ADVERTISEMENTREMOVE AD
मेंबर्स के लिए
lock close icon

Suicide Prevention Day|जिंदगी से हार मान डिप्रेशन से जूझती 3 महिलाओं की कहानी

World Suicide Prevention Day पर इन महिलाओं ने पूछा सिर्फ 1 सवाल, क्यों इतना बोलना काफी नहीं था कि मैं खुश नहीं हूं?

Published
फिट
8 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

Suicide Prevention Day: (अगर आपको खुद को चोट पहुंचाने के ख्याल आते हैं, या आप जानते हैं कि कोई मुश्किल में है, तो मेहरबानी करके उनसे सहानुभूति दिखाएं और स्थानीय इमरजेंसी सर्विस, हेल्पलाइन और मेंटल हेल्थ NGO के इन नंबरों पर कॉल करें.)

Trigger Warning: इस स्टोरी में सुसाइड (suicide) का जिक्र है.

पूरे विश्व में हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस यानी कि सुसाइड प्रिवेंशन डे मनाया जाता है. दुनिया भर में बढ़ते आत्महत्या के आंकड़े चिंता का विषय हैं. भारत में महिला आत्महत्या का मामला बहुत गंभीर होता जा रहा है. 15 से 39 साल के आयु वर्ग में दुनिया में सभी आत्महत्याओं में भारतीय महिलाएं 36% हैं. यह दुनिया के किसी भी देश का सबसे बड़ा हिस्सा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बीते साल 2021 में भारत में 45,026 महिलाओं की आत्महत्या (suicide) से मौत हुई. इनमें से आधे से ज्यादा 23,178 होममेकर (homemaker) थीं. जिस का मतलब है, साल 2021 में हर रोज औसतन 63 गृहणियों (homemaker) की आत्महत्या से मौत हुई.

अक्सर महिलाओं को कई तरह का मानसिक दवाब सहना पड़ता है. परिवार और समाज से नहीं मिलते प्यार और इज्जत का असर इतना गहरा होता है कि वो अपने अस्तित्व पर सवाल उठाने लगती हैं.

कई इसे झेल लेती हैं, तो कई हिम्मत हार जाती हैं.

ये लेख है डिप्रेशन और कई तरह के तनाव से परेशान 3 महिलाओं के बारे में, जिन्होंने जिंदगी जीने की चाह खो दी थी. एक ने जीवन से भागने की 2 बार कोशिश की.

मेंटल हेल्थ पर किसी ने बात ही नहीं की

दिल्ली एनसीआर में रहने वाली सुधा शुक्ला अपने डिप्रेशन और कई बार सुसाइड करने के ख्यालों को साझा करते हुए कहती हैं-

"आज मैं 55 साल की हूं, पर कभी भी मेरी जिंदगी आसान नहीं रही. मैं यहां सिर्फ आर्थिक समस्याओं की बात नहीं कर रही. न तो मेरा बचपन हंसते-खेलते बीता और न ही मेरी शादी. मैंने छोटी सी उम्र में ही जीवन की मुश्किल से मुश्किल घड़ियां देखी हैं. मैं ऐसे माहौल में बड़ी हुई जहां माता-पिता एक दूसरे के साथ बिल्कुल खुश नहीं थे. बचपन में माता-पिता को एक-दूसरे से झगड़ते और मां को डिप्रेशन का शिकार होते देखा है. ऐसे माहौल से बच्चा क्या सीखेगा?"
सुधा शुक्ला

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए वो कहती हैं, "मैंने अपने आप को घर और उससे जुड़ी बातों से दूर रखना शुरू कर दिया था. ज्यादा समय स्कूल, लाइब्रेरी, बाहर दोस्तों के साथ गुजारने लगी. मुझे ऐसा लगता है कि मैं डिप्रेशन की शिकार हमेशा से थी. अपनी समस्याओं से कैसे डील करूं, नहीं जानती थी. समस्याओं से भागती रहती. 'वो' हैं ये मानना भी नहीं चाहती थी".

किसी ने कभी सिखाया ही नहीं, कभी मेंटल हेल्थ पर बात ही नहीं हुई

"डिप्रेशन, एंजाइयटी, स्ट्रेस में लिया गया हर फैसला गलत ही होता है. हर समय दिमाग में एक जंग चल रही होती है, ऐसे में कैसे कोई सही फैसला ले सकता है?"
सुधा शुक्ला

"एंजाइयटी, डिप्रेशन किसी को भी कभी भी हो सकता है, पर उनमें होने की संभावना मुझे ज्यादा लगती है, जिनका बचपन प्यार और परिवार से जुड़ाव के बिना बीता हो" ये कहा सुधा ने.

"जब से मैंने होश संभाला तब से सिर्फ परिवार में झगड़े देखे हैं, जिस पर कोई बात नहीं करता था. चुनौतियां, परेशानी, अकेलापन, आर्थिक समस्या, समाज-रिश्तेदारों का प्रेशर, अपनी शादी में उतार-चढ़ाव सब देख मैं कई बार हिम्मत हारी हूं. आत्महत्या का ख्याल 1 बार नहीं बल्कि कई बार आया था".
सुधा शुक्ला

उम्र के अलग-अलग स्टेज पर कई बार सुधा के मन में आत्महत्या (suicide) करने का ख्याल आया. एक बार तो तब जब वो सिर्फ 13 साल की थी.

"मेरे इनकार करने पर भी टीचर के गलत इल्जाम को मेरे पिता ने सही माना और सिर्फ गुस्सा ही नहीं हुए बल्कि मेरे मन पर गहरी चोट पहुंचाई. मैं अपना जीवन खत्म कर देना चाहती थी. जीवन तो खत्म नहीं किया पर 13 साल की छोटी उम्र में मैंने सिगरेट पीना शुरू कर दिया".
सुधा शुक्ला

फिर सुधा ने भारी मन से समाज में सालों से चली आ रही सच्चाई को एक बार फिर हमारे सामने ला खड़ा किया.

वो कहती हैं, "ऐसे में बच्चा किससे अपनी परेशानी बताए? स्कूल टीचर से? 50-60 बच्चों वाले एक क्लास में टीचर किस-किस बच्चे पर ध्यान दे सकेगी? मेरे समय में वैसे भी स्कूल बच्चे की पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देते थे. जो बच्चा क्लास में जैसा रिजल्ट लाता है उसे वैसे ट्रीट किया जाता है. ये मैंने एक से एक इलीट स्कूल में देखा है, अभी भी ऐसा होता है"

0
"आज भी बहुत-बहुत कम परिवार और टीचर ऐसे होते हैं, जो रेड फ्लैग (red flag) देख/समझ पाते हैं. रेड फ्लैग (red flag) देखना बहुत जरूरी है, बातें करना बहुत जरूरी है,
सुधा शुक्ला

"2022 की बदलती दुनिया में आज भी ऐसे परिवार ज्यादा मिलेंगे, जो मेंटल हेल्थ पर बात करने से कतराते हैं, और ये हाल देश के पढ़े-लिखे वर्ग का भी है. यहां सब अपने आप को पर्फ़ेक्ट दिखाने की होड़ में लगे रहते हैं. उन्हें लगता है कि मन और दिमाग पर लगे जख्म दिखाना कमजोरी की निशानी है. मेरे लिए जीवन अभी भी आसान नहीं है, पर अब मैं जीवन जीना सीख चुकी हूं."

मुस्कुराते हुए अपनी बात कह सुधा चल पड़ी

बाहर से सब सही लगता और दिखता है पर अंदर मन में एक जंग चल रही होती है, हर दिन, हर क्षण.

वो परेशान थी, जिंदगी खत्म करना चाहती थी

"पिछले साल, महामारी के दौरान मेरी एक दोस्त अर्पिता ने मुझे बार-बार फोन करना शुरू किया. उस समय मैं कोविड से रिकवर कर रही थी. शुरू में यह एक सामान्य कॉल होता था. जिसमें वो मेरे हेल्थ के बारे में पूछती थी. जैसे-जैसे दिन बीतते गए, मुझे लगने लगा जैसे वह मुझे कुछ जरूरी और गंभीर बात बताना चाहती है" ये बात हैदराबाद में रहने वाली गायत्री (बदला हुआ नाम) ने फिट हिंदी को फोन पर बताया.

वो आगे कहती हैं कि उनकी दोस्त चिंतित थी और सारे कॉमन दोस्तों को भी फोन कर रही थी लेकिन कुछ भी खुल कर बता नहीं रही थी. फिर एक दिन गायत्री ने अपनी परेशान दोस्त को वीडियो कॉल किया.

"उसे देख मैं घबरा गयी. वह पिछले एक साल में बिल्कुल बदल गई थी. देख कर लगा वो न ठीक से सो रही है और न खा रही है. डरी सी लग रही थी. उसे ठीक से सोचने में भी परेशानी हो रही थी. वह मरना चाहती थी, उसका आत्मविश्वास खत्म होता जा रहा था."
गायत्री

बिना देर किए गायत्री ने उसके माता-पिता को बताया और वे उसे उसके ससुराल से अपने घर ले गए. कुछ दिनों बाद, अर्पिता को काउंसलिंग शुरू करने के लिए मनाया लिया गया.

शुरू में अर्पिता के माता-पिता और गायत्री को लगा कि वह ऑफिस स्ट्रेस के कारण परेशान है. उसके परिवार ने उसके ऑफिस के दोस्त से इस बारे में बात की. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं पता चल जिससे उसकी ऐसी हालत हो सके.

बहुत पूछने पर एक महीने बाद अर्पिता ने गायत्री को बताया,

पति और ससुराल वालों का डर 

"उसका पति ड्रग्स लेता है. उसके ससुराल वाले भी उसको पूरी तरह से कंट्रोल में रखते थे और उसे कुछ भी करने के लिए उनकी अनुमति की जरूरत पड़ती थी. उसे संदेह था कि उसके पति के एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर थे, लेकिन उसके पास इसका कोई सबूत नहीं था.
गायत्री

गायत्री आए बताती हैं कि अर्पिता के ससुर राजनीति में थे, और इस कारण वह और भी डरी और उदास रहती थी कि अगर उसने तलाक मांगा तो वे उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं, यह बात उसे परेशान कर रही थी.

उसके सारे गहने, दस्तावेज और पैसे, उसके ससुरालवालों के पास थे. यहां तक ​​कि उसके बच्चों के बैंक अकाउंट भी उसकी सास के अकाउंट से जुड़े थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

माता-पिता ने भी नहीं समझा दुःख 

दुख की बात है कि शुरू में अर्पिता के माता-पिता और परिवार ने उसे भी दोषी ठहराया, लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि उसने कितना कष्ट सहा है, तो उन्होंने पूरी तरह से उसका साथ देना शुरू कर दिया.

गायत्री कहती हैं, "हम सब शारीरिक स्वास्थ्य, फाइनेंशियल सिक्योरिटी जैसी बातों के बारे में चिंतित रहते हैं, लेकिन हम अपने बच्चों को खुश, स्वतंत्र और दृढ़ रहना नहीं सिखाते हैं. मानसिक स्वास्थ्य धन, प्रतिष्ठा और हैसियत से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है.

"मेरी दोस्त एक पढ़े-लिखे परिवार से हैं, लेकिन फिर भी उसका परिवार मानसिक बीमारी के लिए मदद लेने से घबराता था."
गायत्री

वो आगे कहती हैं, "मुझे एक बार फिर अपनी दोस्त को मनाना पड़ा और उसके बाद ही उसने एक साइकाइट्रिस्ट से कन्सल्ट करना शुरू किया. मुझे उसे मनाने में करीब एक साल का समय लगा, लेकिन एक बार जब उसने अपना इलाज शुरू किया, तो साइकाइट्रिस्ट उसे डिप्रेशन से बाहर निकाल पाए. वह आखिरकार सब कुछ स्वीकार करके आगे बढ़ पाई".

गायत्री की इन बातों को सुन लगा काश! सभी के पास ऐसे दोस्त होते तो आज हमारे देश में हर दिन आत्महत्या की इतनी घटनाएं नहीं घट रही होतीं.

हां, मैंने 2 बार अपनी जिंदगी खत्म करने की कोशिश की

"हां, मैंने 2 बार अपनी जिंदगी खत्म करने की कोशिश की थी. मैं थक चुकी थी. शादी से पहले माता-पिता से जिस प्यार की उम्मीद थी वो नहीं मिला. लड़की हूं इसका एहसास मुझसे ज्यादा मेरे आसपास वालों ने मुझे दिलाया. पढ़ाई-लिखाई तो कराई गयी पर उस उत्साह से नहीं जैसी मेरे भाइयों की हुई. यहां बता दूं, ये बात 70-80 के दशक की नहीं है बल्कि 90 के दशक के खत्म होने के समय की है."
मंजरी (बदला हुआ नाम)

वो आगे कहती हैं, "अधिकतर परिवारों की लड़कियों को कहा जाता है न शादी के बाद जो मन आए वो करना, इससे बड़ा झूठ कुछ नहीं होता. मैं जिससे शादी करना चाहती थी वो मेरे परिवार को पसंद नहीं था और घर से भागने की हिम्मत मुझमें नहीं थी".

मंजरी ने फिट हिंदी को बताया कि उन्होंने परिवार की बात मान शादी पूरे परिवार की मर्जी से की. लेकिन जब शादी में समस्या आई तो बेटी का साथ देने की जगह वही परिवारवाले सहने और समझौता करने पर मजबूर करने लगे. लोग क्या कहेंगे जैसी बातों से डराने लगे.

तब पहली बार मैंने सुसाइड करने की कोशिश की

"मेरी शादीशुदा जिंदगी में झगड़े के अलावा कुछ नहीं था. मैंने अपने मां-बाबूजी से कहा था कि मुझे इस शादी से खुशी नहीं मिल रही. मेरे पति और मेरे बीच सिर्फ झगड़े होते हैं. मुझे घुटन सी होती है, पर वो नहीं समझे."
मंजरी

"मैंने सुसाइड करने की कोशिश की. हॉस्पिटल में जब आंख खुली तो, जिंदा होने का एहसास और पछतावा दोनों एक साथ हुआ" मंजरी के शब्द.

ऐसे में हालात ठीक करने के लिए मंजरी की मां ने बच्चा करने की सलाह दे डाली.

"मैंने सलाह मान बहुत बड़ी गलती की. प्रेग्नेंसी ने मेरे अंदर के डिप्रेशन, एंजाइयटी और आत्महत्या (suicide) करने की इच्छा को और अधिक बढ़ा दिया. तब सब से छुपाकर मैंने ऑनलाइन थेरपी लेनी शुरू की."
मंजरी
ADVERTISEMENTREMOVE AD

फिट हिंदी से मंजरी ने बताया कि शुरू में थेरपी के दौरान वो अच्छा महसूस करने लगी थी.

"बेटी के जन्म के बाद मेरा पूरा रूटीन बदल गया. शारीरिक थकावट के साथ-साथ मानसिक थकावट बढ़ती गयी. मुझे याद है मुझे मेरी बच्ची से कोई लगाव महसूस नहीं होता था. उल्टा में उसके रोने पर इतनी परेशान हो जाती कि मैं भी रोने लगती. अब तक मेरी सास मुझे खराब मां होने की उपाधि दे चुकीं थीं. उनकी नजर में खराब पत्नी और बहु तो मैं पहले से थी" इस बात को बताते हुए मंजरी कई बार रुकी.

दूसरी बार मैंने सुसाइड करने की कोशिश की

कोविड ने उसकी समस्या और बढ़ा दी थी. पति, ससुर, सास, ननद और बच्ची के साथ वो घर में बंद थी. परिवार का ध्यान रखना उसकी जिम्मेदारी बना दी गयी. घर में पैसे की कमी नहीं थी पर उसे पैसे मांगने पर दिए जाते थे.

"मुझे समझने वाला कोई नहीं था. जीने की चाह पहले से भी कम हो चुकी थी. 3 सालों में दूसरी बार मैंने सुसाइड करने की कोशिश की."
मंजरी

किस्मत से इस बार जब मंजरी आंख खुली तो उसे उसके मां-बाबूजी रोते हुए दिखे. पहली बार उनकी आंखों में उसने प्यार और पछतावा देखा था. आज वो अपनी बेटी के साथ माता-पिता के पास रहती हैं, और खुश हैं. साथ ही वो थेरपी और मेडिकेशन दोनों ले रही है.

मंजरी ने फिट हिंदी के माध्यम से सभी से एक सवाल पूछा है.

" मेरा 1 सवाल हैं, क्यों इतना बोलना काफी नहीं था कि मैं खुश नहीं हूं?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×