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Quiet Quitting: बढ़ता स्ट्रेस,घटता वर्क-लाइफ बैलेंस,जॉब से लोग क्यों निराश?

Quiet Quitting यानी खामोशी से उतने ही समय काम करना जितने के लिए सैलरी मिलती है.

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सोशल मीडिया से जुड़ी दुनिया की एक बड़ी आबादी 'क्वाइट क्विटिंग' (Quiet Quitting) नाम का एक ट्रेंड, जो कि नया नहीं पर, नए तरीके से सामने आया है से प्रभावित हो रही है. 

दुनिया भर में बड़ी तादाद में युवा ऑफिस में वर्क कल्चर के बढ़ते दबाव और निजी जिंदगी में दखल के कारण या तो नौकरी छोड़ रहे हैं या सिर्फ उतना ही काम कर रहे हैं और काम को समय दे रहे हैं, जितने की उन्हें सैलरी मिलती है. 

'क्वाइट क्विटिंग' (Quiet Quitting) यानी खामोशी से उतने ही समय काम करना जितने के लिए सैलरी मिलती है.

Quiet Quitting: बढ़ता स्ट्रेस,घटता वर्क-लाइफ बैलेंस,जॉब से लोग क्यों निराश?

  1. 1. बढ़ता स्ट्रेस और घटता वर्क लाइफ बैलेंस 

    भारतीय डॉक्टरों ने भी देश के युवाओं में बढ़ते हार्ट अटैक का प्रमुख कारण स्ट्रेस को बताया है.

    ऑफिस का काम और उससे जुड़े स्ट्रेस को अनुभव लगभग सभी ने किया होता है. ऐसा नहीं है कि स्ट्रेस बस ऑफिस के काम से ही होता या बढ़ता है. हमारी लाइफस्टाइल, बढ़ती महंगाई, आसपास का माहौल, रिश्ते और भी न जाने क्या-क्या स्ट्रेस के कारण होते है.

    पर ऑफिस का स्ट्रेस एक ऐसा बुरा अनुभव है, जिसका कोई हल न निकाला जाए तो हर दिन और सालों साल उससे जूझना पड़ सकता है. जिसका बुरा असर केवल उस व्यक्ति के हेल्थ पर नहीं बल्कि परिवार, समाज और देश की अगली पीढ़ी पर भी पड़ता है.

    बढ़ते स्ट्रेस और घटते वर्क लाइफ बैलेंस ने टिक-टॉक एप पर लगायी गयी 'क्वाइट क्विटिंग' (Quiet Quitting) की चिंगारी को आग में घी देने का काम किया है.

    आइए जानते हैं कि क्वाइट क्विटिंग ट्रेंड कहां से और कैसे शुरू हुआ? क्वाइट क्विटिंग पर क्या है यंग प्रोफेशनल्स और साइकोलॉजिस्ट का कहना.

    सोशल मीडिया पर चल रहे ट्रेंड और उससे जुड़े वाद-विवाद की मानें तो युवाओं का एक बड़ा वर्ग कहता है कि ऑफिस का वातावरण उनके मुताबिक नहीं है और वो काम के प्रेशर से जूझ रहे हैं. काम के प्रेशर की वजह से लोग अपने परिवार और ऑफिस के बीच संतुलन नहीं बना पा रहे हैं, जिसकी वजह से वो डिप्रेशन में जा रहे हैं.

    दूसरी ओर कुछ लोगों का ये भी कहना है कि ये आलस्य को बढ़ावा देने वाला ट्रेंड है. कम काम करने का बहाना खोजने वाले इसे ट्रेंड का नाम दे रहे हैं.

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  2. 2. Quiet Quitting ट्रेंड कहां से शुरू हुआ?

    इस ट्रेंड की शुरुआत सोशल मीडिया एप टिक-टॉक से हुई. एक टिक-टॉक इनफ्लुएंसर ने इसे शुरू किया, जिससे देखते ही देखते लोग जुड़ते चले गए. टिक-टॉक इनफ्लुएंसर ने वीडियो के माध्यम से लोगों को बताया कि अगर आप काम का ज्यादा प्रेशर ले रहे हैं, तो आप 'क्वाइट क्विटिंग' (Quiet Quitting) को जरूर अपनाएं.

    इसमें बताया गया है कि जितनी आपकी सैलरी है, कंपनी को उतना ही समय देने की जरूरत है. उससे ज्यादा समय देकर आप अपनी पर्सनल लाइफ को नुकसान पहुंचा रहे हैं. दिन के 8 घंटे की जॉब को 12-14 घंटे देना गलत है.

    ऑफिस में चाहे जितना भी हो काम आप अपने समय के मुताबिक काम खत्म करें. अगर काम पूरा नहीं होता है और आपकी छुट्टी का समय हो जाता है, तो आप अपने घर निकल जाए, बचा हुआ काम कल हो जाएगा.

    "प्राइवेट सेक्टर में काम करते हुए मुझे 7 साल हो गए हैं. दिन रात काम करते-करते मैं थक गया था. बॉस को खुश रखने के चक्कर में परिवार से दूर होता जा रहा था. समझ नहीं आ रहा था कि खुद को इस स्थिति से कैसे बाहर निकालूं? फिर मेरे जैसे ही बॉस से परेशान एक दोस्त ने मुझे Quit quitting के बारे में बताया."
    साहिल रस्तोगी, बैंगलोर
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  3. 3. क्या है Quiet Quitting पर युवाओं का कहना?

    गुरुग्राम के पीआर एजेंसी (PR Agency) में काम करने वाली मानवी फिट हिंदी को बताती हैं, "Quiet Quitting ट्रेंडिंग इसलिए है, क्योंकि अब लोग वर्क लाइफ बैलेंस की खोज में हैं. वो पूरा-पूरा दिन बैठकर ऑफिस का काम नहीं करते रहना चाहते. जिंदगी में और भी जरूरी बातें हैं, जिस पर वो ध्यान देना चाहते हैं. और उसके लिए जरूरी है वक्त. इसलिए जहां वर्कलोड हद से ज्यादा हो जाता है, वहां लोग धीरे-धीरे Quiet Quitting अपनाने लगते हैं".

    "Quiet Quitting इस सोच का प्रतिनिधित्व करता है कि लोग उतना ही काम करें, जितने की आवश्यकता है, और जो उनके रोल के दायरे में है, ताकि वे अपनी सेहत का ध्यान रख सकें वर्क लाइफ बैलेंस मेंटेन कर सकें".
    डॉ कामना छिबर, क्लिनिकल ​​साइकोलॉजिस्ट, हेड- मेंटल हेल्थ, मेंटल हेल्थ और बेहवियरल साइंस विभाग, फोर्टिस हेल्थकेयर

    "Quiet Quitting पॉजिटिव नहीं है, क्योंकि ये नौकरीपेशा लोगों में निराशा और उम्मीद की किरणों के मध्यम होने का प्रतीक है. ग्रोथ और सफलता से मुंह मोड़ने का ट्रेंड है और इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ बॉस या कंपनी होती है. इससे किसी का भला नहीं होने वाला है" ये कहना है बैंगलोर की एक आईटी कंपनी में काम कर रहे शायन विक्टर (बदला हुआ नाम) का.

    फिट हिंदी ने MyITreturn वेबसाइट के युवा जनरल मैनेजर अंशल ठाकुर से इस बारे में जानना चाहा तो उन्होंने उदाहरण दे अपनी बात कही, "जब आपका कर्मचारी काम देने पर आपसे सवाल करे और कुछ ऐसी बातें कहे कि आपका ही पहले का दिया हुआ काम कर रहा हूं, अब आप नया काम दे रहे हैं. आप बताएं कौन सा पहले करूं? ये पहले वाला काम रोक दूं? तब समझ जाना चाहिए कि ये Quiet Quitting के संकेत हैं".

    "ऐसा कभी-कभी मैंने अपने 12 वर्षो के कार्यकाल में लोगों को कहते सुना है. तब मैं समझ जाता हूं कि इस इंसान को अब काम करने में ज्यादा रूचि नहीं रही. जल्द ही ये काम छोड़ भी सकता है और मुझे एक अल्टरनेटिव का इंतजाम करना होगा.
    अंशल ठाकुर, जनरल मैनेजर, स्कोरीडोव
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  4. 4. क्यों ट्रेंड कर रहा है Quiet Quitting?

    "दरअसल, दुनियाभर के नौकरीपेशा लोग ऑफिस में एक्स्ट्रा काम, दफ्तर से घर आने के बाद ऑफिस का काम और छुट्टी के दिन भी घर को वर्क प्लेस बना देना जैसी कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं. जिसकी वजह से वो अपने और अपने परिवार के लिए क्वालिटी टाइम नहीं निकाल पा रहे हैं. बता दें कि इन्हीं समस्याओं के कारण इससे पहले 'द ग्रेट रेजिग्नेशन' (The Great Resignation) का ट्रेंड शुरू हुआ था और अब Quiet Quitting की आंधी चल पड़ी है. हालांकि क्वाइट क्विटिंग और द ग्रेट रेजिग्नेशन में अंतर है."
    शायन विक्टर, बैंगलोर

    वहीं कोलकाता के एक फर्म में मैनेजर आसिया रहमान कहती हैं, "आजकल यह इंटरनेट पर इसलिए इतना ट्रेंड कर रहा है, क्योंकि महामारी के दौरान लोग वर्क लाइफ बैलेंस बिलकुल भूल चुके हैं. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बार-बार बर्नआउट जैसे मुद्दों पर ध्यान देने को कहा है, जो कई लोगों के वर्कहॉलिक होने के कारण होता है.

    हैदराबाद के एक मीडिया हाउस में काम कर रही सोनम कहती हैं, "मेरे हिसाब से ऑफिस का काम पूरी मेहनत और ईमानदारी से निर्धारित समय पर करना और ऑफिस आवर खत्म होने पर पर्सनल लाइफ जीना Quiet Quitting का सही मतलब है. आज के युवा ऐसी ही जिंदगी की तलाश में हैं इसलिए ये ट्रेंड कर रहा है".

    Quiet Quitting पर हमने कुछ कंपनियों के सीईओ और एचआर हेड्स से भी संपर्क किया, पर उनमें से ज्यादतर ने कमेंट करने से मना कर दिया और 2 ने तो कॉमेंट करने के कुछ समय बाद उसे वापस ले लिया.
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  5. 5. क्या हेल्दी है दिन के 18 घंटे काम करना?

    हम सभी ने टॉक्सिक वर्क एड्वाइस (toxic work advice) बहुत सुनी है, लेकिन हाल ही में बॉम्बे शेविंग कंपनी के सीईओ शांतनु देशपांडे की सलाह ने ऐसी सभी सलाहों को मात दे दी. 20 से 30 साल के युवाओं को दिन में बिना रोना-धोना किए 18 घंटे काम करने की सलाह ने सोशल मीडिया पर नयी बहस छेड़ दी.

    "ये बात बिल्कुल गलत है और मेरे ख्याल से ऐसा नहीं करना चाहिए. मैं समझ सकती हूं कि अभी मेरा करियर शुरू ही हुआ है और अभी मैं सीख रही हूं, पर ऐसे दास (slave) नहीं हैं हम. लाइफ में बैलेंस होना बहुत जरूरी है और अगर नहीं है, तो आगे गंभीर समस्याएं आ सकती हैं. हेल्थ को नुकसान पहुंचेगा, परिवार और  दोस्तों से दूरी बन जाएगी. काम अपनी जगह है और पर्सनल लाइफ अपनी जगह."
    मानवी

    आसिया कहती हैं, "यह युवाओं में प्रोडक्टिव काम कम करने का कारण बन सकता है. हमारा दिमाग भी एक मशीन की तरह है अगर उस मशीन में तेल जिसको हम अच्छा खाना और निर्धारित नींद बोलते है, न ले तो यह सब हमारे काम को बिगड़ सकता है. जितना जरूरी काम करना है उतना ही जरूरी अपने आप को टाइम देना और शरीर को रेस्ट देना भी है".

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  6. 6. "पता नहीं था कि बर्नआउट इतना गंभीर भी हो सकता है"

    "बर्नआउट के दो मुख्य कारण हो सकते हैं - एक कि अक्सर ऑफिस में लोगों को अपने टारगेट तक पहुंचने के लिए पुश किया जाता है, और दूसरा कि लोग खुद अपने बनाए लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अधिक से अधिक काम करना चाहते हैं".
    डॉ कामना छिबर, क्लिनिकल ​​साइकोलॉजिस्ट, हेड- मेंटल हेल्थ, मेंटल हेल्थ और बेहवियरल साइंस विभाग, फोर्टिस हेल्थकेयर

    दिन के 12-14 घंटे ऑफिस के काम ने ऋचा को हॉस्पिटल के चक्कर लगवा दिए. फिट हिंदी को अपना हाल ऋचा ने कुछ ऐसे सुनाया.

    "मुझे नहीं पता था कि बर्नआउट इतना गंभीर भी हो सकता है, जब तक मैं उसका शिकार नहीं बनी. मैं भयानक दर्द से लड़ रही थी. मुझे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. तब जा कर मुझे पता चला कि महीनों बहुत ज्यादा दबाव में सुबह से रात तक और वीकेंड पर भी बिना किसी ब्रेक के काम करने का हर्जाना मुझे भुगतना पड़ रहा था. मुझे कंसन्ट्रेट करने में मुश्किलें आ रही थी".
    ऋचा भगत (बदला हुआ नाम)

    ऋचा आगे कहती हैं, "मैंने रुचि खो दी, वजन बढ़ गया, नींद नहीं आती थी. भले ही मैंने जल्द अपनी नौकरी छोड़ दी, लेकिन मैं आज तक इसके परिणामों से जूझ रही हूं. क्योंकि शरीर और दिमाग को इस तरह के उच्च स्तर के तनाव से उबरने में समय लगता है".

    "हां, कंपनी अक्सर मानसिक स्वास्थ्य के महत्व के बारे में बात करती है और महीने में एक बार कुछ मजेदार खेल और गतिविधियों का आयोजन भी करती है लेकिन इसका कोई मतलब नहीं है, जब तक कि बॉस/मैनेजमेंट सही उदाहरण निर्धारित नहीं करते हैं. साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कर्मचारियों की बात सुनी जाए."
    ऋचा भगत
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  7. 7. 'फ्लेक्सिबल' टाइमिंग के नाम पर सुबह 7 बजे से रात 10 बजे तक काम

    "ऑफिस प्रेशर के कारण मैं हर रोज स्ट्रेस और प्रेशर महसूस करती थी. साथ ही मैं गिल्टी महसूस कर रही थी कि मैंने अपने बच्चे को पर्याप्त समय नहीं दिया या उसके लिए और अधिक कर सकती थी जो नहीं किया. मैंने सेल्फ केयर को प्राथमिकता नहीं दी, जिससे मेरे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा" ये बताते हुए आसिया इमोशनल हो गयीं.

    "मेरे शारीरिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा क्योंकि मैं 'फ्लेक्सिबल' टाइमिंग के कारण सुबह 7 बजे से रात 10 बजे तक काम कर रही थी. जिस कारण मुझे पीठ दर्द, नसों में दर्द और नींद की कमी का अनुभव हो रहा था. इसके अलावा मुझ पर सामाजिक दबाव भी था. परिवार और दोस्तों को समय नहीं दे पाती थी.
    आसिया
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  8. 8. Quite Quitting ने दिया जन्म Quite Firing को

    Quiet Firing उसे कहते हैं, जब बॉस द्वारा बिना नौकरी से निकाले किसी कर्मचारी की जिम्मेदारियों और सपोर्ट सिस्टम को धीरे-धीरे वापस ले लिया जाए. इसमें न तो काम की प्रशंसा की जाती है और ना ही तरक्की दी जाती है.

    अंशल कहते हैं, "अगर एक एम्प्लॉई (employee) की तरफ से सोचूं तो ज्यादातर लोग अधिक सैलरी की महत्वकांक्षा हो जाने के कारण ऐसा सोचने लगते हैं. स्वाभाविक है और ये एक लिहाज से सही ही है क्योंकि समय के साथ जरूरतें भी बढ़ती हैं. पर एक एम्प्लॉयर (employer) के नाते उन्हें समझाना चाहता हूं कि किसी भी कंपनी में एक पद की सैलरी की एक सीमा होती है. जब तक आप अपने स्किल को और बेहतर नहीं बनायेंगे, नई-नई चीजें नहीं सीखेंगे, तो आप और आगे नहीं बढ़ पाएंगे".

    "सिर्फ एक तरह के काम को करते हुए आप चाहेंगे कि कंपनी आपकी सैलरी बढ़ाते जाए तो ऐसा नहीं होगा. आपको मल्टी टास्किंग होते रहना पड़ेगा. कम से कम एक छोटे और माध्यम वर्गीय प्राइवेट संस्था में की यही हकीकत है और रहेगी".
    अंशल ठाकुर, जनरल मैनेजर, स्कोरीडोव
    Expand
  9. 9. क्या तरक्की के लिए ईमानदारी से किया गया काम काफी नहीं?

    सवाल ये है कि क्या तरक्की या ग्रोथ पाने के लिए निर्धारित समय पर ईमानदारी से किया गया काम काफी नहीं है? बॉस को इम्प्रेस करने के लिए निर्धारित समय से कहीं ज्यादा समय तक काम करना और घर को भी ऑफिस बना लेना एक मात्र रास्ता है?

    इस लेख के दौरान जितने भी लोगों से बातचीत हुई सभी ने एक बात पर सहमति जताई कि एक डर लगा रहता है कि कहीं ऑफिस टाइम के बाद एक्स्ट्रा काम नहीं करने और छुट्टी के दिन काम को मना कर देने से बॉस नाराज हो जाए तो प्रमोशन और अप्रेजल पर तलवार गिर पड़ेगी, इस लिए वो चुप-चाप काम करते जाते हैं.

    बढ़ती महंगाई, बीमारियां, सिर के ऊपर अपनी छत होने की ख्वाहिश, जिंदगी को अपने और अपनों के लिए पहले से बेहतर बनाने का सपना नौकरीपेशा वालों को दो धारी तलवार पर चलने के लिए मजबूर किए रहता है. एक तरफ जरूरतें और ख्वाहिशें हैं, तो दूसरी ओर अपनों के साथ सुकून के पल जीने की तमन्ना.

    उम्मीद है, नए-पुराने ट्रेंड का पॉजिटिव असर लोगों पर हो और जिंदगी में जिसकी जो प्राथमिकता है उसे वो मिले.

    (हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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बढ़ता स्ट्रेस और घटता वर्क लाइफ बैलेंस 

भारतीय डॉक्टरों ने भी देश के युवाओं में बढ़ते हार्ट अटैक का प्रमुख कारण स्ट्रेस को बताया है.

ऑफिस का काम और उससे जुड़े स्ट्रेस को अनुभव लगभग सभी ने किया होता है. ऐसा नहीं है कि स्ट्रेस बस ऑफिस के काम से ही होता या बढ़ता है. हमारी लाइफस्टाइल, बढ़ती महंगाई, आसपास का माहौल, रिश्ते और भी न जाने क्या-क्या स्ट्रेस के कारण होते है.

पर ऑफिस का स्ट्रेस एक ऐसा बुरा अनुभव है, जिसका कोई हल न निकाला जाए तो हर दिन और सालों साल उससे जूझना पड़ सकता है. जिसका बुरा असर केवल उस व्यक्ति के हेल्थ पर नहीं बल्कि परिवार, समाज और देश की अगली पीढ़ी पर भी पड़ता है.

बढ़ते स्ट्रेस और घटते वर्क लाइफ बैलेंस ने टिक-टॉक एप पर लगायी गयी 'क्वाइट क्विटिंग' (Quiet Quitting) की चिंगारी को आग में घी देने का काम किया है.

आइए जानते हैं कि क्वाइट क्विटिंग ट्रेंड कहां से और कैसे शुरू हुआ? क्वाइट क्विटिंग पर क्या है यंग प्रोफेशनल्स और साइकोलॉजिस्ट का कहना.

सोशल मीडिया पर चल रहे ट्रेंड और उससे जुड़े वाद-विवाद की मानें तो युवाओं का एक बड़ा वर्ग कहता है कि ऑफिस का वातावरण उनके मुताबिक नहीं है और वो काम के प्रेशर से जूझ रहे हैं. काम के प्रेशर की वजह से लोग अपने परिवार और ऑफिस के बीच संतुलन नहीं बना पा रहे हैं, जिसकी वजह से वो डिप्रेशन में जा रहे हैं.

दूसरी ओर कुछ लोगों का ये भी कहना है कि ये आलस्य को बढ़ावा देने वाला ट्रेंड है. कम काम करने का बहाना खोजने वाले इसे ट्रेंड का नाम दे रहे हैं.

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Quiet Quitting ट्रेंड कहां से शुरू हुआ?

इस ट्रेंड की शुरुआत सोशल मीडिया एप टिक-टॉक से हुई. एक टिक-टॉक इनफ्लुएंसर ने इसे शुरू किया, जिससे देखते ही देखते लोग जुड़ते चले गए. टिक-टॉक इनफ्लुएंसर ने वीडियो के माध्यम से लोगों को बताया कि अगर आप काम का ज्यादा प्रेशर ले रहे हैं, तो आप 'क्वाइट क्विटिंग' (Quiet Quitting) को जरूर अपनाएं.

इसमें बताया गया है कि जितनी आपकी सैलरी है, कंपनी को उतना ही समय देने की जरूरत है. उससे ज्यादा समय देकर आप अपनी पर्सनल लाइफ को नुकसान पहुंचा रहे हैं. दिन के 8 घंटे की जॉब को 12-14 घंटे देना गलत है.

ऑफिस में चाहे जितना भी हो काम आप अपने समय के मुताबिक काम खत्म करें. अगर काम पूरा नहीं होता है और आपकी छुट्टी का समय हो जाता है, तो आप अपने घर निकल जाए, बचा हुआ काम कल हो जाएगा.

"प्राइवेट सेक्टर में काम करते हुए मुझे 7 साल हो गए हैं. दिन रात काम करते-करते मैं थक गया था. बॉस को खुश रखने के चक्कर में परिवार से दूर होता जा रहा था. समझ नहीं आ रहा था कि खुद को इस स्थिति से कैसे बाहर निकालूं? फिर मेरे जैसे ही बॉस से परेशान एक दोस्त ने मुझे Quit quitting के बारे में बताया."
साहिल रस्तोगी, बैंगलोर
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क्या है Quiet Quitting पर युवाओं का कहना?

गुरुग्राम के पीआर एजेंसी (PR Agency) में काम करने वाली मानवी फिट हिंदी को बताती हैं, "Quiet Quitting ट्रेंडिंग इसलिए है, क्योंकि अब लोग वर्क लाइफ बैलेंस की खोज में हैं. वो पूरा-पूरा दिन बैठकर ऑफिस का काम नहीं करते रहना चाहते. जिंदगी में और भी जरूरी बातें हैं, जिस पर वो ध्यान देना चाहते हैं. और उसके लिए जरूरी है वक्त. इसलिए जहां वर्कलोड हद से ज्यादा हो जाता है, वहां लोग धीरे-धीरे Quiet Quitting अपनाने लगते हैं".

"Quiet Quitting इस सोच का प्रतिनिधित्व करता है कि लोग उतना ही काम करें, जितने की आवश्यकता है, और जो उनके रोल के दायरे में है, ताकि वे अपनी सेहत का ध्यान रख सकें वर्क लाइफ बैलेंस मेंटेन कर सकें".
डॉ कामना छिबर, क्लिनिकल ​​साइकोलॉजिस्ट, हेड- मेंटल हेल्थ, मेंटल हेल्थ और बेहवियरल साइंस विभाग, फोर्टिस हेल्थकेयर

"Quiet Quitting पॉजिटिव नहीं है, क्योंकि ये नौकरीपेशा लोगों में निराशा और उम्मीद की किरणों के मध्यम होने का प्रतीक है. ग्रोथ और सफलता से मुंह मोड़ने का ट्रेंड है और इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ बॉस या कंपनी होती है. इससे किसी का भला नहीं होने वाला है" ये कहना है बैंगलोर की एक आईटी कंपनी में काम कर रहे शायन विक्टर (बदला हुआ नाम) का.

फिट हिंदी ने MyITreturn वेबसाइट के युवा जनरल मैनेजर अंशल ठाकुर से इस बारे में जानना चाहा तो उन्होंने उदाहरण दे अपनी बात कही, "जब आपका कर्मचारी काम देने पर आपसे सवाल करे और कुछ ऐसी बातें कहे कि आपका ही पहले का दिया हुआ काम कर रहा हूं, अब आप नया काम दे रहे हैं. आप बताएं कौन सा पहले करूं? ये पहले वाला काम रोक दूं? तब समझ जाना चाहिए कि ये Quiet Quitting के संकेत हैं".

"ऐसा कभी-कभी मैंने अपने 12 वर्षो के कार्यकाल में लोगों को कहते सुना है. तब मैं समझ जाता हूं कि इस इंसान को अब काम करने में ज्यादा रूचि नहीं रही. जल्द ही ये काम छोड़ भी सकता है और मुझे एक अल्टरनेटिव का इंतजाम करना होगा.
अंशल ठाकुर, जनरल मैनेजर, स्कोरीडोव
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क्यों ट्रेंड कर रहा है Quiet Quitting?

"दरअसल, दुनियाभर के नौकरीपेशा लोग ऑफिस में एक्स्ट्रा काम, दफ्तर से घर आने के बाद ऑफिस का काम और छुट्टी के दिन भी घर को वर्क प्लेस बना देना जैसी कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं. जिसकी वजह से वो अपने और अपने परिवार के लिए क्वालिटी टाइम नहीं निकाल पा रहे हैं. बता दें कि इन्हीं समस्याओं के कारण इससे पहले 'द ग्रेट रेजिग्नेशन' (The Great Resignation) का ट्रेंड शुरू हुआ था और अब Quiet Quitting की आंधी चल पड़ी है. हालांकि क्वाइट क्विटिंग और द ग्रेट रेजिग्नेशन में अंतर है."
शायन विक्टर, बैंगलोर

वहीं कोलकाता के एक फर्म में मैनेजर आसिया रहमान कहती हैं, "आजकल यह इंटरनेट पर इसलिए इतना ट्रेंड कर रहा है, क्योंकि महामारी के दौरान लोग वर्क लाइफ बैलेंस बिलकुल भूल चुके हैं. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बार-बार बर्नआउट जैसे मुद्दों पर ध्यान देने को कहा है, जो कई लोगों के वर्कहॉलिक होने के कारण होता है.

हैदराबाद के एक मीडिया हाउस में काम कर रही सोनम कहती हैं, "मेरे हिसाब से ऑफिस का काम पूरी मेहनत और ईमानदारी से निर्धारित समय पर करना और ऑफिस आवर खत्म होने पर पर्सनल लाइफ जीना Quiet Quitting का सही मतलब है. आज के युवा ऐसी ही जिंदगी की तलाश में हैं इसलिए ये ट्रेंड कर रहा है".

Quiet Quitting पर हमने कुछ कंपनियों के सीईओ और एचआर हेड्स से भी संपर्क किया, पर उनमें से ज्यादतर ने कमेंट करने से मना कर दिया और 2 ने तो कॉमेंट करने के कुछ समय बाद उसे वापस ले लिया.
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क्या हेल्दी है दिन के 18 घंटे काम करना?

हम सभी ने टॉक्सिक वर्क एड्वाइस (toxic work advice) बहुत सुनी है, लेकिन हाल ही में बॉम्बे शेविंग कंपनी के सीईओ शांतनु देशपांडे की सलाह ने ऐसी सभी सलाहों को मात दे दी. 20 से 30 साल के युवाओं को दिन में बिना रोना-धोना किए 18 घंटे काम करने की सलाह ने सोशल मीडिया पर नयी बहस छेड़ दी.

"ये बात बिल्कुल गलत है और मेरे ख्याल से ऐसा नहीं करना चाहिए. मैं समझ सकती हूं कि अभी मेरा करियर शुरू ही हुआ है और अभी मैं सीख रही हूं, पर ऐसे दास (slave) नहीं हैं हम. लाइफ में बैलेंस होना बहुत जरूरी है और अगर नहीं है, तो आगे गंभीर समस्याएं आ सकती हैं. हेल्थ को नुकसान पहुंचेगा, परिवार और  दोस्तों से दूरी बन जाएगी. काम अपनी जगह है और पर्सनल लाइफ अपनी जगह."
मानवी

आसिया कहती हैं, "यह युवाओं में प्रोडक्टिव काम कम करने का कारण बन सकता है. हमारा दिमाग भी एक मशीन की तरह है अगर उस मशीन में तेल जिसको हम अच्छा खाना और निर्धारित नींद बोलते है, न ले तो यह सब हमारे काम को बिगड़ सकता है. जितना जरूरी काम करना है उतना ही जरूरी अपने आप को टाइम देना और शरीर को रेस्ट देना भी है".

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"पता नहीं था कि बर्नआउट इतना गंभीर भी हो सकता है"

"बर्नआउट के दो मुख्य कारण हो सकते हैं - एक कि अक्सर ऑफिस में लोगों को अपने टारगेट तक पहुंचने के लिए पुश किया जाता है, और दूसरा कि लोग खुद अपने बनाए लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अधिक से अधिक काम करना चाहते हैं".
डॉ कामना छिबर, क्लिनिकल ​​साइकोलॉजिस्ट, हेड- मेंटल हेल्थ, मेंटल हेल्थ और बेहवियरल साइंस विभाग, फोर्टिस हेल्थकेयर

दिन के 12-14 घंटे ऑफिस के काम ने ऋचा को हॉस्पिटल के चक्कर लगवा दिए. फिट हिंदी को अपना हाल ऋचा ने कुछ ऐसे सुनाया.

"मुझे नहीं पता था कि बर्नआउट इतना गंभीर भी हो सकता है, जब तक मैं उसका शिकार नहीं बनी. मैं भयानक दर्द से लड़ रही थी. मुझे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. तब जा कर मुझे पता चला कि महीनों बहुत ज्यादा दबाव में सुबह से रात तक और वीकेंड पर भी बिना किसी ब्रेक के काम करने का हर्जाना मुझे भुगतना पड़ रहा था. मुझे कंसन्ट्रेट करने में मुश्किलें आ रही थी".
ऋचा भगत (बदला हुआ नाम)

ऋचा आगे कहती हैं, "मैंने रुचि खो दी, वजन बढ़ गया, नींद नहीं आती थी. भले ही मैंने जल्द अपनी नौकरी छोड़ दी, लेकिन मैं आज तक इसके परिणामों से जूझ रही हूं. क्योंकि शरीर और दिमाग को इस तरह के उच्च स्तर के तनाव से उबरने में समय लगता है".

"हां, कंपनी अक्सर मानसिक स्वास्थ्य के महत्व के बारे में बात करती है और महीने में एक बार कुछ मजेदार खेल और गतिविधियों का आयोजन भी करती है लेकिन इसका कोई मतलब नहीं है, जब तक कि बॉस/मैनेजमेंट सही उदाहरण निर्धारित नहीं करते हैं. साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कर्मचारियों की बात सुनी जाए."
ऋचा भगत
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'फ्लेक्सिबल' टाइमिंग के नाम पर सुबह 7 बजे से रात 10 बजे तक काम

"ऑफिस प्रेशर के कारण मैं हर रोज स्ट्रेस और प्रेशर महसूस करती थी. साथ ही मैं गिल्टी महसूस कर रही थी कि मैंने अपने बच्चे को पर्याप्त समय नहीं दिया या उसके लिए और अधिक कर सकती थी जो नहीं किया. मैंने सेल्फ केयर को प्राथमिकता नहीं दी, जिससे मेरे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा" ये बताते हुए आसिया इमोशनल हो गयीं.

"मेरे शारीरिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा क्योंकि मैं 'फ्लेक्सिबल' टाइमिंग के कारण सुबह 7 बजे से रात 10 बजे तक काम कर रही थी. जिस कारण मुझे पीठ दर्द, नसों में दर्द और नींद की कमी का अनुभव हो रहा था. इसके अलावा मुझ पर सामाजिक दबाव भी था. परिवार और दोस्तों को समय नहीं दे पाती थी.
आसिया
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Quite Quitting ने दिया जन्म Quite Firing को

Quiet Firing उसे कहते हैं, जब बॉस द्वारा बिना नौकरी से निकाले किसी कर्मचारी की जिम्मेदारियों और सपोर्ट सिस्टम को धीरे-धीरे वापस ले लिया जाए. इसमें न तो काम की प्रशंसा की जाती है और ना ही तरक्की दी जाती है.

अंशल कहते हैं, "अगर एक एम्प्लॉई (employee) की तरफ से सोचूं तो ज्यादातर लोग अधिक सैलरी की महत्वकांक्षा हो जाने के कारण ऐसा सोचने लगते हैं. स्वाभाविक है और ये एक लिहाज से सही ही है क्योंकि समय के साथ जरूरतें भी बढ़ती हैं. पर एक एम्प्लॉयर (employer) के नाते उन्हें समझाना चाहता हूं कि किसी भी कंपनी में एक पद की सैलरी की एक सीमा होती है. जब तक आप अपने स्किल को और बेहतर नहीं बनायेंगे, नई-नई चीजें नहीं सीखेंगे, तो आप और आगे नहीं बढ़ पाएंगे".

"सिर्फ एक तरह के काम को करते हुए आप चाहेंगे कि कंपनी आपकी सैलरी बढ़ाते जाए तो ऐसा नहीं होगा. आपको मल्टी टास्किंग होते रहना पड़ेगा. कम से कम एक छोटे और माध्यम वर्गीय प्राइवेट संस्था में की यही हकीकत है और रहेगी".
अंशल ठाकुर, जनरल मैनेजर, स्कोरीडोव
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क्या तरक्की के लिए ईमानदारी से किया गया काम काफी नहीं?

सवाल ये है कि क्या तरक्की या ग्रोथ पाने के लिए निर्धारित समय पर ईमानदारी से किया गया काम काफी नहीं है? बॉस को इम्प्रेस करने के लिए निर्धारित समय से कहीं ज्यादा समय तक काम करना और घर को भी ऑफिस बना लेना एक मात्र रास्ता है?

इस लेख के दौरान जितने भी लोगों से बातचीत हुई सभी ने एक बात पर सहमति जताई कि एक डर लगा रहता है कि कहीं ऑफिस टाइम के बाद एक्स्ट्रा काम नहीं करने और छुट्टी के दिन काम को मना कर देने से बॉस नाराज हो जाए तो प्रमोशन और अप्रेजल पर तलवार गिर पड़ेगी, इस लिए वो चुप-चाप काम करते जाते हैं.

बढ़ती महंगाई, बीमारियां, सिर के ऊपर अपनी छत होने की ख्वाहिश, जिंदगी को अपने और अपनों के लिए पहले से बेहतर बनाने का सपना नौकरीपेशा वालों को दो धारी तलवार पर चलने के लिए मजबूर किए रहता है. एक तरफ जरूरतें और ख्वाहिशें हैं, तो दूसरी ओर अपनों के साथ सुकून के पल जीने की तमन्ना.

उम्मीद है, नए-पुराने ट्रेंड का पॉजिटिव असर लोगों पर हो और जिंदगी में जिसकी जो प्राथमिकता है उसे वो मिले.

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