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Lung Cancer Awareness Month: लंग कैंसर के मामलों में सेकेंड हैंड स्मोकिंग का शिकार बन रहे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. हमारे हेल्थ के लिए जितना खतरनाक धूम्रपान करना होता है, उतना ही खतरनाक होता है धूम्रपान करने वाले लोगों के आसपास रहना. कुछ ही महीनों पहले WHO साउथ ईस्ट एशिया ने अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट करके यह जानकारी दी थी कि सेकेंड हैंड स्मोक से होने वाली बीमारियों के कारण हर साल लगभग 65 हजार बच्चों की मृत्यु हो जाती है.
सेकंड हैंड स्मोकिंग किसे कहते हैं? शिशुओं में सेकेंड हैंड स्मोकिंग से होने वाली बीमारियां क्या हैं? सेकंड हैंड स्मोकिंग के कारण कैसे नवजात शिशु मौत यानी एसआईडीएस (SIDS) के शिकार बनते हैं? इससे बच्चों को कैसे बचाएं? इन सारे जरुरी सवालों का जवाब देते हमारे एक्सपर्ट डॉ. मनोज गोयल, डायरेक्टर ऑफ पल्मोनोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम.
लंग कैंसर के ज्यादातर मामलों में तंबाकू का जहरीला धुआं ही कारण रहता है. लंबे समय तक धूम्रपान करने की वजह से या सेकंड हैंड स्मोकिंग यानी बिना धूम्रपान किए धूम्रपान करने वालों के आसपास रहने की वजह से तंबाकू का धुआं और दूसरे कार्सिनोजेन्स की वजह से जानलेवा केमिकल्स लंग्स के संपर्क में आते हैं. इससे डीएनए में बदलाव होता है और यह ही आगे चलकर लंग कैंसर बनता है.
सेकेंड हैंड स्मोकिंग में व्यक्ति खुद स्मोकिंग नहीं करता लेकिन वह अपने आसपास दूसरे स्मोकर्स द्वारा छोड़े जाने वाले धुएं के संपर्क में रहता है. ऐसा ज्यादातर उन परिवारों में देखा जाता है, जिनमें कोई सदस्य धूम्रपान (Smoking) का आदी होता है. ऐसा कई बार धूम्रपान करने वाले ऑफिस सहयोगियों, कॉलेज दोस्तों के चलते भी होता है. सेकंड हैंड स्मोकिंग भी उतनी ही खतरनाक होती है, जितनी कि प्राइमरी स्मोकिंग (जिसमें व्यक्ति खुद धूम्रपान करता है) होती है.
अक्सर नवजात/शिशु इस प्रकार की पैसिव स्मोकिंग या सेकेंड हैंड स्मोकिंग का शिकार बनते हैं क्योंकि उनके फेफड़े छोटे आकार के होते हैं और इस वजह से वे जल्दी-जल्दी और गहरी सांस लेते हैं. ऐसा करने के कारण वे बड़ों की तुलना में कहीं ज्यादा प्रदूषित हवा को अपने भीतर लेते हैं. इसकी वजह से कई रोग जैसे ब्रॉन्काइटिस, अस्थमा, छाती के संक्रमण, सांस घुटना और यहां तक कि हृदय रोग तक पनप सकते हैं.
बच्चों में सेकंड हैंड स्मोकिंग संबंधी आंकड़े बहुत स्पष्ट नहीं हैं. लेकिन यह देखा गया है कि स्मोकिंग पेरेंट्स के बच्चों को अस्थमा, छाती के संक्रमण, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग रोगों, जो कि आगे चलकर लंग कैंसर में बदल जाते हैं, का खतरा अधिक रहता है.
एसआईडीएस (SIDS) यानी सडन इंफेंट डैथ सिंड्रोम छह माह की उम्र वाले शिशुओं में देखा गया है और अधिकतर मामलों में नींद में उनकी मृत्यु हो जाती है. हालांकि अभी तक भी इस रोग का सही कारण पता नहीं चला है. लेकिन ऐसा ज्यादातर प्री-बॉर्न या प्रीमैच्योर शिशुओं में देखा गया है. यह देखा गया है कि जो पेरेंट्स धूम्रपान करते हैं वे अपने बच्चों में जोखिम बढ़ाते हैं.
डॉ. मनोज गोयल फिट हिन्दी से कहते हैं, "सबसे पहले तो पेरेंट्स को स्मोकिंग और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए. दूसरा, बच्चे को अपने साथ सोफे या बिस्तर में नहीं सुलाना चाहिए. उनके लिए अलग बिस्तर (कॉट, प्रैम) की व्यवस्था होनी चाहिए और बच्चों को पूरी तरह से ढककर नहीं रखना चाहिए, सुलाते समय उनके कंधे तक ही कंबल ढकना चाहिए. तीसरा, बच्चों को पीठ के बल ही सोना चाहिए, न कि चेहरा नीचे रखकर. इसके अलावा, कमरे का तापमान संतुलित रखना चाहिए.
पेरेंट्स को धूम्रपान की लत छोड़कर अपने घरों को सही प्रकार से हवादार बनाना चाहिए.
घर में दूसरे किसी तरह के धुएं जैसे अगरबत्तियों और रसोईघर से निकलने वाले धुएं से भी बचाना चाहिए.
खाना बनाने वाली जगह भी हवादार होनी चाहिए और चिमनी का प्रबंध होना चाहिए.
सिगरेट/हुक्का या किसी भी तरह के तंबाकू का सेवन करने के बाद नहाकर और कपड़े बदलकर ही बच्चे के पास जाना चाहिए.
सेकंड हैंड स्मोकिंग उन सभी के लिए खतरनाक होती है, जो इसके संपर्क में आते हैं. सिगरेट या हुक्का पीने वाले व्यक्ति द्वारा इस छोड़े जाने वाले धुएं के संपर्क में आने पर सेकंड हैंड स्मोकिंग का नुकसान उठाना पड़ सकता है.
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