनों से आता है. खराब AQI स्तर वाले दिनों में मेट्रो को निःशुल्क बनाएं. कारपूलिंग को प्रोत्साहित करें. न केवल विशेष दिनों पर, बल्कि ओवरऑल लेवल पर सड़कों पर वाहनों की संख्या कम करने का प्रयास करें.”
रघु मुर्तुगुड्डे

प्रकाश सहमत हैं. वह ऐसी नीतियां लाने का सुझाव देते हैं, जो स्रोत पर ही एमिशन को कम कर दें. इतना ही नहीं, वह क्लीन टेक्नॉलजी को अपनाने और कड़ी पर्यावरण नीतियों को लागू करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं. उनका कहना है कि इन पर ध्यान केंद्रित करने से काफी मदद मिल सकती है:

  • रिन्यूएबल ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना

  • उद्योगों और वाहनों के लिए सख्त एमिशन कंट्रोल

  • जंगल दोबारा बसाना

  • पब्लिक अवेर्नेस अभियान

  • सस्टेनेबल अर्बन प्लैनिंग में निवेश

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की कार्यकारी निदेशक, रिसर्च एंड एडवोकेसी, अनुमिता रॉय चौधरी ने फिट हिंदी को अक्टूबर में बताया था कि इन छोटे कदमों को लागू करने से वायु प्रदूषण को रोकने में भी मदद मिल सकती है:

  • निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के कड़े उपाय

  • खुले में कूड़ा जलाने पर रोक

  • सार्वजनिक परिवहन में सुधार

  • औद्योगिक कचरे का कॉन्शस ढंग से डिस्पोजल करना

“पर्यावरणीय मुद्दों की इंटरकनेक्टेड नेचर को समझना और होलिस्टिक पर्स्पेक्टिव अपनाना महत्वपूर्ण है. सस्टेनेबल प्रैक्टिस, संरक्षण प्रयास और रिन्यूएबल ऊर्जा अपनाने से क्लाइमेट चेंज को कम करने और प्रदूषण को कम करने में मदद मिल सकती है.”
अंजल प्रकाश

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