मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Fit Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Fertility Rate: घटती प्रजनन दर से भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है?

Fertility Rate: घटती प्रजनन दर से भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है?

Indian Fertility Rate Falling:कामकाजी उम्र वाली आबादी में तेजी से गिरावट हो रही है.

अश्लेषा ठाकुर
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p>गिरती फर्टिलिटी दर से पैदा होने वाली चुनौतियों से कैसे बचें?</p></div>
i

गिरती फर्टिलिटी दर से पैदा होने वाली चुनौतियों से कैसे बचें?

(फोटो:विभूषित सिंह/फिट हिंदी)

advertisement

Falling India's Fertility Rate: भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है पर, हाल ही में आए एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों से भारत की फर्टिलिटी रेट (Fertility Rate) में गिरावट आ रही है और आने वाले दशकों में भी ये गिरावट जारी रहेगी.

भारत की प्रजनन संख्या 1950 में लगभग 6.2 थी, जो गिरकर 2021 में 2 से कम हो गई है.

द लैंसेट में प्रकाशित इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई), वाशिंगटन विश्वविद्यालय की एक स्टडी में प्रोजेक्शन किया गया है कि भारत की जनसंख्या 2048 तक 1.6 बिलियन तक पहुंच सकती है.

आने वाले दशकों में क्यों घटेगी भारत की जनसंख्या? प्रजनन दर घटने पर भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है? कैसे बच्चों की सही संख्या देश में जनसंख्या को संतुलित करती है? गिरती फर्टिलिटी दर से पैदा होने वाली चुनौतियों से कैसे बचें? फिट हिंदी इन सवालों के जवाब जानें एक्सपर्ट्स से.

आने वाले दशकों में क्यों घटेगी भारत की जनसंख्या?  

1950 से ही सभी देशों और प्रांतों में फर्टिलिटी की दर में लगातार कमी आई है. 2021 से 94 देशों और प्रांतों में, टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) 2.1 से ऊपर बनी हुई है, जिससे एक स्टडी ट्रेंड दिखता है. ऐसे बहुत कम देश हैं, जहां फर्टिलिटी में मामूली वृद्धि दर्ज हुई हो, लेकिन उनमें से किसी ने भी रिक्वायर्ड लेवल हासिल नहीं किया है.

लैंसेट की स्टडी ने आगे क्या स्थिति होगी, इसका पूर्वानुमान करते हुए बताया कि 2050 तक, हर पांच में से एक भारतीय वरिष्ठ नागरिक होगा, जबकि उनकी देखभाल करने के लिए कम युवा होंगे.

भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) यानी प्रति महिला पैदा होने वाले बच्चों की औसत संख्या तेजी से 1.29 तक गिर रही है, जो 2.1 की रिप्लेसमेंट रेट से बहुत कम है.

इसका मतलब है,

कामकाजी उम्र वाली आबादी में तेजी से गिरावट हो रही है.

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पूनम मुत्तरेजा फिट हिंदी से बातचीत में कहा कि भारत ने जनसंख्या वृद्धि दर को धीमा करने और कुल प्रजनन दर या टीएफआर को कम करने में अच्छा काम किया है.

"हम रिप्लेसमेंट फर्टिलिटी रेट पर पहुंच गए हैं यानी जब एक पीढ़ी अगली पीढ़ी का स्थान ले लेती है. हमारी जनसंख्या अभी भी कुछ समय तक बढ़ेगी क्योंकि जनसंख्या में युवाओं का अनुपात अधिक है."
पूनम मुत्तरेजा, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर- पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया

पूनम मुत्तरेजा बताती हैं कि कुल प्रजनन दर (TFR) में गिरावट कई तरह के कारकों से प्रभावित एक ग्लोबल ट्रेंड है.

  • जैसे-जैसे देश आर्थिक रूप से विकसित होते हैं, बच्चों के पालन-पोषण की लागत बढ़ती है, जिससे परिवारों में कम बच्चे पैदा होते हैं.

  • महिलाओं की बढ़ती शिक्षा और सशक्तिकरण (empowerment) के कारण कैरियर की आकांक्षाएं बढ़ती हैं, जिससे विवाह और बच्चे के जन्म में देरी होती है, जो इस गिरावट में और योगदान देती है.

  • शहरीकरण, परिवार नियोजन, गर्भनिरोधक तक बेहतर पहुंच और छोटे परिवार के आकार की ओर सामाजिक मानदंडों और मूल्यों में बदलाव भी शामिल हैं.

बिरला फर्टिलिटी एंड आई. वी. एफ के चीफ बिजनेस ऑफिसर अभिषेक अग्रवाल घटती दरों को भारत के लिए गंभीर स्थिति बताते हैं. उन्होंने बताया कि मौजूदा अनुमान प्रो-नैटल नीतियों को मजबूती से लागू किए जाने के बाद भी विश्व में फर्टिलिटी के लगातार कम होते जाने का संकेत दे रहे हैं.

"2050 तक टीएफआर के घटकर 1.29 रह जाने का अनुमान है. 2026 और 2027 में ही भारत की टीएफआर गिरकर 1.75 से नीचे चला जाएगा."
अभिषेक अग्रवाल, चीफ बिजनेस ऑफिसर, बिरला फर्टिलिटी एंड आई. वी. एफ़, सीके बिरला ग्रुप

अभिषेक अग्रवाल भारत में प्रजनन दर क्षमता में कमी के कारणों को शहरों और गांवों की अलग-अलग डायनामिक्स में बंटा हुआ देखते हैं.

प्रजनन दर घटने पर भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है?

पूनम मुत्तरेजा घटते प्रजनन दर का भारत जैसे देशों पर गहरा प्रभाव पड़ पड़ने की बात कहती हैं. जिसमें बुजुर्ग आबादी, श्रम बल की कमी और लैंगिक प्राथमिकताओं के कारण संभावित सामाजिक असंतुलन जैसी चुनौतियां शामिल हैं.

"हालांकि भारत के लिए ये चुनौतियां अभी भी कुछ दशक दूर हैं, हमें भविष्य के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ अभी से कार्रवाई शुरू करने की आवश्यकता है."
पूनम मुत्तरेजा, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर- पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया

अभिषेक अग्रवाल भी पूनम मुत्तरेजा की इस बात से सहमत होते हुए कहते हैं कि फर्टिलिटी की दर लगातार गिरते रहने से आबादी के आंकड़ों के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है.

"बुजुर्गों की बढ़ती आबादी और युवा कामकाजी लोगों की घटती संख्या का विपरीत असर हो सकता है."
अभिषेक अग्रवाल, चीफ बिजनेस ऑफिसर, बिरला फर्टिलिटी एंड आई. वी. एफ़, सीके बिरला ग्रुप
  • बढ़ती बुजुर्ग आबादी के कारण पैदा हुए चुनौतियों में श्रम बल की कमी शामिल है, जिससे आर्थिक उत्पादकता कम हो सकती है. आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए अप्रवास पर निर्भरता बढ़ सकती है, जिसके लिए पूरे विश्व के सहयोग से नैतिक और प्रभावी अप्रवास नीतियां बनाना जरूरी हो जाएगा.

  • बढ़ती बुजुर्ग आबादी के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों और हेल्थकेयर के इन्फ़्रास्ट्रक्चर पर दबाव बढ़ जाएगा और ऐसे रोजगार के अवसर उत्पन्न करना आवश्यक हो जाएगा, जो वृद्धों के कौशल और अनुभव का उपयोग कर सकें. ऐसे में प्राथमिक केयरगिवर्स पर दबाव बढ़ जाएगा, जिन्हें बच्चों और वृद्धों दोनों की देखभाल करनी पड़ेगी.

इसलिए, ऐसी नीतियों को लागू किया जाना आवश्यक है, जिनसे मरीजों को ठोस सहारा मिल सके ताकि वो कम फर्टिलिटी दर के प्रभावों का मुकाबला कर सकें.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कैसे बच्चों की सही संख्या देश में जनसंख्या को संतुलित करती है?

"देश में जनसंख्या को संतुलित करने के लिए बच्चों की "सही" संख्या निर्धारित करना मुश्किल है. यह प्रजनन दर, मृत्यु दर, माइग्रेशन रेट और सरकारी नीतियों सहित कई कारकों पर निर्भर करता है. हम सिर्फ एक ही समाधान नहीं सुझा सकते, क्योंकि अलग-अलग देशों की जनसांख्यिकीय संरचना और सामाजिक-आर्थिक संदर्भ अलग-अलग हैं. "
पूनम मुत्तरेजा, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर- पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया

सामान्य तौर पर, जनसांख्यिकी विशेषज्ञ अक्सर "रिप्लेसमेंट लेवल फर्टिलिटी रेट 2.1" का जिक्र करते हैं, जहां प्रत्येक महिला को आबादी में खुद को और अपने साथी को रिप्लेस करने के लिए औसतन समान संख्या में बच्चों की जरूरत होती है.

भारत पहले ही रिप्लेसमेंट लेवल फर्टिलिटी रेट हासिल कर चुका है.

पूनम मुत्तरेजा भारत के लिए स्वस्थ टीएफआर बनाए रखने और कम टीएफआर वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में नीति और कार्यक्रम उपाय सुनिश्चित करें कि सलाह देती हैं.

वे कहती हैं,

"हमारे कुछ राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं, जैसे सिक्किम, गोवा, अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख और लक्षद्वीप जिनकी प्रजनन दर 1.5 से कम है. कम टीएफआर का उनकी जनसांख्यिकी और अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है. बहुत कम प्रजनन क्षमता वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बढ़ती उम्रदराज आबादी, श्रमिकों की कमी और लिंगानुपात में संभावित गिरावट का सामना करना पड़ेगा."

गिरती फर्टिलिटी दर से पैदा होने वाली चुनौतियों से कैसे बचें?

पूनम मुत्तरेजा लैंगिक समानता को बढ़ावा देना समय की सबसे बड़ी जरूरत बताती हैं.

  • सरकार और समाज को महिलाओं के लिए मदरहुड कोस्ट में उल्लेखनीय रूप से कमी करनी होगी. हमें स्वीडन और डेनमार्क, जो किफायती बाल देखभाल प्रदान करके, स्वास्थ्य देखभाल में निवेश करके और बड़े पैमाने पर पुरुष-भागीदारी की पहल करके परिवारों का समर्थन करते हैं, इन चुनौतियों से निपट रहे हैं.

  • महिलाओं को मातृत्व के साथ करियर को संतुलित करने में सक्षम बनाने के लिए, पुरुषों के लिए घर और देखभाल के काम की अधिक जिम्मेदारी लेना महत्वपूर्ण होगा.

अभिषेक अग्रवाल ने किफायती चाइल्डकेयर सेवाओं के अलावा इन बातों पर ध्यान देने की सलाह दी.

  • हेल्थ केयर इन्फ़्रास्ट्रक्चर में निवेश

  • टैक्स प्रोत्साहन

  • चाइल्डकेयर सब्सिडी

  • ज्यादा पैरेंटल अवकाश और फिर से नौकरी पर आने के अधिकार शामिल हैं, ताकि माता-पिता पर वित्तीय बोझ कम हो सके और बच्चों का पालन-पोषण करने की उनकी क्षमता बढ़े.

वहीं फर्टिलिटी एक्सपर्ट डॉ. मनिका सिंह जागरूकता बढ़ाकर और पूरी जानकारी के साथ परिवार नियोजन, पेड लीव, चाइल्डकेयर सपोर्ट जैसी सहयोगपूर्ण मैटरनल और पैटरनल नीतियां और चाइल्डकेयर बेनेफ़िट्स जैसे वित्तीय प्रोत्साहन से देश में फर्टिलिटी की दर में सुधार लेन की बात कहती हैं.

फर्टिलिटी प्रिजर्वेशन और फर्टिलिटी विकल्पों की जागरूकता बढ़ाकर देश में गिरती फर्टिलिटी दर को रोकने में मदद मिल सकती है.

डॉ. मनिका सिंह फर्टिलिटी के इलाजों की बेहतर जानकारी, बीमा पॉलिसियों या कर्मचारी लाभों में फर्टिलिटी के इलाज को शामिल करने और बेहतर हेल्थकेयर एक्सेस से भी फर्टिलिटी की दर बढ़ाने से में मदद मिल सकने की बात पर जोर देने को कहती हैं.

"इंट्रायूटराइन इंसेमिनेशन (आई. यू. आई) और इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आई. वी. एफ) जैसे आधुनिक इलाजों को लेकर कलंक की भावना और भ्रांतियों को दूर करके इन आधुनिक इलाज की टेक्नॉलजी का लाभ लेकर भी फर्टिलिटी की दर बढ़ाई जा सकती है."
डॉ. मनिका सिंह, कंसल्टैंट, बिरला फर्टिलिटी एंड आई. वी. एफ., लखनऊ

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT