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World Population Day 2022: पूरी दुनिया में हर साल 11 जुलाई को अलग-अलग तरह से विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है. किसी भी देश के लिए बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या परेशानी का सबब बन जाती है. देश में बेरोजगारी, भुखमरी, अशिक्षा, गरीबी जैसी समस्याएं बढ़ने लगती हैं, जो देश के विकास में रुकावट पैदा करती हैं.
ऐसे में परिवार नियोजन (Family Planning) के जरिए बेकाबू बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है. 1952 यानी कि ठीक 70 साल पहले हमारे देश में परिवार नियोजन से जुड़े कार्यक्रमों की शुरुआत की गई थी.
NFHS 5 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में घट रही है प्रजनन दर यानी देश की आबादी की बढ़ती रफ्तार में कमी आयी है. वहीं उसी रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि भारत में परिवार नियोजन की जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर है.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) की रिपोर्ट में कई और बातों के साथ यह बात भी सामने आयी है कि भारत में परिवार नियोजन के उपायों में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना कहीं ज्यादा है. सभी किस्मों के परिवार नियोजन उपायों में से महिला स्टेरिलाइजेशन (female sterilisations) का हिस्सा 35% से ज्यादा है. यह सभी उपायों के एक तिहाई से ज्यादा है, जबकि पुरुष स्टेरिलाइजेशन (male sterilisations) की हिस्सेदारी केवल 0.3 फीसद है.
परिवार नियोजन में वृद्धि हुई है, वर्तमान में 15 से 49 आयु वर्ग की 66.7 विवाहित महिलाओं ने गर्भ निरोधकों का चयन किया है.
कंडोम, गोलियां, आईयूडी और इंजेक्शन सहित गर्भ निरोध के आधुनिक तरीकों का विवाहित महिलाओं में उपयोग भी 47 से बढ़कर 56.5 प्रतिशत हो चुका है.
डेटा से पता चलता है कि गर्भ निरोधकों का ज्ञान अब लगभग सबको है (ग्रामीण और शहरी भारत में 99% विवाहित पुरुषों और महिलाओं को उनके बारे में पता था), वर्तमान में विवाहित आबादी का केवल 50% से थोड़ा अधिक गर्भ निरोधकों का विकल्प चुनता है.
उनका उपयोग रोजगार की स्थिति और आय के स्तर से भी निर्धारित होता है.
आधुनिक गर्भ निरोधकों से महिला नसबंदी की प्रथा कम होने की जगह और बढ़ गयी है. जहां तक ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों का संबंध है, इसमें बहुत अधिक अंतर नहीं है.
पब्लिक हेल्थ रिसर्चर डॉ अनंत भान फिट हिंदी को बताते हैं,
वहीं मुंबई में और इंस्टाग्राम पर महिला स्वास्थ्य और इन्फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याओं को दूर करती गायनकॉलिजस्ट, डॉ तनुश्री पांडेय पडगांवकर ने फिट हिंदी को बताया कि वो लगभग हर वर्ग के मरीजों का इलाज करती हैं और लगभग हर वर्ग में फैमिली प्लानिंग (family planning) महिलाओं के जिम्मे ही रहती है. वो समाज के ऐसे वर्ग की बात भी करती हैं, जो परिवार नियोजन का कोई भी तरीका नहीं अपनाता है और न ही अपने परिवार के लोगों को अपनाने देता है. ऐसे में दूसरी कई समस्याएं सामने खड़ी हो जाती है.
समाज में पुरुषों की नसबंदी को लेकर कई गलत धारणाएं हैं. इनमें से एक है, नसबंदी के बाद उनकी ताकत में कमी आ जाएगी. दूसरी यह कि भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में नसबंदी को मर्दानगी से जोड़कर देखा जाता है.
ऐसे में समाज की ओर से तो महिलाओं पर नसबंदी का दबाव बन ही जाता है. साथ ही साथ स्वास्थ्य प्रणाली भी महिलाओं पर ये जिम्मेदारी डालने की कोशिश करती है. फिर स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए महिलाओं को समझना भी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा आसान होता है. नतीजा नसबंदी शिविरों में ज्यादातर महिलाओं को ही देखा जाता है.
इस सवाल पर डॉ तनुश्री, देश के पुरुष प्रधान समाज को जिम्मेदार ठहरती हैं और साथ ही पुरुषों की नसबंदी से जुड़े भ्रम को भी.
AIIMS दिल्ली की डॉ अपर्णा भी हमारे दोनों एक्स्पर्ट से सहमत हैं. उन्होंने यह कहा कि जागरूकता बढ़ाने के लिए सरकारी अस्पताल और राज्य की फैमिली प्लानिंग डिवीजन में नॉन-स्कैल्पल-वैसेक्टमी (No Scalpel Vasectomy) सप्ताह मनाया जाता है. NSV बिल्कुल सुरक्षित है और इससे मर्दों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ते हैं और न तो इसका कोई लॉन्ग टर्म इफेक्ट (long term effect) होता है. NSV करवा वे तुरंत अपनी दिनचर्या में लौट जाते हैं. इस प्रक्रिया के लिए अस्पतालों में अलग से सिस्टेमेटिक प्लान तैयार है पर,
डॉ अनंत भान भ्रम वाली बातों से पूरी तरह से सहमत नहीं है. वो कहते हैं,
गौर करने कि बात है कि पुरुषों के लिए टेम्परेरी कॉन्ट्रसेप्टिव तरीका (temporary contraceptive method), मात्र कंडोम (condom) है, कोई दूसरा नहीं है. जिसकी विफलता दर ज्यादा है. वहीं महिलाओं के लिए कई विकल्प हैं. जिस कारण उन्हें ही चाहते न चाहते हुए भी विकल्पों का सहारा लेना पड़ता है फिर चाहे उससे होने वाली समस्याएं उनके स्वास्थ्य पर कोई भी दुष्प्रभाव छोड़े.
पुरुषों के लिए कॉन्ट्रसेप्टिव प्रोडक्ट के विकल्पों की कमी के कई कारण हो सकते हैं. हो सकता है रिसर्च की कमी, असरदार और सेफ प्रोडक्ट की खोज जारी होना या पुरुषों में कॉट्रसेप्शन (contraception) या फैमिली प्लानिंग की ओनरशिप (ownership) की कमी, पुरुष प्रधान समाज की मजबूत पकड़, मर्दों की मर्दानगी से जुड़े भ्रम जैसे मुद्दों का होना.
"जो NFHS डेटा है इससे पता लगता है कि भारत के अधिकतर पुरुषों और महिलाओं को पता है मॉडर्न कान्ट्रसेप्शन के बारे में. उन्हें कम से कम एक मॉडर्न कांट्रेसेप्शन (modern contraception) का तरीका पता है. नए कान्ट्रसेप्शन तरीकों की जब हम बात करते हैं, तो उसमें आता है मेल और फीमेल स्टरलाइजेशन, कंडोम, पिल्स, इंजेक्टेबल्स आदि. अच्छी बात है कि अब 99% लोगों को इन बातों के बारे में पता है" ये कहना है डॉ अपर्णा का.
फिट हिंदी को डॉ तनुश्री ने बताया कि भले ही भारत के पढ़े-लिखे वर्ग ने बर्थ कंट्रोल पिल्स (birth control pills) को बहुत अच्छे से अपना लिया है. लेकिन वहां भी पुरुषों में कॉन्ट्रासेप्शन के इस्तेमाल का रवैया उदासीन है.
AIIMS की डॉ अपर्णा बताती हैं, "मैंने यह भी देखा है कि कान्ट्रसेप्टिव का इस्तेमाल लोगों के आर्थिक या सामाजिक स्टेटस पर निर्भर नहीं करता है. जागरूकता समान रूप से सभी वर्गों में कम है. लोग इस बारे में खुल कर बात नहीं करना चाहते हैं इसलिए हमें जाकर उन्हें बताना पड़ता है".
डॉक्टरों ने बताया परिवार नियोजन के सफल और आसान उपायों के बारे में.
परिवार नियोजन के टेम्परेरी कॉन्ट्रसेप्टिव तरीके:
कंडोम पुरुषों के लिए (male condom)- अच्छी तरह से इस्तेमाल से लगभग 80% तक अनचाही प्रेग्नन्सी टाली जा सकती है. एसटीडी (sexually transmitted diseases) से भी बचा जा सकता है.
कंडोम महिलाओं के लिए (female condom) महिलाओं के लिए भी कंडोम आजकल उपलब्ध है. इनके साथ समस्या यह है कि महंगे होते हैं और सभी जगह नहीं मिलते.
इंजेक्टबल होर्मोनल कान्ट्रसेप्टिव (injectable hormonal contraceptive)- अभी इसके बारे में कम लोग जानते हैं. इससे फायदा ज्यादा और नुकसान बहुत कम है. एक महीने में एक इंजेक्शन या 3 महीने में 1 इंजेक्शन लगवाना होता है. इसके साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं. दुखद है पर जो महिला परिवार से छिप कर परिवार नियोजन उपाय करती हैं उनके लिए ये सबसे अच्छा उपाय है. इसमें किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है. हर सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में यह उपलब्ध है.
बर्थ कंट्रोल पिल्स (birth control pills)
कॉपर टी (copper t)
परिवार नियोजन के परमानेंट कॉन्ट्रसेप्टिव तरीके:
नॉन-स्कैल्पल-वैसेक्टमी/ पुरुष नसबंदी
ट्यूबेक्टमी/महिला नसबंदी
कुछ सुझाव:
जो हेल्थ सिस्टम में सर्विसेस हैं, वो पुरुष को ध्यान में रख कर भी बनाई जानी चाहिए. ऐसी हों जिससे स्वीकार्यता बढ़े और भ्रम को दूर करने में मदद करे.
नॉलेज और कैम्पेन में पुरुषों को टार्गेट करना चाहिए.
ऐसे नए असरदार प्रॉडक्ट्स (products) खोजें जो पुरुषों के लिए हों. सुरक्षित होने के साथ-साथ लंबे समय तक उपयोगी और रिवर्सिबल भी हों.
जनसंख्या नियंत्रण के ऐसे प्रयोग, जिनमें पुरुष की सुविधा के लिए स्त्री के स्वास्थ्य से समझौता हो, क्या जायज लगते हैं?
आबादी वृद्धि का बेकाबू होना बड़ी समस्या जरूर है लेकिन, इसे रोकने संबंधी प्रक्रिया में स्त्री-शोषण होने लगे, तो यह भी कोई छोटी समस्या नहीं लगती. ऐसी सूरत में पुरुष आगे आ कर, यानी नसबंदी में अपनी भागीदारी बढ़ाकर महिलाओं पर आ चुके दबाव कम कर सकते हैं.
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Published: 11 Jul 2022,09:16 AM IST