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World Oral Health Day| बच्चों के मुंह की बदबू दूर करने के ये हैं सरल उपाय

मुँह की बदबू की समस्या को अनदेखा करना पड़ सकता है भारी.

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20 मार्च यानी वर्ल्ड ओरल हेल्थ डे (World Oral Health Day), को ध्यान में रखते हुए फिट हिंदी बच्चों के ओरल हेल्थ पर लिखा गया यह लेख दुबारा प्रकाशित कर रही है.

मुँह से बदबू आने की समस्या बड़ों से ज्यादा बच्चों में देखी जाती है. इस समस्या को डॉक्टरों की भाषा में हेलिटोसिस (Halitosis) कहते हैं. सुबह उठने के बाद मुँह से बदबू आना आम बात है क्योंकि ऐसा रात भर मुँह में रहने वाले बैक्टीरिया के कारण हो सकता है और यह ब्रश करने के बाद ठीक हो जाता है. लेकिन कई बार देखा जाता है कि ब्रश करने के बाद भी मुँह से बदबू आते रहती है.

बड़ों की तुलना में बच्चों में यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है. अगर आपके बच्चे के साथ भी ऐसा है, तो आपको समझ जाना चाहिए कि बात सामान्य नहीं है.

इस विषय पर डॉ जयना गांधी, पीडीऐट्रिक डेंटिस्ट ने फिट हिंदी को हेलिटोसिस (Halitosis) के कारण, इलाज और बचाव के बारे में विस्तार से बताया.

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मुँह में बदबू के कारण

“मुँह की दुर्गंध या सांस में बदबू का कारण ओरल हाइजीन का ध्यान न रखना, ज्यादा दुर्गंध वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना या फिर ड्राई माउथ हो सकते हैं” ये कहते हुए डॉ गांधी ने हेलिटोसिस (Halitosis) के कारणों को एक-एक करके बताया.

  • मुँह में गंदगी : बच्चे अक्सर जल्दी-जल्दी ब्रश करते हैं, जिस कारण मुँह की सफाई ठीक से नहीं हो पाती है. इससे उनके दांतों में लगी प्लाक अच्छे से निकल नहीं पाती है. दांतो की पूरी तरह से सफाई न करने के कारण दांतों, जीभ और मसूड़ों पर बचा हुआ खाना चिपका रह जाता है और साथ ही बैक्टीरिया भी पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाते हैं. जिसकी वजह से मुँह में बैक्टीरिया गंदी बदबू उत्पन्न करने लगते हैं.

  • मुँह का सूखापन : अगर आपके बच्चे का मुँह ज्यादा समय ड्राई रहता है, तो इस सूखेपन के कारण भी मुँह से बदबू आ सकती है. पानी कम पीने से बच्चे के मुँह में लार (saliva) कम बनती है, जिस वजह से मुँह सूखा रहता है. हमारे दांतों के लिए, सलाइवा हमारे मुँह का नैचरल डिफ़ेन्स मेकनिजम है. सलाइवा में हमारे ओरल वातावरण को क्लीन करने की नैचरल क्षमता होती है. अगर सलाइवा कम होगा, तो बैक्टीरिया ज़्यादा हो जाएंगे. यानी अगर मुँह में सलाइवा की पर्याप्त मात्रा नहीं बन पाती है, तो इसके कारण मुँह का सूखापन और अधिक बढ़ जाता है. जिस कारण मुँह से बदबू आना आम हो जाता है. मुँह से साँस लेने वाले बच्चों में बहुत ज़्यादा प्लाक डिपॉज़िट्स रहते हैं.

  • टॉन्सिल का बढ़ा होना या एडेनोइड का बड़ा होना- ऐसे मामलों में बच्चे मुँह से साँस लेते हैं, जिसकी वजह से हवा फिल्टर नहीं हो पाती है. नाक से साँस लेने पर हवा फिल्टर हो लंग्स तक पहुँचती है, पर मुँह से ऐसा नहीं होता. जिसकी वजह से मुँह में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं.

  • तेज गंध वाले खाद्य पदार्थ: प्याज, लहसुन जैसी तेज गंध वाले खाद्य पदार्थ खाने के बाद भी मुँह से बदबू आती है.

  • दवाईयां: कुछ दवाईयां ऐसी होती हैं, जिनको खाने के बाद मुँह से बदबू आती है.

  • जीभ पर बैक्टीरिया: जीभ पर बैक्टीरिया का जमावड़ा भी मुँह से आने वाली बदबू का कारण हो सकता है.

मरीज डेंटिस्ट के पास तब जाते हैं, जब प्रॉब्लम बड़ी हो चुकी होती है. अगर हर 6 महीने में डेंटल निवारक (preventive) चेक उप करते रहेंगे, तो समस्या न तो बड़ी होगी अगर न तो बच्चे में ओरल समस्या होगी.
डॉ जयना गांधी, पीडीऐट्रिक डेंटिसट, नंदा डेंटल क्लिनिक और फूटेला डेंटल सेंटर, गुरुग्राम

ये हैं डॉक्टर के बताए इलाज के कुछ तरीके 

इसका इलाज पूरी तरह से निर्भर करता है, मुँह में बदबू के कारण पर. इलाज में सबसे महत्वपूर्ण बात है, बच्चों को सही ढंग से ओरल हाइजीन सिखाने की कोशिश करना.

डॉक्टर के बताए इलाज के कुछ तरीके :

  • ब्रशिंग टेक्नीक्स - अगर ठीक से ब्रशिंग नहीं हो रही हो, तो ब्रशिंग टेक्नीक्स को ठीक से समझिए या डेंटिस्ट से जानिए. बच्चा रोजाना दिन में दो बार ब्रश अवश्य करे और वह जब भी खाना खाए तो अपने मुँह को अच्छे से कुल्ला करके साफ करे.

  • ड्राई माउथ: अगर आपके बच्चे को ड्राई माउथ की समस्या है, तो उन्हें हाइड्रेटेड रखें.पानी खूब पिलाते रहें. आप उन्हें आइस क्यूब और शुगर मुक्त गम भी दे सकते हैं.

  • प्लाक- अगर मुँह में प्लाक जम चुके हैं, तो डॉक्टर के पास जा कर प्लाक की सफाई कराएं.

  • जीभ पर बैक्टीरिया: बच्चे को ब्रश करने के साथ साथ जीभ को साफ करना भी अच्छे से सिखाएं. बच्चे की जीभ को प्लास्टिक के टंग क्लीनर से साफ कर सकते हैं. इससे बच्चे की जीभ पर जमी सफेद परत और बैक्टीरिया दोनों उतर जाते हैं.

  • मुँह से साँस लेना: आपको बच्चे के मुँह से सांस लेने के कारण के बारे में पता करना चाहिए. अगर उसे कोई समस्या हो रही है, तो सबसे पहले वह समस्या हल करनी चाहिए.

डॉक्टर के पास सिर्फ तब नहीं जाए जब आपको प्रॉब्लम हो. जैसे हम बॉडी चेक उप के लिए निवारक (preventive) चेक उप कराते हैं, वैसे ही दांतों के लिए भी हमें हर 6 महीने पर चेक उप कराना चाहिए.
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समस्या को अनदेखा न करें 

"ये समस्या खतरनाक हो सकती है. शुरुआत में अगर हम सिर्फ बदबू समझ कर इसे अनदेखा कर देंगे, तो बात बिगड़ सकती है, जैसे कि कैविटी होने पर अगर हम डेंटिस्ट के पास जा कर इलाज न कराएं, तो वो बढ़ती जाएगी" ये कहना है डॉ गांधी का.

फिट हिंदी से डॉ गांधी ने ये भी कहा कि हमारे बीच एक मिथ है कि बच्चे के दूध के दांत हैं, गिरने ही हैं, इन्हें बचाने की क्या ज़रूरत है, पर ये गलत है. दूध के दांत के बहुत फायदे हैं. ये ठीक रहेंगे तभी हमारे पक्के दांत भी ठीक रहेंगे. अगर आप समय पर पीडीऐट्रिक डेंटिस्ट के पास जाएंगे, तो वो समस्या का समय पर इलाज कर पाएंगे.

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