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बिगोरेक्सिया और मसल्स बनाने का जुनून: ऐसा क्यों होता है?

ऐसा लोग, जो वर्कआउट और हेल्थी खाने पर बहुत ज्यादा ध्यान देते हैं, कई बार बिगोरेक्सिया बीमारी के शिकार होते हैं.

विष्णु गोपीनाथ
फिट
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बिगोरेक्सिया और मसल्स बनाने का जुनून कभी-कभी ज्यादा बढ़ जाता है 

(फोटो:iStock)

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बिगोरेक्सिया (bigorexia) एक मानसिक बीमारी है, जिसमें कोई शख्स यह गलत सोच या समझ रखता है कि उसकी मसल्स पूरी बड़ी नहीं हैं, या जितना दुबला होना चाहिए उतना दुबला नहीं है, या पर्याप्त मसल्स नहीं है.

मेडिकल ​​​​शब्दावली में इसे मसल डिस्मॉर्फिया (muscle dysmorphia) कहते हैं लेकिन इसे आम बातचीत में मेगारेक्सिया (megarexia), बिगोरेक्सिया (bigorexia) या रिवर्स एनोरेक्सिया (reverse anorexia) भी कहा जाता है.

बिगोरेक्सिया बॉडी डिस्मॉर्फिया (body dysmorphia) या बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर (body dysmorphic disorder) का एक सब-टाइप है, जो किसी शख्स को लगातार खुद को “बदसूरत”, खामियों वाला या शारीरिक तौर पर आकर्षक नहीं होने के रूप में देखता है.

डायग्नोस्टिक एंड स्टेटिस्टिकल मैनुअल (DSM-5) में बिगोरेक्सिया के शिकार को ऐसे शख्स के रूप में परिभाषित करता है, जो मानता है कि उसका शरीर बहुत छोटा है या उसे भरपूर मांशपेशियां नहीं हैं.

बिगोरेक्सिया के कारण

बॉडी डिस्मॉर्फिया या कोई ऐसी बीमारी जिसमें सेल्फ-इमेज की समस्या होती हैं, बिगोरेक्सिया भी कई वजहों से शुरू हो सकती है. बिगोरेक्सिया की कुछ आम वजहें हैं:

  • बचपन का सदमा, चिढ़ाना, कमतर जताना या किसी की शारीरिक बनावट को लेकर मजाक उड़ाना.

  • एक तयशुदा तरीके से दिखने का पारिवारिक या सामाजिक दबाव.

  • ऐसे परिवार से होना जो बिगोरेक्सिया, बॉडी डिस्मॉर्फिया या ऑब्सेसिव-कम्पल्सिव डिसऑर्डर का शिकार हो.

  • परफेक्शन की चाह.

  • एन्जाइटी, डिप्रेशन या ऑब्सेसिव-कम्पल्सिव डिसऑर्डर जैसी बीमारी.

कम शब्दों में कह सकते हैं कि अगर आप बचपन में या बड़े होते हुए जैसे दिखते थे, उसके लिए आपको चिढ़ाया गया या कमतर अहसास कराया गया है, तो यह बॉडी डिस्मॉर्फिया या मसल डिस्मॉर्फिया जैसी बॉडी इमेज डिसऑर्डर को जन्म दे सकता है.

इंस्टाग्राम, ट्विटर और स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर “परफेक्ट बॉडी” और “परफेक्ट लुक” का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है, जो ज्यादा मस्कुलर या दुबला दिखने का जुनून पैदा कर सकता है.

बिगोरेक्सिया के लक्षण

बिगोरेक्सिया के लक्षणों या निशानियों में आगे बताई बातें शामिल हैं:

  • नींद, डाइट और रिश्तों जैसे दूसरे कारकों की अनदेखी कर बहुत ज्यादा वर्कआउट करना.

  • शारीरिक फिटनेस या मांसपेशियों बढ़ाने के लिए दवाओं और स्टेरॉयड का इस्तेमाल.

  • आप सेहत के लिए खराब मानी जाने वाली कोई चीज खा लेते हैं या एक दिन जिम नहीं जा पाते तो एन्जाइटी या बेचैनी महसूस करते हैं.

  • जब आप खुद को आइने में देखते हैं, तो खुद पर लानत भेजना, घिनौनापन या नफरत की भावना का अहसास होता है.

  • अपने शरीर में लगातार कमी का अहसास और शरीर की बदसूरती का ख्याल आना, जबकि असल दुनिया की हकीकत इसके उलटी है.

  • फिटनेस की अंतहीन तलाश, जहां भरपूर एक्सरसाइज करना या हेल्दी फूड खाना भी काफी नहीं लगता है.

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क्या आपको बिगोरेक्सिया है?

आप कैसे दिखते हैं और/या एक महत्वाकांक्षी हेल्थ टार्गेट की दिशा में काम करने के बारे में फिक्रमंद रहने का मतलब यह नहीं है कि आप बिगोरेक्सिया का शिकार हैं.

हालांकि अगर आप अपने रूप को लेकर लगातार खुद को कमतर आंक रहे हैं, या उस दर्जे तक फिटनेस की गतिविधियां कर रहे हैं, जहां वे आपके रोजमर्रा की जिंदगी और कामकाज पर असर डालती हैं, जिससे आपकी जिंदगी के दूसरे पहलुओं पर असर पड़ता है, तो आप बिगोरेक्सिया या बॉडी डिस्मॉर्फिया का शिकार हो सकते हैं.

याद रखें कि कोई समस्या तब एक बीमारी बन जाती है, जब वह आपकी रोजमर्रा की जिंदगी और कामकाज में रुकावट डालने लगती है.

बिगोरेक्सिया पर काबू नहीं पाया गया तो स्टेरॉयड का गलत इस्तेमाल बढ़ सकता है, “दुबला रहने” के लिए लैक्सेटिव (पाचन को दुरुस्त रखने की दवा) का बहुत ज्यादा इस्तेमाल, ज्यादा मसल्स बनाने के लिए बहुत ज्यादा सेल्फ-मेडिकेशन, या वजन कम करने के लिए खुद को भूखा रखना बढ़ सकता है.

हालांकि आपकी शारीरिक सेहत और फिटनेस जरूरी है, मगर बीमार हो जाने की हद तक उसके बारे में सोचना और सोशल मीडिया पर दिखने वाली “परफेक्ट बॉडी” से तुलना करना, बिगोरेक्सिया, एन्जाइटी और डिप्रेशन की वजह बन सकती है.

अपनी शारीरिक सेहत का ख्याल रखें, लेकिन अपनी मानसिक सेहत, रिश्तों और जिंदगी की कीमत पर नहीं.

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