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World Population Day: परिवार नियोजन की जिम्मेदारी भी महिलाओं के कंधों पर

फैमिली प्लानिंग की जिम्मेदारी से क्यों कतराते हैं पुरुष? महिलाओं की बढ़ती भागीदारी इच्छा या मजबूरी? आइए जानें

अश्लेषा ठाकुर
फिट
Updated:
<div class="paragraphs"><p>विश्व जनसंख्या दिवस पर हम बात करते हैं परिवार नियोजन में  पुरुषों की भागीदारी में दिखती उदासीनता पर. क्या है कारण और उसे कैसे बदला जाए?&nbsp;</p></div>
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विश्व जनसंख्या दिवस पर हम बात करते हैं परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी में दिखती उदासीनता पर. क्या है कारण और उसे कैसे बदला जाए? 

(फोटो: कामरान अख्तर/फिट हिंदी)

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World Population Day 2022: पूरी दुनिया में हर साल 11 जुलाई को अलग-अलग तरह से विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है. किसी भी देश के लिए बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या परेशानी का सबब बन जाती है. देश में बेरोजगारी, भुखमरी, अशिक्षा, गरीबी जैसी समस्याएं बढ़ने लगती हैं, जो देश के विकास में रुकावट पैदा करती हैं.

ऐसे में परिवार नियोजन (Family Planning) के जरिए बेकाबू बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है. 1952 यानी कि ठीक 70 साल पहले हमारे देश में परिवार नियोजन से जुड़े कार्यक्रमों की शुरुआत की गई थी.

परिवार नियोजन की जिम्मेदारी उठाती महिलाएं

NFHS 5 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में घट रही है प्रजनन दर यानी देश की आबादी की बढ़ती रफ्तार में कमी आयी है. वहीं उसी रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि भारत में परिवार नियोजन की जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर है.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) की रिपोर्ट में कई और बातों के साथ यह बात भी सामने आयी है कि भारत में परिवार नियोजन के उपायों में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना कहीं ज्यादा है. सभी किस्मों के परिवार नियोजन उपायों में से महिला स्टेरिलाइजेशन (female sterilisations) का हिस्सा 35% से ज्यादा है. यह सभी उपायों के एक तिहाई से ज्यादा है, जबकि पुरुष स्टेरिलाइजेशन (male sterilisations) की हिस्सेदारी केवल 0.3 फीसद है.

परिवार नियोजन में वृद्धि हुई है, वर्तमान में 15 से 49 आयु वर्ग की 66.7 विवाहित महिलाओं ने गर्भ निरोधकों का चयन किया है.

कंडोम, गोलियां, आईयूडी और इंजेक्शन सहित गर्भ निरोध के आधुनिक तरीकों का विवाहित महिलाओं में उपयोग भी 47 से बढ़कर 56.5 प्रतिशत हो चुका है.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) बड़ी संख्या में भारत के घरों से एकत्र किए गए डेटा सैंपल के आधार पर, एक बड़े पैमाने पर किया जाने वाला, मल्टी-राउंड सर्वे है. यानी कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे एक 'सैम्पल सर्वे' है.

डेटा से पता चलता है कि गर्भ निरोधकों का ज्ञान अब लगभग सबको है (ग्रामीण और शहरी भारत में 99% विवाहित पुरुषों और महिलाओं को उनके बारे में पता था), वर्तमान में विवाहित आबादी का केवल 50% से थोड़ा अधिक गर्भ निरोधकों का विकल्प चुनता है.

उनका उपयोग रोजगार की स्थिति और आय के स्तर से भी निर्धारित होता है.

“अभी भी 10 में से केवल एक मर्द कंडोम का इस्तेमाल करते हैं. इस कारण अभी भी हम ज्यादातर फीमेल स्टेरलाइजेशन (female sterilisations) पर ही निर्भर करते हैं. तो हम यह कह सकते हैं कि हमारी जो फैमिली प्लानिंग प्रोग्राम है वह लगभग पूरी तरह से औरतों पर निर्भर है. हां, डेटा दिखा रहा है कि इतने सालों बाद भी और इतने इनवेस्टमेंट के बाद भी सब कुछ महिलाओं पर ही निर्भर करता है. और सर्वे से यह भी पता चलता है कि लोगों के सोचने का तरीका क्या है. अधिकांश मर्द अभी भी सोचते हैं कि कान्ट्रसेप्शन उनकी परेशानी नहीं है और इसे सुनिश्चित करना औरतों की जिम्मेदारी है. यही वो मानसिकता है, जिसको बदलने की जरूरत है.”
डॉ के अपर्णा शर्मा, डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी, AIIMS, दिल्ली

आधुनिक गर्भ निरोधकों से महिला नसबंदी की प्रथा कम होने की जगह और बढ़ गयी है. जहां तक ​​ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों का संबंध है, इसमें बहुत अधिक अंतर नहीं है.

पब्लिक हेल्थ रिसर्चर डॉ अनंत भान फिट हिंदी को बताते हैं,

“ये स्थिति कई दशकों से बनी हुई है. अगर आप हेल्थ सिस्टम में देखें तो फोकस महिलाओं के ट्यूबेक्टमी (Tubectomy) कराने, कॉपर टी लगवाने या गर्भ निरोधक गोलियां देने पर ज्यादा और पुरुषों के परिवार नियोजन उपायों कंडोम और नसबंदी (Vasectomy) पर कम. अगर आप महिला और पुरुष नसबंदी के खर्च की तुलना करेंगे तो भी एक बड़ा अंतर पाएंगे. इस वजह से हम कह सकते हैं कि एक तरह से महिलाओं के कंधों पर ही है परिवार नियोजन की जिम्मेदारी”.
डॉ अनंत भान, पब्लिक हेल्थ रिसर्चर

वहीं मुंबई में और इंस्टाग्राम पर महिला स्वास्थ्य और इन्फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याओं को दूर करती गायनकॉलिजस्ट, डॉ तनुश्री पांडेय पडगांवकर ने फिट हिंदी को बताया कि वो लगभग हर वर्ग के मरीजों का इलाज करती हैं और लगभग हर वर्ग में फैमिली प्लानिंग (family planning) महिलाओं के जिम्मे ही रहती है. वो समाज के ऐसे वर्ग की बात भी करती हैं, जो परिवार नियोजन का कोई भी तरीका नहीं अपनाता है और न ही अपने परिवार के लोगों को अपनाने देता है. ऐसे में दूसरी कई समस्याएं सामने खड़ी हो जाती है.

“देश में ऐसे परिवार भी हैं, जो परिवार नियोजन के उपाय अपनाने के लिए अपने घर की औरतों को “अनुमति” नहीं देते हैं. कुछ पति और परिवार से छिप कर परिवार नियोजन के उपाय करती हैं पर जो नहीं कर पाती वो एक के बाद एक प्रेगनेंसी की शारीरिक और मानसिक पीड़ा को अकेले झेलती हैं.”
डॉ तनुश्री पांडेय पडगांवकर, गायनकॉलिजस्ट

परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी क्यों कम है? 

समाज में पुरुषों की नसबंदी को लेकर कई गलत धारणाएं हैं. इनमें से एक है, नसबंदी के बाद उनकी ताकत में कमी आ जाएगी. दूसरी यह कि भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में नसबंदी को मर्दानगी से जोड़कर देखा जाता है.

ऐसे में समाज की ओर से तो महिलाओं पर नसबंदी का दबाव बन ही जाता है. साथ ही साथ स्वास्थ्य प्रणाली भी महिलाओं पर ये जिम्मेदारी डालने की कोशिश करती है. फिर स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए महिलाओं को समझना भी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा आसान होता है. नतीजा नसबंदी शिविरों में ज्यादातर महिलाओं को ही देखा जाता है.

"अगर हम ये मान भी लेते हैं कि इमरजेंसी में जो नसबंदी (vasectomy) के मामले हुए थे उसके कारण परिवार नियोजन में रुकावटें आयीं थी पर इतने सालों बाद भी स्थिति बेहतर नहीं होना यही दर्शाता है कि सब ने मान लिया है कि महिलाओं पर फोकस करें और ज्यादातर तब करें जब वो डिलीवर के लिए हॉस्पिटल जाती हैं. एक तरह से महिलाओं पर ही सारा ध्यान केंद्रित रहा है परिवार नियोजन का."
डॉ अनंत भान, पब्लिक हेल्थ रिसर्चर

इस सवाल पर डॉ तनुश्री, देश के पुरुष प्रधान समाज को जिम्मेदार ठहरती हैं और साथ ही पुरुषों की नसबंदी से जुड़े भ्रम को भी.

"पुरुषों में नसबंदी (vasectomy) से मर्दानगी कम होने की बात, जो कि गलत है अभी भी मानी जाती है. नसबंदी एक बहुत ही सरल और आसान तरीका है अनचाहे गर्भ से बचने का. केवल आधे घंटे की प्रक्रिया है. उसके बाद पुरुष अपनी सामान्य दिनचर्या में वापस लौट जाते हैं. उसकी तुलना महिलाओं में की जाने वाली नसबंदी जिसे ट्यूबेक्टमी कहते हैं, एक ज्यादा बड़ी और थोड़ी जटिल प्रक्रिया है."
डॉ तनुश्री पांडेय पडगांवकर

AIIMS दिल्ली की डॉ अपर्णा भी हमारे दोनों एक्स्पर्ट से सहमत हैं. उन्होंने यह कहा कि जागरूकता बढ़ाने के लिए सरकारी अस्पताल और राज्य की फैमिली प्लानिंग डिवीजन में नॉन-स्कैल्पल-वैसेक्टमी (No Scalpel Vasectomy) सप्ताह मनाया जाता है. NSV बिल्कुल सुरक्षित है और इससे मर्दों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ते हैं और न तो इसका कोई लॉन्ग टर्म इफेक्ट (long term effect) होता है. NSV करवा वे तुरंत अपनी दिनचर्या में लौट जाते हैं. इस प्रक्रिया के लिए अस्पतालों में अलग से सिस्टेमेटिक प्लान तैयार है पर,

"इन सब बातों के बावजूद, जागरूकता की कमी के कारण, अभी भी बहुत कम मर्द इन सेंटरों में आते हैं. और यहां गलती केवल मर्दों की नहीं है बल्कि परिवार की महिलाओं की भी है, पूरे समाज की है. इस सोच को हटाना बहुत ज्यादा जरूरी है. सब को पता होना चाहिए कि यह प्रोसीजर बिल्कुल सैफ है, इसमें कोई काटा या चीर नहीं जाता है. इसे नॉन-स्कैल्पल वैसेक्टमी कहते हैं क्योंकि इनमें ब्लेड (स्कैल्पल) का इस्तेमाल नहीं किया जाता है."
डॉ के अपर्णा शर्मा

डॉ अनंत भान भ्रम वाली बातों से पूरी तरह से सहमत नहीं है. वो कहते हैं,

“ऐसे भ्रम तो महिलाओं के लिए भी होते होंगे जैसे कि इंजेक्टबल (Injectable) सही विकल्प है या नहीं, कॉपर टी (Copper T) का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ सकता है या कॉन्ट्रासेप्टिव दवा के साइड इफ़ेक्ट्स पर. सिस्टम फैले हुए भ्रम को दूर कर रहा है या फैलने से रोक रहा है. तभी न परिवार नियोजन में महिलाओं की संख्या बढ़ी है."

क्यों है पुरुषों के लिए कॉन्ट्रसेप्टिव प्रोडक्ट में विकल्पों की कमी ?

गौर करने कि बात है कि पुरुषों के लिए टेम्परेरी कॉन्ट्रसेप्टिव तरीका (temporary contraceptive method), मात्र कंडोम (condom) है, कोई दूसरा नहीं है. जिसकी विफलता दर ज्यादा है. वहीं महिलाओं के लिए कई विकल्प हैं. जिस कारण उन्हें ही चाहते न चाहते हुए भी विकल्पों का सहारा लेना पड़ता है फिर चाहे उससे होने वाली समस्याएं उनके स्वास्थ्य पर कोई भी दुष्प्रभाव छोड़े.

क्या विकल्पों का अधिक होना महिलाओं के हित में है या इस पुरुष प्रधान समाज में मर्दों की मर्दानगी बचाने की एक सोची समझी कोशिश?
"रिसर्च में भी हम देखें तो ज्यादातर जो नए प्रॉडक्ट्स आते हैं, वो महिलाओं के लिए ही होते हैं. पुरुषों के लिए बहुत कम हैं. नए प्रोडक्ट जो ज्यादा सेफ हों या ज्यादा समय तक असरदार हों जैसे कि इंजेक्टबल वो सभी महिलाओं के लिए ही हैं. चाहे रिसर्च हो या चाहे प्रोडक्ट हो चाहे कैंपेन हों सारे ज्यादातर महिलाओं पर ही केंद्रित है. NFHS -5 का डेटा भी तो वही दर्शाता है, न जो हो रहा है"
डॉ अनंत भान

पुरुषों के लिए कॉन्ट्रसेप्टिव प्रोडक्ट के विकल्पों की कमी के कई कारण हो सकते हैं. हो सकता है रिसर्च की कमी, असरदार और सेफ प्रोडक्ट की खोज जारी होना या पुरुषों में कॉट्रसेप्शन (contraception) या फैमिली प्लानिंग की ओनरशिप (ownership) की कमी, पुरुष प्रधान समाज की मजबूत पकड़, मर्दों की मर्दानगी से जुड़े भ्रम जैसे मुद्दों का होना.

"बच्चे के जन्म के बाद महिलाएं थोड़ी वल्नरेबल (vulnerable) भी रहती हैं, ऐसे में परिवार नियोजन की सलाह दी जाती है. जिसे अधिकतर महिलाएं मान लेती हैं. एक के बाद एक हो रही प्रेगनेंसी का असर महिलाओं पर पड़ता है. उनके स्वास्थ्य, बच्चों की परवरिश, घर की जिम्मेदारी और नौकरी सब पर. सिस्टम इसी का फायदा उठाता है. उन्हें पता रहता है कि महिलाएं इन सभी कारणों की वजह से मान जाएंगी. जबकि कॉट्रसेप्शन या फैमिली प्लानिंग की ओनरशिप पुरुषों में जितनी होनी चाहिए वो नहीं है."
डॉ अनंत भान
सरकारी नसबंदी योजना से लेकर पारिवारिक सोच तक में ऐसे भेदभाव को सवालों से भी परे मान लिया गया है.
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कॉन्ट्रासेप्शन पर क्या है लोगों की सोच?

"जो NFHS डेटा है इससे पता लगता है कि भारत के अधिकतर पुरुषों और महिलाओं को पता है मॉडर्न कान्ट्रसेप्शन के बारे में. उन्हें कम से कम एक मॉडर्न कांट्रेसेप्शन (modern contraception) का तरीका पता है. नए कान्ट्रसेप्शन तरीकों की जब हम बात करते हैं, तो उसमें आता है मेल और फीमेल स्टरलाइजेशन, कंडोम, पिल्स, इंजेक्टेबल्स आदि. अच्छी बात है कि अब 99% लोगों को इन बातों के बारे में पता है" ये कहना है डॉ अपर्णा का.

परिवार नियोजन में महिलाओं की भागीदारी में बढ़ती संख्या, जागरूकता के साथ-साथ उनकी मजबूरी भी दर्शाता है. मजबूरी का कारण है पुरुषों में परिवार नियोजन के प्रति उदासीनता.
“मैं मुंबई के जिस इलाके में मरीजों को देखती हूं वहां कम पढ़े-लिखे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग और साथ ही शिक्षित, संपन्न, अपने पैरों पर खड़े, मरीज भी आते हैं. कुछ वर्ग हैं, जो परिवार नियोजन कराना तो छोड़े उसके बारे में बात तक करना पसंद नहीं करते हैं. अगर अनचाही प्रेगनेंसी हो जाए तो अबॉर्शन (abortion) के बारे में सपने में भी नहीं सोचता यह वर्ग. इस वजह से आज की तारीख में ऐसे परिवारों में 5-6 बच्चे हैं और ऐसा होना उनके लिए बहुत सामान्य और गर्व की बात है.”
डॉ तनुश्री पांडेय पडगांवकर

क्या है पढ़े लिखे वर्ग की सोच कॉन्ट्रसेप्टिव तरीकों पर?

फिट हिंदी को डॉ तनुश्री ने बताया कि भले ही भारत के पढ़े-लिखे वर्ग ने बर्थ कंट्रोल पिल्स (birth control pills) को बहुत अच्छे से अपना लिया है. लेकिन वहां भी पुरुषों में कॉन्ट्रासेप्शन के इस्तेमाल का रवैया उदासीन है.

"अगर किसी पढ़े लिखे पुरुष को नसबंदी (vasectomy) कराने बोला जाए और वहीं दूसरी तरफ पढ़ी-लिखी महिला को ट्यूबेक्टमी कराने बोला जाए (फैमिली प्लानिंग पूरी होने पर) तो लगभग 80% महिलाएं मान जाएंगी मगर शायद 10% पुरुष इसके लिए तैयार हों. मैं यहां बता दूं, पुरुषों की नसबंदी को महिलाओं की नसबंदी की तुलना में अधिक आसानी से पलटा जा सकता है.”
डॉ तनुश्री पांडेय पडगांवकर

AIIMS की डॉ अपर्णा बताती हैं, "मैंने यह भी देखा है कि कान्ट्रसेप्टिव का इस्तेमाल लोगों के आर्थिक या सामाजिक स्टेटस पर निर्भर नहीं करता है. जागरूकता समान रूप से सभी वर्गों में कम है. लोग इस बारे में खुल कर बात नहीं करना चाहते हैं इसलिए हमें जाकर उन्हें बताना पड़ता है".

परिवार नियोजन के सफल और आसान तरीके

डॉक्टरों ने बताया परिवार नियोजन के सफल और आसान उपायों के बारे में.

परिवार नियोजन के टेम्परेरी कॉन्ट्रसेप्टिव तरीके:

  • कंडोम पुरुषों के लिए (male condom)- अच्छी तरह से इस्तेमाल से लगभग 80% तक अनचाही प्रेग्नन्सी टाली जा सकती है. एसटीडी (sexually transmitted diseases) से भी बचा जा सकता है.

  • कंडोम महिलाओं के लिए (female condom) महिलाओं के लिए भी कंडोम आजकल उपलब्ध है. इनके साथ समस्या यह है कि महंगे होते हैं और सभी जगह नहीं मिलते.

  • इंजेक्टबल होर्मोनल कान्ट्रसेप्टिव (injectable hormonal contraceptive)- अभी इसके बारे में कम लोग जानते हैं. इससे फायदा ज्यादा और नुकसान बहुत कम है. एक महीने में एक इंजेक्शन या 3 महीने में 1 इंजेक्शन लगवाना होता है. इसके साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं. दुखद है पर जो महिला परिवार से छिप कर परिवार नियोजन उपाय करती हैं उनके लिए ये सबसे अच्छा उपाय है. इसमें किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है. हर सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में यह उपलब्ध है.

  • बर्थ कंट्रोल पिल्स (birth control pills)

  • कॉपर टी (copper t)

परिवार नियोजन के परमानेंट कॉन्ट्रसेप्टिव तरीके:

  • नॉन-स्कैल्पल-वैसेक्टमी/ पुरुष नसबंदी

  • ट्यूबेक्टमी/महिला नसबंदी

स्थिति में सुधार कैसे लाया जाए?

“ये सरकार का काम है. कैम्पेन, सिविल सोसायटी और लोगों को भी जागरूकता फैलानी चाहिए पर ये काम सरकार का है".
डॉ अनंत भान

कुछ सुझाव:

  • जो हेल्थ सिस्टम में सर्विसेस हैं, वो पुरुष को ध्यान में रख कर भी बनाई जानी चाहिए. ऐसी हों जिससे स्वीकार्यता बढ़े और भ्रम को दूर करने में मदद करे.

  • नॉलेज और कैम्पेन में पुरुषों को टार्गेट करना चाहिए.

  • ऐसे नए असरदार प्रॉडक्ट्स (products) खोजें जो पुरुषों के लिए हों. सुरक्षित होने के साथ-साथ लंबे समय तक उपयोगी और रिवर्सिबल भी हों.

"सरकार की तरफ से बहुत से प्रोग्राम और कैंप चलाए जा रहे हैं और इससे हमने लोगों में जागरूकता बढ़ते देखा है. हमने यह भी देखा है कि जब हम लोगों को समझाते हैं तो वे हमारी बात सुनते हैं. अगर कुछ महिलाएं आती हैं, जिनका ऑपरेशन हम किसी कारण से नहीं कर सकते हैं, तो ऐसे मामलों में कई बार पुरुष ऑपरेशन करवाते हैं. लेकिन ये बातें पूरे समाज तक पहुंचानी जरूरी हैं."
डॉ के अपर्णा शर्मा

जनसंख्या नियंत्रण के ऐसे प्रयोग, जिनमें पुरुष की सुविधा के लिए स्त्री के स्वास्थ्य से समझौता हो, क्या जायज लगते हैं?

आबादी वृद्धि का बेकाबू होना बड़ी समस्या जरूर है लेकिन, इसे रोकने संबंधी प्रक्रिया में स्त्री-शोषण होने लगे, तो यह भी कोई छोटी समस्या नहीं लगती. ऐसी सूरत में पुरुष आगे आ कर, यानी नसबंदी में अपनी भागीदारी बढ़ाकर महिलाओं पर आ चुके दबाव कम कर सकते हैं.

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Published: 11 Jul 2022,09:16 AM IST

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