advertisement
किसी भी देश की महिलाओं की दशा वहां के वैचारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर को दिखाती है. लिंग अनुपात (सेक्स रेश्यो) शायद उन सबसे महत्वपूर्ण इंडिकेटर्स में से एक है, जो उस देश की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सोच को दर्शाता है.
भारत के लिए यह एक खेद और शर्म का विषय है कि यहां की बहुत सी महिलाएं स्वयं स्त्री होते हुए भी एक बेटी की अपेक्षा बेटे को जन्म देना पसंद करती हैं. बहुत हद तक उनके रूढ़िवादी परिवारों में उनके अपने बचपन में, उनकी स्वयं की उपेक्षा उनके इस स्वभाव के लिए जिम्मेदार है.
बालिकाओं के प्रति गहरे पूर्वाग्रह और भेदभाव और बेटे की असीम चाह ने लिंग चयन (sex selection) के लिए टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग को जन्म दिया है, जिससे पिछले 3 दशकों से भी अधिक समय से जनसंख्या में महिलाओं और पुरुषों के अनुपात में बहुत अधिक असंतुलन बना हुआ है.
इस असंतुलन को समाप्त करने के उद्देश्य से 38 साल पहले पीसीपीएनडीटी अधिनियम (PCPNDT Act) लाया गया था. जिसके अंतर्गत गर्भाधान से पहले या उसके बाद में लिंग चयन पूर्ण रूप से निषिद्ध है. इसके बावजूद लिंग निर्धारण समाज के हर वर्ग में अभी भी देशभर में धड़ल्ले से चल रहा है. इसमें महिलाओं के आर्थिक स्तर और समृद्धि की शायद बहुत कम भूमिका रही है और यह सभी जातियों और धर्मों में प्रचलित है.
यह बात तो स्पष्ट है कि 4 दशकों के बीत जाने के बाद भी यह कठोर अधिनियम अपने उद्देश्य को पूरा करने में पूर्ण रूप से विफल रहा है, क्योंकि आज भी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 के आंकड़े बताते हैं कि जन्म के समय लिंग अनुपात अर्थात् प्रति हजार लड़कों के जन्म के अनुपात में लड़कियों के जन्म की संख्या अभी भी 929 पर बनी हुई है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 952 के मानक से बहुत नीचे है.
पीसीपीएनडीटी एक बड़ा कठोर अधिनियम है और उसे डॉक्टरों और अस्पतालों पर अत्यंत कड़ाई से लागू किया जा रहा है. इस अधिनियम के अंतर्गत अनजाने में हुई फॉर्म भरने में त्रुटियों की सजा भी वही है और उतनी ही कठोर है, जो जन्म पूर्व लिंग निर्धारण करने की है.
यह सर्वविदित सत्य है कि किसी भी सेवा की पूर्ति के साधन तब तक नहीं जुटाए जा सकते जब तक कि उसकी मांग न हो और यही बात जन्म से पूर्व लिंग चयन के बारे में भी कही जा सकती है. यह गर्भवती स्त्री या उसका परिवार ही है, जो जन्म से पूर्व बच्चे के लिंग का चयन करने का कोई न कोई रास्ता तलाशता रहता है.
स्पष्ट है कि कोई भी अल्ट्रासाउंड या जेनेटिक सेंटर या उस में कार्यरत डॉक्टर और अन्य कर्मी किसी भी महिला को इस ओर न तो प्रोत्साहित करते हैं और न ही लिंग चयन करवाने का अनुरोध करते हैं. मांग बराबर गर्भवती महिला के परिवार की ओर से ही आती है. वास्तव में उस महिला को उसके परिवार द्वारा लिंग चयन के लिए मजबूर किया जाता है.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने इस कथित अपराध के लिए दंडित वह एकमात्र व्यक्ति है, हालांकि गर्भवती महिला स्वयं, बल्कि उससे भी अधिक उसका परिवार इस अपराध में पूरी तरह से भागीदार हैं.
यह वास्तव में आश्चर्य की बात है कि पीसीपीएनडीटी अधिनियम के प्रावधान 23(3) के बावजूद भारतीय न्यायालयों ने अभी तक किसी भी एक महिला या उसके परिवार के सदस्य को लिंग चयन के लिए दोषी नहीं पाया है, जबकि पूरे देश में सैकड़ों डॉक्टरों को किसी न किसी रूप में दंडित किया जा चुका है.
इस अधिनियम के बहुत से कड़े और तर्क विहीन प्रावधानों के चलते कई सक्षम और योग्य डॉक्टरों ने अल्ट्रासाउंड करना ही छोड़ दिया है, जिससे बहुत से दूसरे रोगी इस विधा के लाभ से वंचित किए जा रहे हैं.
आज के डिजिटल युग में इसका एक सरल और प्रभावी उपाय आधार कार्ड का उपयोग हो सकता है. किसी भी गर्भवती महिला के अल्ट्रासाउंड के पश्चात उसके गर्भ में पल रहे शिशु का लिंग उसे लिखित रूप में बता दिया जा सकता है, और उसके पश्चात यदि वह किसी नर्सिंग होम या अस्पताल में गर्भपात के लिए जाती है, तो आधार कार्ड के द्वारा उसे और उसके परिवार को ट्रेस किया जा सकता है. ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न होने पर आशा (ASHA) वर्कर से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है और गर्भ के परिणाम के बारे में छानबीन की जा सकती है.
यदि इस सरल और प्रभावी उपाय को मान्यता मिल जाती है, तो पीसीपीएनडीटी अधिनियम की आवश्यकता ही नहीं रहेगी और उसके साथ के पैराफरनेलिया का सदुपयोग कहीं और हो सकेगा.
पुत्र प्राप्ति की लालसा के पीछे बहुत सी सामाजिक कुरीतियां, रूढ़ियां और कुछ इस देश के कानून ज़िम्मेदार हैं. आवश्यकता है इस मानसिकता को बदलने की और संपत्ति और इन्हेरिटेंस में महिलाओं और पुरुषों को बराबरी का दर्जा देने की. केरल मेघालय और लक्ष्यद्वीप जैसे राज्यों में सेक्स रेशो का 1100 से भी ऊपर होना इस सुझाव की वकालत करता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined