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World Asthma Day 2023: अस्थमा से पीड़ित लोगों की संख्या दुनिया भर में बढ़ती जा रही है. आज दुनिया भर में वर्ल्ड अस्थमा डे मनाया जा रहा है. दुनियाभर में 300 मिलियन से अधिक लोग अस्थमा से पीड़ित हैं. इनमें से करीब 38 मिलियन अस्थमा रोगी भारत में मौजूद हैं. अस्थमा मुख्य रूप से एलर्जी से होने वाला रोग है, लेकिन कई बार कुछ अस्थमा रोगी ऐसे भी होते हैं, जिनके मामले में किसी प्रकार की एलर्जी का पता नहीं चल पाता. कई बार उम्र बढ़ने और कुछ लोगों में वृद्धावस्था की वजह से भी अस्थमा होता है. धूम्रपान के कारण भी अस्थमा अटैक होता है, लेकिन हाल के वर्षों में वायु प्रदूषण को अस्थमा के एक बड़े कारण के रूप में देखा जाने लगा है.
आइए जानते हैं एक्सपर्ट्स से कैसे वायु प्रदूषण अस्थमा के लक्षणों को बिगाड़ता है? भारत के बड़े शहरों में क्यों तेजी से बढ़ रहा वायु प्रदूषण? अस्थमा मरीजों पर कैसा पड़ता है वायु प्रदूषण का प्रभाव? अस्थमा के रोगियों को क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
वायु प्रदूषण, दमा यानी अस्थमा को बढ़ाने वाले आम कारणों में से एक है. वायु प्रदूषण के कारण फेफड़ों में ब्रोन्कियल ट्यूब (श्वास नली) में सूजन होती है और वह फूल जाती है. ब्रोन्कियल ट्यूब में छोटे-छोटे बालों की परत होती है, जिसे सिलिया कहते हैं. सिलिया फेफड़ों से म्यूकस और गंदगी को बाहर निकलने में मदद करती है. जब वायु प्रदूषण फेफड़ों में प्रवेश करता है, तो यह सिलिया को क्षतिग्रस्त करता है और इस कारण से ब्रोन्कियल ट्यूब की परत सूज कर फूल जाती है. इससे फेफड़ों में वायु के प्रवेश और निकास में कठिनाई होती है, जिसके कारण खांसी, सांस में घरघराहट, और सांस लेने में कठिनाई जैसे अस्थमा के लक्षण पैदा हो जाते हैं.
ये कण आम तौर पर धुंध, धुआं और धूल में पाए जाते हैं और अस्थमा के शिकार लोगों के लिए काफी खतरा पैदा कर सकते हैं. वायु प्रदूषण दमा के दौरे की तीव्रता और फ्रीक्वेंसी भी बढ़ा सकता है.
वायु प्रदूषण का उच्च स्तर, विशेषकर गर्म और ड्राई मौसम के दौरान, अस्थमा के लक्षण को उत्तेजित कर सकता है, जिसके कारण अस्पताल में इमरजेंसी में भर्ती होना पड़ सकता है. अस्थमा के शिकार लोग जो नियमित रूप से उच्च स्तर के वायु प्रदूषण के बीच रहते हैं, उन्हें अपनी स्थिति सम्भालने में ज्यादा कठिनाई और बार-बार दवा या दूसरे उपचारों की आवश्यकता हो सकती है.
यह देखा गया है कि वायु प्रदूषण में वृद्धि के कारण अस्थमा रोगियों का अस्थमा नियंत्रण बिगड़ जाता है. दूसरे शब्दों में, व्यक्तियों में अस्थमा के लक्षणों में वृद्धि होती है, या अस्थमा ट्रिगर हो जाता है.
जिन लोगों को वर्तमान में अस्थमा है, उनके वायु प्रदूषण के संपर्क में आने पर अस्थमा बिगड़ने के चांस ज्यादा रहेंगे.
डॉ. सौरभ पाहूजा आगे कहते हैं, "अगर हम इसके मुख्य कारणों की बात करें, तो जिस तरह से हम डेवलप्ड कंट्री बनना चाह रहे हैं, उस वजह से हम आजकल प्राइवेट गाड़ियों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसमें इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इस्तेमाल काफी कम है. बढ़ती जरूरतों और बढ़ती आबादी के साथ हमारी इंडस्ट्रियल आउटपुट भी बहुत ज्यादा बढ़ रही है और इंडस्ट्रियल आउटपुट जब बढ़ेगा तो इंडस्ट्रीज से पोलूशन भी बढ़ेगा. उसके अलावा लोगों में जागरूकता की कमी है. खासकर, हमारे किसान भाइयों में जो इस पराली को जला रहे हैं, इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है और वो न केवल महानगरों को बल्कि उन गांव में रहने वाले लोगों को भी काफी हद तक नुकसान पहुंचाता है".
भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में गाड़ी के एमिशन्स (emissions), इंडस्ट्री एमिशन (industry emission), निर्माण की गतिविधियां और फसल के वेस्ट को जलाना शामिल हैं. इसके अलावा खराब कचरा प्रबंधन पद्धतियों (waste management practices) और भोजन पकाने के गलत तरीकों के कारण समस्या और ज्यादा बढ़ गई है.
डॉ. गुरमीत सिंह छाबड़ा कहते हैं, "वायु प्रदूषण से समूचे शरीर में सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस हो सकता है, जो रेस्पिरेटरी ऑर्गन के अलावा पूरे शरीर में समस्या पैदा कर सकता है. बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने वाले दमा के रोगियों को कोरोनरी हार्ट की बीमारी, डायबिटीज और कुछ प्रकार के कैंसर होने का ज्यादा खतरा हो सकता है".
इसके अलावा, वायु प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण समय से पहले बुढ़ापा और कोशिकाओं और डीएनए की क्षति के कारण कुछ तरह के स्थाई रोग का ज्यादा खतरा हो सकता है. यह ध्यान रखना भी जरुरी है कि बच्चे, बुजुर्ग और अस्थमा के मरीज सहित पहले से मौजूद स्वास्थ्य की समस्या वाले लोग वायु प्रदूषण के प्रभाव के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो सकते हैं.
डॉ. रवि शेखर झा फिट हिंदी से कहते हैं, "हमने अस्थमा के मामले में एक अलग तरह का रुझान भी देखा है. युवाओं में अस्थमा और इसके कारण होने वाली जटिलताएं बढ़ रही हैं. बहुत से स्कूली बच्चों में भी अस्थमा का यह हाल है कि इसे नियंत्रित करना मुश्किल हो रहा है और अस्थमा अटैक भी बढ़ गए हैं. बहुत से बच्चे इन्हेलर्स का प्रयोग करने से डरते हैं और इस कारण भी अटैक बढ़ते हैं. लेकिन कोविड के बाद एक अच्छी बात यह हुई है कि लोगों की वैक्सीन जागरूकता बढ़ी है और वे फ्लू वैक्सीन लेने लगे हैं, जिसके कारण बुजुर्गों में खासतौर से सर्दी के मौसम में गंभीर रूप के अटैक कम हुए हैं".
अस्थमा के मरीजों के लिए सबसे जरूरी है कि जब-जब वायु प्रदूषण का लेवल बढ़े तो खुद को इससे बचाएं.
सुबह सवेरे और देर रात दोनों समय घर से बाहर न निकलें क्योंकि उस समय वायु प्रदूषण का लेवल सबसे ज्यादा होता है.
वायु प्रदूषण बढ़ने पर अगर बाहर निकलना भी है, तो हमेशा मास्क पहन कर निकलें.
अस्थमा के जो मरीज इनहेलर या दवाइयां ले रहे हैं, उन सब दवाइयों का सेवन बंद न करें और अगर जरूरत पड़े और अगर ऐसा लग रहा है कि अस्थमा कंट्रोल नहीं हो पा रहा है, सांस ज्यादा फूल रही है, खांसी ज्यादा आ रही है, तो अपने डॉक्टर से जाकर मिलें. यह वह समय हो सकता है, जब उनको कुछ दवाएं बढ़ाने की जरूरत महसूस हो.
वायु प्रदूषण के समय पर वायरल इन्फेक्शंस बहुत बढ़ जाते हैं, जैसे कि फ्लू, कोरोना तो इस तरह के मरीजों को जिनको खासतौर पर अस्थमा है, उन्हें टीकाकरण कराना बहुत जरूरी है. हर साल जुलाई-अगस्त में फ्लू की वैक्सीन मार्किट में आती है. हमें उस वैक्सीन को सितम्बर के पहले हफ्ते में लगवा लेना चाहिए क्योंकि सितंबर के बाद ही वायु प्रदूषण का लेवल बढ़ता है और लगभग जनवरी-फरवरी तक हमारे वातावरण में वायु प्रदूषण लेवल काफी ज्यादा रहता है.
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